चार दशक पूर्व किसान ने खुदवाया था वर्षाजल रिचार्ज कुआँ
बांदा : बुन्देलखण्ड भले आज सुखे की चपेट में हो लेकिन यहाँ पानी की महत्ता को लेकर कई लोग पहले से उदाहरण प्रस्तुत करते रहे हैं। बांदा में वर्ष 1950 के दशक में खेतों में सिंचाई के लिये खोदे गए कुएँ में वर्षाजल रिचार्ज के लिये दो टैंक बनाए गए थे। उद्देश्य था कि सिंचाई के लिये जितना पानी लें उससे अधिक वर्षा का पानी रिचार्ज भी हो। बांदा जिले के गाँव गोयरा मुगली में बना यह कुआँ अपने आप में अद्भुत है। किसान भिखरिया का कहना है कि यहाँ की ज्यादातर जमीन पथरीली है। इससे पानी की बेहद कमी है।
गाँव के पुराने कुएँ सिंचाई के लिये पानी नहीं दे पा रहे थे। जल स्तर निरन्तर नीचे जा रहा था। तभी उसके दिमाग में सिंचाई के लिये कुआँ खुदवाने की सूझी। कुआँ खोदा गया तो पानी बेहतर निकला। उसी समय कुएँ को वर्षाजल के जरिए रिचार्ज के लिये खेत में ही दो टैंक बनवाए और उनके पानी को कुएँ से जोड़ दिया। एक टैंक में वर्षा का पानी जमा होता है। इसके बाद वह छनकर दूसरे टैंक में जाता है। दूसरे टैंक से पानी सीधे कुएँ में जाता है। इससे पानी भी दूषित नहीं होता है। इस व्यवस्था से जितना पानी वह सिंचाई के लिये कूप से लेता है उससे कहीं अधिक वर्षा के पानी से रिचार्ज होता है। सभी कुआँ ऐसा हो तो निश्चित गिरते भूजलस्तर को बढ़ाने में सफलता मिले।
सरकार खुद आगे आये तो बढ़े जलस्तर
बुन्देलखण्ड में तालाब को बचाने के क्षेत्र में काम कर रहे समाजसेवी पुष्पेंद्र का कहना है कि पुराने व नए कुओं में यदि इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाये तो निश्चित ही हम भूजल स्तर को बढ़ाने में सफल हो सकते हैं। भू-गर्भ विभाग के भू-वैज्ञानिक अनिल मिश्रा का कहना है कि वह किसान की सोच को सलाम करते हैं। प्रत्येक किसान की सोच वर्षाजल संरक्षण व रिचार्जिंग की हो जाये तो भूजलस्तर स्वतः बढ़ जाये। इस तरह की योजना 1980 में शुरू की गई थी।
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