बांध पर आपराधिक लापरवाही का सैलाब

एक महत्वपूर्ण मुद्दा, जिस पर अधिकारियों का ध्यान शायद नहीं गया। वह यह है कि यहां से पंडोह बांध तक लगभग बीस किलोमीटर की राह है, लेकिन सड़क किनारे इस नदी पर दो ही जगह जाल हैं। वह भी कुछ-कुछ दूरी पर। कहीं भी नियोजित तरीके से एंट्री प्वाइंट नहीं है और लगता है कि यहां अवैध तौर पर माइनिंग होती है। एक लाश भाखरा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड के दफ्तर अभी-अभी लाई गई है। ऐसा लग रहा है मानो आमिर खान की ‘पीपली लाइव’ फिर बन रही है। कितना क्रूर लगता है । लेकिन यहीं जिंदगी है।

कैमरों के फ्लैश चमकते हैं। मां-बाप के दुख का कोई अंत नहीं। जिला मजिस्ट्रेट देवेश कुमार मीडिया के लोगों को हटाते हैं और दुखी परिजनों को वक्त देते हैं, जिनके लिए किसी शोक संवेदना का कोई मतलब नहीं रहा। एक के बाद दूसरा अभिभावक लाश की पहचान करने के लिए बुलाया जाता है। आखिरकार पता चलता है, यह देवाशीष है- एक नौजवान, लगभग बीस बरस का। वह हिमाचल आया था स्टडी दूर पर। एक यात्रा, जिसमें उसकी जिंदगी का अध्याय खत्म हो गया।

एक छैला नौजवान, जो युवा था और अपने मां-बाप की एक उम्मीद भी। वह पानी के तेज बहाव में घिर गया था। उसे नदी की चट्टानी तलहटी से बाहर निकाला गया। पांचवीं लाश उसकी थी, जिसे सोमवार की सुबह से चल रहे बचाव-राहत अभियान में जुटे आईटीबीपी और सेना के जवान निकाल पाए थे।

देवाशीष मां-बाप की मानसिक स्थिति के बारे में क्या कहें, उसके दोस्त शिराज के पिता की हालत तो और ज्यादा खराब है। उन्हें अब यही उम्मीद है कि उनके बेटे की भी लाश शायद मिल जाए।

शिराज के पिता आंध्र प्रदेश के बांधों के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर हैं। वे कहते हैं कि उनके बेटे और देवाशीष ने उस चट्टान को पकड़ रखा था, जब अचानक पानी की तेज लहर आई और उन्हें अपने साथ बहा ले गई। दोस्तों के अनुसार, उसने नदी के बीचोंबीच उस चट्टान को पंद्रह मिनट तक पकड़े रखा, लेकिन पानी के तेज बहाव के आगे उन दोस्तों की एक न चली।

वीएनआर विज्ञान ज्योति इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेकनोलॉजी, हैदराबाद के छात्र ग्रीष्म अध्ययन टूर के तहत कुल्लू-मनाली आए थे। मनाली जाने के रास्ते में उन्होंने व्यास नदी की नीचे बह रही हल्की धारा देखी। वे कैमरे से प्रकृति की तस्वीरें लेने ठहर गए। पानी स्थिर-शांत था। नदी की इस धारा की राह में दो बड़ी चट्टानें भी थीं। वे उन चट्टानों पर बैठ कर अपनी तस्वीर खिंचाने के मोह में पहुंच गए। हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड के एक अधिकारी मनोज कुमार नदी किनारे अपने मकान की लॉन में बैठे थे। वे चिल्लाए और छात्रों से किनारे लौटने की अपील करते रहे, लेकिन वे उन्हें ‘बॉय-बॉय’ कहते रहे। शायद वे नौजवान हिंदी नहीं जानते थे। ‘मैं चिल्लाता रहा कि पानी की धारा अब नदी बन रही है और यह दिख भी रहा था। ये नौजवान इतने मशगूल थे कि शायद उनका ध्यान पानी के बढ़ते बहाव पर नहीं गया। हम किसी तरह दो छात्रों को उस नदी से जबरन खींच लाए, लेकिन बाकी अचानक ओझल हो गए।’

यह बयान मनोज कुमार का था, जो उन्होंने एक्जक्यूटिव मजिस्ट्रेट अजय पाराशर को दिया। अजय जांच आयोग के प्रमुख हैं। अब पाराशर के अनुसार यह हादसा तीन बड़ी गलतियों की वजह से हुआ। पहला-बांध अधिकारियों ने हूटर दिया, लेकिन किसी पर्यटक को क्या पता कि इस हूटर का क्या आशय है। अलग-अलग वजहों के लिए अलग-अलग सिग्नल या हूटर होने चाहिए।

दूसरा-पंडोह बांध के अधिकारियों ने समय पर प्रशासन को लिखा कि पानी छोड़ा जा रहा है। लेकिन इस मामले में यह संबंधित नहीं था।

तीसरा-एक गैर स्थानीय गाइड रखने से कोई लाभ नहीं होता। जबकि एक सथानीय गाइड इलाके को ज्यादा बेहतर तरीके से जानता है और बेहतर तरीके से बता भी सकता है। कॉलेज प्रबंधन ने दिल्ली से गाइड लिया था। वह गाइड क्या करेगा, जो खुद यहां के लिए बाहरी है।

जांच आयोग के सामने अन्य अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने नदी की धारा के किनारे हर जगह जाल लगाए और उन पर चेतावनी वाले साइन बोर्ड भी थे। लेकिन उनके साथ कठिनाई यह रही है कि कबाड़ी उन्हें उखाड़ देते हैं और बेच देते हैं।

‘हम भारतीय, यूरोपीय लोगों की तरह संवेदनशील नहीं हैं’, कहते हैं पाराशर।

एक महत्वपूर्ण मुद्दा, जिस पर अधिकारियों का ध्यान शायद नहीं गया। वह यह है कि यहां से पंडोह बांध तक लगभग बीस किलोमीटर की राह है लेकिन सड़क किनारे इस नदी पर दो ही जगह जाल हैं। वह भी कुछ-कुछ दूरी पर। कहीं भी नियोजित तरीके से एंट्री प्वाइंट नहीं है। लगता है कि यहां अवैध तौर पर माइनिंग होती है। वह धूलभरा रास्ता, जहां से छात्र नदी में नीचे उतरे, ‘जामुन रेती’ कहलाता है। यदि इस पूरे रास्ते ठीक से जाल लगे होते तो कोई भी 20 किलोमीटर के क्षेत्र में नहीं जाता। पाराशर अवैध खनन के आरोप से इंकार नहीं करते।

शिराज के पिता खुद सुपरिटेंडेंट इंजीनियर हैं। वे कहते हैं कि अधिकारियों ने पानी छोड़ने में खासी लापरवाही बरती। पानी शाम को छोड़ा गया, जबकि आमतौर पर पानी रात में नौ बजे के आस-पास छोड़ा जाता है, जब किसी जानवर या इंसान के इसके चपेट में आने का अंदेशा नहीं होता। दुख और वेदना के साथ उन्होंने कहा कि ‘रविवार होने के कारण शायद इस काम को जल्दबाजी में किया गया।’

लारजी बांध के एक अधिकारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ‘पानी को कभी इस तरह नहीं रोका जाता। अभी गर्मियां हैं, ग्लैशियर पिघल रहे हैं। जैसे ही पानी खतरे के निशान पर पहुंचता है, हमें पानी छोड़ना पड़ता है। ऐसा न करें तो पास के गांवों में बाढ़ आ जाएगी। पानी छोड़ने का कोई समय तय नहीं किया जा सकता, क्योंकि जल स्तर कब बढ़ेगा, इसके बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।’ वे कहते हैं, रविवार को हमें शिमला से लोज शेडिंग का आदेश मिला था, क्योंकि ग्रिड में ट्रिपिंग हो रही थी। हमें 250 क्यूसेक पानी छोड़ना था।

एनएचपीसी ने यहां से तकरीबन दो किलोमीटर दूर अभी हाल में अन्य एक परियोजना शुरू की है। इसने भी लगभग उसी समय पानी छोड़ा। क्या आपस में इनमें कोई समन्वय नहीं है? अधिकारी ने बताया, ‘ऐसा नहीं है। यह सब एक रुटीन सा है। गर्मियों में ग्लैशियर पिघलते रहते हैं और ऊपर से नीचे तक पानी पहुंचने में दो-तीन घंटे लगते हैं। शाम को पानी का स्तर बढ़ जाता है, जो रात में कम हो जाता है। और तो और लारजी, तीन नदियों (व्यास, तीर्थन और सेंगे) का मेल होता है, जिस कारण यहां का जलाशय हमेशा गर्मियों और मानसून में भरा रहता है।’ रविवार को ऑपरेटर छुट्टी पर था। किसी को नहीं पता कि वह नौकरी से मुअत्तल हुआ या नहीं। लेकिन उसकी मुअत्तली से 24 लोगों की जिंदगी तो वापस नहीं आएगी।

यहां व्यवस्थागत दोष भी थे। बांध से इस संवाददाता ने देखा कि जब पानी छोड़ा गया तो उसके पहले हुटर बजा। इर्द-गिर्द पहाड़ियां काफी ऊंची है, लेकिन हूटर की आवाज आधा किलोमीटर के दायरे में भी सुनाई नहीं पड़ी। क्या फिर साइरन से लैस किसी कार को इसके साथ दौड़ाना उपयुक्त होगा? इस बारे में कोई कुछ नहीं बोलता।

हादसे में मरे युवाओं की लाशों को निकालने के काम में आईटीबीपी, एनडीआरएफ और सेना के गोताखोर लगे हुए हैं। अब तक लाशें नहीं मिल सकी हैं। यह पूरी पट्टी 20 किमी लंबी है और कई जगह इतना मैदान है कि स्वचालित नौका से भी नहीं पहुंचा जा सकता। पानी इतना मटमैला है कि कुछ भी दिखाई नहीं देता। नदी को तलहटी में चट्टानें और बड़े पत्थर हैं। फिर भी पूरी कोशिश की जा रही है। आईटीबीपी के एक अधिकारी ने ये बातें कहीं।

इस कवायद के बीच शिराज के पिता बेटे को खोने का गम ढो रहे हैं। उन्हें अब भी भरोसा नहीं होता कि उनके बेटे की छुट्टियां इस तरह खत्म होंगी। वे कहते हैं, ‘यह हिमालय का क्षेत्र है। यहीं खुद महादेव है। हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ?’

seema@governancenow.com

Path Alias

/articles/baandha-para-aparaadhaika-laaparavaahai-kaa-saailaaba

Post By: Hindi
×