शिवनाथ नदी को बचाने के लिए मुख्यमंत्री ने किया श्रमदान, खूंटाघाट जलाशय को बचाने के लिए मुख्यमंत्री ने चलाई कुदाल, सूखे तालाबों को बचाने के लिए मुख्यमंत्री ने की अपील और छत्तीसगढ़ सरकार ने राजेंद्र सिंह को बनाया ब्रांड एंबेसडर! खबरों के ये ऐसे शीर्षक हैं जो संकेत दे रहे हैं कि 'चाउर वाले बाबा' यानी मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह जल संरक्षण के प्रति कितने अधिक चिंतित और संवेदनशील हैं! राज्य में भूजल का स्तर गिरकर तीन सौ से सात सौ फीट नीचे तक चला गया है। उद्योगों पर सरकारी मेहरबानी को छोड़ दीजिए तो हाल यह है कि न तो खेतों को पानी मिल रहा है और न इंसानों को। इसीलिए खतरे को भांपकर सरकार जल संरक्षण की चिंता में लग गई है। उसने कुओं और तालाबों की सुध तो ली ही, छोटी-बड़ी नदियों पर वह 1,500 से ज्यादा स्टॉपडैम बनवाने जा रही है।
प्राकृतिक जल को बचाने की जितनी चिंता मुख्यमंत्री को है, काश उतना ही गंभीर सरकारी अमला भी होता। तालाबों और कुओं की बात छोड़ दीजिए, 25 करोड़ की लागत से बने एक दर्जन से ज्यादा छोटे बांधों में इस कदर भ्रष्टाचार हुआ कि वे पहली बरसात भी नहीं झेल पाए। मामले के खुलासे और ग्रामीणों के तगड़े विरोध के बाद ठेकेदार क्षतिग्रस्त बांधों को सुधारने में जुटे हैं। द संडे इंडियन की टीम ने इनमें से कुछ बांधों का जायजा लिया। नक्सल प्रभावित क्षेत्र दुर्गुकोंदल ब्लॉक में खंडी नदी पर तीन करोड़ सैंतालीस लाख रुपये की लागत से बने बांध ने पहली ही बारिश में जलसमाधि ले ली। यहां जाड़ेकुर्से ग्राम में खंडी नदी पर बना एनीकट भी पहली बरसात नहीं झेल पाया। गांव के सरपंच देवजी देहारी आरोप लगाते हैं कि बांध पर स्वीकृत राशि का दसवां हिस्सा भी खर्च नहीं किया गया। नक्सली क्षेत्र होने का बहाना बनाकर सरकारी अधिकारी इसे देखने तक नहीं आए। उधर, मामले के तूल पकडऩे के बाद, जल संसाधन विभाग के कार्यपालक अभियंता बीके वच्छानी ने सफाई दी कि ठेकेदार का भुगतान रोक दिया गया है। इसके उलट सरपंच का दावा है कि ठेकेदार सत्तर प्रतिशत से अधिक राशि पा चुका है।
इससे भी बुरा हाल छुईखदान के समीप ग्राम भेंडा में बने जलाशय का है। लगभग तीन वर्ष पूर्व 12 करोड़ रुपये की लागत से जलाशय का निर्माण हुआ था। इससे छुईखदान विकासखंड के ग्राम झूरानदी, शाखा, कोर्राय, महाराटोला, भरमपुर, कोडका, कुटेली, बिडौरी, सिलपट्टी सहित लगभग दर्जन भर गांवों के लिए सिंचाई और पेयजल का इंतजाम होना था लेकिन भ्रष्टाचार और पैसे की सरकारी बंदरबांट ने जनता को खूब ठगा। पहली बारिश में ही जलाशय इस तरह क्षतिग्रस्त हुआ कि किसानों की 300 एकड़ फसल बह गई। घटिया निर्माण का हाल देखिए कि इतने बड़े जलाशय में पानी रूक ही नहीं रहा। कुछ विभागीय इंजीनियरों ने द संडे इंडियन से साफ तौर पर कहा कि निर्माण में हुए घोटाले की कहीं पोल न खुल जाए, इस डर से बांध के जल स्तर को जानबूझकर कम रखा गया है। हाल यह है कि बांध में पहले साल 30 प्रतिशत व दूसरे साल मात्र 50 प्रतिशत जल का भराव किया जा सका। दूसरी ओर पानी न मिलने से लगभग डेढ़ सौ हेक्टेयर की रबी फसल को जबरदस्त नुकसान पहुंचा है। इससे क्षेत्र के किसानों में मायूसी छाई हुई है। पूर्व सरपंच संजय चंदेल ने अफसोस जताते हुए कहा कि 12 करोड़ रुपये की रकम कम नहीं होती। इधर, जब प्रभारी अभियंता से जवाब मांगने का प्रयास हुआ तो उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के अनुसार, राज्य में अब तक 500 से अधिक एनीकट का निर्माण हो चुका है और एक हजार से अधिक एनीकट बनाने का लक्ष्य है, लेकिन तारीफ योग्य योजना का कड़वा सच यह है कि मुख्यमंत्री के गृह जिले में बन रही सिंचाई योजनाओं का भी बुरा हाल है। बीस करोड़ से अधिक के काम और पांच से सात एनीकट का निर्माण जांच के दायरे में आ गया है। वर्षों से जमे उपयंत्री और अनुविभागीय अधिकारियों ने जिस तरह से लूटखसोट का कारोबार शुरू किया है, उसके बाद एनीकट तो तैयार हो गए, परंतु किसानों के खेतों में हरियाली नहीं आ पाई। सभी बांधों पर अलग-अलग सरकारी जांच एजेंसियां काम कर रही हैं।
रातापायली एनीकट साढ़े तीन करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया था, वहां फाउंडेशन का ही पता नहीं है। एक बूंद पानी भी इस एनीकट में जमा नहीं हो रहा। ग्रामीणों की शिकायत के बाद रातापायली एनीकट की जांच आर्थिक अपराध शाखा को सौंपी गई है। इसके उलट निर्माण कार्य में लगे इंजीनियरों को बचाने और मामले को रफा-दफा करने के प्रयास जारी हैं। इसी तरह मासूल, केसला और चांदों से लेकर दाउटोला जलाशय की जांच भी जल संसाधन विभाग के अधीक्षण अभियंता कर रहे हैं। दाउटोला एनीकट में इस कदर भ्रष्टाचार हुआ कि उसका डाउन सिस्टम ही पूरी तरह से टूट गया। मगरलोड विकासखंड के मुख्यालय से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजाडेरा जलाशय लगभग 15 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया है। इसकी नहर ने पहली ही बारिश में दम तोड़ दिया। दो साल से जारी घटिया निर्माण का हाल यह है कि लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबे बांध की दीवार कमजोर है और नहर में पानी छोडऩे के लिए बनाया गया गेट कभी भी टूट सकता है। इंजीनियरों ने बड़ी जनहानि की आशंका जताई है। इस मामले में जब उप अभियंता केआर साहू से बात की गई तो उन्होंने ठेकेदार और उच्च अधिकारियों पर जिम्मेदारी थोप दी। कांग्रेस विधायक मोहम्मद अकबर अफसोस जताते हुए कहते हैं, 'किसानों को दोहरी त्रासदी झेलनी पड़ रही है। एक तो बांधों का निर्माण देरी से हो रहा है और ले-देकर बांध तैयार भी होते हैं तो खेतों के लिए पानी नहीं मिल पाता। सभी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, इसलिए किसी का गला पकड़ में नहीं आ रहा।' इस पूरे मामले में जल संसाधन विभाग के सचिव एनके असवाल का महज इतना ही बयान सामने आया है कि बैराज की गुणवत्ता से समझौता बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यदि बांधों को नुकसान पहुंचा तो दोषी अधिकारियों और ठेकेदारों से जवाब मांगा जाएगा। कार्रवाई भी होगी।
ठेकों में 300 करोड़ से ज्यादा की गड़बड़ी!
गांव का पानी गांव में और खेत का पानी खेत में : राज्य सरकार इसी लक्ष्य के साथ राज्य की जीवन-रेखा मानी जाने वाली महानदी पर 1,450 करोड़ की लागत से पांच बड़े बांध बना रही है। हालांकि इसके पीछे किसानों का हित कम और उद्योगों की चिंता ज्यादा दिखाई दे रही है। सरकार ने माना कि स्टॉपडैम इसलिए बनाए जा रहे हैं, ताकि तीन दर्जन से ज्यादा उद्योगों को पानी बेचकर हर साल 628 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया जाए। इससे किसानों का भला होगा। साथ ही भूमिगत जल स्तर के अलावा कुओं, तालाबों और नलकूपों का जल स्तर बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। इधर, 1,255 करोड़ के ठेके में 300 करोड़ से ज्यादा की गड़बड़ी होने का आरोप सत्ता पक्ष के विधायक देवजी पटेल ने लगाया है। द संडे इंडियन से चर्चा में उन्होंने खुलासा किया कि सभी पांच बैराज के टेंडर में जान-बूझकर ऐसे नियम बनाए गए ताकि स्थानीय ठेकेदार निविदा में हिस्सा न ले सकें। अचानक हुए इस खुलासे से हड़बड़ाए सिंचाई मंत्री हेमचंद यादव ने टेंडर को रद्द कर नए सिरे से निविदा जारी करने का आदेश दिया था। हालांकि उनका तर्क था कि पहला टेंडर इसलिए रद्द हुआ ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग टेंडर में भाग ले सकें। उसके बाद आंचलिक ठेकेदारों को भी काम दिया गया है।
अपने बूते बनाया बांध
करोड़ों की लागत से बन रहे सरकारी बांध भले ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुके हैं, लेकिन ग्राम देवरूम के ग्रामीणों ने मिसाल कायम की है। देवरूम, कसडोल ब्लॉक का सरहदी गांव है और रायपुर जिले के अंतर्गत आता है। मंत्रियों और विधायकों से फरियाद करते रहने के बावजूद जब गांव में बांध नहीं बना तो यहां के लोगों ने खुद के संसाधन और श्रम से बांध तैयार करने का निर्णय लिया। उप-सरपंच जयंती साहू कहते हैं, 'हर साल पानी की कमी के चलते पेयजल की समस्या आती थी, खेत भी सूखे रह जाते थे, सो इससे निजात पाने के लिए देवरूम और नगेड़ी के मध्य गुजरने वाली जोंक नदी पर अस्थायी बांध बनाने का निर्णय किया गया। दस किसानों ने मिलकर सारा खर्च उठाया और जोंक नदी में पत्थर एवं ईंट की करीब दस फीट पक्की दीवार खड़ी कर बांध तैयार कर लिया गया।’
आज पांच किलोमीटर के इलाके में लगभग दस से बीस फीट गहरा पानी भरा हुआ है और बांध सुरक्षित है लेकिन असल समस्या इस पानी को खेतों तक पहुंचाने की थी, इसलिए चंदा इकट्ठा कर अलग-अलग स्थानों पर साठ से अधिक मोटरपंप लगाए गए। उसके बाद खेतों में सिंचाई के लिए नियमित पानी भेजा जाने लगा। नतीजतन 1,500 एकड़ खेत में रबी की फसल लहलहा रही है। साथ ही क्षेत्र के आधा दर्जन से ज्यादा गांवों- देवरूम, गोलाझर, लिसाभांठा, देवरी, नगेड़ी, मुगुलभांठा, निठोरा चांदन एवं थरगांव के दस हजार से अधिक परिवारों को पेयजल और निस्तारी का पानी भी मिल रहा है। भूजल स्तर में भी सुधार हो रहा है। हर साल बांध निर्माण पर सवा से डेढ़ लाख रुपये का खर्च आता है और यह खर्च ग्रामीण खुद वहन करते हैं।
राजकमल सिंघानिया, कांग्रेस विधायक।
सरकार को सिर्फ उद्योगों की चिंता है। पाहंदा ब्लॉक में प्रस्तावित एक बांध पर यह कहते हुए वित्त विभाग ने रोक लगा दी कि इससे सिर्फ किसानों को लाभ होगा, क्योंकि वहां एक भी उद्योग नहीं है।
/articles/baha-gae-baandha