बढ़ती जनसंख्या सीमित प्राकृतिक संसाधनों के लिये चुनौती

Population growth
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विश्व जनसंख्या दिवस पर विशेष


बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि विस्तार के लिये वनों को काटा जा रहा है। इससे कृषि योग्य बंजर भूमि तथा विविध वृक्ष प्रजातियों तथा बागों की सुरक्षित भूमि में कमी हो रही है। औद्योगिक विकास तथा आर्थिक विकास की चाह में उष्ण कटिबंधीय वनों का विनाश होते हम सभी देख रहे हैं। उष्ण कटिबंधीय सघन वन प्रतिवर्ष एक करोड़ हेक्टेयर की वार्षिक दर से लुप्त हो रहे हैं। थाईलैण्ड तथा फिलीपीन्स जैसे देश में जो कभी प्रमुख लकड़ी निर्यातक देशों में अग्रणी थे, वनों के विनाश के कारण बाढ़, सूखे तथा पारिस्थितिकी विनाश के शिकार हैं। पूरी दुनिया जनसंख्या के बढ़ते बोझ से चिन्तित है। इससे न केवल हमारा आर्थिक सन्तुलन बल्कि पारिस्थितिकीय सन्तुलन को भी बिगाड़ दिया है, जिसका परिणाम हम बढ़ती प्राकृतिक एवं मानव जन्य आपदाओं तथा जलवायु परिवर्तन जैसी पर्यावरण चुनौतियों से जोड़कर देख सकते हैं। जल प्रदूषण, वायू प्रदूषण जैसी समस्याओं का कारण बढ़ती जनसंख्या ही है। जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है, य​ह चिन्ताजनक स्थिति है।

वर्तमान में विश्व की जनसंख्या 7 अरब से भी ज्यादा है, जो वर्ष 2100 तक दस अरब 90 करोड़ होने का अनुमान है। जनसंख्या की वृद्धि मुख्यतः विकासशील देशों में होने की सम्भावना है। इसमें से आधी से ज्यादा जनसंख्या अफ्रीकी देशों में होगी। वर्ष 2050 में नाइजीरिया की जनसंख्या संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से ज्यादा हो जाने की सम्भावना है।

आज चीन, सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है, लेकिन आने वाले समय में भारत दुनिया का सबसे बड़ा आबादी वाला देश होने जा रहा है। यह तब है जब भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों में प्रजनन दर कम हुई है, क्योंकि इन देशों में परिवार नियोजन के विभिन्न कार्यक्रम जोर-शोर से चल रहे हैं।

जनसंख्या को काबू रखने के लिये लोगों को शिक्षित एवं जागरूक बनाने की दृष्टि से हर वर्ष 11 जुलाई को ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ पूरे विश्व में मनाया जाता है। 11 जुलाई 1987 को विश्व की जनसंख्या 5 अरब हुई थी, तब से इस विशेष दिन को यूनाईटेड नेशन्स डेवलपमेन्ट प्रोग्राम द्वारा विश्व जनसंख्या दिवस घोषित कर, हर साल एक याद और परिवार नियोजन का संकल्प लेने के दिन के रूप में याद किया जाने लगा है।

हर राष्ट्र में इस दिन का विशेष महत्त्व है, क्योंकि आज दुनिया के हर विकासशील और विकसित देश, जनसंख्या विस्फोट से चिन्तित हैं। विकासशील देश अपनी आबादी और जनसंख्या के बीच तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहे हैं तो विकसित देश पलायन और रोजगार की चाह में बाहरी देशों से आकर रहने वाले शरणार्थियों के कारण परेशान हैं। भारत में इस दिवस को मनाने का उद्देश्य, जनसंख्या वृद्धि दर को 2.1 प्रतिशत पर स्थिर करने का है।

बढ़ती हुई आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये किसी भी जिम्मेदार सरकार को प्राकृतिक संसाधनों का अन्धाधुन्ध दोहन करना पड़ता है, जिसका ख़ामियाज़ा अनेक रूपों में भुगतना पड़ता है। तीव्र गति से हो रही जनसंख्या बढ़ोत्तरी के अनेक कारण हैं। इनके प्रमुख कारणों में है, जन्म दर में वृद्धि तथा मृत्यु दर में कमी, निर्धनता, गाँवों की प्रधानता तथा कृषि पर निर्भरता, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, धार्मिक एवं सामाजिक अन्धविश्वास, शिक्षा का अभाव इत्यादि। इसके अलावा संयुक्त परिवार प्रथा तथा उष्ण जलवायु भी इसके कारकों में से है।

जनसंख्या वृद्धि के अनेक दुष्परिणाम हमें भुगतने पड़ रहे हैं। इसका पहला दुष्परिणाम, प्राकृतिक परिवेश को ही भुगतना पड़ता है। बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि विस्तार के लिये वनों को काटा जा रहा है। इससे कृषि योग्य बंजर भूमि तथा विविध वृक्ष प्रजातियों तथा बागों की सुरक्षित भूमि में कमी हो रही है।

औद्योगिक विकास तथा आर्थिक विकास की चाह में उष्ण कटिबंधीय वनों का विनाश होते हम सभी देख रहे हैं। उष्ण कटिबंधीय सघन वन प्रतिवर्ष एक करोड़ हेक्टेयर की वार्षिक दर से लुप्त हो रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि थाईलैण्ड तथा फिलीपीन्स जैसे देश में जो कभी प्रमुख लकड़ी निर्यातक देशों में अग्रणी थे, वनों के विनाश के कारण बाढ़, सूखे तथा पारिस्थितिकी विनाश के शिकार हैं। जनसंख्या का दबाव निर्धनता, बेरोजगारी, आवास की समस्या, कुपोषण, चिकित्सा सुविधाओं पर दबाव तथा कृषि पर भार के रूप में भी देखा जा सकता है।

जनसंख्या वृद्धि के पर्यावरण के विभिन्न घटकों पर गम्भीर प्रभाव देखने में आए हैं। जिससे कई आर्थिक, सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। आर्थिक विकास में अवरोध, पर्यावरण प्रदूषण तथा अन्य पर्यावरणीय समस्याएँ, ऊर्जा संकट, औद्योगिकीकरण एवं नगरीकरण, यातायात की समस्याएँ, रोज़गार की समस्याएँ आदि जनसंख्या के निरन्तर वृद्धि के ही दुष्परिणाम हैं।

भारत सरकार वर्ष 1952 में ही परिवार नियोजन कार्यक्रम लागू करने वाला भारत विश्व में पहला देश बना। जनसंख्या नियन्त्रण हेतु सरकार ने एक नई राष्ट्रीय जनसंख्या नीति सन् 2000 में घोषित की है, जिसमें कुल मिलाकर 150 मुख्य तथ्य जो जनसंख्या को कम करने की दृष्टि से आवश्यक है सम्मिलित किये गए हैं।

इस नीति में तीन प्रकार के लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं, जिसमें बुनियादी प्रजनन और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये समन्वित सेवाओं की व्यवस्था सहित जन्म नियंत्रण और सम्बन्ध स्वास्थ्य सुविधाओं की पूर्ति, कुल प्रजनन दर के सन् 2010 के स्तरों के अनुरूप लाना तथा वर्ष 2045 तक जनसंख्या को स्थिर करने का उद्देश्य सम्मिलित है।

जनसंख्या नीति के कई महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों में सकल प्रजनन दर को 2.1 प्रतिशत पर लाना, दो बच्चों के मापदण्डों को अपनाना, शिशु मृत्यु दर 30 प्रति हजार जीवित जन्म तक लाना, जन्म पूर्व लिंग निर्धारण तकनीक पर रोक लगाना, लड़कियों को देर से विवाह के लिये प्रोत्साहित करना इत्यादि शामिल है। इसी नीति के अनुसार, योजनाओं के क्रियान्वयन के लिये प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग नियुक्त करने का प्रावधान भी किया गया है।

यदि हम विश्व की जनसंख्या पर विचार करें तो हम पाते हैं कि भारत, चीन, इंडोनेशिया, ईरान, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे बड़े विकासशील देशों में प्रति महिला जन्मदर में कमी आई है लेकिन नाइजीरिया, कांगो, इथोपिया, युगांडा, अफगानिस्तान जैसे देशों में जनसंख्या वृद्धि की तेज दर बने रहने का अनुमान है। विकसित और विकासशील देशों की औसत आयु सीमा भी लगातार बढ़ रही है।

एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक वैश्विक औसत आयु 76 वर्ष और वर्ष 2100 तक 82 वर्ष हो जाएगी। अगले कुछ दशकों में प्रजनन दर में बदलाव के आबादी और जनजीवन तथा पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ेंगे जो हमारे लिये दुखदायी होंगे। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार 2028 तक चीन को पीछे छोड़कर भारत विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होगा।

अफ्रीकी देशों की जनसंख्या 1.1 अरब से बढ़कर 2.4 अरब हो जाएगी, तथा वर्ष 2100 तक दुनिया भर में 60 वर्ष से ज्यादा आबादी की संख्या तिगुनी हो जाएगी। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि 2013-2100 के मध्य भारत सहित आठ देशों में दुनियाभर की आधी आबादी रहेगी।

ये आँकड़े बढ़ती जनसंख्या से निपटने के लिये जनसंख्या पर नियंत्रण तथा संसाधनों का संरक्षण एवं नियोजन करने की आवश्यकता को तुरन्त प्रभावी करने की ओर इंगित करते हैं। जनसंख्या में हो रही वृद्धि को रोकने के लिये कई उपाय किये जा सकते हैं जिसमें बड़े स्तर पर परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू करना, विवाह निर्धारण अधिनियम का कठोरता से पालन करना, जनसंख्या नियंत्रण के लिये लोगों को जागरूक करने के लिये शिक्षा प्रणाली में इसे सम्मिलित करना, ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन के साधनों का विस्तार तथा महिलाओं को व्यापक स्तर पर शिक्षित किया जाना जैसे उपाय कारगर हो सकते हैं।

यह तभी सम्भव है जब देश का हर नागरिक जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम को समय रहते समझे तथा जागरूक रहकर सरकार के कार्यक्रमों में बढ़-चढकर हिस्सा ले, तभी इस गम्भीर चुनौती से निपटा जा सकता है।

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