जो नेपाल और खासकर काठमाण्डू इस मौसम में सैलानियों का स्वर्ग बन जाया करता था, भूकम्प की तबाही के चलते नरक में तब्दील हो चुका है। स्थानीय लोगों के तो खैर जान के लाले पड़े हुए हैं। आज नेपाल सारी दुनिया के सामने अपना फटा गमछा फैलाए मदद की गुहार लगा रहा है। मौत की विभीषिका और दहशत के मारे वह बदहवास है, उसकी गौरवशाली ऐतिहासिक धरोहरें, मन्दिर, वैभव - सब धूल में मिल गए...नेपाल से दिल्ली तक दो दिनों में जिस तरह धरती का आँचल फड़फड़ाया और विनाशकारी भूकम्प में नेपाल, तिब्बत, बिहार और एक हद तक उत्तर प्रदेश में तबाही और दहशत का मंजर सामने आया, उसने यह अच्छी तरह समझा दिया कि न धरती हमारी चाकर है और न आसमान हमारा नौकर। हम कुदरत से खिलवाड़ करेंगे तो इसका सीधा मतलब है कि ऐसा अपनी जान पर खेलकर ही करेंगे।
नेपाल में पहले शनिवार को धरती डोली तो देखते ही देखते काठमाण्डू मलबे में तब्दील हो गया और हजारों जानें जमीन्दोज हो गईं, मलबे में फंसे-दबे लोगों को निकालने का काम शुरू हुआ तो रविवार को आए भूकम्प से दोबारा दहशत की लहर दौड़ गई और देर शाम तक काठमाण्डू के आसमान पर छाए बादल आफत की नई बरसात लेकर आ गए।
शनिवार के जलजले के चलते एवरेस्ट के आधार कैंप हिम स्खलन के शिकार हुए और वहाँ पर्वतारोहियों व पर्यटकों की जान गई तो रविवार देर शाम से शुरू बारिश से अब नेपाल में कई जगहों पर भू-स्खलन का खतरा मण्डराने लगा है। मौसम विभाग का अनुमान है कि वहाँ अगले 24 घण्टों में भारी बारिश हो सकती है। इसका मतलब हुआ कि भूकम्प के चलते मलबे में तब्दील काठमाण्डू और अधिकांश नेपाल पर जब भारी बारिश की मार पड़ेगी तो राहत और बचाव कार्यों पर भी पानी फिरेगा और मलबे में दबी, बची-खुची जिन्दगी की उम्मीद भी शायद दम तोड़ देगी।
काठमाण्डू में खराब मौसम के चलते ही भारत से उड़े वायुसेना के दो विमानों के वापस लौटने की खबर आ गई। बारिश से नेपाल में न सिर्फ बचाव कार्यों को बड़ा झटका लगेगा, बल्कि मलबे में दबे शवों के सड़ने से महामारी फैलने की भी आशंका रहेगी। जिनके घर-बार ध्वस्त हो गए और जो डर के मारे खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं, बारिश में उनका क्या हाल होगा, वे क्या खाएँगे, क्या ओढ़ेंगे और बिछाएँगे- सोचा भी नहीं जा सकता।
वैसे भी, जैसे-जैसे वक्त बीतता जा रहा है और नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों से भूकम्प से हुई तबाही की सूचनाएँ मिल रही हैं, वे विनाश लीला की भयावहता को बढ़ाती ही जा रही हैं। खुद नेपाल के राष्ट्रपति का कहना है कि दूर-दराज से सारी सूचनाएँ आ जाएँ तो पता चलेगा कि पाँच हजार लोगों को जलजले ने निगल लिया या फिर दस हजार लोगों को।
बहरहाल, जो नेपाल और खासकर काठमाण्डू इस मौसम में सैलानियों का स्वर्ग बन जाया करता था, भूकम्प की तबाही के चलते नरक में तब्दील हो चुका है। स्थानीय लोगों के तो खैर जान के लाले पड़े हुए हैं। आज नेपाल सारी दुनिया के सामने अपना फटा गमछा फैलाए मदद की गुहार लगा रहा है। मौत की विभीषिका और दहशत के मारे वह बदहवास है, उसकी गौरवशाली ऐतिहासिक धरोहरें, मन्दिर, वैभव - सब धूल में मिल गए।
भारत ने ऐसे दुर्दिन में अपने पड़ोसी के कन्धे पर हाथ रखा है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर हर सम्भव मदद की पहल की है तो उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने पड़ोसी नेपाल की मदद में तत्परता दिखाई है। अनेक नागरिक संगठन भी अपने स्तर से नेपाल की मदद और सेवा कार्यों में सक्रिय हुए हैं। समझना होगा कि मरने वाले और उजड़ने वाले हमारे-आप की तरह मनुष्य हैं, इसलिए नेपाल की कराह मनुष्यता की गुहार और मनुष्यता की पुकार है। यह सबके कान तक पहुँचनी चाहिए।
नेपाल में पहले शनिवार को धरती डोली तो देखते ही देखते काठमाण्डू मलबे में तब्दील हो गया और हजारों जानें जमीन्दोज हो गईं, मलबे में फंसे-दबे लोगों को निकालने का काम शुरू हुआ तो रविवार को आए भूकम्प से दोबारा दहशत की लहर दौड़ गई और देर शाम तक काठमाण्डू के आसमान पर छाए बादल आफत की नई बरसात लेकर आ गए।
शनिवार के जलजले के चलते एवरेस्ट के आधार कैंप हिम स्खलन के शिकार हुए और वहाँ पर्वतारोहियों व पर्यटकों की जान गई तो रविवार देर शाम से शुरू बारिश से अब नेपाल में कई जगहों पर भू-स्खलन का खतरा मण्डराने लगा है। मौसम विभाग का अनुमान है कि वहाँ अगले 24 घण्टों में भारी बारिश हो सकती है। इसका मतलब हुआ कि भूकम्प के चलते मलबे में तब्दील काठमाण्डू और अधिकांश नेपाल पर जब भारी बारिश की मार पड़ेगी तो राहत और बचाव कार्यों पर भी पानी फिरेगा और मलबे में दबी, बची-खुची जिन्दगी की उम्मीद भी शायद दम तोड़ देगी।
काठमाण्डू में खराब मौसम के चलते ही भारत से उड़े वायुसेना के दो विमानों के वापस लौटने की खबर आ गई। बारिश से नेपाल में न सिर्फ बचाव कार्यों को बड़ा झटका लगेगा, बल्कि मलबे में दबे शवों के सड़ने से महामारी फैलने की भी आशंका रहेगी। जिनके घर-बार ध्वस्त हो गए और जो डर के मारे खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं, बारिश में उनका क्या हाल होगा, वे क्या खाएँगे, क्या ओढ़ेंगे और बिछाएँगे- सोचा भी नहीं जा सकता।
वैसे भी, जैसे-जैसे वक्त बीतता जा रहा है और नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों से भूकम्प से हुई तबाही की सूचनाएँ मिल रही हैं, वे विनाश लीला की भयावहता को बढ़ाती ही जा रही हैं। खुद नेपाल के राष्ट्रपति का कहना है कि दूर-दराज से सारी सूचनाएँ आ जाएँ तो पता चलेगा कि पाँच हजार लोगों को जलजले ने निगल लिया या फिर दस हजार लोगों को।
बहरहाल, जो नेपाल और खासकर काठमाण्डू इस मौसम में सैलानियों का स्वर्ग बन जाया करता था, भूकम्प की तबाही के चलते नरक में तब्दील हो चुका है। स्थानीय लोगों के तो खैर जान के लाले पड़े हुए हैं। आज नेपाल सारी दुनिया के सामने अपना फटा गमछा फैलाए मदद की गुहार लगा रहा है। मौत की विभीषिका और दहशत के मारे वह बदहवास है, उसकी गौरवशाली ऐतिहासिक धरोहरें, मन्दिर, वैभव - सब धूल में मिल गए।
भारत ने ऐसे दुर्दिन में अपने पड़ोसी के कन्धे पर हाथ रखा है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर हर सम्भव मदद की पहल की है तो उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने पड़ोसी नेपाल की मदद में तत्परता दिखाई है। अनेक नागरिक संगठन भी अपने स्तर से नेपाल की मदद और सेवा कार्यों में सक्रिय हुए हैं। समझना होगा कि मरने वाले और उजड़ने वाले हमारे-आप की तरह मनुष्य हैं, इसलिए नेपाल की कराह मनुष्यता की गुहार और मनुष्यता की पुकार है। यह सबके कान तक पहुँचनी चाहिए।
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Post By: birendrakrgupta