बांध का काम रोका : लेकिन समस्याओं का निदान नही

नैटवाड़ और बनोल के परियोजना प्रभावित लोग सड़क पर विरोध जताने उतरे
नैटवाड़ और बनोल के परियोजना प्रभावित लोग सड़क पर विरोध जताने उतरे

13 मई 2019 से नैटवाड़-मोरी बांधने की परियोजना जो कि उत्तरकाशी, उत्तराखंड के टॉन्स नदी पर 60 किलोमीटर लम्बी बाँध परियोजना है को, जिला के नैटवाड़ और बनोल गांव के लोगों ने अपनी बरसो से लंबित मांगों की पूर्ति ना होने के कारण बांध का काम रोका हुआ है उनकी मांगें वही है जो कि उनसे जनसुनवाई तथा उसके बाद अलग-अलग समय पर वादे किए गए, किन्तु उन्हें पूरा नहीं किया गया है।

अफ़सोस की बात यह है कि प्रशासन ने अभी तक कोई सकारात्मक पहल नहीं की है। स्थिति खराब है।
- नैटवाड़ में एक मकान गिरा है।
- नैटवाड़ और बनोल के उन सभी मकानों में दरारें आई है। भविष्य में इन मकानों की गिरने का पूरा खतरा है।
- लोगों से जो वादे किए गए थे वे पूरे नहीं किए गए हैं। जिसमें मुख्यता प्रत्येक परियोजना शिशु परिवार को रोजगार, गांव में ढांचागत विकास कार्य, रिस नीति में किए गए वादे आदि हैं।
- लोगों की खास मांग है कि परियोजना प्रमुख राजेश कुमार जगोरा को वहां से हटा दिया जाए।
- बड़े-बड़े डंपर चलने की वजह से उड़ती धूल से स्थानीय बाजार और लोगों को अलग तरह की समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। कई दुर्घटनाएं भी हुई हैं, जिन पर कंपनी का ध्यान नहीं जाता है।
 
नैटवाड़ और बनोल गांव के लोगो ने बांध परियोजना का विरोध नहीं किया था। परियोजना के बारे में जैसा बताया गया, जो उनसे वादे किए गए उसको ही लोगो ने सच माना था। बांध की जन सुनवाई से पहले उन्हें पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट और प्रबंधन योजना हिंदी में, आसान भाषा में मुहैया नहीं किए गए थे। इसका प्रमाण भी जन समूह के पास मौजूद है। लोगों ने केवल कहा था कि भविष्य में समस्याएं आईं और लोग उसका निवारण नहीं करवा देंगे क्योंकि प्रशासन की भूमिका जन परीक्षण के बाद केवल बांध निर्माण में आने वाली समस्याओं को दूर करने की रह जाती है। आज लोग बांध का समर्थन करके भी भयानक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

जखोल-साकरी बांध परियोजना की जनसुनवाई प्रक्रिया भी गांव वासियों को बिना पूरी जानकारी दिए, जबरदस्ती के साथ  पूरी की गई है। हमें खतरा है कि वहां का भविष्य भी इसी तरह का होगा।

नैटवाड़ और बनोल के संदर्भ में ये हैं प्रशासन से मांग :

  • तुरंत लोगों की इन गंभीर समस्याओं को देखते हुए एक त्रिपक्षीय वार्ता बुलाये जिसमें SJVNLl के उच्च अधिकारी, जिलाधीश स्वयं आप और प्रभावित लोग हो।
  • समझौते की कार्यवाही तीनों पक्षो के सामने सुनाई जाए और तब उस पर हस्ताक्षर हो।
  • समझौते में जो भी हो तय किया जाए उसको समयबद्ध पूरा किया जाए।

 

लोगों के अधिकारों की रक्षा की जाए। वास्तव में यह संविधान की धारा 21 के अंतर्गत उनकी जिंदा रहने की अधिकार पर हमला है। उनकी समस्याओं के निदान की ओर कार्य होना कि उनके ही खिलाफ कोई कार्यवाही करके उनकी आवाज दबाने का प्रयास हो। देश के तमाम लोगो की नज़र इस छोटी परियोजना पर है। सब ये देख रहे हैं कि किस तरह मात्र दो गांवों के प्रभावितो की बात की भी अनसुनी की जा रही है।

(रामबीर, राजपाल सिंह रावत, विमल भाई, विजय सिंह)

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