बड़े बांधों के अन्याय के खिलाफ जीत

ग्वाटेमाला में चिझो जल विद्युत परियोजना निर्माण में हुए अत्याचारों में विकास बैंकों की भूमिका के खिलाफ पारित अमेरिकी कानून ने विश्वभर के जनआंदोलनों में ऊर्जा का संचार किया है। लेकिन इस कानून का क्रियान्वयन किस हद तक हो पाएगा, इसे लेकर शंका बनी हुई है। पहली बार ग्वाटेमाला के जुझारू निवासियों ने न केवल सरकार बल्कि वैश्विक विकास बैंकों को सार्वजनिक तौर पर अपनी गलती मानने पर मजबूर किया है। ग्वाटेमाला में चिझो बांध/रियो नीग्रो जनसंहार के बत्तीस वर्ष पश्चात अमेरिकी सरकार ने विश्व बैंक एवं अंर्तअमेरिकी विकास बैंक (आईडीबी) से कहा है कि वह बचे हुए पीड़ितों हेतु तैयार 15,40,000,00 डॉलर (98 अरब 56 करोड़ रु.) की पुनुरुद्धार योजना का क्रियान्वयन सुनिश्चित करें। सन् 1975 से 1985 तक विश्व बैंक एवं आईएडीबी ने क्रमशः जनरल लुकास गारसिया एवं जनरल रिओस मोंट्ट की दमनकारी एवं नस्लवादी सरकारों के साथ मिलकर चिझो बांध “विकास परियोजना’’ पर तकरीबन एक अरब डॉलर का निवेश किया था। इस प्रक्रिया में 32 समुदायों के हजारों मायान मूल निवासियों को गैरकानूनी तरीके से एवं जबरदस्ती बेदखल किया गया। इस दौरान रिओ नीको समुदाय के मायान आची गांव में रहने वाले 440 व्यक्तियों का नरसंहार कर दिया गया था। उस समय ग्वाटेमाला की सरकार को अमेरिका एवं पश्चिम से मदद मिल रही थी। इसके चलते उन्होंने अपनी ही पूरी जनसंख्या पर दमनकारी “शीतयुद्ध’’ थोपा और देश के कुछ विशिष्ट देशज क्षेत्रों में जाति संहार को भी अंजाम दिया। इसमें मायन आची का वह क्षेत्र भी शामिल है जहां बलपूर्वक चिझो बांध परियोजना थोपी गई थी।

अमेरिका ने सन् 2014 में अमेरिकी समेकित विनियोज्य अधिनियम (यूएस कंसॉलिडेटेड एप्र¨प्रिएशंस बिल (पृष्ठ 1240, धारा एफ) पारित कर दिया है। इसके अंतर्गत वित्त सचिव विश्व बैंक एवं आईएडीबी के अमेरिकी कार्यकारी निदेशों को निर्देश देंगे कि वह इस कानून के लागू होने के अधिकतम 30 दिनों के भीतर विनियोज्य समितियों को और उसके बाद उन्हें प्रत्येक 90 दिन में 30 सितंबर 2014 तक यह सूचना देनी होगी कि ग्वाटेमाला में चिझो जल विद्युत बांध के निर्माण के दौरान प्रभावित समुदायों को हुए नुकसान की पूर्ति के लिए 18 अप्रैल 2010 को तैयार पुनुरुद्धार योजना के क्रियान्वयन में मदद हेतु इन संस्थानों में क्या कदम उठाए हैं। इस कानून का पारित हो जाना अपने आप में पुनरुद्धार योजना का क्रियान्वयन सुनिश्चित नहीं करता। परंतु यह बैंक के दायित्वों के परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

गरिमा, निरंतरता और संघर्ष के 32 वर्ष: चिझो बांध के बचे हुए लोग जो दशकों से विश्व बैंक/आईएडीबी की वजह से नष्ट हुई सच्चाई, स्मृति और न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनके साहस एवं परिमा को कमतर नहीं आंका जा सकता। बचे हुए लोगों ने मायान आची समुदाय के लोगों के खिलाफ हुए अत्याचारों जिनमें चिझो बांध/रियो निग्रो जनसंहार एवं बेदखली शामिल है, के विरुद्ध न्याय प्राप्ति हेतु अपने संगठन बना लिए हैं और अनेक वैश्विक संगठनों से भी गठबंधन किया है। यह सिलसिला सन् 1995 से प्रारंभ हुआ। इसके अंतर्गत ग्वाटेमाला में एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्याय की मांग की, मीडिया एवं फिल्म रिपोर्टिंग, ग्वाटेमाला एवं विश्व बैंक एवं आईएडीबी के वाशिंगटन स्थित मुख्यालयों के समक्ष प्रदर्शन आदि गतिविधियां संचालित की गई। संघर्ष के अधिकांश नेता जो कि चिझो बांध एवं रिओ-निग्रो हत्याकांड प्रभावित थे, पर अनेक अत्याचार किए गए। जिसमें अवैध गिरफ्तारी एवं हत्या की धमकियां मिलना दशकों से जारी है। इस बीच परियोजना से प्रभावित हजारों परिवार गरीबी की लंबी अवधि, भूमिहीनता, बेरोजगारी, हिंसा और असुरक्षा में रह रहे हैं। जनसंहार से शिकार लोगों की विधवाओं एवं बचे हुए सदस्यों को अभी तक अधिकारिक रूप न तो कोई सहायता मिली है न ही मुआवजा।

सन् 1995 में जब से वाशिंगटन डी.सी. में बैंकों के साथ पैरवी बैठक प्रारंभ हुई है, तब से आईएडीबी एवं विश्वबैंक ने यह कहते हुए अपनी जवाबदारी एवं न्याय से मुंह मोड़ लिया है कि सर्वप्रथम वे (ग्वाटेमाला) परियोजना के सभी आयामों का अनुपालन करें एवं परियोजना के द्वारा पहुंचे नुकसान या उल्लंघन की न तो उन्हें कोई जानकारी है और न ही उनका इससे कोई संबंध है। बैंकें जानबूझकर अपनी जिम्मेदारी से किनारा कर रही हैं। उन्हें अमेरिका, जहां पर कि उनका मुख्यालय है और विश्वभर में जहां वे निवेश करती हैं और अपनी विकास परियोजनाओं से लाभ कमाती हैं, वहां वरदहस्त मिला हुआ है। यह सुरक्षा उन्हें दानदाता-निवेशक देशों द्वारा प्राप्त है।

एक ओर जहां आईएडीबी और विश्व बैंक आसानी से अपनी जिम्मेदारी से बच रहे थे वहीं ग्वाटेमाला में पीड़ित समूहों ने चिझो बांध पीड़ित समुदायों के संगठनों के समन्वयक की अगुवाई में इस मामले को साहस एवं निरंतरता के साथ चलाए रखा। इसके परिणामस्वरूप ग्वाटेमाला सरकार से साथ सन् 2005 में एक औपचारिक प्रक्रिया प्रारंभ हुई, जिसकी मध्यस्थता आरगेनाइजेशन ऑफ अमेरिकन स्टेट कर रहा था और औपचारिक प्रेक्षक के रूप में बैंक भी शामिल थे। अंततः 18 अप्रैल 2010 को ग्वाटेमाला सरकार ने परियोजना से हुए नुकसान एवं उल्लंघनों को औपचारिक तौर पर स्वीकार किया और ग्वाटेमाला में चिझो जलविद्युत परियोजना के निर्माण की वजह से प्रभावित समुदायों को हुई हानि की क्षतिपूर्ति हेतु 15,40,0000 लाख डॉलर की “पुनरुद्धार योजना) पर भी स्वीकृति प्रदान की।

चार वर्षों के बाद आज तक भी राष्ट्रपति (पूर्व सैन्य जनरल) ओट्टो परेज मोलिना की सरकार ने पुनरुद्धार योजना कोष जारी करने के अधिनियम को पारित नहीं किया है। बैंकों का भी अपनी जिम्मेदारी से इंकार करना सतत जारी है। लेकिन अमेरिका में इस कानून के पारित हो जाने से बैंकों को पुनरुद्धार योजना का क्रियान्वयन बाध्यकारी हो जाएगा। इससे यह भी सिद्ध हो गया है कि जनसंहार, अवैध बलात बेदखली और अन्य अत्याचार व उल्लंघन की कार्यवाहियां भी हुई थीं। साथ ही अमेरिकी सरकार विश्व बैंक एवं आईएडीबी पर कानूनी कार्यवाही हेतु बाध्य हुई। वैसे इस अमेरिकी अधिनियम के ग्वाटेमाला पर भी व्यापक प्रभाव पड़ेंगे। चिझो बांध विशेषज्ञ का कहना है कि “अगर यह मामला नहीं सुलझा तो ग्वाटेमाला में व्यावसायिक एवं अन्य ब्याज दरें और महंगी हो जाएंगी। जिसका व्यापारी समुदाय पर परिणाम के अनुरूप नकारात्मक या सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यदि यह मामला नहीं निपटा तो पवन ऊर्जा, जलविद्युत, बिजली, ग्रिड, बंदरगाह एवं ग्वाटेमाला के अन्य क्षेत्रों में विदेशी निवेशक निवेश हेतु दोबारा विचार करेंगे।

वहीं दूसरी ओर यह माना जा रहा है कि इस पुनरुद्धार योजना के क्रियान्वयन हेतु अमेरिकी प्रतिनिधि सभा पर और दबाव डालना आवश्यक है। बैंकें कोई स्वतंत्र संस्थान नहीं है। उनका धन दानदाता निवेशक देशों से आता है, जिसके माध्यम से देशों द्वारा उनके निवेश पर लाभ कमाया जाता है। बैंकों की “विकास’’ नीतियां और परियोजनाओं का लाभ अंततः इन्हीं देशों को प्राप्त होता है अतएव इन देशों को भी उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए। इंटरनेशनल रिवर के मॉन्टी एग्युरी का कहना है, ’’एक महान व महत्वपूर्ण मिसाल कायम हो गई है। बड़े बांध पिछले सौ वर्षों में करोड़ों लोगों को विस्थापित और जैवविविधता को प्रभावित कर चुके हैं। ऐसा लगता है जैसे लोगों और प्रकृति दोनों की बलि चढ़ा दी जाएगी। लेकिन इस नई विजय से महसूस होता है कि हम एक साथ आगे बढ़कर अपनी नदियों और उन पर निर्भर लोगों को बचा पाएंगे।

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