बांधों के कैचमेंट में प्राकृतिक न्याय का मुद्दा 

<i>शहर में पानी-नदी, फोटो needpix.com</i>
<i>शहर में पानी-नदी, फोटो needpix.com</i>

सिंचाई के लिए बनाए बांधों के मुख्यतः तीन मुख्य भाग होते हैं - कैचमेंट (जलग्रहण क्षेत्र), जलाशय और कमाण्ड (जल वितरण प्रणाली)। योजनाओं के कैचमेंट वे इलाके होते हैं जिनमें बरसे पानी का अधिकांश भाग (वाष्पीकरण, भूजल रीचार्ज और वानस्पतिक मांग इत्यादि को पूरा करने के बाद बचा बरसाती पानी), नदी-नालों और ढ़ाल के सहारे बहकर जलाशय में आता है। उल्लेखनीय है कि कैचमेंट के इलाके का अधिकांश भाग ढ़ालू होता है। इस इलाके की मिट्टी की परत की मोटाई तथा उत्पादकता कम होती है। इस इलाके में कमाण्ड की तुलना में सम्पन्नता तथा विकास कम ही होता है। निवास करने वाली आबादी, अपेक्षाकृत कम पढ़ी-लिखी होती है लेकिन बांध निर्माण के कारण उस इलाके पर बरसा पानी जलाशय में जमा होता है। वहीं कैचमेंट की वर्षा आश्रित जमीन को बांध में जमा पानी का लाभ नहीं मिलता। गर्मी के दिनों में कैचमेंट में सामान्यतः पानी का संकट रहता है। जंगल और वन्यजीव भी जल संकट भोगते हैं। जलवायु परिवर्तन की संभावनाओं के लगातर स्पष्ट होने के बावजूद इन इलाकों को बांध में जमा पानी का लाभ नहीं मिल पाया है। इन परिस्थितियों और जलवायु परिवर्तन की संभावनाओं की आहट के कारण बांधों के कैचमेंट में जलापूर्ति से सम्बद्ध प्राकृतिक न्याय का मुद्दा, हर दिन और अधिक महत्वपूर्ण हो रहा है। 

 

यह त्रासद है कि सभी प्रकार के बांधों की प्लानिंग करते समय कैचमेंट को जलाशय का पानी उपलब्ध कराने के बारे में नही सोचा जाता। बाद के कालखंड में, जब कैचमेंट से पानी की कमी की खबरें आने लगती हैं, तब भी, उसे, जलाशय से पानी उपलब्ध कराने के बारे में सोचा नहीं जाता। गौरतलब है कि मुख्य फसल लेने के बाद, कई बांधों के जलाशयों में कुछ मात्रा में पानी बचा रहता है। यह पानी नहर तल के नीचे या ऊपर होता है। सभी जानते हैं कि गर्मियों में इस पानी का काफी बडा हिस्सा भाप बन कर उड़ जाता है। इस हकीकत के बावजूद जलाशय में बचे पानी के उपयोग के बारे में नहीं सोचा जाता। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन के कारण, आने वाले दिनों में, बरसात के चरित्र में बदलाव होगा। उस बदलरव के कारण पानी के बरसने की गति अपेक्षाकृत अधिक तथा अवधि कम होगी - परिणामस्वरुप रन आफ बढ़ेगा, बांध जल्दी भरेंगे और भूजल का रीचार्ज घटेगा। इन संभावनाओं की रोशनी में तकनीकीविदों को, कैचमेंट के जल संकट, बांध के जल्दी भराव और भूजल की कमी के कारण उपजने वाली की समस्याओं के निदान के बारे में सोचना चाहिए। आईए अब बात करें प्राकृतिक न्याय की।  

 

 

सबसे पहले हम प्राकृतिक न्याय को समझने का प्रयास करेंगे। उसका नियन्ता कौन है ? वह, किस प्रकार प्राकृतिक न्याय को सुनिश्चित करता है ? इत्यादि, इत्यादि। प्रकृति की न्याय व्यवस्था के अनुसार बरसात का पानी, सबसे पहले अगली बरसात के लिए वाष्पीकरण के माध्यम से पानी की। फिर वनस्पतियों की फौरी जरूरत पूरी करने के बाद धरती की कोख की मांग को पूरी की जाती है। कुदरत ही नियन्ता है। उसके बाद, कुदरती व्यवस्था, बचे पानी की मदद से धरती की सतह की साफ-सफाई करती है तथा मटमैले पानी को नदी-तंत्र की मदद से समुद्र में जमा कर देती है। इस व्यवस्था के कारण हर कुदरती घटक के साथ न्याय होता है। सारी गतिविधियां निरापद रहती हैं। संतुलन बना रहता है।

 

 

बांध बनते ही कुदरती व्यवस्था बदल जाती है। कैचमेंट से समुद्र की यात्रा पर निकला गादयुक्त मैला पानी, आगे बढ़ने के बजाए जलाशय में जमा होने लगता है। पानी को आगे ले जाने वाली नदी का प्रवाह बाधित हा जोता है। जलाशय से छोडे पानी से नदी का पुनर्जीवन होता है। कुदरती सन्तुलन को खंडित करने वाला यह पहला मानवीय हस्तक्षेप है। अगला मानवीय हस्तक्षेप है - कमाण्ड को अतिरिक्त पानी की सप्लाई। यह सप्लाई अमूनन सूखे मौसम में होती है। इस सप्लाई के कारण कछार में पानी के वितरण की कुदरती व्यवस्था परिवर्तित होती है। कैचमेंट पानी का संकट भोगता है वहीं कमाण्ड को पानी का अतिरिक्त डोज प्राप्त होता है। इस कारण असन्तुलन पैदा होता है और प्राकृतिक न्याय बाधित होता है। 

 

 

कैचमेंट और कमाण्ड में प्राकृतिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए बांधों में संचित पानी के बंटवारे के नियम बनना चाहिए। यह बंटवारा कैचमेंट और कमाण्ड की बायोलॉजिकल मांग के अनुसार होना चाहिए। तकनीकी आधार पर नहीं। उसी के आधार पर पानी के उपयोग की प्लानिंग होना चाहिए। इस बंटवारे में डेड स्टोरेज में संचित पानी की मात्रा का संज्ञान नहीं लेना चाहिए। उसे आकस्मिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए बचा कर रखना चाहिए। जहाँ तक कैचमेंट में पानी के उपयोग का प्रश्न है तो पेयजल, वन सम्पदा, वन्यजीव तथा वानस्पतिक आवरण को सम्बल प्रदान करने वाली आवश्यकताओं की पूर्ति को वरीयता मिलना चाहिए। यह सब प्रकृति से तालमेल बिठाकर होना चाहिए। इस व्यवस्था के लिये सरकार के स्तर पर नियम बनाये जा सकते हैं। इस पानी के प्रबंध के लिये पंचायत की समिति, वन क्षेत्रों में संयुक्त वन प्रबन्ध समिति या स्वतंत्र जल समिति को व्यवस्था सम्बन्धी अधिकार दिये जा सकते हैं

 

 

कैचमेंट में जलाशय के पानी पहुंचाने के लिये अनेक विकल्प मौजूद हैं। पहले विकल्प के अनुसार जलाशय की परिधि के थोडे अंदर, प्लेटफार्म बनाकर अनेक सोलर पंप स्थापित किये जा सकते हैं। सोलर पम्पों द्वारा उठाए पानी को कैचमेंट के ऊँचे स्थानों पर पहुँचाकर पानी की आपूर्ति की जा सकती है। दूसरे विकल्प के अनुसार पम्प को जलाशय के बाहर निर्मित प्लेटफार्म पर स्थापित किया जा सकता है। प्लेटफार्म तक पानी ले जाने के लिए नाली का निर्माण किया जा सकता है और फिर उसे लिफ्ट कर किसी ऊँचे स्थान पर पहुँचाकर पानी की आपूर्ति की जा सकती है। यह सारा काम कुदरती मांग और कुदरती पूर्ति के नियम के अनुसार करना होगा। मार्गदर्शिका के गठन का काम पर्यावरण, वन, सामाजिक न्याय और जल संसाधन विभाग द्वारा किया जाना चाहिए तथा आवश्यक सुधारों के लिए हर दस साल में मार्गदर्शिका के प्रावधानों की क्षेत्रवार समीक्षा होना चाहिए।

 

 

अब समय आ गया है जब हमें बांधों के कैचमेंट में पानी के बंटवारे की समस्या की जड़ पर चोट करने की रणनीति अपनानी होगी। कैचमेंट के संकट जन्य हालातों में सुधार के लिये अभी वक्त है पर यदि अभी सचेत नही हुये तो बहुत मुमकिन है कि आने वाली पीढ़ी, वित्तीय संस्थाओं, पानी के कारपोरेट हाउसों और पानी का मोल चुकाने वालों के हाथ से बाजी निकल जावेगी और कैचमेंट बेनूर हो जावेंगे। 

 

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