![रूफ-टाप रेनवाटर हार्वेस्टिंग](/sites/default/files/styles/node_lead_image/public/hwp-images/roof_top_water_harvesting_8.jpg?itok=YkiZY4dM)
जागरण/देहरादून/ उत्तराखंड में होने वाली बारिश की 50 फीसदी मात्रा से ही सूबे की न केवल 100 फीसदी प्यास बुझाई जा सकती है, बल्कि रोजाना की अन्य जरूरतों को भी पूरा किया जा सकता है। इसे समझकर ही नए नियम बनाए जा रहे हैं। सूबे में 'रूफ-टाप रेन वाटर हार्वेस्टिंग' की कवायद शुरू की गई है। वर्षा जल संग्रह का प्रावधान नए बनने वाले सरकारी व निजी भवनों के लिए अब अनिवार्य हो गया है।
गंगा-यमुना सहित अनेक नदियों का उद्गम स्थल इसी प्रदेश होने के बावजूद उत्तराखंड में जल संकट बढ़ता जा रहा है। एक तरफ भूजल स्तर गिर रहा है और जलस्त्रोत सूख रहे हैं तो दूसरी तरफ आबादी वृद्धि से पानी की मांग में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। आलम यह है कि गर्मी में पर्वतीय गांवों में ही नहीं, राजधानी में भी पानी की कमी समस्या बनती जा रही है। वैज्ञानिक आगाह कर रहे हैं कि तेजी से बदल रहे पर्यावरण की वजह से एक दिन पानी बेहद नीचे चला जाएगा और आम जनता को आसानी से मयस्सर नहीं होगा। माना जा रहा है कि इस समस्या का निदान ही वर्षा जल संग्रह है। पानी का प्राकृतिक शास्त्र यह है कि पृथ्वी पर दो-तिहाई भाग में होने के बावजूद 97 फीसदी खारे समुद्र के रूप में है। पीने योग्य सिर्फ तीन फीसदी पानी है। इसमें से दो फीसदी हिमखंडों और एक फीसदी नदियों के रूप में है।
अब बात उत्तराखंड की, राज्य में औसतन 1250 मिलीमीटर वर्षा के हिसाब से 53483 वर्ग किमी क्षेत्र में सालभर में 6,68,537 करोड़ लीटर पानी बरसता है। सूबे की 90 लाख आबादी को प्रति दिन 100 लीटर के हिसाब से एक साल में 32850 करोड़ लीटर पानी चाहिए। अर्थात कुल वर्षा का महज 50 फीसदी। अगर इस पानी का संचय किया जाए तो इसके लिए 526 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की जरूरत होगी। बारिश के इस पानी का उपयोग करने को सरकार अब गंभीर नजर आ रही है। इस बारे में सचिव एमएच खान ने बताया कि सूबे में 'रूफ-टाप रेनवाटर हार्वेस्टिंग' को अनिवार्य कर दिया गया है। नए बनने वाले सभी सरकारी और निजी भवनों के लिए इस व्यवस्था को लागू करने का शासनादेश जारी कर दिया गया है। अब नए घर का मानचित्र वर्षा जल संग्रह के सुनिश्चित प्रबंध होने पर ही स्वीकृत किया जाएगा। इतना ही नहीं, पेयजल संकट क्षेत्र स्थित पुराने सरकारी भवनों में वर्षा जल संग्रह के निर्देश दिए गए हैं। पेयजल मंत्री मातबर सिंह कंडारी ने भी वर्षा जल संग्रह की सरकारी भवनों में संभावना व स्थिति पर रिपोर्ट तलब की है।
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