बदली हसनपुर तहसील की तस्वीर

employment in agriculture
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उत्तर प्रदेश के अमरोहा की हसनपुर तहसील क्षेत्र के दर्जनभर गाँवों में खुशहाली ने दस्तक दी है। पलायन थम गया है। ग्रामीणों को साल भर काम मिल रहा है। यह बदलाव आया है क्षेत्र के कुछ किसानों के नर्सरी कारोबार से जुड़ने से। चाय की प्याली में यूकेलिप्टस की पौध उगाकर तीन दशक पहले शुरू किया गया नर्सरी कारोबार आज दो हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार दे रहा है।

तहसील क्षेत्र के सिहाली जागीर गाँव से शुरू हुआ कारोबार अब मनौटा, सैमला, सैमली, आलमपुर, वसीकला, सहसोली, मछरई समेत 12 गाँव में फैल गया है। यहाँ के अनेक किसान परम्परागत खेती के अलावा नर्सरी के कारोबार से जुड़ गए हैं। किसानों ने बताया कि इन गाँवों में विभिन्न प्रजातियों के पेड़-पौधों की नर्सरी तैयार करके दिल्ली-एनसीआर सहित विभिन्न शहरों को भेजी जाती है।

दिल्ली की बड़ी नर्सरी से पौधों की सप्लाई देशभर में होती है। नर्सरी का कारोबार बारहमासी है। हर मौसम में पौधों की बिक्री चलती रहती है। मजदूरों को भी साल भर काम मिलता है।

नर्सरी के कारोबार से जुड़े किसान अजय कुमार बताते हैं कि सिहाली जागीर स्थित नर्सरी में काम करने के लिये अनेक गाँवों से मजदूर आते हैं। ऐसी नर्सरी अन्य गाँवों में भी है। कुछ नर्सरी मालिक दिहाड़ी के हिसाब से मजदूरी कराते हैं। तो कुछ ठेके पर काम करा रहे हैं। वहीं मजदूरों का कहना है कि उन्हें जितना काम परम्परागत खेती में करना पड़ता है, नर्सरी में उससे काफी कम मेहनत करनी पड़ती है।

खेतिहर मजदूरों को दिन भर खेतों में फावड़ा चलाना पड़ता था, लेकिन नर्सरी में कम मेहनत और पूरी मजदूरी मिलती है। मजदूरों को गाँव में ही इतना काम मिल रहा है कि बाहर जाने की आवश्यकता नहीं रही। यही नहीं, जरूरतमन्द महिलाओं से लेकर बुजुर्गों तक को नर्सरी में काम मिल रहा है।

साढ़े तीन सौ से लेकर पाँच सौ रुपए तक की दिहाड़ी मिलती है। अकेले सिहाली जागीर और मनोटा गाँव में प्रतिदिन एक हजार से अधिक मजदूरों को काम मिला हुआ है। मिट्टी की थैली भरने, पौधों की कटिंग, निराई, सिंचाई, पलटी लगाना, दवाई का स्प्रे कराना, कलम तैयार करना, ग्रीन हाउस तैयार करना और तैयार पौधों को गाड़ी में भरने जैसे काम करने होते हैं। बुजुर्ग और कमजोर लोग कलम तैयार करने जैसा सरल काम पकड़ लेते हैं, जिससे उनको भी रोजगार मिल रहा है।

खुशहाली

1. गाँव में ही मिला रोजगार तो थम गया पलायन
2. परम्परागत खेती संग नर्सरी कारोबार से जुड़े किसान तो लौट आई खुशहाली


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