बड़ी झील हँसी

बड़ी झील हँसी
तो भोपाल खिलखिला उठा
बड़ी झील सूखी
तो भोपाल तिलमिला उठा

रात गहराई
तो बड़ी झील ने
शहर को सोने का कह दिया
सुबह हुई तो कहा लग जाओ
काम पे

गर मेहमान कोई आया
तो कायल हुआ यहाँ की
खातिर की रिवायत पर
बड़ी झील से जब मुलाकात हुई

तो उसके भी जिगर में
ज़िन्दगी का प्यार आया-
खूब ! इतना खूब !
कि उसने भी अपनी रूह का पानी
बढ़ा हुआ पाया।

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