बाँध का पेट खाली, खेत माँगे पानी

छत्तीसगढ़ में कम वर्षा से हाहाकार मचा हुआ है। किसान अपनी सूखती फसल के लिए पानी माँगने सड़कों पर उतरे तो उन पर बड़ी बेरहमी से लाठियाँ बरसाई गईं। रमन सिंह सरकार के खिलाफ प्रदेश भर के किसान गुस्से में हैं। वहीं कांग्रेस ने बाँधों से पानी छोड़ने के लिए प्रदर्शन कर पूरे प्रदेश को सूखा प्रभावित घोषित करने की माँग की है।

छत्तीसगढ़ में इस बार कम बारिश से खेतों में हाहाकार मचा हुआ है। किसानों के सामने जीवन मरण का प्रश्न खड़ा हो गया है। कम बारिश के चलते धान का कटोरा भरेगा, इसमें सन्देह है। 50 से अधिक तहसीलों में फसलों को बचाने के लिए किसान सरकार से पानी माँग रहे हैं। सिंचाई पम्प की सुविधा से वंचित किसानों के सामने फसलों को बचाने की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो गई है। हालात यह है कि किसान खेतों में खड़ी फसल को पशुओं को चरने के लिए छोड़ दे रहे हैं। रायपुर, बलौदाबाजार, भाटापारा, धमतरी, गरियाबन्द, अभनपुर, जांजगीर-चाम्पा आदि जिलों में स्थिति बेहद खराब हो गई है। 50 फीसदी से अधिक हिस्से में किसान बियासी नहीं कर पाए हैं। इस वजह से दूसरी फसल का विकल्प लगभग खत्म हो गया है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. साकेत ठाकुर कहते हैं, “बारिश नहीं हुई तो धान की बालियाँ ठीक से नहीं आएगी। यदि आ भी गई तो दाना भरना कठिन होगा।”कृषि विभाग के अनुसार राज्य के 7 लाख 58 हजार हेक्टेयर में बियासी और 49 हजार हेक्टेयर में रोपाई नहीं हो पाई है।

इस बीच अभनपुर में गंगरेल बाँध से पानी छोड़ने की मांग को लेकर कांग्रेस विधायक धनेन्द्र साहू के साथ किसानों ने प्रदर्शन किया। पुलिस ने प्रदर्शनकारी किसानों को खदेड़ने के लिए पहले अश्रु गैस के गोले छोड़े, फिर लाठियाँ बरसाईं। इसके चलते एक किसान केजूराम बारले की जान चली गई। दर्जनों कांग्रेसी और किसान भी घायल हुए। किसान संशय में हैं। अपने खेतों को पानी के लिए सरकार से भिड़ें या फिर सूखने दें। सूखे ने उसकी जान सूखा दी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल कहते हैं, “राज्य में जिस तरह के हालात बन गए हैं, उसे देखते हुए सरकार को सूखा घोषित कर देना चाहिए। यदि समय रहते किसानों के खेतों को पानी नहीं मिला तो धान का कटोरा खाली रह जाएगा। धान के कटोरे में भूख और बेबसी के सिवा कुछ नहीं दिखेगा।”

जबकि कृषि मन्त्री बृजमोहन अग्रवाल कहते हैं, “राज्य सरकार ने 60 फीसदी से कम बारिश वाली तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित करने की तैयारी कर ली है। कलेक्टरों से प्राप्त आनावारी रिपोर्ट के अनुसार तहसीलों को सूखा प्रभावित घोषित किया जाएगा। साथ ही सूखा ग्रस्त तहसीलों के लिए अतिरिक्त पैकेज के लिए केन्द्र सरकार को एक रिपोर्ट भेजी जाएगी।”

धमतरी के किसान बिसाहू देवांगन कहते हैं, नर्सरी में धान के पलहा की औसत उम्र दो माह से अधिक हो चुकी है। जबकि इसे लगाने की आदर्श स्थिति 21 दिन की है। अब रोपा लगाने से नुकसान ही होगा, इसलिए जो किसान समय पर रोपा नहीं लगा पाए हैं, उन्होंने खेतों को खाली छोड़ दिया है। इसी तरह खुर्रा बोनी के खेतों में भी अब बियासी नहीं हो सकती। देखा जाए तो इस बार पिछले दस वर्षों के औसत के आस-पास भी बारिश नहीं हुई है। प्रदेश में 1 सितम्बर तक 621.1 मिलीमीटर औसत वर्षा हुई है। सुकमा जिले में सर्वाधिक 999.9 मिलीमीटर औसत वर्षा दर्ज की गई है। सबसे कम 361.4 मिलीमीटर बारिश बालोद जिले में दर्ज की गई है। अल्प वर्षा से किसानों के सामने एक समस्या खड़ी हो गई है। धान के खेतों में खरीफ सीजन में जलभराव नहीं होने से खरपतवार बढ़ेगा। राजनांदगाँव के किसान राकेश साहू कहते हैं, सूखे की वजह से रोपा वाले धान के खेतों में खरपतवार बढ़ गया है। वहीं रोपा लगाने के बाद निंदाई में किसानों को अतिरिक्त लागत लग रही है। फिलहाल मानसून केवल 6 जिलों बस्तर, सरगुजा, कोरबा, रायगढ़, कवर्धा और मुंगेली पर मेहरबान रहा। इन जिलों में पड़ने वाले 12 जलाशय 70 से 100 फीसदी तक भरे हैं। इनमें मिनीमाता, बांगो, मनियारी, श्याम, छिरीपानी, सुतियापाटा, केदार नाला, बेहारखार, बमई, पुटकानाला, मोगरा बाँध, सरोदा और कोसार टेडा जलाशय शामिल हैं।

सिंचाई विभाग के अफसरों का कहना है कि जलाशयों और बाँध में पानी की स्थिति को देखकर ही पानी दिया जाएगा। अधिकांश इलाकों में फिलहाल पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। रायपुर, धमतरी, महासमुंद, बलौदाबाजार, कसडोल, भाटापारा, सिमगा आदि क्षेत्रों में किसान गंगरेल बाँध से पानी की माँग कर रहे हैं। लेकिन गंगरेल में 26.78 फीसदी पानी है। बारिश नहीं होने से पानी का स्तर घट रहा है। यही स्थिति अन्य क्षेत्रों की भी है।

प्रदेश के 27 जिलों में खण्ड बारिश की वजह से बाँध और जलाशय खाली तो हैं ही, वहीं खेतों में भी पानी नहीं दिख रहा। तेज धूप के चलते दस दिनों में ही प्रदेश के 42 बड़े बाँधों में 57 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी घट गया। सिंचाई विभाग के अनुसार एक अगस्त 2015 को प्रदेश के बड़े जलाशयों में कुल 3579.451 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी था। दस दिनों में यह घटकर 3522.247 मिलियन क्यूबिक मीटर हो गया। वहीं जलाशयों का औसत भराव 57.12 से घटकर 27 अगस्त को 56.10 फीसदी हो गया है। इस दौरान कई जलाशयों में दो फीसदी तक जलस्तर में गिरावट दर्ज की गई है। प्रदेश में इस बार औसत बारिश से करीब 19 फीसदी बारिश कम हुई है। गंगरेल बाँध में भी अन्य बाँधों की तरह कम पानी है। इस समय मात्र 26 फीसदी पानी है। जबकि इसमें 16 फीसदी पानी रिजर्व रहता है। इसका उपयोग नहीं किया जाता है। यानी सिर्फ 10 फीसदी पानी ही शेष है। नौ महीने तक गंगरेल बाँध का पानी राजधानी रायपुर के लिए उपलब्ध कराया जाता है। जल संसाधन विभाग के अफसरों का कहना है यदि खेतों के लिए पानी दिया गया तो जल संकट की स्थिति उत्पन्न होगी।

अगस्त के आखिरी सप्ताह में कुछ स्थानों पर बारिश हुई है। इस वजह से किसानों की कुछ उम्मीद जगी है। लेकिन किसान मानते हैं इससे भरपाई होना मुश्किल है। इसलिए कि जब खेतों को पानी की अधिक जरूरत थी, तो उस समय न तो बाँधों से पानी मिला और न ही बारिश हुई।

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