बड़ी झील में ताल है

भोपाल ताल
बड़ी झील की चाल-ढाल
पूरी सांगीतिक:
लहरों की लय
पानी का ताल
मौसमी राग-रंग
बजते हुए से चैड़े पूरे घाट
घाट पर पीपल की अखण्ड धुन
पत्ती-पत्ती साज़ है
पाखियों के कोरस हैं
सबको हैं जो बहुत पसन्द
मछलियाँ भी कुछ न कुछ गाती ही हैं मीठा-मधुर
पानी की महफि़ल में
हज़ार साल की हो चुकी है बड़ी झील
निर्मल मन बोलता है जिसे
भोजराज की जल-कीर्ति का दीर्घ-मनोहर छन्द

बड़ी झील में ताल है
जहाँ बोली-बानी तहज़ीब-तमीज़ के
कितने-कितने तो हैं सुन्दर बंदरगाह

बड़ी झील में ताल है
इसीलिए बेसुरा नहीं है भोपाल

बड़ी झील को निरखती-निहारती
खिड़कियाँ हैं-आँखें हैं
सांस्कृतिक केन्द्र भारत भवन है
रानी कमलापति किला है
शीतलदास की बगिया है
नागा बावा के किस्से हैं
धूनी दरबार है
धड़कते घाट हैं, मन्दिर-मस्जिद, गुरद्वारे हैं
परस्पर भाईचारा है
कभी-कभार दिख जाते इक्के-ताँगे हैं
कानों में बजती भोपाली ज़बान है
लम्बे-पूरे गप्प हैं: सुनते हुए जिन्हें
ललच जाता है सच्चाई का मन
सोच यह कि काश! मेरे भी भीतर होता
इतना रस-राग

वन विहार है-मानव संग्रहालय है
बहुतेरे तो प्यारे-प्यारे गाँव हैं-बैरागढ़ है
सुगढ़ आसमान है
खेलती-खिलखिलाती बयार है
दौड़-दौड़ कर पानी लातीं उलझावन-कोलांस हैं
और पानी का पहरुआ है भदभदा पुल

कितने-कितने तो चित्रों-बिम्बों-ध्वनियों की
बड़ी झील एक भरी-पूरी कविता है
बस इतना ही कि पानी कम नहीं होना चाहिए
और दबा न ले इसे कभी कोई धन-कुबेर !

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