सारांश
उत्तर तमिलनाडु के समुद्र तटों में झींगा पकड़ में बारिश से होने वाले प्रभाव पर किया गया अध्ययन इस लेख का विषय है। अध्ययन ने व्यक्त किया कि झींगा प्रभाव पर उसी साल के वृष्टि के बदले में पिछले साल के वृष्टि का प्रभाव पड़ता है। एक अच्छी वृष्टि के उपरान्त की कुछ महीनों में अच्छी प्रभव वृद्धि दिखाई पड़ती है। यह पाया गया कि यहाँ अक्टूबर-दिसंबर मानसून काल है, इसके बाद के तीन महीनों में अच्छी पकड़ मिल जाती है।
झींगा जाति जैसे एम.डोबसोनी, पी. इंडिकस और एम. स्ट्रिडुलन्स की मानसून पकड़ और वृष्टि में कोई सहसंबंध नहीं है जबकि इस समय पारोपेनिआप्सिस माक्सिल्लोपेडो पकड़ में बढ़ती दिखाई पड़ती है। मानसूनकालीन पानी जब बहकर समुद्र में पड़ते हैं तब भारी मात्रा में जैविक पदार्थ पानी में धुल जाता है। यह झींगों का आकर्षण बन जाता है। अन्य क्षेत्रों से भी झींगे आहार की खोज में यहाँ पहुँच जाना प्रभाव वृद्धि का कारण माना जाता है।
आमुख
वाणिज्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण झींगा मात्स्यिकी की पकड़ में विचारणीय घटती दिखाई पड़ती है। अविनयमित पकड़ इसका कारण माने जाने पर भी कभी-कभी इस प्रभव की प्रचुरता और पैदावार में उतार-चढ़ाव दिखाया पड़ता है जिसका कारण जिज्ञासा का विषय है। यह समझने के लिये प्राकृतिक कारणों का अध्ययन कई बार किए गए हैं। वैसे वर्षा और इससे मिलने वाले मीठाजल से पेनिअइड झींगों की वर्धित पकड मिलने के संबंध में देश-विदेश के मात्स्यिकी वैज्ञानिकों ने अभिलेख किया है।
वृष्टि का प्रभाव विविध प्रजातियों के अभिलक्षण और आवास व्यवस्था के अनुसार बदल सकता है। विविध आवास व्यवस्था और अवस्थाओं में इस प्रभव पर वृष्टि द्वारा होने वाला उत्पादन प्रभाव समझना इस प्रभव के अच्छे प्रबंधन के लिये उपयोगी होगा, जिस कारण से मद्रास का समुद्र तट जहाँ तीन महीने की मानसून बारिश मिलती है, चुन लिया गया था।
अध्ययन की रीति
वर्ष 1990-99 के दौरान मद्रास तट से पकड़े गए झींगों की मात्रा और पकड़ श्रम संबंधी माहिक और वार्षिक आंकड़ों का निर्धारण किया। इसका जातिवार विवरण भी माहिक और वार्षिक तौर पर तैयार किया। इस समय की वर्षा संबंधी सूचना नगर के मौसम विज्ञान विभाग से इक्टठा किया। फिर यहाँ की प्रचुर 4 झींगा जातियों की पकड़ संबंधी डाटा को वर्षा संबंधी डाटा के साथ मिलाकर दोनों के बीच का संबंध वार्षिक और मौसमी स्तर पर तैयार किया।
परिणाम
मद्रास में 1990-1999 अवधि में मिला वर्षा अनियमित है। वार्षिक पकड़ को वर्ष में मिले कुल वर्षों के साथ मिलाकर उनका संबंध आकलित करने पर यह पाया गया कि अधिक वर्षा मिले वर्ष की तुलना में इसके बाद में आए वर्ष में पकड़ में थोड़ी सी बढ़ती (0.25 regression coefficient) हुई है।
चरम वृष्टि और पकड़
यहाँ की वृष्टि मौसमिक है। अक्टूबर-दिसंबर में होने वाली मानसून वृष्टि वार्षिक वृष्टि का 61% होती है। मानसून समाप्त होने के तीन महीनों में याने कि दिसंबर से मार्च तक अच्छी झींगा पकड़ मिलती है। अक्टूबर-दिसंबर का मानसून काल वृष्टि का उसी समय की पकड़ से मिलाकर विश्लेषण करने पर पकड़ में कोई विचारणीय वृद्धि नहीं देखी गई जबकि मानसूनोत्तर अवधि दिसंबर-मार्च का सहसंबंध विश्लेषण ने स्पष्ट रूप से सूचित किया कि इस दौरान पकड़ में बढ़ती हुई है। (regression coefficient 0.57)
मौसमी वृष्टि और मात्स्यिकी
झींगा पकड़ की महीनावार विश्लेषण से स्पष्ट हुआ कि अच्छी वृष्टि के 2-3 महीने उपरान्त पकड़ में वृद्धि होती है। (0.57 regression coefficient)
वृष्टि और प्रमुख जातियों की प्रचुरता
इस क्षेत्र से मानसूनोत्तर चरम पकड़ काल में मिलने वाली झींगा जातियों का पकड़ संबंधी विवरण नीचे दिया गया है।
सारणी से स्पष्ट होता है कि मानसून अवधि में यहाँ की प्रमुख चार झींगा जातियों की पकड़ में कहने लायक वृद्धि नहीं हुई है जबकि मानसूनोत्तर अवधि में पकड़ में वृद्धि हुई है। इन चार जातियों में से मानसून वृष्टि से सब से अधिक प्रभावित जाति पी.माक्सिल्लोपेडो है।
परिचर्चा
झींगा एक वार्षिक फसल है। इसका उत्पादन इस लिये वार्षिक प्रभव वृद्धि पर निर्भर रहता है जिसे बनाए रखने का अनुकूल घटक अंडजनन सुविधा, डिंभको के लिये अनुयोज्य आहार उपलब्धता, तरूण दशा बिताने का अवसर व प्रवास के लिये अनुयोज्य पर्यावरण स्थिति हैं। पर्यावरण में होने वाले व्यतियान इस मात्स्यिकी के प्रभव पर प्रभाव डालता है। अतः प्राकृतिक घटक जैसे वर्षा और इस से मिलने वाले मीठा जल के समुद्रों व ज्वारनदमुखों में प्रवेश झींगा संपदा की प्रभव वृद्धि का अनुकूल घटक माना गया है। विशेषकर पेनिअइड झींगों का। पेनिअइड झींगों का जीवनकाल छोटे और वृष्टि मौसमी होने के कारण उत्पादन के सहसंबंध को वार्षिक तौर पर न मिलाकर छोटी अवधियों से मिलाना अच्छा होगा। अतः विश्लेषण से मानसूनोत्तर तिमाही में स्पष्ट हुआ वर्धित पकड़ मानसूनकाल वृष्टि से हुआ अनुकूल मौसमी प्रभाव का उत्तम उदाहरण है।
सारणी 1 मद्रास में वार्षिक और मानसून वृष्टि और झींगा पकड (अवधि 1990-1999) |
||||||
वार्षिक |
मानसून अवधि |
|||||
वृष्टि |
पकड (ट) |
वृष्टि (से.मी.) |
पकड (ट) |
|||
वर्ष |
(से.मी.) |
(N) वर्ष |
(N+1) वर्ष |
अक्टूबर-दिसंबर |
अक्टूबर-दिसंबर |
दिसंबर-मार्च |
1990 |
143.4 |
1098 |
1996 |
74.0 |
330 |
630 |
1991 |
142.6 |
1996 |
2362 |
88.0 |
328 |
838 |
1992 |
84.6 |
2362 |
2730 |
52.0 |
472 |
770 |
1993 |
134.5 |
2730 |
4120 |
82.5 |
789 |
1345 |
1994 |
130.6 |
4120 |
4133 |
96.3 |
790 |
1755 |
1995 |
156.6 |
4133 |
2949 |
66.9 |
833 |
1359 |
1996 |
212.3 |
2949 |
1885 |
108.5 |
409 |
961 |
1997 |
216.9 |
1885 |
3906 |
157.8 |
475 |
1758 |
1998 |
133.4 |
3906 |
2533 |
85.2 |
742 |
1309 |
1999 |
60.9 |
2533 |
1549 |
50.0 |
415 |
632 |
औसत |
141.6 |
2771 |
2816 |
86.1 |
558.3 |
1135.7 |
सारणी 2 मद्रास तट में 1990-99 के दौरान अवतरण की गयी मुख्य झींगा जातियां |
|||||
वृष्टि (से.मी.) |
पकड (टन में) |
||||
वर्ष |
अक्टूबर-दिसंबर |
दिसंबर-मार्च |
|||
P.ind |
M.dob |
P.max |
M.str |
||
1992 |
52.0 |
126 |
185 |
102 |
39 |
1993 |
82.5 |
241 |
358 |
99 |
138 |
1994 |
96.3 |
264 |
304 |
201 |
58 |
1995 |
66.9 |
159 |
221 |
140 |
83 |
1996 |
108.5 |
139 |
229 |
142 |
106 |
1997 |
157.8 |
240 |
316 |
249 |
108 |
1998 |
85.2 |
281 |
374 |
174 |
113 |
1999 |
50.0 |
97 |
156 |
48 |
29 |
वी.तंगराज सुब्रह्मण्यन, और ई.वी. राधाकृष्णन,
केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, कोचीन
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