दीपक की वार्षिक परीक्षाएं चल रही थीं। अगले दिन उसका पर्यावरण विज्ञान का पेपर था। वह खूब मेहनत से चीजों को पढ़ रहा था। दरअसल, उसे भौतिकी और गणित के अलावा अन्य विषयों में कम रुचि थी, तो वह चीजों को समझने के बजाए रट्टा लगा रहा था। दीपक पढ़ ही रहा था कि तभी उसके घर के पास से एक मोटर बाइक फर्राटा भरते हुए ऐसे निकली कि मानो इंद्रदेव का वज्र गलती से छूट गया हो। ऐसी भयावह आवाज जो किसी के भी कान सुन्न कर दे।
दीपक बिदक के कुर्सी से उठा और चिल्लाया, ‘‘यह कैसी भयानक आवाज थी? सब कुछ भुला दिया!’’ तभी दीपक की माँ कमरे में आई और दीपक को शांत कराया।
‘‘बेटा, ये आवाज मोटर बाइक के इंजन की थी।’’ माँ ने बताया। दीपक की माँ ट्रैफिक पुलिस में काम करती थी। उन्हें ऐसे शोर-शराबे की आदत थी।
‘‘देखो न माँ, मैं कितने ध्यान से पढ़ रहा था। कितना बुरी तरह से डिस्टर्ब कर दिया। मेरा सारा याद किया हुआ भुला दिया।’’
दीपक का ध्यान भटक गया था। वह फिर से पढ़ाई में ध्यान लगाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन बार-बार वह यह सोच रहा था कि लोग इतनी तेज आवाज के वाहन क्यों चलाते हैं। उससे रहा नहीं गया तो उसने अपनी माँ से पूछा, ‘‘माँ, आप तो दिन भर ट्रैफिक के बीच रहती हो, आपको कैसा लगता है?’’
इस पर दीपक की माँ ने कहा, ‘‘दिन भर वाहनों की आवाज और उनके तेज हॉर्नों के शोर से कान पक से जाते हैं, शाम होते-होते सरदर्द होने लगता है, घर आकर भी वैसी ही आवाजें कानों में गूँजती रहती हैं और क्या बताऊँ, इस अनावश्यक शोर से हर कोई परेशान रहता है। दरअसल, हमारे दैनिक जीवन में इसका बड़ा व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है। यह ध्वनि प्रदूषण एक ऐसी उभरती हुई जटिल समस्या है, जो न केवल मनुष्यों को बल्कि अन्य जीव-जंतुओं को भी प्रभावित कर रही है।’’
माँ की बात सुन कर दीपक के मन में इस समस्या के बारे में और अधिक जानने की रुचि पैदा होने लगी। उसके अंदर का जिज्ञासु कीड़ा जागने लगा। दीपक ने माँ से जानना चाहा कि आखिर ध्वनि प्रदूषण क्या होता है? यह कैसे पैदा होता है और इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है? ऐसे ही अनेक प्रश्न दीपक के मन में पैदा होने लगे।
दीपक की जिज्ञासा को शांत करने के लिये उसकी माँ ने समझाते हुए बताया, ‘‘ऐसी कोई भी ध्वनि जो इंसानों को पीड़ा पहुँचाए उसे शोर कहते हैं। पहले शोर-शराबा एवं हो-हल्ला इतना बड़ा विषय नहीं था। परंतु जब कोई चीज ज्यादा परेशानी पैदा कर सामान्य रूप से हो रही घटनाओं में बाधा डाले, उसे प्रदूषण की सूची में शामिल करना आवश्यक बन जाता है। दो दशक पहले तक ध्वनि प्रदूषण इतना व्यापक नहीं था, परंतु बदलती जीवनशैली, बदलती परंपराओं, नए-नए कारखानों, बढ़ते वाहनों आदि की वजह से ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।’’
‘‘लेकिन माँ, सामान्यतः जब हम बातें करते हैं तब तो शोर नहीं लगता। ऐसे में ध्वनि प्रदूषण वाली स्थिति कब आती है?’’ दीपक ने उत्सुकतावश पूछा।
‘‘शायद तुम्हें विज्ञान की कक्षा में पढ़ाया गया हो, हम ध्वनि की तीव्रता को डेसिबल (db) में मापते हैं। 20 डेसिबल की ध्वनि को फुसफुसाहट यानि व्हिस्पर तथा सामान्य बातचीत की ध्वनि की तीव्रता 40 से 60 डेसिबल की होती है। लेकिन जब ध्वनि की तीव्रता 80 डेसिबल या उससे अधिक हो जाती है तो यह असहनीय और दर्दनाक होती है। इसे शोर की श्रेणी में रखा जाता है और इसी तरह के शोर से ध्वनि प्रदूषण होता है।’’ दीपक की माँ ने समझाया।
‘‘इसके स्रोतों के बारे में थोड़ा और बताइए। वाहन और कारखानों का प्रभाव तो समझ में आता है, परंतु जीवनशैली कैसे प्रभावित करती है?’’ दीपक ने ध्वनि प्रदूषण से जुड़ी बारीकियों को जानना चाहा।
‘‘देखो, ध्वनि प्रदूषण में जीवनशैली में परिवर्तन और बदलती परंपराओं का भी उतना ही योगदान है, जितना कि वाहनों एवं कारखानों का। उदाहरण के लिये आजकल के युवाओं का प्रिय डिस्को, रॉक संगीत, आदि उन्हें भले ही मधुर लगे, परंतु अन्य लोगों के लिये यह कर्णबेधक हो सकता है। वहीं दूसरी ओर मंदिरों-मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकर एवं शादियों व बारातों में बड़े-बड़े डीजे का प्रचलन बदलती हुई परंपराओं का प्रतीक है। यहाँ यह समझना जरूरी है कि एक ही ध्वनि किसी को मधुर लग सकती है और वही ध्वनि किसी को पीड़ादायक भी लग सकती है।’’ माँ ने दीपक के प्रश्न का जवाब देते हुए बताया। और आगे कहा, ‘‘परंतु कुछ ध्वनियाँ सबके लिये समान रूप से कष्टदायी होती हैं। जैसे कि वायुयान की गर्जना, चोर अलार्म, मिक्सर-ग्राइंडर आदि की आवाज।’’
‘‘ध्वनि प्रदूषण हानिकारक है, यह तो समझ आया। परंतु कानों को छोड़ मुझे इसका कोई और दुष्प्रभाव नहीं समझ में आ रहा है। भला, ध्वनि प्रदूषण कानों के अलावा और किस तरह हानिकारक हो सकता है?’’ दीपक की जिज्ञासा चरम पर थी।
‘‘ध्वनि प्रदूषण एक उभरती हुई समस्या है। इसके प्रभावों पर अभी शोध चल रहे हैं, और निश्चित ही ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव केवल कानों तक ही सीमित नहीं वरन काफी जटिल हैं। शोध अध्ययन बताते हैं कि ऑफिसों एवं कार्यस्थलों के आस-पास वाला ध्वनि प्रदूषण मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। एक शोध में पाया गया है कि इसके परिणामस्वरूप लोगों में गुस्से, चिड़चिड़ेपन जैसे लक्षण, नींद की अनियमितता, तनाव व थकान बढ़ने लगी है। इतना ही नहीं, शरीर पर प्रत्यक्ष असर भी दिखने लगा है। जैसे कि उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारियाँ, बढ़ी हुई दिल की धड़कन, जिसका सीधा प्रभाव रक्त संचार प्रणाली में दिखता है। ऐसी कई बीमारियाँ ध्वनि प्रदूषण के कारण हो रही हैं।’’ माँ ने विस्तारपूर्वक बताया।
‘‘इतने संवेदनशील विषय को मैं इतना हल्के में ले रहा था! माँ, आपने बताया था कि ध्वनि प्रदूषण अन्य जीव-जंतुओं पर भी असर डालता है। भला वो कैसे?’’ दीपक अब इस विषय की वास्तविक गहराई एवं जरूरत समझने लगा था।
‘‘अन्य जीव-जन्तुओं पर ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव मानवजाति से कहीं अधिक है। चूँकि इंसानों के पास अन्य विकसित इंद्रियां हैं, उसे केवल सुनने पर निर्भर नहीं रहना पड़ता, परंतु बहुत से ऐसे जानवर हैं, जिनकी सुनने की क्षमता हमसे कहीं अधिक है। सच तो यह है कि ये जानवर अपने जीवन-यापन के लिये अपनी सुनने की शक्ति पर ही निर्भर करते हैं। जानवरों पर ध्वनि का असर तो हम अपने घरों में पालतू जानवरों पर ही देख सकते हैं। तुमने देखा होगा कि अक्सर तेज आवाज से ये जानवर या तो काफी डर जाते हैं या भड़क जाते हैं। यह उनकी सेहत पर सीधा असर डालता है।’’ माँ ने समझाया।
माँ ने आगे बताया, ‘‘जंगलों में रहने वाले जानवर भी ध्वनि प्रदूषण से अछूते नहीं हैं। इन जानवरों की सुनने की शक्ति में कमी के कारण ये आसानी से शिकार बन जाते हैं, जो कि स्वाभाविक रूप से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है।’’
इसी संदर्भ में आगे समझाते हुए उन्होंने बताया, ‘‘जो वन्य जीव प्रजनन आमंत्रण के लिये ध्वनि पर निर्भर करते हैं, उन्हें खासी दिक्कत आती है। क्योंकि अन्य मानव निर्मित ध्वनियों यानि शोर की वजह से उनकी ध्वनि दूसरा जीव सुन नहीं पाता। इस तरह ध्वनि प्रदूषण उनकी जनसंख्या में गिरावट का एक मुख्य कारण बनता है। और भी कई तरह से ध्वनि प्रदूषण वन्य जीवों को प्रभावित कर रहा है।’’
‘‘अगर यह इतनी बड़ी व्यापक समस्या है तो क्या हम कुछ कर नहीं सकते?’’ दीपक ने चिंतित होते हुए जानना चाहा।
‘‘बेटा, चिंता की तो बात है ही। इंसान ने दुर्भाग्यवश ऐसा कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा जो प्रदूषित न हो। जीवन के पाँचों तत्व - जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश में से चार तत्वों की तो दयनीय हालत कर दी है।’’ माँ ने अपनी बात रखते हुए कहा।
‘‘अब जो हम कर सकते हैं वह है बचाव और रोकथाम। इंसान अगर थोड़ा और संवेदनशील होकर और अपने विवेक का इस्तेमाल करे तो स्थति काबू में लाई जा सकती है।’’ माँ ने दीपक की चिंता पढ़ कर उसे विश्वास दिलाने की कोशिश की।
‘‘माँ, ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिये हम क्या कदम उठा सकते हैं?’’ दीपक ने पूछा?
ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के उपाय समझाते हुए माँ ने कहा, ‘‘सबसे पहले हम स्वयं के घरों का निर्माण शोर रोधक या ध्वनि रोधक सामग्री से कराएँ। दूसरा, कारखाने एवं भारी वाहनों वाली मुख्य सड़क आवासीय परिसरों से उचित दूरी पर बनाये जाएँ। साथ ही, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल एवं न्यायालयों के आस-पास के इलाके को ध्वनि मुक्त घोषित किया जाए। तीसरा, उन कारों, बाइकों एवं ट्रकों को प्रतिबंधित कर दिया जाए जो अत्यंत तेज आवाज करते हैं।’’
‘‘अंत में, सड़क किनारे एवं घरों, स्कूल, ऑफिसों के आस-पास पेड़ एवं पौधों की कतार लगाना एक कारगर एवं सरल उपाय है। पेड़ ध्वनि को सोखकर आस-पास के इलाके को ध्वनि मुक्त रखते हैं।’’ माँ ने ध्वनि रोकने के कुछ उपाय सुझाए।
‘‘और हमें अपना टी.वी., म्यूजिक आदि भी कम आवाज में ही सुनना चाहिए’’, दीपक ने भी माँ की बात आगे बढ़ाई।
‘‘हाँ, बिल्कुल ठीक कहा, बेटा हमें हमारे आस-पास जो भी हो रहा है उसके प्रति संवेदनशील रहना चाहिए। अगर हम अपनी धरती के बारे में नहीं सोचेंगे तो कौन सोचेगा? एक जागरूक व्यक्ति वही होता है जो अपनी आँखें और कान खुले रखे और अपनी सामाजिक एवं पर्यावरणीय समस्याओं के प्रति सजग रहे।’’ माँ ने दीपक को एक जागरूक व्यक्ति बनने की प्रेरणा दी। दीपक की भी अब रुचि अपने पर्यावरण संरक्षण के लिये बढ़ गई थी।
सम्पर्क
हिमांशु शर्मा
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, नेरेला, दिल्ली
ई-मेल : 233himanshu@gmail.com
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