18 छात्र और 6 छात्राओं की इस हत्या नें तथाकथित रन आफ द रीवर यानि सुरंग परियोजनाओं से लोगों की सुरक्षा पर फिर से प्रश्न खड़ा कर दिया है। यह कोई पहली बार हुआ हो ऐसा नहीं है। हिमाचल में पहले भी ऐसे हादसे हु्ए हैं। देश में भी ऐसे कई उदाहरण है। मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तराखंड, सिक्किम के अलावा और भी कई जगहों पर ये हो चुका है। बांध कंपनियां बांध से नीचे के लोगों की सुरक्षा को कभी गंभीरता से नहीं लेती हैं। हिमाचल की व्यास नदी पर बने लारजी बांध से अचानक पानी छोड़े जाने के कारण घूमने आए इंजीनियरिंग पढ़ने वाले 24 युवा की जीवन लीला समाप्त हो गई। खबरों के अनुसार हिमाचल में मंडी शहर से 40 किलोमीटर दूर दवाड़ा थलौट गांव के पास ब्यास में कम पानी होने के कारण ये युवा नदी में फोटो खींचने चले गए।
लारजी पनबिजली परियोजना की सुरंग साढ़े चार किलोमीटर की है। बिजली उत्पादन के लिए नदी का लगभग सारा पानी सुरंग में डाल दिया जाता है। जिस कारण नदी लगभग सूखी रहती है। जो हमेशा किनारे पर रहते हैं पानी के घटने-बढ़ने से वे भी मात्र थोड़ी-बहुत समझ ही रखते हैं। बाहर के लोगों को तो इस बारे में कुछ समझ नहीं होती।
बांध कंपनियां भी इस बारे में बहुत लापरवाह होती हैैं। शिमला से लारजी पनबिजली परियोजना के दफ्तर में फोन आया कि बिजली उत्पादन बंद कर दिया जाए। इसलिए परियोजना कर्मचारियों ने बांध के दरवाजे खोल दिए और हजारों क्यूसेक पानी अचानक से नदी में आ गया।
हैदराबाद के वी एन आर विज्ञनना ज्योति इंजीनीयरिंग व टेक्नोलॉजी कॉलेज से आए ये छात्र अचानक पानी आने पर किनारे पर खड़े स्थानीय लोगों के द्वारा सीटी आदि बजाने के संकेत को नहीं समझ पाए। पर्यटन के लिए आए ये छात्र नहीं जानते थे कि बांध कंपनियां बिजली उत्पादन के अलावा किसी भी चीज के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं समझती। 18 छात्र और 6 छात्राओं की इस हत्या नें तथाकथित रन आफ द रीवर यानि सुरंग परियोजनाओं से लोगों की सुरक्षा पर फिर से प्रश्न खड़ा कर दिया है। यह कोई पहली बार हुआ हो ऐसा नहीं है। हिमाचल में पहले भी ऐसे हादसे हु्ए हैं।
देश में भी ऐसे कई उदाहरण है। मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तराखंड, सिक्किम के अलावा और भी कई जगहों पर ये हो चुका है। बांध कंपनियां बांध से नीचे के लोगों की सुरक्षा को कभी गंभीरता से नहीं लेती हैं।
उत्तराखंड में भागीरथी गंगा में उत्तरकाशी शहर के निकट मनेरी भाली प्रथम चरण पनबिजली परियोजना से अचानक पानी छोड़े जाने के कारण 2006 में 3 लोग बह गए। अगले ही साल फिर 10 नवंबर 2007 में उत्तराखंड जलविद्युत निगम के ही मनेरी भाली द्वितीय चरण के दरवाजों को खोलने बंद करने की टेस्टिंग में दो युवक बह गए।
किसी तरह एक युवा बचा लिया गया। दूसरा युवा बह गया। इन चारों की मृत्यु नहीं वरन बांध प्रशासन द्वारा हत्या है। जिसका कई सालों तक कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया। ना ही बांध अधिकारियों पर प्रशासनिक कार्यवाही भी नहीं हुई।
माटू जनसंगठन व उत्तरकाशी के स्थानीय संगठनों ने नवंबर 2007 में मणिकर्णिका घाट पर लंबा धरना व 5 दिन का उपवास रखने के साथ मांग की थी कि मनेरी-भाली जलविद्युत परियोजना चरण दो के उद्घाटन से पूर्व कम से कम जलाशय के दोनों तरफ बन रही सुरक्षा दीवार की निगरानी समिति में प्रभावितों व स्वतंत्र विशेषज्ञों को रखा जाए। डूब का निशान स्पष्ट रुप से लगाया जाए। आपदा प्रंबधन योजना और पानी छोड़ने की चेतावनी प्रक्रिया सार्वजनिक हो।
सुरंग निर्माण से जो प्राकृतिक जलस्रोत सूखे हैं उनका व अन्य पर्यावरण क्षति का आकलन हो। आवश्यक पुनर्वास व अन्य पर्यावरणीय सुरक्षात्मक उपाय हो। बांध के द्वारा बिना चेतावनी के छोड़े गए पानी से हुई चारों हत्याओं की न्यायिक जांच हो व प्रभावितों को मुआवजा दिया जाए। किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ।
बांध के अधीक्षण अभियंता व जिलाधीश द्वारा पर्चे जरुर बांटे गए जिसके अनुसार ‘‘बैराज के संचालन एवं इस परियोजना के ऊपर मनेरी-भाली परियोजना, प्रथम चरण स्थित होने के कारण जोशियाड़ा बैराज से कभी भी बिना पूर्व सूचना के नदी में पानी छोड़ा जा सकता है।’’ यानि मनेरी भाली बांधों से कभी भी बिना पूर्व सूचना के पानी छोड़ने से कोई बहता है तो सरकार ने अपने बचाव का इंतजाम कर लिया। सुरंग परियोजनाओं के किनारे रहने वालों के लिए ये बहुत ही खतरनाक स्थिति है। नदी अब लोगों की नहीं रही।
जून आपदा में उत्तराखंड में जेपी कंपनी के विष्णुप्रयाग बांध के सभी दरवाजे समय पर ना खुलने के कारण नीचे के लामबगड़, विनायक चट्टी, पाण्डुकेश्वर, गोविन्दघाट, पिनोला घाट आदि गांवों में मकानों, खेती, वन और गोविंद घाट के पुल के बह गए।
जी.वी.के. कम्पनी के श्रीनगर बांध द्वारा आनन-फानन में नदी तट पर रहने वालों को बिना किसी चेतावनी के दिए बांध के गेटों को 16 जून को लगभग 5 बजे पूरा खोल दिया गया जिससे जलाशय का पानी प्रबल वेग से नीचे की ओर बहा। जिसके कारण जी.वी.के. कम्पनी द्वारा नदी के तीन तटों पर डम्प की गई मक बही। इससे नदी की मारक क्षमता विनाशकारी बन गई। जिससे श्रीनगर शहर की सरकारी/अर्द्धसरकारी/व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक सम्पत्तियां बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई। किसी तरह से जान तो बची पर आज तक भी लोगों को मुआवज़ा नहीं मिल पाया है। किसी भी बांध कंपनी की जांच नहीं हुई। कोई दंड नहीं दिया गया। देश के विकास के लिए सब जायज माना जाता है।
पर्यावरण व वन मंत्रालय या जल संसाधन मंत्रालय अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं मानते। यदि मानते तो कड़े कदम उठाते, मापदंड बनाते व उनके पालन के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करते।
लारजी बांध कंपनी द्वारा की गई इस आपराधिक लापरवाही के लिए दोषी अधिकारियों को कड़ा दंड मिलना चाहिए। पूरे हिमालय में एक हजार के करीब ऐसे ही बांध प्रस्तावित हैं, बन रहे हैं और बन चुके हैं। सरकारों को सबक लेना चाहिए और बांध कपंनियों पर लगाम कसनी चाहिए।
लारजी पनबिजली परियोजना की सुरंग साढ़े चार किलोमीटर की है। बिजली उत्पादन के लिए नदी का लगभग सारा पानी सुरंग में डाल दिया जाता है। जिस कारण नदी लगभग सूखी रहती है। जो हमेशा किनारे पर रहते हैं पानी के घटने-बढ़ने से वे भी मात्र थोड़ी-बहुत समझ ही रखते हैं। बाहर के लोगों को तो इस बारे में कुछ समझ नहीं होती।
बांध कंपनियां भी इस बारे में बहुत लापरवाह होती हैैं। शिमला से लारजी पनबिजली परियोजना के दफ्तर में फोन आया कि बिजली उत्पादन बंद कर दिया जाए। इसलिए परियोजना कर्मचारियों ने बांध के दरवाजे खोल दिए और हजारों क्यूसेक पानी अचानक से नदी में आ गया।
हैदराबाद के वी एन आर विज्ञनना ज्योति इंजीनीयरिंग व टेक्नोलॉजी कॉलेज से आए ये छात्र अचानक पानी आने पर किनारे पर खड़े स्थानीय लोगों के द्वारा सीटी आदि बजाने के संकेत को नहीं समझ पाए। पर्यटन के लिए आए ये छात्र नहीं जानते थे कि बांध कंपनियां बिजली उत्पादन के अलावा किसी भी चीज के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं समझती। 18 छात्र और 6 छात्राओं की इस हत्या नें तथाकथित रन आफ द रीवर यानि सुरंग परियोजनाओं से लोगों की सुरक्षा पर फिर से प्रश्न खड़ा कर दिया है। यह कोई पहली बार हुआ हो ऐसा नहीं है। हिमाचल में पहले भी ऐसे हादसे हु्ए हैं।
देश में भी ऐसे कई उदाहरण है। मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तराखंड, सिक्किम के अलावा और भी कई जगहों पर ये हो चुका है। बांध कंपनियां बांध से नीचे के लोगों की सुरक्षा को कभी गंभीरता से नहीं लेती हैं।
उत्तराखंड में भागीरथी गंगा में उत्तरकाशी शहर के निकट मनेरी भाली प्रथम चरण पनबिजली परियोजना से अचानक पानी छोड़े जाने के कारण 2006 में 3 लोग बह गए। अगले ही साल फिर 10 नवंबर 2007 में उत्तराखंड जलविद्युत निगम के ही मनेरी भाली द्वितीय चरण के दरवाजों को खोलने बंद करने की टेस्टिंग में दो युवक बह गए।
किसी तरह एक युवा बचा लिया गया। दूसरा युवा बह गया। इन चारों की मृत्यु नहीं वरन बांध प्रशासन द्वारा हत्या है। जिसका कई सालों तक कोई मुआवज़ा नहीं दिया गया। ना ही बांध अधिकारियों पर प्रशासनिक कार्यवाही भी नहीं हुई।
माटू जनसंगठन व उत्तरकाशी के स्थानीय संगठनों ने नवंबर 2007 में मणिकर्णिका घाट पर लंबा धरना व 5 दिन का उपवास रखने के साथ मांग की थी कि मनेरी-भाली जलविद्युत परियोजना चरण दो के उद्घाटन से पूर्व कम से कम जलाशय के दोनों तरफ बन रही सुरक्षा दीवार की निगरानी समिति में प्रभावितों व स्वतंत्र विशेषज्ञों को रखा जाए। डूब का निशान स्पष्ट रुप से लगाया जाए। आपदा प्रंबधन योजना और पानी छोड़ने की चेतावनी प्रक्रिया सार्वजनिक हो।
सुरंग निर्माण से जो प्राकृतिक जलस्रोत सूखे हैं उनका व अन्य पर्यावरण क्षति का आकलन हो। आवश्यक पुनर्वास व अन्य पर्यावरणीय सुरक्षात्मक उपाय हो। बांध के द्वारा बिना चेतावनी के छोड़े गए पानी से हुई चारों हत्याओं की न्यायिक जांच हो व प्रभावितों को मुआवजा दिया जाए। किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ।
बांध के अधीक्षण अभियंता व जिलाधीश द्वारा पर्चे जरुर बांटे गए जिसके अनुसार ‘‘बैराज के संचालन एवं इस परियोजना के ऊपर मनेरी-भाली परियोजना, प्रथम चरण स्थित होने के कारण जोशियाड़ा बैराज से कभी भी बिना पूर्व सूचना के नदी में पानी छोड़ा जा सकता है।’’ यानि मनेरी भाली बांधों से कभी भी बिना पूर्व सूचना के पानी छोड़ने से कोई बहता है तो सरकार ने अपने बचाव का इंतजाम कर लिया। सुरंग परियोजनाओं के किनारे रहने वालों के लिए ये बहुत ही खतरनाक स्थिति है। नदी अब लोगों की नहीं रही।
जून आपदा में उत्तराखंड में जेपी कंपनी के विष्णुप्रयाग बांध के सभी दरवाजे समय पर ना खुलने के कारण नीचे के लामबगड़, विनायक चट्टी, पाण्डुकेश्वर, गोविन्दघाट, पिनोला घाट आदि गांवों में मकानों, खेती, वन और गोविंद घाट के पुल के बह गए।
जी.वी.के. कम्पनी के श्रीनगर बांध द्वारा आनन-फानन में नदी तट पर रहने वालों को बिना किसी चेतावनी के दिए बांध के गेटों को 16 जून को लगभग 5 बजे पूरा खोल दिया गया जिससे जलाशय का पानी प्रबल वेग से नीचे की ओर बहा। जिसके कारण जी.वी.के. कम्पनी द्वारा नदी के तीन तटों पर डम्प की गई मक बही। इससे नदी की मारक क्षमता विनाशकारी बन गई। जिससे श्रीनगर शहर की सरकारी/अर्द्धसरकारी/व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक सम्पत्तियां बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई। किसी तरह से जान तो बची पर आज तक भी लोगों को मुआवज़ा नहीं मिल पाया है। किसी भी बांध कंपनी की जांच नहीं हुई। कोई दंड नहीं दिया गया। देश के विकास के लिए सब जायज माना जाता है।
पर्यावरण व वन मंत्रालय या जल संसाधन मंत्रालय अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं मानते। यदि मानते तो कड़े कदम उठाते, मापदंड बनाते व उनके पालन के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करते।
लारजी बांध कंपनी द्वारा की गई इस आपराधिक लापरवाही के लिए दोषी अधिकारियों को कड़ा दंड मिलना चाहिए। पूरे हिमालय में एक हजार के करीब ऐसे ही बांध प्रस्तावित हैं, बन रहे हैं और बन चुके हैं। सरकारों को सबक लेना चाहिए और बांध कपंनियों पर लगाम कसनी चाहिए।
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