बेहतर मॉनसून की उम्मीद पर दुनिया कायम


सूखाकहते हैं कि उम्मीद पर दुनिया कायम है। दो साल के सूखे और लगभग अकाल जैसी स्थिति के बाद मौसम विज्ञानियों ने इस साल सामान्य से अधिक बारिश होने का अनुमान लगाया है। इसके साथ ही उम्मीदों का दौर शुरू हो गया है। बेहतर मॉनसून से कृषि वृद्धि, महँगाई में कमी, ब्याज दरों में कमी, कार से लेकर मकान तक हर चीज के कर्ज पर ब्याज दर में कमी, रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजें सस्ती और शेयर मार्केट के रिवाइवल के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। यानी बेहतर मॉनसून की सम्भावना ने अच्छे दिन आने की आहट दे दी है। मौसम विभाग ने इस वर्ष के अपने पहले अनुमान में सामान्य से अधिक बारिश के आसार जताए हैं और कहा है कि इस साल मॉनसून दीर्घावधि औसत यानी एलपीए का 106 फीसदी रहेगा। दो साल से अल नीनो की मार झेल रहे भारत को इससे बड़ी राहत मिलेगी, क्योंकि यहाँ पानी की किल्लत से कई इलाकों में हालात बेहद खराब हैं। केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने उम्मीद जताई है कि इस साल बेहतर मॉनसून से कृषि उत्पादन में जोरदार बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।

मौसम विभाग ने यह भी बताया है कि देश के करोड़ों किसानों के लिये जीवन-रेखा मानी जानेवाली मॉनसूनी वर्षा इस साल न केवल सामान्य से अधिक रहेगी, बल्कि उसका वितरण भी बेहतर रहने की उम्मीद है। कुछ इलाकों में बाढ़ भी आ सकती है, लेकिन उसकी भविष्यवाणी अभी मुश्किल है। भारतीय उद्योग परिसंघ के महानिदेशक चंद्रजित बनर्जी ने उम्मीद जताई है कि इस अनुमान से उद्योग जगत का मिजाज सुधरेगा। इससे ग्रामीण माँग बढ़ेगी और निवेश में भी तेजी आएगी, जिससे आठ फीसदी वृद्धि दर हासिल करने में मदद मिलेगी। अच्छी खबर यही है कि पिछले दो साल लगातार सूखे का सबब बने अल नीनो का असर जुलाई और अगस्त के दौरान पस्त पड़ने के संकेत हैं, जबकि भारत में वर्षा करने वाला दक्षिण पश्चिम मॉनसून इसी दौरान जोर पकड़ता है। जून से सितम्बर के दौरान सभी चार महीनों में सामान्य से बेहतर वर्षा का अनुमान है। बाद के दो महीनों में बारिश और जोर पकड़ेगी।

पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों के अलावा तमिलनाडु और रायलसीमा में मॉनसून के सामान्य से कम रहने के आसार तो हैं, लेकिन इन इलाकों में दूसरे क्षेत्रों की तुलना में वर्षा की मात्रा को देखते हुए बहुत असर नहीं पड़ेगा। कुल मिलाकर 94 फीसदी सम्भावना यही है कि इस साल दक्षिण पश्चिम मॉनसून सामान्य से अधिक रहेगा, जबकि छह फीसदी सूरत में ही यह सामान्य से कम रह सकता है। सूखे की मार झेल रहे महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा के साथ पश्चिमी और मध्य भारत के कुछ इलाकों में भी इस साल बेहतर वर्षा की उम्मीद है। तीन ऐसे पहलू हैं, जो मॉनसून के मोर्चे पर बेहतर तस्वीर दर्शाते हैं।

एक तो यही कि मॉनसून के समय इस साल अल नीनो असर नहीं दिखाएगा। दूसरा, मॉनसून के उत्तरार्द्ध में हिंद महासागर डायपोल भी सकारात्मक रहेगा और तीसरा पहलू यह है कि हिमालय में बर्फ का बनना भी मॉनसून के लिहाज से बेहतर है। मौसम की भविष्यवाणी करने वाली निजी कम्पनी स्काईमेट ने भी इस साल मॉनसून के सामान्य से बेहतर रहने का अनुमान व्यक्त किया है। मॉनसून पूर्वानुमानों में कहा गया है कि मॉनसून दीर्घावधि औसत अवधि यानी एलपीए का 106 प्रतिशत रहेगा। 90 प्रतिशत से कम एलपीए को बहुत कम मॉनसून माना जाता है और 90-96 प्रतिशत एलपीए को सामान्य से कम मॉनसून माना जाता है। सामान्य मॉनसून एलपीए का 96-104 प्रतिशत होता है। सामान्य से बेहतर मॉनसून एलपीए के 104-110 प्रतिशत के बीच होता है और 110 प्रतिशत से ज्यादा एलपीए को बहुत ज्यादा माना जाता है।

कमजोर मॉनसून के कारण भारत का खाद्यान्न उत्पादन फसल वर्ष 2014-15 में घटकर 25 करोड़ 20.2 लाख टन रह गया जो उसके पिछले वर्ष रिकॉर्ड 26 करोड़ 50.4 लाख टन के स्तर पर था। देश में 14 प्रतिशत कम बरसात होने के बावजूद चालू फसल वर्ष 2015-16 में उत्पादन मामूली बढ़त के साथ 25 करोड़ 31.6 लाख टन होने का अनुमान है। गौरतलब है कि देश के जीडीपी में 15 प्रतिशत का योगदान देनेवाली और करीब 60 प्रतिशत जनता को रोजगार देनेवाली कृषि मुख्य रूप से मॉनसून पर निर्भर है और कृषि भूमि के महज 40 प्रतिशत हिस्से में ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। खराब मॉनसून के कारण 2015-2016 फसल वर्ष (जुलाई से जून) को दस राज्यों में सूखा घोषित किया गया है। बेहतर मॉनसून का मतलब यह है कि इस बार कृषि वृद्धि पहले से ज्यादा रहेगी। अगर मॉनसून औसत से बेहतर रहता है तो कृषि क्षेत्र की वृद्धि बढ़कर तीन फीसदी से ज्यादा हो सकती है। इससे देश के जीडीपी में 25 से 50 बेसिक प्वॉइंट्स यानी एक चौथाई से आधा फीसदी अंकों की बढ़ोतरी हो सकती है।

ग्रामीण इलाकों में माँग ज्यादा होने से जीडीपी के आठ प्रतिशत का आँकड़ा पार करने की सम्भावना बढ़ जाएगी। मॉनसून बेहतर रहने से फसलों को सिंचाई के लिये ज्यादा पानी मिलेगा। इससे खाने के सामान की कीमत में गिरावट आएगी। कंज्यूमर प्राइस में खाद्य पदार्थों का हिस्सा काफी बड़ा है और इसकी कीमत कम रहने से महँगाई भी काबू में रहेगी। महँगाई कम रहने से रिजर्व बैंक को बेंचमार्क लैंडिंग रेट घटाने की सहूलियत हो जाएगी। रिजर्व बैंक के रेपो रेट घटाने पर कम्पनियों की उधारी की लागत कम हो जाएगी। महँगाई कम रहने पर ब्याज दर में कमी ज्यादा हो सकती है। रेट कम रहने से सरकारी बॉन्ड की यील्ड भी घट सकती है। दस साल के सरकारी बॉन्ड की यील्ड फरवरी के रिकॉर्ड हाई से गिरकर अब 7.40 फीसदी रह गई है। कम ब्याज दर और लिक्विडिटी बढ़ाने से यील्ड घटकर 7.25 फीसदी तक आ सकती है। गौरतलब है कि पिछले साल भी मौसम विभाग ने मॉनसून के दौरान देशभर में जिस तरह की बरसात होने का अनुमान जारी किया था, लगभग वैसी ही बरसात देखने को मिली थी।

हालाँकि निजी संस्था स्काईमेट ने 2015 में मॉनसून सीजन शुरू होने से पहले सामान्य मॉनसून की भविष्यवाणी की थी, लेकिन सामान्य से बहुत कम बारिश होने की वजह से उसका अनुमान बुरी तरह पिटा था। स्काईमेट ने इस साल मौसम विभाग से पहले मॉनसून को लेकर अपना अनुमान जारी किया है, जिसके मुताबिक इस साल देश में सामान्य से ज्यादा बरसात होने का अनुमान लगाया जा रहा है। स्काईमेट के मुताबिक इस साल देशभर में जून से सितम्बर के दौरान 105 फीसदी बरसात की ज्यादा उम्मीद है। स्काइमेट के मुताबिक इस साल सामान्य से बहुत ज्यादा बरसात होने की 20 फीसदी सम्भावना है, जबकि 35 फीसदी सम्भावना सामान्य से थोड़ी ज्यादा बरसात और 30 फीसदी सम्भावना सामान्य बरसात की लगाई जा रही है। स्काईमेट के मुताबिक इस साल सामान्य के मुकाबले बहुत कम बरसात की सम्भावना भी बहुत कम है।

और अंत में
प्रस्तुत है राजकुमारी रश्मि की सूखे पर कविता-

सूखे में भी बाँस वनों के,
चेहरे रहे हरे।
टाटा करती दूर हो गई,
खेतों से हरियाली।
सिर पर हाथ धरे बैठे हैं,
घर में लोटा-थाली।
चकला, बेलन और रसोई,
आँसू रहे भरे।
सूखा कुँआ बंधे कैदी-सा,
गुमसुम पड़ा रहा।
सूरज हंटर लेकर उसके,
सिर पर खड़ा रहा।
पपड़ाए होठों के सपने मन में रहे धरे।


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