बारिश में भीग-भीग
धान रोपने के लिए
लेउ लगाता खेतिहर
हुलक कर कहता है-
पानी पा गया
तो किसानी बन गयी
लगता है बाल-बच्चों के
नसीब में बदा है
भात!
सानी-पानी के नशे में
डूबे हुए बैल
जड़ता जोत रहे हैं
जैसे कहानी से चलकर हल में नध
गए हैं प्रेमचंद के ‘हीरा-मोती’
खेत भी पानी पाकर
तन गया है चम्मेल
और ज़र्रा-ज़र्रा महक उट्ठा है
माटी का मन
किसान की घरवाली
निहाल हो रही है
निहार-निहार कर अपने खेत
किसान के विश्वास में
मेहनत की चमक है!
धान रोपने के लिए
लेउ लगाता खेतिहर
हुलक कर कहता है-
पानी पा गया
तो किसानी बन गयी
लगता है बाल-बच्चों के
नसीब में बदा है
भात!
सानी-पानी के नशे में
डूबे हुए बैल
जड़ता जोत रहे हैं
जैसे कहानी से चलकर हल में नध
गए हैं प्रेमचंद के ‘हीरा-मोती’
खेत भी पानी पाकर
तन गया है चम्मेल
और ज़र्रा-ज़र्रा महक उट्ठा है
माटी का मन
किसान की घरवाली
निहाल हो रही है
निहार-निहार कर अपने खेत
किसान के विश्वास में
मेहनत की चमक है!
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