बदल रही है सूरत ए हाल…


“नदी कॉलम के लेखक इन दिनों गंगासागर से गोमुख की यात्रा पर हैं। आने वाले अंकों में गंगा पथ पर बसे नगरों, वहाँ की संस्कृति, गंगा पर निर्भर जीविकोपार्जन और गंगा पर आकार ले रही सरकारी परियोजनाओं पर केन्द्रित बातचीत होगी।”

दुनिया की हर नदी अंतत सागर में समाती है लेकिन गंगा ही विश्व की एकमात्र नदी है जिसके नाम से सागर जाना जाता है। हिन्दु तीर्थों का एक प्रसिद्ध उद्घोष है, सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार। एक समय था जब गंगासागर की यात्रा दुर्गम मानी जाती थी। सम्भवतः मंधार पर्वत (वर्तमान भागलपुर) के समीप से यह यात्रा शुरु होती थी और बंगाल सहित (उस समय कोलकाता समेत पूरे बंगाल का इलाका समुद्र से घिरा और छोटे-छोटे द्वीपों में बँटा था।) तमाम छोटे-मोटे द्वीपों को पार कर विशाल गंगा नदी में लहराती नौकाएँ कई दिनों में गंगा सागर पहुँचती थी। ना जाने कितने ही यात्रियों के लिये गंगासागर की यात्रा अन्तिम यात्रा साबित होती थी। पुराने गजेटियरों में नौका डूबने और वर्मा (म्यांमार) आदि से समुद्री लूटेरों के आने की घटनाएँ भरी पड़ी हैं। लेकिन अब तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है।

पिछले पाँच साल के अन्तराल में तीसरी बार गंगासागर आना हुआ। कचुवेड़िया घाट पर मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी का विशाल बैनर स्वागत करता है, बांग्ला में लिखे उनके सन्देश का अर्थ है, सारे तीरथ एक बार लेकिन गंगासागर बार-बार। द्वीप पर आस्थावानों को दोबारा बुलाने की उनकी अपील साफ संकेत करती है कि गंगासागर आना अब बेहद आसान है और तीर्थयात्रियों के लिये यहाँ बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध हैं। कचुवेड़िया से कपिलमुनि मंदिर का सफर 28 किलोमीटर का है और पूरा रास्ता बेहतर सड़क और रोशनी के पर्याप्त इन्तजाम से चमचमाता है। सागर तट पर भी यात्रियों के ठहरने के लिये कई स्थायी शेड्स बनाये गये हैं। सागर तक पहुँचने के लिये टाइल्स लगे रास्तों का निर्माण किया गया।

बाजार को व्यवस्थित किया गया है, इसके अलावा प्रसाद और शंख से बने सजावटी सामान बेचने वालों को पक्की दुकानें दी गई है। बेशक इस पूरे काम के लिये केन्द्र सरकार ने पैसा मुहैया कराया है लेकिन इसे सही दिशा में खर्च राज्य ने किया है। मकर संक्रांति पर 4 दिन लगने वाले मेले की विशाल भीड़ को सम्भालने के लिये भी पर्याप्त इन्तजाम किये गये हैं।

गंगासागर में नये बंदरगाह का भी निर्माण होना है इसे सफल बनाने के लिये कचुवेड़िया से लाट आठ तक एक विशाल ब्रिज का निर्माण किया जाएगा। जिसमें नीचे ट्रेन रूट और ऊपरी हिस्से में गाड़ियों के आवागमन की योजना है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद गंगासागर आना और भी आसान हो जाएगा। लेकिन इस बदलती तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है।

हल्दिया बंदरगाह अब खत्म होने के कगार पर है, बड़े जहाजों की आवाजाही वहाँ लगातार मुश्किल होती जा रही है इसीलिये गंगासागर में नया बंदरगाह बनाने की तैयारी है। लेकिन जिन कारणों से हल्दिया पर संकट आया है वे कारण गंगासागर में भी मौजूद है, यानि गाद का लगातार बढ़ना और डिसिल्टिंग की प्रक्रिया और निपटान पर घोर लापरवाही बरतना। नीतिनियंताओं को नजर नहीं आ रहा है कि गंगा- हुगली से आने वाली गाद को सम्भाल पाना किसी डिसिल्टिंग कॉरपोरेशन के बस की बात नहीं है। इसी के चलते फरक्का भी अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पा रहा।

हालात ये है कि लोटाइट यानी भाटा के समय पानी इतना कम हो जाता है कि गंगासागर पहुँचाने वाली रूटीन फैरी भी चलना बंद हो जाती है, द्वीप के भीतर करीब हर जरूरत का समान कोलकाता के बड़ा बाजार से आता है और पानी की कमी से इन ट्रकों को दो- तीन दिन तक इन्तजार करना होता है वाहनों को द्वीप तक पहुँचाने वाली एक ही सरकारी फैरी है, इस फैरी के खराब होने का मतलब गंगासागर की अर्थव्यवस्था थम जाना है। इससे निपटने के लिये बहुमूल्य मैंग्रोव काटकर वेणुवन घाट को विकसित किया गया है जो नामखाना से चलकर करीब एक घण्टे में वेणुवन पहुँचता है, अब तो सभी मालवाहक नौकाएँ भी इसी रास्ते द्वीप तक पहुँचती हैं।

नया बंदरगाह बनने की सुगबुगाहट ने यहाँ की जमीनों की कीमतें अनाप शनाप बढ़ा दी हैं। जिससे फिशकल्चर पर असर पड़ा है। धान, पान और माछ इस क्षेत्र का मुख्य व्यवसाय है जिसमें हर घर से कोई ना कोई शामिल है। किसी भी काम में किसी जाति विशेष का नाम नहीं लिखा है। समुद्र में जाकर मछली पकड़ने के व्यवसाय में भारी कमी आई है इसका कारण ज्वार भाटे में बढ़ रही अनियमितता है।

सीधे-साधे लोगों का ये द्वीप अब बदल रहा है बाहरी व्यापारियों का दखल चिन्ता का कारण है। द्वीप का बदलाव यहाँ के निवासियों के जीवन-यापन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है बस गंगा उन्हें विकास का शिकार होने से बचाएँ।

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