डाकुओं के नाम से थर-थर काँपने वाले चंबल इलाके में डाकू किस कदर गुजरे जमाने की बात होने लगे हैं, इसका एक नमूना ग्वालियर में 11 दिसम्बर को देखा गया जब एक कार्निवाल में फिल्म अभिनेता मुकेश तिवारी सहित कई कलाकारों ने फूलन, सुल्ताना, गब्बर, पान सिंह जैसे कुख्यात डाकुओं का स्वांग रच कर हजारों दर्शकों का दिल बहलाया। राज्य के मंत्री अनूप मिश्रा ने इस कार्निवाल का उद्घाटन किया था। कुछ साल पहले तक बागियों के लिये इस तरह के स्वांग रचने की हिम्मत शायद ही कोई कर सकता था। ऐसा करने पर गोलियाँ चल सकती थीं। बहरहाल, इस आयोजन को लेकर विवाद उठ गया है और हाइकोर्ट ने एक याचिका पर अनूप मिश्रा सहित कलेक्टर, कमिश्नर, एसपी और अन्य आला अफसरों को नोटिस देकर जवाबतलब किया है। विवाद अपनी जगह है लेकिन सच्चाई यही है कि बदलते दौर के साथ बीहड़ का चेहरा भी बदलने लगा है।
इंदौर में इस साल हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में एस्सेल (जी) ग्रुप के अध्यक्ष सुभाष चंद्रा ने नई सिटी की घोषणा करते हुए कहा था कि वे बीहड़ों में 15 हजार हेक्टेयर में 35 हजार करोड़ रु. की लागत से सर्विस सेक्टर की सिटी बनाएँगे। इससे एक लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। इसी साल 4 अगस्त को सुभाष चंद्रा मुरैना गए थे। उन्होंने हाइवे पर पिपरई गाँव के पास चंबल के बीहड़ों की जमीन देखी और पसंद की थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना कि हम चंबल के बीहड़ों के विकास की समन्वित योजना बना रहे हैं। डाकुओं के लिये कुख्यात क्षेत्र में अब औद्योगिक विकास होगा। जी समूह के प्रमुख ने शिक्षा, मेडिकल और इंटरटेनमेंट योजना के लिये 10 हजार एकड़ भूमि का चेक मांगा है।
सूत्र कहते हैं कि प्रदेश में एक साथ इतनी ज्यादा जमीन का इंतजाम कहीं संभव नहीं है, लिहाजा कंपनी को चंबल के बीहड़ों की जमीन का मशविरा दिया गया। इसी प्रकार, खुदरा उद्योग में उतरे सहारा समूह को भी एक साथ जमीन के लिये बीहड़ों का विकल्प सुझाया गया। अन्य उद्योगों के लिये भी जमीन की तलाश कर भूमि बैंक बनाया जा रहा है। उद्योग महकमे के अपर मुख्य सचिव प्रसन्न दास कहते हैं कि उन्हें बड़ी कंपनियों के जवाब की प्रतीक्षा है। यहाँ चंबल-क्वारी नदी के किनारे के बीहड़ों पर खास फोकस है। सूत्र बताते हैं बरही और अटेर में चंबल नदी के आस-पास 120 हेक्टेयर जमीन चिह्नित की जा चुकी है और सरकार दिल्ली के आस-पास के उन उद्योगपतियों को रिझाने का इरादा रखती है, जिन्हें वहाँ जमीन नहीं मिल रही है। चंबल क्षेत्र में तकरीबन एक लाख हेक्टेयर भूमि में बीहड़ है।
सरकार का दावा है कि डाकू की समस्या खत्म हो चुकी है, इसलिये यहाँ उद्योग लगाए जा सकते हैं। लंबे समय तक चली आ रही खूंरेजी की आततायी परंपरा के बाद 1982-83 में डकैतों के जो ऐतिहासिक समर्पण हुए, उसके बाद चंबल में बागियों की नस्ल लगभग खत्म हो गई। उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के ज्यादातर दस्यु गिरोहों के खात्मे के चलते दस्युओं का जो खौफ कभी ग्रामीणों के सिर चढ़कर बोलता था, अब नजर नहीं आता।
इस बीच, वन विभाग के अनुसार एक योजना के पहले चरण में यहाँ करीब एक करोड़ सोलह लाख रु. की लागत से 100 हेक्टेयर जमीन में गुग्गल की खेती की जाएगी। चंबल में बीते वर्ष वन विभाग ने जड़ी-बूटियों की खोज के लिये जो सर्वे कराया था उसमें पाया गया कि यहाँ की जमीन गुग्गल की खेती के लिये काफी उपयुक्त है। गुग्गल एक औषधीय पौधा है जिसके रस से मोटापा, मधुमेह और दर्द निवारक आयुर्वेदिक एवं एलोपैथिक दवाएँ बनती हैं। इसके पत्ते व छिलके को सुखा कर हवन सामग्री धूप आदि बनाई जाती हैं।
दवा कंपनियाँ ताजा गुग्गल 900 से 1000 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदती हैं। हिमालय फार्मेसी व झंडू जैसी दवा कंपनी इस जड़ी-बूटी की बड़ी खरीदारों में हैं। मुरैना के वन मंडलाधिकारी आर.एस. सिकरवार के अनुसार चंबल के बीहड़ में करीब 100 हेक्टेयर भूमि गुग्गल लगाने के लिये चिह्नित की गई है। सिकरवार ने बताया कि सर्वे रिपोर्ट आने के बाद कुछ फार्मेसी कंपनियों ने गुग्गल की खेती में रुचि दिखाई है।
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