बढ़ती गर्मी : ग्लोबल वार्मिंग है वजह तो फिर सरकार के पास क्या है काट


सूखे के संकट पर जानकारों का कहना है कि इससे पहले भी देश के लोगों को भीषण गर्मी और सूखे की मार झेलनी पड़ी है और लोगों को बीमारियों और भूख के चलते जानें गँवानी पड़ी है, लेकिन हमारी सरकारों ने इससे कोई सबक नहीं लिया। और न ही संकट से निपटने के लिये कोई खास कदम ही उठाए।

एक तरफ जहाँ कम बारिश होने के कारण देश के दस राज्य सूखे की मार झेल रहे हैं और वहाँ के लोग एक-एक बूँद पानी के लिये जूझ रहे हैं, वहीं भीषण गर्मी ने संकट को और बढ़ा दिया है। मौसम विभाग की मानें तो अप्रैल के महीने में पड़ रही है इस चिलचिलाती गर्मी की वजह अलनीनो, ग्लोबल वॉर्मिंग और कम बारिश होना है। अनुमान लगाया गया है कि 2016 सबसे गर्म साल हो सकता है। अगर यह अनुमान सही निकला तो यह चिन्ता बढ़ाने वाली बात होगी। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने भी रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में देश में भीषण सूखे की मार पर चिन्ता जताकर लोगों की पीड़ा बाँटने की कोशिश की है। लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि भीषण गर्मी, सूखे की मार और पानी के बढ़ते संकट से निपटने के लिये वह कौन से ठोस कदम उठाते हैं।

आँकड़े गवाह हैं कि देश के विभिन्न राज्यों में गर्मी व लू के चलते अब तक 220 लोगों की मौत हो चुकी है। सबसे ज्यादा 120 मौतें आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में हुई हैं। ओडिशा में गर्मी की मार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विगत दिवस राज्य के टिटलागढ़ में तापमान 47 डिग्री तक पहुँच गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि यह भीषण गर्मी लोगों की सेहत के लिये कतई ठीक नहीं है। इस गम्भीर संकट के मद्देनजर केन्द्र सरकार का यह कहना कि कम बारिश और सूखे के चलते देश के 91 बड़े तालाबों के जल स्तर में 22 फीसदी तक की कमी देखी गई है, बड़े संकट का संकेत देती है। आँकड़े बताते हैं कि 21 अप्रैल तक इन तालाबों में 34.082 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी ही बचा है। हिमाचल, तेलंगाना, पंजाब, ओडिशा, राजस्थान, झारखण्ड, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों में पिछले साल के मुकाबले इस साल जल स्तर में हुई ज्यादा गिरावट भी हमारी चिन्ता बढ़ाने वाली ही है।

सूखे के संकट पर जानकारों का कहना है कि इससे पहले भी देश के लोगों को भीषण गर्मी और सूखे की मार झेलनी पड़ी है और लोगों को बीमारियों और भूख के चलते जानें गँवानी पड़ी है, लेकिन हमारी सरकारों ने इससे कोई सबक नहीं लिया। और न ही संकट से निपटने के लिये कोई खास कदम ही उठाए। सरकार की अदूरदर्शिता और उसकी बेरूखी के ही कारण की समस्या बढ़ती जा रही है। जल संरक्षण की बातें तो होती रही हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं किया गया। यही नहीं सरकार की नीतियों और बेलगाम अफसरशाही ने ऐसे संकट से निपटने की दिशा में लापरवाही ही दिखाई और इस पर सरकार के स्तर पर निगरानी न होने से समस्या और बढ़ती ही गई। सवाल यह है कि सूखे का संकट पहली बार नहीं आया है, फिर सरकार ने पानी की बर्बादी रोकने की दिशा में सख्ती क्यों नहीं दिखाई? जल संरक्षण की बातें खूब हुईं लेकिन इस पर अमल कराने में लापरवाही क्यों बरती गई। ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब तो सरकार को देना ही पड़ेगा।

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