मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ियों से निकली सोन नदी उत्तर प्रदेश की सीमाओं से होकर बिहार में आती है और गंगा नदी में दाहिनी ओर से समाहित हो जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी उत्तर प्रदेश से आती है।  मध्य प्रदेश बिहार के हिस्से का पानी नहीं दे रहा है तीनों राज्यों के बीच सोन नदी के जल के बँटवारे के बारे मे बाणसागर समझौता है जिस पर बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर ने वर्ष 1976 में हस्ताक्षर किये थे। सोन नहर प्रणाली बेकार हो गई है। नहर में पानी नहीं है। बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग ने सोन नहर पर निर्भर किसानों को सिंचाई के वैकल्पिक उपाय करने के लिये कहा है। करीब ढाई सौ साल पुरानी इस नहर प्रणाली का कमान क्षेत्र लगभग आठ लाख हेक्टेयर में फैला है जो पुराना शाहाबाद के चार जिले रोहतास, कैमुर, बक्सर, भोजपुर के अलावा पड़ोस के पटना, अरवल व गया जिले के कुछ इलाके में पड़ता है।
अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह के बाद इस नहर प्रणाली का पुनरुद्धार कराया था ताकि किसानों को राहत देने के साथ ही सिंचाई कर के तौर पर सरकार को कमाई हो। इसके साथ एक गुप्त एजेंडा भी था कि हजारीबाग के जंगलों से लकड़ी की ढुलाई सुगम हो और आवश्यकता होने पर फौजी टूकड़ियों की आवाजाही आसान हो। बताते हैं कि अंग्रेजी काल में यह निर्माण प्राचीन सिंचाई प्रणाली के अवशेष की बुनियाद पर हुआ था जिसका निर्माण शेरशाह सूरी ने कराया था।
मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ियों से निकली सोन नदी उत्तर प्रदेश की सीमाओं से होकर बिहार में आती है और गंगा नदी में दाहिनी ओर से समाहित हो जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी उत्तर प्रदेश से आती है।
 मध्य प्रदेश बिहार के हिस्से का पानी नहीं दे रहा है तीनों राज्यों के बीच सोन नदी के जल के बँटवारे के बारे मे बाणसागर समझौता है जिस पर बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर ने वर्ष 1976 में हस्ताक्षर किये थे।
इस वर्ष सोन नदी के जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा कम होने से नहर प्रणाली में स्वभाविक तौर से पानी की कमी है। ऊपरी बहाव क्षेत्र में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की जरूरतें पूरा करने के बाद बहुत निचले बहाव क्षेत्र में बहुत कम पानी पहुँच पाता है। इसलिये किसानों को सिंचाई के लिये पानी की व्यवस्था दूसरे स्रोतों से करने के लिये कह दिया गया है। हालांकि सरकारी तौर पर हाथ खड़ा किये जाने के पहले नहर में पानी आने का इन्तजार करने में किसानों के रबी की फसल काफी हद तक सूख गई है।
जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियन्ता रामेश्वर चौधरी ने कहा कि बाणसागर जलाशय में पानी की कमी का एक कारण रिहंद डैम से करार के मुताबिक पानी नहीं आना है। रिहंद से करार के मुताबिक आठ हजार क्यूसेक पानी आना चाहिए पर पिछले कई वर्षों से औसतन तीन हजार क्यूसेक पानी आता है जो घटकर कई बार पाँच सौ क्यूसेक तक रह जाता है।
बिहार को सोन नहर प्रणाली से खरीफ फसल के दौरान 15 हजार क्यूसेक और रबी फसल के दौरान 8 हजार क्यूसेक पानी की जरूरत होती है पर कम वर्षा और जलग्रहण क्षेत्र में पानी की कमी की वजह से पूरी प्रणाली अभूतपूर्व समस्या में है। सरकार ने रबी मौसम के आरम्भ में ही आसन्न संकट से लोगों को अगाह किया था। अभी उपलब्ध पानी नहरों में छोड़ा जा रहा है, पर अधिकतर वितरणियों में आखिरी सिरे तक पानी नहीं पहुँच पा रहा।
किसानों का कहना है कि सरकार ने अगर कदवन में प्रस्तावित जलाशय बनाने में तत्परता दिखाई होती तो ऐसी स्थिति नहीं आती। कदवन जलाशय का निर्माण इंद्रपुरी बराज से 60 किलोमीटर ऊपर बनाना प्रस्तावित है। पर 40 वर्षों से इसकी चर्चा भर हो रही है, कोई काम नहीं हुआ।
उल्लेखनीय है कि सोन नदी अमरकंटक की पहाड़ियों से निकलती है जो मध्य प्रदेश में पड़ता है। उत्तरप्रदेश की सीमाओं को छूते हुए यह नदी बिहार में गंगा नदी में समहित हो जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी रिहंद उत्तर प्रदेश से आती है। रिहंद नदी पर उत्तर प्रदेश में डैम बनने के बाद समस्याएँ पैदा होने लगी। उसकी वजह से सोन नदी में पानी आना घटता गया। सोन के जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा कम होने पर समस्या उत्पन्न हो जाती है यह साल अल्पवृष्टि का लगातार तीसरा साल है।
कदवन जलाशय के निर्माण के बारे में केन्द्रीय स्तर पर बैठक आयोजित हुई थी पर उत्तर प्रदेश सरकार ने अड़ंगा डाल दिया। उसका कहना था कि कदवन जलाशय बनने से झारखण्ड क्षेत्र में अवस्थित ओबरा बिजली प्रकल्प डूब जाएगा। हालांकि डूब क्षेत्र के बारे में बिहार सरकार के सर्वेक्षण के अनुसार वन्यजीव वास स्थान प्रभावित नहीं होगा। इसलिये वन विभाग या वन्यजीव बोर्ड से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।
किसान मजदूर संघ के विजय बहादुर सिंह, ने आरोप लगाया कि बिहार की सभी सरकारों ने कदवन जलाशय के मसले की अनदेखी की है। इस वर्ष मानसून के असफल होने से किसान संकट में पड़ गए हैं।
इस वर्ष पानी की कमी का यह आलम है कि जहाँ 600-700 क्यूसेक पानी आना चाहिए वहाँ 40-50 क्यूसेक पानी आ पाता है। पटना जिले के विक्रम क्षेत्र के अभियंता रामजी राम ने बताया कि बराज से मात्र तीन सौ क्यूसेक पानी मिल पा रहा है जिससे नहर के आखिरी छोर तक पानी पहुँचना असम्भव है।
Path Alias
/articles/baekaara-hao-gai-haai-saona-nahara
Post By: RuralWater