कंपनी को परियोजना के लिए 4004 एकड़ जमीन चाहिए, जिसमें से 2900 एकड़ वनभूमि है। उड़ीसा की नवीन पटनायक सरकार ने अभी तक जिस जमीन का अधिग्रहण किया है, वह वनभूमि है। पॉस्को की इस्पात परियोजना के लिए जगतसिंहपुर में न सिर्फ नियमों के खिलाफ भूमि अधिग्रहण हुआ, बल्कि इस पूरी परियोजना में पर्यावरण सुरक्षा कानून, वन संरक्षण कानून, तटीय विनियामक नियमों और वनाधिकार कानून आदि का गंभीर उल्लंघन हुआ है।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने हाल में दक्षिण कोरिया की पोहांग स्टील कंपनी यानी पॉस्को की उड़ीसा में प्रस्तावित मेगा इस्पात परियोजना को दी गई पर्यावरण मंजूरी निलंबित की तो बड़ी परियोजनओं को पर्यावरण मंजूरी की प्रक्रिया पर भी कई तरह के सवाल उठे। न्यायमूर्ति सीवी रामूला और देवेंद्र कुमार अग्रवाल की न्यायाधिकरण पीठ ने पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिए कि वह इस मंजूरी की नए सिरे से समीक्षा करे और उसके साथ कुछ विशेष शर्तें लगाए, जिसे पॉस्को को तय समय सीमा में पूरा करने को कहा जाए। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण का यह आदेश पर्यावरण कार्यकर्ता प्रफुल्ल समांत्रे की याचिका पर आया है। याचिकाकर्ता का कहना था कि पॉस्को को पर्यावरण मंजूरी ईआईए 2006 की अधिसूचना के उलट है। न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में खासतौर पर इस तथ्य की ओर इशारा किया कि उड़ीसा सरकार और पॉस्को के बीच हुए एमओयू में कहा गया है कि यह परियोजना 1.2 करोड़ टन इस्पात उत्पादन (वार्षिक) के लिए है, जबकि पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) रिपोर्ट पहले चरण में सिर्फ 40 लाख टन सालाना के लिए तैयार की गई है।पीठ ने इस संदर्भ में पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश देते हुए कहा कि वह एक विशेष समिति का गठन करे, जो कि पर्यावरण मंजूरी के अनुपालन की निगरानी करे। न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में उन गड़बड़ियों की तरफ भी इशारा किया, जो पर्यावरण मंजूरी के दौरान हुई। मसलन, पर्यावरण मंजूरी की समीक्षा के लिए गठित समिति का चेयरमैन मीना गुप्ता को बना दिया गया, जो पर्यावरण व वन मंत्रालय के सचिव के रूप में पहले ही पॉस्को को दी गई पर्यावरण मंजूरी को समर्थन कर चुकी थीं। न्यायाधिकरण ने पॉस्को से इस बात की खासतौर पर ताकीद की, वह परियोजना के लिए कटक शहर के पेयजल का इस्तेमाल करने की बजाय पानी का प्रबंध खुद करे। कटक पहले ही पानी की कमी से जूझ रहा है।
उड़ीसा के आदिवासी बहुल जगतसिंहपुर जिले के नवांगांव-ढोंकिया गांव में लगने वाली पॉस्को की इस बड़ी इस्पात परियोजना पर पर्यावरण नियमों की अनदेखी के इल्जाम पहले भी लगते रहे हैं। पर्यावरण से खिलवाड़ को रोकने के लिए जो सरकारी मापदंड हैं, पॉस्को ने इन मापदंडों को कभी पूरा नहीं किया। पॉस्को ने परियोजना के लिए 3 लाख से ज्यादा पेड़ काट दिए। हजारों आदिवासी अपनी जमीन से उजड़ गए। सरकार द्वारा नियुक्त दो विशेषज्ञ समितियों ने अपनी रिपोर्ट में बतलाया है कि पॉस्को परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण कानूनों का उल्लंघन है। कंपनी को परियोजना के लिए 4004 एकड़ जमीन चाहिए, जिसमें से 2900 एकड़ वनभूमि है। उड़ीसा की नवीन पटनायक सरकार ने अभी तक जिस जमीन का अधिग्रहण किया है, वह वनभूमि है।
पॉस्को की इस्पात परियोजना के लिए जगतसिंहपुर में न सिर्फ नियमों के खिलाफ भूमि अधिग्रहण हुआ, बल्कि इस पूरी परियोजना में पर्यावरण सुरक्षा कानून, वन संरक्षण कानून, तटीय विनियामक नियमों और वनाधिकार कानून आदि का गंभीर उल्लंघन हुआ है। मगर केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों ने इन रिपोर्टों को ताक पर रखकर परियोजना को मंजूरी दे दी। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के फैसले के बाद, पर्यावरण मंत्रालय अब भले ही अपनी साख बचाने के लिए यह कह रहा है कि उसने परियोजना को मंजूरी देते समय पूरी तरह सख्त और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई थी। मगर सच्चाई क्या है? परियोजना में कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ियां हैं, वरना इस पर बार-बार यूं सवाल न उठते।
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