कई जिलों में सूखे की स्थिति नहीं है लेकिन सामान्य से कम बारिश होने की वजह से फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है। सूखे और अल्प वर्षा ने प्रदेश के कई जिलों में सोयाबीन, अरहर, धान, उड़द और मूँग आदि फसलों को नुकसान पहुँचाया है। इतना ही नहीं कम बारिश का असर धान की खेती पर अधिक पड़ने की आशंका है। प्रदेश में पहले ही धान का रकबा इस बार 1.25 लाख हेक्टेयर कम है। बाकी बचे 20 लाख हेक्टेयर के रकबे में से लगभग 8 लाख हेक्टेयर फसल को सूखे की शिकार बताया जा रहा है। मध्य प्रदेश सरकार ने 23 जिलों की 114 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है। सरकार ने विभिन्न जिलों को सूखाग्रस्त घोषित करने के लिये जिलाधिकारियों से जमीनी रिपोर्ट माँगी थी। उसी को आधार बनाकर रीवा, सीधी, शहडोल, उमरिया, अनुपपुर, कटनी, छतरपुर, पन्ना, दमोह समेत कुल 23 जिलों की 114 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है।
पहले राज्य के पाँच जिलों की 32 तहसीलों को सूखाग्रस्त बताया गया था लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विदेश प्रवास से लौटने के बाद आँकड़ों में संशोधन किया गया है। प्रभावित जिलों में से अधिकांश पूर्वी मध्य प्रदेश के हैं जहाँ वर्षा सामान्य से करीब 30 फीसदी कम रही है। इस बीच सरकार ने कर्ज वसूली स्थगित कर किसानों को राहत देने का प्रयास किया है।
कई जिलों में सूखे की स्थिति नहीं है लेकिन सामान्य से कम बारिश होने की वजह से फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है। सूखे और अल्प वर्षा ने प्रदेश के कई जिलों में सोयाबीन, अरहर, धान, उड़द और मूँग आदि फसलों को नुकसान पहुँचाया है। इतना ही नहीं कम बारिश का असर धान की खेती पर अधिक पड़ने की आशंका है।
प्रदेश में पहले ही धान का रकबा इस बार 1.25 लाख हेक्टेयर कम है। बाकी बचे 20 लाख हेक्टेयर के रकबे में से लगभग 8 लाख हेक्टेयर फसल को सूखे की शिकार बताया जा रहा है। जारी है इसका असर चावल की कीमतों पर भी पड़ेगा। बुवाई की बात करें तो इस बार खरीफ की बुवाई पिछले साल की तुलना में अधिक की गई है। इसलिये उत्पादन पर सूखे का बहुत अधिक प्रभाव नजर आने की आशंका नहीं है।
सोयाबीन की फसल भी इस वर्ष अवर्षा और कीटों के प्रकोप से बुरी तरह प्रभावित है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया (सोपा) के मुताबिक प्रदेश में करीब 50 लाख किसानों ने 59.06 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन बोया था। इसके नुकसान का अब तक पूरा आकलन नहीं हो सका है।
इससे पहले प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने तो विंध्य प्रदेश को सूखाग्रस्त नहीं घोषित करने को लेकर विरोध प्रदर्शन करने की चेतावनी भी दी थी।
उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ दिनों में प्रदेश के कई किसान आत्महत्या करके या सदमे के कारण अपनी जान गवाँ बैठे हैं। खरीफ की फसल खराब होने और कर्ज की वजह से अलीराजपुर, धार और देवास जिलों में एक-एक किसान आत्महत्या कर चुका है।
खेतों में हरियाली नजर आ रही है लेकिन फसल न के बराबर हुई है। किसान नेता रामकुमार कहते हैं कि कई इलाकों में तो पैदावार इतनी कमजोर है कि किसानों ने खड़ी फसल काटने से इनकार कर दिया क्योंकि यह उनके लिये घाटे का सौदा होता। वह आरोप लगाते हैं कि अपने आपको किसान का बेटा कहने वाले मुख्यमंत्री इतने अहम वक्त में किसानों की मदद करने के बजाय विदेश यात्रा पर निकल गए।
वहीं माकपा के प्रदेश सचिव बादल सरोज की माँग है कि हालात को देखते हुए सरकार को किसानों को प्रति एकड़ के हिसाब से कम-से-कम 10,000 रुपए का भुगतान करना चाहिए, साथ ही उनको साल में कम-से-कम 200 दिन मनरेगा के तहत काम भी मिलना चाहिए।
इसी बीच सरकार की ओर से किसानों के लिये एक राहत भरी खबर भी आई है। सरकार ने कर्ज वसूली का काम फिलहाल स्थगित करने का फैसला किया है। हालांकि इसका फायदा केवल उन्हीं किसानों के मिलेगा जो सूखाग्रस्त घोषित जिलों की तहसीलों में रहते हैं। वहाँ किसानों को अब सहकारी समितियों को कर्ज चुकाने के लिये तीन साल का समय दिया गया है।
इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिये राज्य के सहकारिता विभाग ने जिलाधिकारियों से फसल उत्पादन की रिपोर्ट भी तलब की है। इतना ही नहीं जिन किसानों की कर्ज वसूली स्थगित की जा रही है उनको रबी की फसल के लिये नया कर्ज देने में भी किसी तरह की अड़चन नहीं आएगी।
जहाँ तक कर्ज की बात है तो प्रदेश के 38 जिला सहकारी बैंकों ने चार हजार से अधिक समितियों की मदद से 16 लाख से अधिक किसानों को 7,000 करोड़ रुपए तक का कर्ज केवल खरीफ फसल के लिये दिया था। इसकी वसूली आगामी 28 मार्च तक होनी थी।
उल्लेखनीय है कि पूर्वी मध्य प्रदेश में वर्षा सामान्य से करीब 31 फीसदी कम रही है। हालांकि पश्चिमी मध्य प्रदेश में सामान्य से दो फीसदी अधिक वर्षा हुई है लेकिन उससे कोई लाभ होता नजर नहीं आ रहा है।
हालात को देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विदेश जाने से पहले जल संसाधन विभाग और ऊर्जा विभाग को निर्देश दिया था कि खरीफ फसलों को बचाने के लिये पानी और बिजली की आपूर्ति में किसी तरह की कमी नहीं आनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि जिन क्षेत्रों में बाँध नहीं हैं वहाँ बिजली माँग में तेज बढ़ोत्तरी हो सकती है।
वापसी के बाद 9 अक्टूबर को उन्होंने एक बार पुनः जिला कलेक्टरों से कहा है कि वे जमीनी सर्वे कर 20 अक्टूबर तक अपनी रपट पेश करें।
पहले राज्य के पाँच जिलों की 32 तहसीलों को सूखाग्रस्त बताया गया था लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विदेश प्रवास से लौटने के बाद आँकड़ों में संशोधन किया गया है। प्रभावित जिलों में से अधिकांश पूर्वी मध्य प्रदेश के हैं जहाँ वर्षा सामान्य से करीब 30 फीसदी कम रही है। इस बीच सरकार ने कर्ज वसूली स्थगित कर किसानों को राहत देने का प्रयास किया है।
कई जिलों में सूखे की स्थिति नहीं है लेकिन सामान्य से कम बारिश होने की वजह से फसल बुरी तरह प्रभावित हुई है। सूखे और अल्प वर्षा ने प्रदेश के कई जिलों में सोयाबीन, अरहर, धान, उड़द और मूँग आदि फसलों को नुकसान पहुँचाया है। इतना ही नहीं कम बारिश का असर धान की खेती पर अधिक पड़ने की आशंका है।
प्रदेश में पहले ही धान का रकबा इस बार 1.25 लाख हेक्टेयर कम है। बाकी बचे 20 लाख हेक्टेयर के रकबे में से लगभग 8 लाख हेक्टेयर फसल को सूखे की शिकार बताया जा रहा है। जारी है इसका असर चावल की कीमतों पर भी पड़ेगा। बुवाई की बात करें तो इस बार खरीफ की बुवाई पिछले साल की तुलना में अधिक की गई है। इसलिये उत्पादन पर सूखे का बहुत अधिक प्रभाव नजर आने की आशंका नहीं है।
सोयाबीन की फसल भी इस वर्ष अवर्षा और कीटों के प्रकोप से बुरी तरह प्रभावित है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया (सोपा) के मुताबिक प्रदेश में करीब 50 लाख किसानों ने 59.06 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन बोया था। इसके नुकसान का अब तक पूरा आकलन नहीं हो सका है।
इससे पहले प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने तो विंध्य प्रदेश को सूखाग्रस्त नहीं घोषित करने को लेकर विरोध प्रदर्शन करने की चेतावनी भी दी थी।
उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ दिनों में प्रदेश के कई किसान आत्महत्या करके या सदमे के कारण अपनी जान गवाँ बैठे हैं। खरीफ की फसल खराब होने और कर्ज की वजह से अलीराजपुर, धार और देवास जिलों में एक-एक किसान आत्महत्या कर चुका है।
खेतों में हरियाली नजर आ रही है लेकिन फसल न के बराबर हुई है। किसान नेता रामकुमार कहते हैं कि कई इलाकों में तो पैदावार इतनी कमजोर है कि किसानों ने खड़ी फसल काटने से इनकार कर दिया क्योंकि यह उनके लिये घाटे का सौदा होता। वह आरोप लगाते हैं कि अपने आपको किसान का बेटा कहने वाले मुख्यमंत्री इतने अहम वक्त में किसानों की मदद करने के बजाय विदेश यात्रा पर निकल गए।
वहीं माकपा के प्रदेश सचिव बादल सरोज की माँग है कि हालात को देखते हुए सरकार को किसानों को प्रति एकड़ के हिसाब से कम-से-कम 10,000 रुपए का भुगतान करना चाहिए, साथ ही उनको साल में कम-से-कम 200 दिन मनरेगा के तहत काम भी मिलना चाहिए।
इसी बीच सरकार की ओर से किसानों के लिये एक राहत भरी खबर भी आई है। सरकार ने कर्ज वसूली का काम फिलहाल स्थगित करने का फैसला किया है। हालांकि इसका फायदा केवल उन्हीं किसानों के मिलेगा जो सूखाग्रस्त घोषित जिलों की तहसीलों में रहते हैं। वहाँ किसानों को अब सहकारी समितियों को कर्ज चुकाने के लिये तीन साल का समय दिया गया है।
इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिये राज्य के सहकारिता विभाग ने जिलाधिकारियों से फसल उत्पादन की रिपोर्ट भी तलब की है। इतना ही नहीं जिन किसानों की कर्ज वसूली स्थगित की जा रही है उनको रबी की फसल के लिये नया कर्ज देने में भी किसी तरह की अड़चन नहीं आएगी।
जहाँ तक कर्ज की बात है तो प्रदेश के 38 जिला सहकारी बैंकों ने चार हजार से अधिक समितियों की मदद से 16 लाख से अधिक किसानों को 7,000 करोड़ रुपए तक का कर्ज केवल खरीफ फसल के लिये दिया था। इसकी वसूली आगामी 28 मार्च तक होनी थी।
उल्लेखनीय है कि पूर्वी मध्य प्रदेश में वर्षा सामान्य से करीब 31 फीसदी कम रही है। हालांकि पश्चिमी मध्य प्रदेश में सामान्य से दो फीसदी अधिक वर्षा हुई है लेकिन उससे कोई लाभ होता नजर नहीं आ रहा है।
हालात को देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विदेश जाने से पहले जल संसाधन विभाग और ऊर्जा विभाग को निर्देश दिया था कि खरीफ फसलों को बचाने के लिये पानी और बिजली की आपूर्ति में किसी तरह की कमी नहीं आनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि जिन क्षेत्रों में बाँध नहीं हैं वहाँ बिजली माँग में तेज बढ़ोत्तरी हो सकती है।
वापसी के बाद 9 अक्टूबर को उन्होंने एक बार पुनः जिला कलेक्टरों से कहा है कि वे जमीनी सर्वे कर 20 अक्टूबर तक अपनी रपट पेश करें।
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Post By: RuralWater