बेरुखी झेलती झील


देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र और नैनीताल की संजीवनी नैनी झील सूखने के कगार पर है। इस बार ठंड के मौसम में ही झील के जलस्तर में जबरदस्त गिरावट आ गई। नैनी झील के पानी का स्तर करीब चार फीट नीचे पहुँच गया है। झील के जलस्तर में पिछले साल के मुकाबले करीब 9 फीट और 2014 के मुकाबले 7.5 फीट ज्यादा गिरावट आ गई है।

जलस्तर में गिरावट का यह सिलसिला लगातार जारी है। जानकारों के मुताबिक झील का जलस्तर रोजाना करीब 15 से 30 सेंटीमीटर गिर रहा है। जाड़ों के मौसम में झील के जलस्तर में इस कदर गिरावट इससे पहले कभी नहीं देखी गई।

मई-जून के महीनों में पर्यटक सीजन के चलते पानी की खपत बढ़ जाने और गर्मी के चलते आमतौर पर झील का जलस्तर बहुत नीचे चला जाता था लेकिन उन दिनों भी पानी के स्तर में इतनी गिरावट कभी नहीं आई। जलस्तर में आ रही इस गिरावट से नैनीताल में पीने के पानी की आपूर्ति और पर्यटन उद्योग पर बुरा असर पड़ने के आसार नजर आ रहे हैं। साथ ही झील से लगी पहाड़ियों में भू-स्खलन का खतरा बढ़ गया है। पर उत्तराखण्ड को पर्यटन प्रदेश बनाने का दम भरने वाली राज्य सरकार और झील संरक्षण के नाम पर अब तक करोड़ों रुपए ठिकाने लगा चुके सरकारी महकमे इससे बेखबर हैं।

लोक निर्माण विभाग के प्रान्तीय खण्ड के अधिशासी अभियन्ता सुनील कुमार गर्ग के मुताबिक नैनीताल के झील का जलस्तर पिछले साल इन दिनों पैमाने से तकरीबन पौने छह फीट ऊपर था। साल 2014 में इन्हीं दिनों झील का जलस्तर चार फीट के आसपास था। जबकि इस बार झील का जल स्तर निश्चित पैमाने से तीन फीट नीचे है। सुनील कुमार गर्ग के मुताबिक इस साल झील का जलस्तर पिछले साल के मुकाबले करीब तीन मीटर और 2014 के मुकाबले 7.5 फीट नीचे चला गया है।

उत्तराखण्ड जल संस्थान के अधिशासी अभियन्ता जगदीप चौधरी के मुताबिक झील के जलस्तर में तेजी से आ रही इस खतरनाक गिरावट के मद्देनजर भविष्य में पीने के पानी की आपूर्ति बाधित होना तय है। चौधरी के मुताबिक फिलहाल नगर में रोजाना करीब 14 एमएलडी की माँग है। गर्मियों के दिनों में पानी की खपत रोजाना 22 एमएलडी तक पहुँच जाती है। झील के मौजूदा हालात के मद्देनजर इस माँग को पूरा कर पाना नामुमकिन है। लिहाजा जल संस्थान अभी से पेयजल आपूर्ति में कटौती पर विचार करने लगा है।

नैनीताल झीलों के लिये जाना जाता है। एक दौर में नैनीताल और इसके आस -पास 60 प्राकृतिक झीलें थीं। इस क्षेत्र को ‘छःखाता’ कहा जाता था। राजस्व अभिलेखों में आज भी यह क्षेत्र छःखाता परगने के रूप में दर्ज है। छःखाता शब्द संस्कृत का अपभ्रंश है। छःखाता का भावार्थ है 60 झीलों वाला क्षेत्र। इनमें से कुछ झीलें कालान्तर में अपना वजूद खो चुकी हैं।

अब मायने रखने वाली चन्द झीले बची हैं, जिनमें - नैनीताल, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, मलुवाताल, खुर्पाताल, सरियाताल और बरसाती झील सूखाताल आदि शामिल हैं। इनमें सबसे आकर्षक झील नैनीताल की ही है।

नैनीताल के बसावट के दौरान नैनी झील का क्षेत्रफल 120.5 एकड़ और अधिकतम गहराई 28 मीटर आँकी गई थी। 1880 में प्रलयकारी भू-स्खलन के बाद झील का क्षेत्रफल घटकर 114.5 एकड़ रह गया था। एक दौर में 4.70 एकड़ क्षेत्र को नैनी झील का जल संग्रहण क्षेत्र माना गया था।

झील से लगी पहाड़ियों में बने तकरीबन डेढ़ लाख फीट लम्बे छोटे-बड़े नाले झील को सदैव पानी से लबालब भरा रखने का काम किया करते थे। यहाँ की झील, पहाड़ियों और इस बेमिसाल नालातंत्र की देखरेख और रखरखाव के लिये 1927 में हिल साइड सेफ्टी एवं झील विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी। अब यह समिति कागजों में सिमट कर रह गई है।

नैनी झील नैनीताल का प्राण है। यह यहाँ के लोगों को रोजी-रोटी, भोजन-पानी, पहचान और आत्म सम्मान देती है। झील की सेहत और खूबसूरती से नैनीताल की खूबसूरती है। पर्यटन है, रोजगार है। सालाना अरबों रुपए का कारोबार है। इस झील से नैनीताल नगर ही नहीं बल्कि आसपास के इलाकों के लोगों को भी पीने का पानी और रोजगार मिलता है। नैनीताल का वजूद झील पर ही टिका है। सभी सरकारी योजनाएँ इसी झील की बुनियाद पर बनती हैं। पर आज यही झील तकरीबन लावारिस है।

साल 2003 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की पहल पर भारत सरकार ने नैनीताल की झील के संरक्षण एवं प्रबन्ध के लिये करीब 48 करोड़ रुपए की राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना मंजूर की थी। इस योजना के तहत करीब पाँच करोड़ रुपए की लागत से झील में एयरेशन के अलावा और कोई काम नहीं हुआ। 2008-09 में जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत पहली किश्त के रूप में नैनीताल के लिये 4368 लाख रुपए मंजूर हुए।


झील से लगी पहाड़ियों में बने तकरीबन डेढ़ लाख फीट लम्बे छोटे-बड़े नाले झील को सदैव पानी से लबालब भरा रखने का काम किया करते थे। यहाँ की झील, पहाड़ियों और इस बेमिसाल नालातंत्र की देखरेख और रखरखाव के लिये 1927 में हिल साइड सेफ्टी एवं झील विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी। अब यह समिति कागजों में सिमट कर रह गई है। नैनी झील नैनीताल का प्राण है। यह यहाँ के लोगों को रोजी-रोटी, भोजन-पानी, पहचान और आत्म सम्मान देती है। इधर झील को केन्द्र में रखकर एशियन बैंक की आर्थिक मदद से नैनीताल नगर की पेयजल आपूर्ति व्यवस्था के पुनर्गठन के लिये करीब 71 करोड़ रुपए खर्चे जा रहे हैं। इस योजना का काम फिलहाल चल रहा है। नैनीताल नगर का सारा दारोमदार नैनी झील पर टिका होने के वावजूद जमीनी हालत यह है कि पिछले करीब 18 सालों से झील की सालाना नाप-जोख तक नहीं हो पाई है।

नैनीताल की झील का ज्यादातर जल संग्रहण क्षेत्र कंक्रीट के जंगल से पट गया है। पिछले दो-ढाई दशकों के दौरान यहाँ हुए हजारों वैध और अवैध भवन बन जाने से बरसात का पानी सोखकर झील को पानी देने के लिये अब यहाँ समतल जमीन नहीं बची है। पहले मुख्य सड़क, मालरोड और बाजार क्षेत्र को छोड़कर नगर की बाकी सभी सड़कें/रास्ते कच्चे थे, ये बरसात में पानी सोखने का काम करते थे।

अब नगर के सभी सड़क/रास्ते पक्के हो गए हैं। यही नहीं आजाद भारत के योजनाकारों ने खेल के मैदान और ठंडी सड़क के एक हिस्से को भी टाइलों से पाट दिया है। झील की तलहटी में बेहिसाब मिट्टी-मलबा और कूड़ा-करकट भर जाने से झील के भीतर मौजूद प्राकृतिक जलस्रोत बन्द हो गए हैं। एक दौर में यहाँ सैकड़ों प्राकृतिक जल स्रोत थे, पर अब ज्यादातर पानी के स्रोत सूख गए हैं।

झील का महत्त्वपूर्ण जल संग्रहण क्षेत्र माने जाने वाले सूखाताल क्षेत्र में भी कंक्रीट का जंगल उग गया है। नैनीताल में खाली जमीन के नाम पर जंगलात की निगरानी वाला वन क्षेत्र और तेज ढालदार कुछ जमीनें बची हैं, जो कि बरसात का पानी सोख पाने में असमर्थ हैं।

नतीजन बरसात का पानी जमीन में सामने के बजाय तेज रफ्तार से नलों के जरिए झील में पहुँचता है। इसके साथ बहकर आया मिट्टी-मलबा और कूड़ा-करकट झील की तल में समा जाता है, झील के भर जाने की सूरत में अतिरिक्त पानी की निकासी कर दी जाती है।

रही-सही कसर अबकी मौसम की बेरुखी ने पूरी कर दी। इस साल मानसून के बाद यहाँ बारिश नहीं हुई है। बर्फ ने भी नैनीताल से मुँह मोड़ लिया। पिछले कई सालों बाद इस बार नैनीताल की ठंड सूखी ही बीत गई। इस सबके चलते अबकी नैनीताल के झील में रिकार्ड गिरावट आ गई है। जलस्तर घट जाने के चलते झील के किनारों में मिट्टी-मलबे के बदनुमा डेल्टा पसरे नजर आ रहे हैं।

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