बढ़ती असमानता और विलुप्त होता मध्यवर्ग


हाल के दशकों में आर्थिक असमानता के बढ़ने से ‘मध्य आय वर्ग’ पर संकट खड़ा हो गया है। औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के समय से बढ़ती असमानता क्या आज अपने चरम पर पहुँच गई है या अभी कुछ और देखना बाकी है?

सन 1980 के दशक से विश्व मानव इतिहास में दर्ज सर्वाधिक विषम राष्ट्र स्तरीय आय असमानता के दौर से गुजर रहा है। क्रेडिट सुसी रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा किए गए एक अध्ययन से यह बात सामने आई है कि अधिकांश विश्व में ‘मध्यवर्ग’ की कीमत पर अमीरों की आमदनी में इजाफा हो रहा है। हालाँकि समाजों के मध्य आर्थिक असमानता लंबे समय से विद्यमान रही है लेकिन विश्व के तमाम अंचलों के मध्य बढ़ती आर्थिक असमानता एक हालिया प्रवृत्ति है। दिवंगत इतिहासकार एंगस मेडिसन के अनुसार यह असमानता करीब पाँच सौ वर्ष पहले बढ़ना शुरु हुई लेकिन दो शताब्दी पूर्व औद्योगिक क्रांति के चलते इसने रफ्तार पकड़ ली। विदेशी औपनिवेशिक शासन के चलते नए प्रकार के आर्थिक आधिपत्य की वजह से अनेक समुदायों के मध्य संपत्ति और आर्थिक असमानता की खाई गहरी होती चली गई। गौरतलब है यदि अठारवीं शताब्दी के ब्रिटेन, हालैंड और स्पेन पर गौर करें और आर्थिक असमानता की माप करें तो यह 50 से 60 प्रतिशत बैठती है, जोकि आज के मुकाबले कहीं अधिक है।

आधुनिक पश्चिमी असमानताएं


यूरोप में पारम्परिक संप्रदाय विशिष्ट, सहकारिता और सामूहिकता को बढ़ावा देने वाले संस्थान सोलहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य ब्रिटेन में चले 'enclosure' एनक्लोजर मूवमेंट (ब्रिटेन में 18वीं शताब्दी की शुरुआत में अमीर किसानों में छोटे किसानों से कम कीमत पर बड़ी मात्रा में खेती की जमीनें खरीदी और अत्यधिक लाभ लेकर बेच दीं। यह एक तरह से औद्योगिक क्रांति की शुरुआत थी।)

18वीं शताब्दी के अंत में जिस समय अमेरिका आजाद हुआ तब वहाँ यूरोप के मुकाबले आर्थिक असमानता (गुलामों को छोड़कर) काफी कम थी। इसकी वजह थी कि यूरोप में अभी तक बड़े स्तर पर औद्योगिक भाग्योदय नहीं हुआ था और इस ‘नए विश्व’ में जमीनों की कीमतें काफी कम थीं। लेकिन उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से गुलामी प्रथा के समाप्त होने के बावजूद असमानता बढ़ती गई और यह सन 1920-30 में गिल्डेड (gildedage) सोने का परत काल (यह समय अमेरिका में तेज औद्योगिक वृद्धि खासकर उत्तर एवं पश्चिम का है।) में अपने चरम पर पहुँची। अमेरिका में परिवारों की संपत्तियों में (मध्य वर्ग) आनुपातिक तौर पर जबरदस्त उछाल आया और जो औसत आमदनी सन 1790 में 1000 डाॅलर थी वह सन 1912 में बढ़कर 12,50,000 डाॅलर पर पहुँच गई। इस दौरान जाॅन डी राकफेलर की संपत्ति एक अरब डाॅलर हो गई थी। यह औसत आमदनी सन 1982 में गिरकर 60,000 डाॅलर तक पहुँच गई थी। और सन 1999 में यह पुनः 14,16,000 डाॅलर हो गई थी। इस दौरान बिल गेट्स की संपत्तियाँ 85 अरब डाॅलर थीं। यदि हम विभिन्न कालखण्डों में विभिन्न राष्ट्रों में मौजूद अमीर लोगों की तुलना करेंगे तो संख्या तो अलग-अलग मिलेगी लेकिन यह नतीजा अवश्य निकलेगा कि बिल गेट्स व काटरनेजी और राकफेलर के मुकाबले बहुत अधिक अमीर हैं। परंतु रुसी धनाढ़य मिखाईल खोर्डोकोब्सकी की आमदनी सन 2003 में औसत आमदनी जिसमें बिल गेट्स भी शामिल हैं से अनुपात में अधिक थी।

संक्षिप्त (शार्ट) 20 वीं शताब्दी


बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में पश्चिमी समाजों में राष्ट्रीय असमानता में जबरदस्त वृद्धि हुई। परंतु सन 1920 के दशक से 1970 के दशक के दरमियान इसमें कमी आई। इतिहासकार ईरिक हाब्सबास इसे ‘शार्ट 20वीं शताब्दी’ कहते हैं। इसके बाद इसमें पुनः तेजी आ गई। इस उलट धारा की वजह संभवतः समाजवादी देशों का विघटन था। बोल्शेविक क्रांति के बाद देशों के मध्य आर्थिक असमानता में काफी कमी आई थी। इस वृद्धि पर रोक श्रम के विकास, समाजवादी एवं अन्य समतावादी आंदोलनों की पकड़, कल्याणकारी राज्यों का विकास, संपत्ति एवं आय पर करारोपण के साथ कार्ल पालांयी द्वारा सुझाए एवं विश्लेषित तमाम सुधार एवं परिवर्तन थे।

प्रति क्रांति


परंतु सन 1970 के दशक में जैसे ही सोवियत ‘समाजवाद’ की गतिशीलता में गिरावट आई वैसे-वैसे संकीर्ण प्रति क्रांति भी घटित होती गई। इसका नेतृत्व सन 1980 के दशक में मार्गरेट थैचर और रोनाल्ड रीगन ने किया। उन्होंने कामगारों के आंदोलनों को कमजोर किया, राज्य की क्षमता और वैधता को कमतर किया और अमीरों और ताकतवरों को इस प्रकार से मजबूती प्रदान की जिससे कि वह अधिक और नए प्रकार की आमदनी कर सके। इस बीच श्रम की कीमत पर पूँजी और संपत्ति के माध्यम से आमदनी का हिस्सा बढ़ता गया। इसी दौरान वित्त या बौद्धिक संपदा के माध्यम से वास्तविक अर्थव्यवस्था के बजाय अधिक धन कमाया जाने लगा। सन 1989 में बर्लिन दीवार और सन 1991 में सोवियत रूस का ढहना ‘प्रति क्रांति’ के महत्त्वपूर्ण बिंदु हैं जिसके परिणामस्वरूप कीन्स और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की वैधानिकता ही समाप्त हो गई।

सरकारी खर्चों में खासकर सामाजिक व्ययों में वृद्धि रुक सी गई एवं कई सामजिक कार्य रोक दिए गए। इसकी वजह से बेरोजगारी उस स्तर तक बढ़ गई जितनी कि सन 1930 के दशक के बाद कभी नहीं देखी गई थी। इस बीच महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों (ब्रिटेन में कोयला खनन और अमेरिका में वायु यातायात नियंत्रण) में यूनियनों को हार का मुँह देखना पड़ा। इससे यूनियनों की ताकत कम हुई और उनकी सदस्यता में भी कमी आई। सन 1940 से 80 के मध्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस में आयकर की सीमा 50 प्रतिशत से भी अधिक थी। बाद में इसमें काफी मात्रा में कमी की गई। सामान्यतौर पर कहें तो इस अधिक लाभ वाले काल ने सन 1950 एवं 1960 के दशक में हो रही आमदनी एवं अन्य हस्तांतरण, जोकि असमानता की राह का रोड़ा थे, की दिशा ही मोड़ दी। इसी वजह सन 1980 के दशक से राष्ट्रीय आय में लाभ के हिस्सों में लगातार होती वृद्धि के परिणामस्वरूप हाल के दशकों में असमानता में वृद्धि हुई है।

इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता, थैचर और रीगन की प्रति क्रांति वैश्विक स्तर सफल हो गई है। आज पूँजीवाद (कंजरवेेटिव) एकमात्र ‘रास्ता’ नजर आता है। अब तो वामपंथी दल भी राष्ट्रीय लाभ की आकांक्षा में पूँजीवाद से हाथ मिला रहे हैं। राष्ट्रीय सरकारों के पास अब चयन का एकमात्र विकल्प पूँजीवाद की किस्म (प्रकार) भर का रहा गया है। आज राष्ट्रीय बहस में यही मुद्दा बचा है और इस पर लगातार कर्कश बहस जारी है।

श्री व्लादिमीर पोपोव संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्थिक सामाजिक मामलों के विभाग में वरिष्ठ आर्थिक अधिकारी थे। जोमो क्वामे सुंदरम सन 2005 से 2015 तक संयुक्त राष्ट्र आर्थिक विकास प्रणाली के सहायक सेक्रेटरी जनरल थे।

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