बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति के बैनर तले चले देनवा नदी बचाओ अभियान की उस समय कमर टूट गई जब सतपुड़ा ताप बिजली घर ने इस बात से इंकार कर दिया कि सतपुड़ाचंल से निकलने वाली नदियों में पावर हाऊस की राख मिलती ही नहीं है
माचना, देनवा, तवा, सापनाः बैतूल जिले की प्रमुख सभी नदियां या तो सारनी की राख से प्रदूषित हो चुकी है या फिर शहर की गंदगी से प्रदूषित हो चुकी है। कई नदियों से पानी के बहाव समाप्त हो जाने के बाद नाले की शक्ल में परिवर्तित हो चुकी है। माचना और सापना दोनो ही नदियों का जिला मुख्यालय पर मिलन तो होता है लेकिन दोनो ही नदियां पूरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है। इसी कड़ी में हाल ही में राज्य प्रदुषण बोर्ड एवं एक एनजीओ की मदद से भौंरा और छुरी में सबसे ज्यादा प्रदूषित पानी, 4 नदियों के सैंपल की जांच के बाद सनसनी खेज तथ्य उजागर हुआ है। जिले की चार प्रमुख नदियों से लिए गए वॉटर सैंपल की जांच डिस्ट्रिक्ट वाटर टेस्टिंग लेबोरटी ने की। तवा नदी के तीन सैंपल सबसे अधिक प्रदूषित मिले। इनमें भौंरा, छुरी और सिलपटी से लिया गया सैंपल शामिल है। भौंरा में प्रदूषण की मात्रा 24 सौ पीपीएम तो छुरी में 16 सौ पीपीएम मिली।
देनवा, मोरंड और माचना प्रदूषण से फिलहाल कोसो दूर है। तवा में प्रदूषण का कारण सारनी थर्मल पॉवर प्लांट से निकली राख को माना जा रहा है। तवा नदी के प्रदूषित पानी की वजह से तट पर रहने वाले लोगों की परेशानियां बढऩे लगी है वहीं अब सभी तरफ से तवा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने की मांग समय - समय पर गिरगिट की तरह रंग बदलते राजनीतिक दल सहित स्वंयसेवी संगठन करते है ताकि प्रदुषण के नाम पर उनके एनजीओ या संगठन को कुछ रूपया - पैसा मिल सके। अक्सर आम जनता की मांग पर प्रशासन कुंभकरणी निंद्रा में सोया रहता है। राख से प्रदूषित नदियों के संरक्षण के लिए देनवा बचाओ समिति द्वारा चलाया गया अभियान ठंडे में पड़ गया जिसके पीछे संगठन को किसी प्रकार की मदद या सहयोग का न मिलना बताया गया।
बैतूल जिला पर्यावरण संरक्षण समिति के बैनर तले चले देनवा नदी बचाओ अभियान की उस समय कमर टूट गई जब सतपुड़ा ताप बिजली घर ने इस बात से इंकार कर दिया कि सतपुड़ाचंल से निकलने वाली नदियों में पावर हाऊस की राख मिलती ही नहीं है उसे राखड़ डेम में संग्रहित कर दिया जाता है। इससे पहले भी नदियों के पानी में घुल की राख आती थी, लेकिन उसकी मात्रा बहुत कम होती थी। सारनी। सतपुड़ा थर्मल पॉवर प्लांट में हर दिन 20 से 22 हजार टन कोयले की जरूरत होती है। इतना कोयला जलने के बाद प्लांट 8 से 10 हजार टन राख छोड़ता है। यह राख पानी में घोलकर पाइप लाइन के जरिए राख डेम तक पहुंचाई जाती है। जबकि राख डेम से नालों के जरिए छोड़े जाने वाला पानी भी राखयुक्त होता है। जो आगे जाकर तवा जैसी बड़ी नदियों में मिल रहा है। सतपुड़ा थर्मल पॉवर प्लांट से निकलने वाली राख को करीब एक हजार एकड़ में बने राखड़ बांध में इकट्ठा किया जाता है। प्लांट से राख पानी के जरिए पाइप लाइनों से डेम तक पहुंचाई जाती है। बाद में राखड़ डेम के करीब 30 फीसदी पानी को रिसाइकल कर वापस सतपुड़ा डेम तक लाया जाता है, जबकि करीब इससे अधिक मात्रा में पानी चार बीयर और तीन सॉफ्ट यानी सात गेटों से नालों में छोड़ा जाता है। करीब 35 सौ टन प्रति घंटा पानी नालों में छोड़ा जा रहा है। इस पानी में राख की मात्रा भी खासी होती है। कई नालों से होते हुए पानी देनवा नदी में मिलता है। बाद में देनवा का पानी तवा नदी में मिल जाता है।
पानी में राख का अंदाजा देनवा नदी के दूधिया से राख युक्त पानी को देखकर लगाया जा सकता है, जबकि नालों में भी बड़ी मात्रा में राख देखी जा सकती है। सारनी से निकलने वाला पानी करीब 15 घंटे में इटारसी के पास स्थित तवा बांध तक पहुंच जाता है, हालांकि राख डेम से पानी बहाने की स्थिति बारिश में अधिक होती है। बारिश के दिनों में राख के घोल के अलावा बारिश का पानी भी डेम में होता है। डेम की स्थिति को देखते हुए पानी बहाना जरूरी हो जाता है। इधर बैतूल जिला मुख्यालय पर नदियों खास कर माचना और सापना के प्रदुषण के पीछे पूरे नगर की गंदगी है जो कि नदियों के माध्यम से बहा दी जाती है। दोनो नदियों का पानी पीने लायक नहीं है उसके बाद भी पूरे शहर को पानी पिलाया जाता है। एक तरफ सरकार नदियों को पुर्न:जीवित करने के लिए जलाभिषेक की योजना चला रही है वही दुसरी ओर नदियों में शहर की गंदगी को बहाने का सिलसिला जारी है।
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