बड़े भूकम्प का न आना

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भूखण्डों के छोर पर स्थित किसी भी स्थान को भूकम्प के खतरे से पूर्णतः मुक्त नहीं समझा जा सकता है। भूखण्डों के गतिमान होने के कारण इन क्षेत्रों में लगातार ऊर्जा जमा होती रहती है और एक सीमा के बाद इस ऊर्जा का अवमुक्त होना तय है।

वास्तव में देखा जाये तो हम हर समय दो भूकम्पों के बीच होते हैं; एक आ चुका होता है और दूसरा आने वाला होता है। ऐसे में समय बीतने के साथ हम आने वाले भूकम्प के और ज्यादा नजदीक पहुँचते जाते हैं और हमारे ऊपर आसन्न भूकम्प का खतरा लगातार बढ़ता रहता है।

फिर लम्बे समय से क्षेत्र में किसी बड़े भूकम्प का न आना यही दर्शाता है कि क्षेत्र में जमा हो रही उर्जा का अवमुक्त होना अभी बाकी है और क्षेत्र में कभी भी बड़ा भूकम्प आ सकता है।

भू-वैज्ञानिक प्रायः रिक्टर पैमाने पर 8.0 परिमाण से अधिक के भूकम्प को महान भूकम्प कहते हैं। उत्तराखण्ड 1905 के कांगड़ा व 1934 के बिहार-नेपाल सीमा पर आये महान भूकम्प के अभिकेन्द्रों के बीच में स्थित है और इस क्षेत्र में विगत 200 से भी ज्यादा वर्षों से इस परिमाण का कोई भूकम्प नहीं आया है। इसका सीधा तात्पर्य है कि इस क्षेत्र में जमा हो रही ऊर्जा काफी लम्बे समय से अवमुक्त नहीं हो पायी है। यही कारण है कि वैज्ञानिकों के द्वारा प्रायः इस क्षेत्र के निकट भविष्य में बड़े भूकम्प से प्रभावित होने की आशंका व्यक्त की जाती है।

और सच मानिये, इस सम्भावना में कुछ भी गलत नहीं है। बड़े भूकम्प का यहाँ आना तय है। बस यह भूकम्प आयेगा कब यह बता पाने की स्थिति में कोई भी नहीं है। अपने-अपने आकलन के आधार पर सब बस इसके आने के कयास ही लगा सकते हैं।

वैसे इस क्षेत्र में 1991 व 1999 में उत्तरकाशी व चमोली भूकम्प आये हैं, पर इन भूकम्पों का परिमाण इतना बड़ा नहीं था कि उनसे क्षेत्र में जमा हो रही सारी की सारी ऊर्जा का निस्तारण हो जाने के प्रति आश्वस्त हुआ जा सके। अतः लम्बे समय से किसी बड़े भूकम्प के न आने के कारण उत्तराखण्ड में आसन्न भूकम्प का जोखिम काफी ज्यादा है।

और हाँ, बड़े भूकम्प के बाद भी भूकम्प प्रभावित क्षेत्र को भविष्य के लिये भूकम्प के खतरे से बाहर नहीं समझा जा सकता। क्षेत्र में बड़ा भूकम्प आ चुका है परन्तु इससे किसी भी तरह से यह सिद्ध नहीं होता है कि क्षेत्र में वर्षों से लगातार जमा हो रही सारी की सारी ऊर्जा सच में अवमुक्त हो ही चुकी है। और फिर भूखण्डों की गति के कारण ऊर्जा दोबारा जमा होना भी तो शुरू हो जाती है।

अभी हाल में 25 अप्रैल, 2015 को नेपाल में आये 7.9 परिमाण के गोरखा भूकम्प के बाद 12 मई, 2015 को आया 7.2 परिमाण का भूकम्प इस तर्क की पुष्टि करता है। यही कारण है कि इन दोनों भूकम्पों के 1905 व 1934 के महान भूकम्प के अभिकेन्द्रों के बीच स्थित होने पर भी वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षेत्र में फिर से बड़ा भूकम्प आने की सम्भावना को नकारा नहीं जा रहा है।

 

 

 

 

 

कहीं धरती न हिल जाये

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

पुस्तक परिचय - कहीं धरती न हिल जाये

2

भूकम्प (Earthquake)

3

क्यों आते हैं भूकम्प (Why Earthquakes)

4

कहाँ आते हैं भूकम्प (Where Frequent Earthquake)

5

भूकम्पीय तरंगें (Seismic waves)

6

भूकम्प का अभिकेन्द्र (Epiccenter)

7

अभिकेन्द्र का निर्धारण (Identification of epicenter)

8

भूकम्प का परिमाण (Earthquake Magnitude)

9

भूकम्प की तीव्रता (The intensity of earthquakes)

10

भूकम्प से क्षति

11

भूकम्प की भविष्यवाणी (Earthquake prediction)

12

भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public)

13

छोटे भूकम्पों का तात्पर्य (Small earthquakes implies)

14

बड़े भूकम्पों का न आना

15

भूकम्पों की आवृत्ति (The frequency of earthquakes)

16

भूकम्प सुरक्षा एवं परम्परागत ज्ञान

17

भूकम्प सुरक्षा और हमारी तैयारी

18

घर को अधिक सुरक्षित बनायें

19

भूकम्प आने पर क्या करें

20

भूकम्प के बाद क्या करें, क्या न करें

 

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