बाँधों के सुनामी मुखाने में है उत्तराखंड

उत्तराखण्ड के 10 पहाड़ी जनपदों का अधिकांश क्षेत्र भारत के अधिकतम भूकंप के क्षेत्र 5 माप पर आता है। जबकि मैदानी क्षेत्रों के चार जनपद 4 माप पर आते हैं। हिमालय की उम्र अभी बहुत कम है। भूवैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय का निर्माण यूरेशियन व एशियन (बर्मीज प्लेटस) की आपसी टक्कर के कारण हुआ था। 100 मिलीयन वर्ष पहले गोडवाना लैंड वर्तमान अफ्रीका व अंटार्कटिका से टूटकर आये, भारतीय उपमहाद्वीप का ऊपरी हिस्सा है। हिमालय मूल स्थान से अब तक 200 किमी. तक की यात्रा कर चुका है तथा 2 सेमी. प्रति वर्ष यह चीन की तरफ धँस रहा है। इस क्षेत्र की नई उत्पत्ति के कारण आये दिन यहाँ भूकंप के झटके आते रहते हैं। अभी एक हफ्ते के भीतर ही इस क्षेत्र में लगभग 4 माप के दो भूकंप आ गये हैं, जो सभी क्षेत्रों में महसूस किये गये। कुमाऊ विश्वविद्यालय के भूकंपमापी केन्द्र में भू वैज्ञानिकों ने 2000 और 2009 के बीच इस क्षेत्र में भूकंप के करीब पाँच हजार से ज्यादा छोटे और मध्यम दर्जे के झटके रिकार्ड किये हैं। जबकि जैतापुर महाराष्ट्र में जहाँ 9900 मेगावाट का परमाणु विद्युत केन्द्र बनाने की बात हो रही है, वहाँ पिछले 20 वर्षां में 96 भूकंप के झटके महसूस किये गये तथा यह क्षेत्र भूकंप के माप 5 में आता है। इस तरह से तुलना करने पर उत्तराखण्ड अधिक खतरनाक स्थिति में है।

अतन्तर्राष्ट्रीय विख्यात भू वैज्ञानिक डॉ. खडग सिंह वाल्दिया का कहना है कि उत्तराखण्ड में महाभूकंप का आतंक है। मध्यम व बड़े भूकम्प अपने-अपने बूते पर उत्तराखण्ड की धरती में संचित तनाव को उस स्तर तक, उस सीमा तक, नहीं घटा सकते जहाँ महाभूकम्प की संभावना ही न रहे। सन 1803 का गढ़वाल भूकम्प (जिसकी माप 7.5 से अधिक और 7.9 से कम) के बाद दो सौ वर्षों में एकत्र तनाव की विपुलराशि को मध्यम प्रबलता के ये भूकम्प कम कर पाये होंगे, ऐसा नहीं लगता। उत्तराखण्ड की धरती में इतना तनाव एकत्र हो गया है कि उसे पूरी तरह निकालने की क्षमता केवल महाभूकंप में ही है। वास्तविक रूप में पिछले दो सौ वर्षों से धरती के अन्दर जो तनाव है उसको निकालने में रिएक्टर पैमाने में 8 माप से अधिक प्रबलता वाले तनाव को दूर कर सकते हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है उत्तराखण्ड और पश्चिमी नेपाल सहित मध्य हिमालय की धरती में अभी तनाव है। चार-पाँच बड़े भूकंप निकलने की सम्भावना है।

यह ध्यान देने योग्य बात है जब भूकंप आता है तब उथल-पुथल केवल उसी दरार तक सीमित नहीं रहती जिस पर उसका केन्द्र हो बल्कि उन दरारों पर भी कमोवेश हलचल होती है जो भूकम्प मूलक भ्रंश से सम्बन्धित हों। उत्तराखण्ड की धरती असंख्य भ्रंशों से भरी है, कटी-फटी है। इनमें से अनेक अतीतकाल से ही सक्रिय रहे हैं। उन पर बड़े पैमाने पर धरती धँसी थी, उभरी थी, खिसकी थी, सरकी भी थी। यदि उत्तराखण्ड में कभी महाभूकंप आया तो अनेक सक्रिय भ्रशों पर हलचल और उथल-पुथल हो सकती है।

उत्तराखण्ड व उत्तरी जापान में फुकुशिया में आये विनाशकारी भूकंप में यह समानता है कि ये दोनों क्षेत्र भूकम्प के 5 रिएक्टर माप में आते हैं। अन्तर यह है कि फुकुशिया में परमाणु संयत्र विद्युत उत्पादन के लगे थे, परन्तु उत्तराखण्ड में विद्युत उत्पादन के लगभग हर नदी में बाँध बनाये जा रहे हैं। अगले कुछ वर्षों में उत्तराखण्ड में 558 जल विद्युत परियोजनायें बनना प्रस्तावित हैं। कुछ विद्युत परियोजनायें बन गयी तथा कुछ पर कार्य चल रहा है व कुछ प्रस्तावित हैं। अंधाधुंध बन रही परियोजनाओं में सबसे अधिक अलकनंदा नदी पर 101 व भागीरथी पर 85 परियोजनायें बन रही हैं।

उत्तराखण्ड की कोई ऐसी नदी नहीं है जिस पर परियोजना नहीं बन रही हो, एशिया की सबसे बड़ी विद्युत परियोजना टिहरी बनकर तैयार हो गई है। इसकी झील ही 50 किमी. से बड़ी है जिस में 83 मीटर तक पानी भरा हुआ है। कभी कोई महाभूकंप आ गया तो उत्तराखण्ड ही नहीं आधे से अधिक उत्तरी भारत तबाह हो जायेगा। अभी तो समाज को तथाकथित विकास की जो परिभाषा दी जा रही है, वह कुछ दिन तो अपने अहंकार का प्रकाश देता है, लेकिन जापान में भूकंप से आये अंधेरे में जो परमाणु संयत्र में विस्फोट हुआ है उसने लाखों परिवारों के जीवन को अंधकारमय ही नहीं किया है, बल्कि पूरी दुनिया में विनाश के साथ एक सकारात्मक विकास की सोच बनाने को विवश किया है।

जापान तो एक विकसित देश है जिसकी अर्थव्यवस्था दुनिया के तीसरे स्थान में है। इसलिये भूकंप सहने की क्षमता तो उसमें है, कम से कम हानि हो ऐसी तैयारी उसकी पूर्व से ही है। प्रकृति के प्रकोप को सहना कठिन है। आज उत्तरी जापान में प्रकृति द्वारा किये गये आघात से उतनी परेशानी नहीं हुई है जितनी मानवीय कृत्यों द्वारा किये गये कार्यां से। वह कंपनी जिसने परमाणु संयत्र बनाये हैं लगातार अपनी गलतियों को छिपाने के लिए झूठ बोलते रहे हैं जिससे खतरा बढ़ता गया है। भारत में भी आज जैतपुर परमाणु विद्युत उत्पादन संयत्र को उपयुक्त ठहराने के तर्क दिये जा रहे हैं।

उत्तराखण्ड के बागेश्वर जिले में पिछले वर्ष कथित विकास की भारी वर्षा ने सारी पोल खोल दी। 18 अगस्त, 2010 को एक छोटे से भूस्खलन में 18 बच्चों को जिन्दा दफ्न होने के लिए विवश होना पड़ा। जिस स्कूल में बच्चे दफ्न हुए उसके पास ही एक विद्युत परियोजना बन रही है। उसी सुरंग के पास यह हादसा हुआ था। उत्तरकाशी में सन् 1991 में जो भूकंप आया था उसमें 768 लोगों की मुत्यु हुयी थी। वह भी मनेरी बाँध के लिये बन रही सुरंग से जुड़े गाँव के पास हुई थी।

अभी 18 सितम्बर 2010 को उत्तराखण्ड में जबर्दस्त आपदा आई थी जिसमें लगभग 200 लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी है। 6 माह होने को आ गये हैं हजारों लोग बिना मकान के रह रहे हैं। उत्तराखण्ड की लाइफ लाइन माने जाने वाली सड़क अभी तक ठीक नहीं हुई है। उत्तराखण्ड में भूकंप से बचने के उपाय तो नहीं ढूढे जा रहे हैं परन्तु नदियों, पहाड़ों में खान व बड़े बाँध बनाने के लिये सब राजनैतिक दल एक मंच पर हैं, क्योंकि उत्तराखण्ड की सरकार पर कंपनियों व ठेकेदारों की जबर्दस्त पकड़ है इसलिए अगर कभी उत्तराखण्ड में महाभूकंप आया तो जापान से अधिक हानि उठानी पड़ेगी। भले ही सरकारी वैज्ञानिक भूकंप को नकराते हैं पर जैसे जापान में भी परमाणु संयत्र को सुरक्षित बताया जा रहा था, लेकिन भूकम्प से वह नहीं बच पाया। इसलिए बाँधों की सुनामी में बैठे उत्तराखण्ड को बचाना मुश्किल होगा।
 

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