बदली जिले की तकदीर

जलाभिषेक अभियान का ब्रांड एम्बेसडर बना देवास जिला

हजारों भागीरथ बनाए कलेक्टर उमराव ने


भोपाल (एमपी मिरर)। एक भागीरथ को भारतीय इतिहास में इसलिए जाना जाता है कि वे गंगा को इस धरती पर लाए थे। इस पुण्य कार्य को सफल बनाने के लिए भागीरथ ने अपना सारा जीवन खपा दिया था। इस पुण्य कार्य को करने के बाद उनके साथ दो चीजें हमेशा के लिए जुड़ गईं। एक तो गंगा को धरती पर लाने के बाद उनका नाम गंगाजी के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया। इसके लिए उन्हें भागीरथी कहा जाने लगा। दूसरा यह कि जो दुनिया में उस हर असंभव कार्य को संभव कर दिखाता है, उस कार्य को करने का जो प्रयास, प्रयत्न, मेहनत करता है, उस हर कार्य को भागीरथी प्रयत्न कहा जाने लगा। हमारी धरती के लोग इन्हीं भागीरथ को जानते हैं, मगर इस धरती पर अनेक ऐसे भागीरथ हैं, जिनके भागीरथी प्रयासों से कई लोककल्याणकारी कार्य होते हैं, जो बाद में इतिहास बन जाते हैं। मप्र की धरती पर भी कई लोककल्याणकारी कार्य हुए हैं, जिन्हें समाजसेवी या राजनैतिज्ञों द्वारा संपन्न कराए जाते रहे हैं। मगर मप्र के देवास जिले में एक ऐसा भागीरथी कार्य हुआ है, जिसमें न समाजसेवी थे और न ही राजनैतिज्ञ इस कार्य के पीछे थे। यह कार्य भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की लगन, निष्ठा और कुछ करने की ललक शामिल थी। देवास मप्र का वह जिला है, जहां आज भी पीने का पानी रेलगाडिय़ों द्वारा आता था और इस रेलगाड़ी के द्वारा लाए गए पानी से शहर की प्यास तो बुझ जाती थी, मगर रेल पटरियों से दूर बसे उन ग्रामीणों का कंठ कैसे गीला हो। इस बात की चिंता वहां पर पदस्थ युवा कलेक्टर उमाकांत उमराव को दिल में कचोट गई। युवा आईएएस अधिकारी उमराव के मन में अनेक सवाल उठ रहे थे, जिनका जवाब मिलना मुश्किल था। क्योंकि वे ही जिले के कर्ताधर्ता थे, सो सारी जवाबदारी उन्हीं के कंधों पर थी, जिसका जवाब भी उन्ही को देना था। भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने से पहले वे इंजीनियरिंग पास कर चुके थे, सो तरह-तरह के विचार उनके मन में आए कि आखिर दूरांचल में रहने वाले लोगों को पानी कैसे उपलब्ध कराया जा सकता है। जिले के इस वरिष्ठ अधिकारी ने कुछ ही दिनों में जिले का समूचा ग्रामीण क्षेत्र नाप डाला। मकसद केवल इतना था कि पानी कैसे और कहां से लाया जा सकता है। जिले के विशेषज्ञों को एक ही छत के नीचे एकत्र किया गया और पानी नहीं होने के कारणों को तलाशा गया। निष्कर्ष यह निकला कि हमने भौतिकता के अंधी दौड़ में शामिल होने के लिए अपनी इस धरती का इतना अधिक दोहन कर लिया कि अब भविष्य के लिए कुछ शेष नहीं बचा।

 

कार्ययोजना जिसने मूर्तरूप लिया


वर्षा के पानी को एकत्र करने को लक्ष्य बनाना
हजार फीट गहरे नल-कूपों के सूखने का कारण स्पष्ट करना
नल-कूपों, कुओं के गहरीकरण के कारण बिजली के व्यय को किसानों को सटीक तरीके से समझाना
किसानों को योजना से मिलने वाले व्यक्तिगत लाभ को बताना
नियमित फसलों के अलावा तालाबों से मछली पालन के लाभ का जोडऩा
वर्षभर पानी उपलब्ध होने के कारण सब्जी जैस धंधे से लाभ होना
रेवा सागर भरने से सूखे पड़े नल-कूपों, कुओं का जलस्तर बढऩा
रेवा सागर निर्माण हेतु बैंकों द्वारा तत्काल ऋण उपलब्ध कराना
कलेक्टर द्वारा किसानों से सीधा संवाद, जिससे इस योजना को लागू करने में सरलता हुई
बरसात के पानी को सहेजने के प्रति जनता को अपना राजधर्म का पालन कराना


धरती जो पानी हमें देती थी, उसको हम सहेज नहीं पाए, जिससे पानी हमसे रूठकर जिले में लगभग एक हजार फीट अंदर चला गया। जिसे वापस लाने में सारी भौतिक वैज्ञानिक मशीनरी अक्षम साबित हुई। चर्चा के दौरान जो गौर करने लायक बात आई वह यह थी कि सम्पूर्ण जिले कि मिट्टी काली और लाल होने के साथ चिकनी है। जिसके कारण बारिश का पानी जमीन के अंदर नहीं जा पाता। इंजीनियर से आईएएस बने अधिकारी उमाकांत उमराव का मन-मस्तिष्क एक गहरे तालाब में हिलोरें ले रहा था, बन रही थी एक नई कार्ययोजना। बातों का दौर चलता रहा, परंतु इंजीनियर की कार्ययोजना मन ही मन में मूर्तरूप ले चुकी थी। बात निर्णायक दौर में पहुंची जिले के सभी आला अधिकारियों को जिला मुख्यालय पहुंचने के निर्देश दिए गए। सातों विकासखण्ड के अधिकारियों और कृषि विस्तार अधिकारियों से जिले के कलेक्टर ने हाथ फैलाकर उनकी कार्ययोजना को साकार करने मे मदद की गुहार लगाई। उनकी कार्य के प्रति निष्ठा का ही परिणाम था कि उनके साथ हजारों की संख्या में हाथ उठ खड़े हुए।

जिले में दस एकड़ से अधिक के किसानों को चिन्हित किया गया। उन किसानों से चर्चा की गई तो सभी ने एक स्वर में पानी की उपलब्धता नहीं होने के कारण खेती बंजर के साथ ही अनाज के पैदावार घटने की बात कही। जिले के लगभग पांच हजार किसानों के बीच कलेक्टर उमाकांत उमराव ने बताया कि जिले में हजारों नल-कूप और कुएं हैं, परंतु जल का स्तर इतने नीचे पहुंच गया है कि वापस आना संभव नहीं है। जिले की मिट्टी बारिश का पानी सोखने की क्षमता नहीं रखती। अत: इस मिट्टी का तरीके से उपयोग किया जाए तो हमारी जमीन का जलस्तर बढ़ जाएगा। जलस्तर बढऩे के साथ ही जमीन भी उपजाऊ हो जाएगी और यह तभी संभव है, जब किसान स्वयं के व्यय पर अपनी जमीन के दसवें हिस्से में तालाब बनाए। तालाब बनने के बाद अपनी फसल की उपज को किसान कई गुना बढ़ा सकता है। किसानों को प्रयोग के तौर पर बताया गया कि आपके तालाब में बारिश का पानी भरेगा तो वह जमीन की काली और चिकनी मिट्टी हाने के कारण पानी जमीन के अंदर नहीं जाएगा, जिसके कारण किसान तालाब में भरे हुए पानी का दोहन कर सकता है। कलेक्टर की यह बात सभी को समझ मे आ रही थी। साथ ही कलेक्टर ने अपने पद की गरिमा से सबको यह बात भी समझा दी कि बारिश के बहते हुए पानी को रोकने का ठेका केवल शासन का नहीं है। इसमें आप सभी को अपनी जिम्मेदारी समझना होगी। एकत्र हुए किसानों को लगा कि कलेक्टर महोदय हमारे फायदे के लिए हमें ही धोंस दिखा रहे हैं, तब तक लगभग हर किसान कलेक्टर साहब कि मन:स्थिति को समझ गया कि साहब हमे तालाब बनवाने में उनके विश्वास को मजबूत करने के लिए सूखी धोंस दिखा रहे हैं। यही वह क्षण था, जब उमाकांत उमराव साहब को दूसरे भागीरथ के नाम से जाना जाने लगा। उनके द्वारा दु:खदायी दुनिया को सुखदायी दुनिया में बदलने की जो पहल की गई, वह सर्वहारा कल्याण के क्षेत्र में इतिहास के पन्नों में लिख गई। जिले का पूरा शासकीय अमला अपने जिलाधीश द्वारा जनकल्याण के लिए किए जा रहे कार्य में कंधे से कंधा मिलाकर पूरी निष्ठा के साथ जुट गया ओर मेहनत का परिणाम आया तो जिले में नो सौ तालाब मूर्तरूप ले चुके थे। इन तालाबों को 'रेवा सागर ' का नाम दिया गया। यह खबर जंगल में आग की तरह फैली जिससे एक नई चेतना का निर्माण हुआ।

कलेक्टर उमाकांत उमराव की पानी बचाने और उसका अभिषेक करने का प्रयास जनआंदोलन के रूप में परिवर्तित हो गया। अब तो कलेक्टर साहब के पास तालाब बनवाने के लिए सैकड़ों किसानों के संदेश पहुंचने लगे। कलेक्टर उमराव ने अपने पानी संग्रह करने के अभियान मे शुरुआत से जो आत्मविश्वास दिखाया था, उसकी लय आखिरी तक बरकरार रखी। उनके द्वारा देवास जिले के किसानों में जो उत्साह जगाया गया, उसी का परिणाम है कि जिले में अब तक चार हजार 'रेवा सागर ' का निर्माण हो चुका है, जिसके निर्माण में 150 से 200 करोड़ रुपया जनभागीदारी से एकत्र कर लगाए जा चुके हैं। यह एक अधिकारी की जन-जाग्रति का ही परिणाम है कि इस वृहद परियोजना में शासन का एक धेला भी खर्च नहीं हुआ। सरकार के समक्ष यह जिला जलाभिषेक अभियान में ब्रांड एम्बेसडर के रूप में उभर रहा है। भागीरथ के रूप में जिले में आए कलेक्टर उमाकांत उमराव तो जिले से जा चुके हैं, परंतु यहां के सूखे हुए नल-कूप, तालाब, कुए, पोखर आज भी लबालब देखे जा सकते हैं। कलेक्टर उमराव ने रेवा तालाब बनाने वाले किसानों को भागीरथ किसान का सम्मान दिया। परंतु उनके द्वारा किए गए प्रयास के लिए उनके नाम के साथ भागीरथी नाम जुड़ गया, जिन्होंने कई भागीरथों का निर्माण किया।

वर्तमान में उमाकांत उमराव साहब तो जिले में नहीं हैं, परंतु उनके साथ कार्य करने वाले कर्मचारी बताते हैं कि साहब ने जिले में इतना बड़ा जन-जागरण अभियान चलाया, परंतु उन्होंने किसी भी अदने से कर्मचारी को निर्देश देने की बजाय सहयोग की अपेक्षा की थी। यही वजह है कि उनका आंदोलन जनआंदोलन बना, उनके गुणों, आचरण, व्यवहार की चर्चा देवास शहर से लेकर गांव के गलियारों में होती है। सामाजिक क्षेत्र में भारतीय प्रशासनिक क्षेत्र के किसी अधिकारी द्वारा किया गया यह जनकल्याणकारी कार्य इतिहास में सराहा जाएगा। देवास जिले में गंगा तो नहीं आ सकतीं, लेकिन यहां के तालाब जो हिलोरें ले रहे हैं, वह किसी गंगा से कम नहीं हैं। भविष्य में गंगा के लुप्त होने की शंकाओं पर कई शोध परियोजनाएं चल रही हैं, परंतु देवास के ये रेवा सागर जो शायद ही कभी लुप्त हों। वर्तमान परिस्थितियों मेंसमूचा विश्व बढ़ते पर्यावरण असंतुलन के चलते सुनामी, बाढ़ व सूखे जैसे प्रकोप झेल रहे हैं। अगर ऐसी परियोजनाएं देश मेंबनें तो हमारे देश के किसानों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा।

हमारे देश के कृषि भंडार खाली नहीं होंगे, तभी हमारे देश का कृषि प्रधान देश होने का तमगा बरकरार रह पाएगा। यह तभी संभव है, जब देश का प्रत्येक नागरिक राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका को जिम्मेदारीपूर्वक निभाएगा। भागीरथी प्रयास तो नहीं परंतु भागीरथ बनने की ललक पैदा करनी होगी। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी उमाकांत उमराव की यह 'अभिनव पहल' देश के लिए 'मील का पत्थर' साबित होगी।

 

जिले में बह रही है बदलाव की बयार


किसानों की असिंचित जमीनों के सिंचित होने से जमीनों के दामों में कई गुना वृद्धि
रेगिस्तान बन रहे जिले में अब जंगली जानवर रेवा सागर तालाबों के किनारे कर रहे विचरण
किसानों में जागी स्वावलंबी बनने की ललक
मछली पालन के साथ मुर्गी पालन का व्यवसाय भी फलफूल रहा है
बंजर भूमि पर भी लहलहा रही फसल
गुणवत्तापूर्ण उपज से किसानों के भरे हैं अनाज के भंडार

घाटे का धंधा बन चुकी खेती अब मुनाफे में बदल चुकी है
विभीषण गर्मी के दिनों में भी रेवा सागर की मुंडेरों पर प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा देखते ही बनता है
रेवा सागर तालाबों के निर्माण से खेतों से बह जाने वाली उपजाऊ मिटटी अब रेवा सागर में रुक जाती है, जिसे किसान पुन: उपयोग में ले लेते है
रेवा सागर तालाबों के बनने से लगभग चालीस लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित हो गई

 

 

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