बाहुदा जीवनं पथ्यं शीतज्वरविनाशनम्।सुस्वादु पाकं हृद्यं च वातपित्त निबर्हणम्।।
बाहुदा (नदी) का पानी स्वास्थ्यवर्धक, मलेरिया नष्ट करने वाला, स्वादिष्ट, पकाने योग्य, मनोरम औऱ वात-पित्त का विनाशक होता है।
करतोया के जल का गुण
करतोयोदकं हृद्यं वातपित्त विनाशनम्।ईषत्कफहरं स्वादु रुचिकृद्बुद्धिवर्धनम्।।
करतोया (नदी) का पानी मनभावन, वातपित्त का विनाशक, थोड़ा कफ दूर करने वाला, स्वादिष्ट, रोचक और बुद्धिवर्धक होता है।
शरावती जलगुणः (शरावती के जल का गुण)
शरावतीपयः पथ्यं हृद्यं केथ्यं ज्वरापहम्।त्रिदोषशमनं श्रेष्ठं कण्डू-पीनस नाशनम्।।
शरावती (नदी) का पानी स्वास्थ्यवर्धक मनोरम, केशवर्धक, ज्वर विनाशक, तीनों दोष शान्त करने वाला, श्रेष्ठ, खुजली और जुकाम का विनाशक होता है।
नेत्रावती के जल का गुण
नेत्रावत्या जीवनीयं ज्वरहृत्कामिलप्रदम्।कण्डूकरं वातकरं रक्तपित्तविनाशनम्।
नेत्रावती (नदी) का पानी जवर दूर करता है, सुपारी के पेड़ (बढ़ाकर) दैता है, खुजली और वात करता है और रक्तपित्त को नष्ट करता है।
चन्द्रभागा के जल के गुण
चन्द्रभागाजलं स्वादु वृष्यं हृद्यं च शीतलम्।श्लेष्मलं वातपित्तघ्नं कण्डूविस्फोटनाशनम्।।
चन्द्रभागा (नदी) का पानी स्वादिष्ट, बलवर्धक, मनोरम और शीतल होता है। वह कफवाला, वात-पित्त-विनाशक तथा खुजली-फोड़े को नष्ट करने वाला होता है।
भीमरथी नदी का जलगुण
भीमरथ्याः कबन्धं च पित्तवातविकारनुत्।श्लेष्मलं स्वादु हृद्यं च शीततृष्णाविनाशनम्।।
भीमरथी (नदी) का पानी पित्त और वात की बीमारी दूर करता है और कफवाला होता है। यह स्वादिष्ट, मनोरम और शीत, तृष्णा आदि को नष्ट करता है।
विपाशा के पानी का गुण
विपाशावारि सुस्वादु श्लेष्मलं रक्तपित्तनुत्।छार्दितृष्णाहरं चैव पामाकण्डूविनाशनम्।।
विपाशा (व्यास) नदी का पानी परम स्वादिष्ट, कफवाला, रक्तपित्त दूर करने वाला, वमन और प्यास दूर करने वाला और खुजली आदि चर्मरोग का विनाशक होता है।
झेलम का जलगुण
वितस्तिभुवनं स्वादु श्लेष्मलं वातपित्तनुत्।शीतं पापहरं चैव कोष्ठवीर्य विवर्धनम्।।
झेलम का पानी स्वादिष्ट, कफवर्धक, वात-पित्त विनाशक, शीतल, पापहर्त्ता, पेट और वीर्य का वर्धक होता है।
सोंठ के पानी का गुण
शुण्ठ्यम्बु प्रपिबेद्यस्तु प्रातरुत्थाय मानवः।तस्य रोगाः प्रणश्यन्ति कायशुद्धिकरं परम्।।
जो व्यक्ति प्रातः उठकर सौंठ का पानी पीता है उसके रोग नष्ट हो जाते हैं और काया की सर्वथा शुद्धि हो जाती है।
मिर्ची के पानी का गुण
मरीचैर्जलदोषघ्नं शुण्ठीयुक्तं त्रिदोषजित्।हृद्यं क्रिमिहरं पथ्यं कायाग्निबलवर्धनम्।।
मिर्ची से जलदोष नष्ट हो जाता है। सौंठ से मिलाने पर वह तीनों दोष जीत लेता है। वह मनोरम, कीटनाशक, स्वास्थ्यवर्धक तथा शरीर की अग्नि और शक्ति को बढ़ाता है।
नदी के पानी का गुण
नादेयं वातलं रुक्षं दीपनं कटुलेखनम्।सद्यः पाषाणसिकतावाहिनो विमलोदनाः।।सर्वदोषहराः पथ्याः पुण्या देवर्षि सेविताः।यथा स्यादाश्विने मासे सूर्ये स्वातीवशाखयोः।।तदम्बुजलदैर्मुक्तं गंगाप्रोक्तं मनीषिभिः।।
नदी का पानी वात करने वाला, रुखा, उद्दीपक, तीखा होता है। ताजा पत्थरों और रेत पर बहता पानी स्वच्छ होता है। इन नदियों का पानी समस्त दोषों को दूर करने वाला, स्वास्थ्यवर्धक, पवित्र, देवों और ऋषियों द्वारा सेवित है। आश्विन मास में सूर्य स्वाति और विशाखा नक्षत्रों में हो तब का पानी मेघों से युक्त हो जाता है। उसे मनस्वी लोग गंगा कहते है।
चमड़े के घड़े में रखे पानी का गुण
चर्मोधृतघटस्थाम्बु स्वच्छं शीतं त्रिदोषजित्।ह्लादि वृष्यं विषच्छार्दिदाहमूर्छाज्वरापहम्।।
चमड़े में रखा पानी स्वच्छ, शीतल, तीनों दोष जीतने वाला, प्रसन्न करने वाला, शक्तिवर्धक होता है। वह विष, वमन, जलन, मूर्च्छा, ज्वर आदि का विनाशक होता है।
मिट्टी के पात्र में रखे पानी का गुण
मृण्मयेन कृते भाण्डे दग्धेSर्कातपवहहिनभिः।रात्रि सिकेन संस्थाप्य जलं तच्च त्रिदोषनुत्।।
धूप या अग्नि में जले (पके) मिट्टी के पात्र में रात भर रखा पानी तीनों दोष दूर करता है।
लोहे के पात्र में रखं जल के गुण
लोहभाण्डे स्थितं वारि लोहभाण्डेषु पक्वजम्।लोहचूर्णेन संयुक्तं सद्यो विषहराणि च।।
लोहे के भांडे में रखा और लोहे के पात्रों में पका पानी लोहे के चूर्ण से मिलाने पर तत्काल विष दूर करता है।
खारे पानी का गुण
सेव्यते क्रिमिदुर्गन्धि तटाकं वापिकूपयोः।सोSभूतच्च गणनमिश्रं सर्वदोष प्रकोपनम्।।
तालाब, बावड़ी, कुएँ का कीड़े और दुर्गन्ध से भरे पानी का उपयोग अनेक दोषों से भरा और समस्त दोष बढ़ाने वाला होता है।
पृथ्वी के रंग के पानी का गुण
कृष्णभूमेस्तु पानीयं सेवनाद्धातुवर्धनम्।श्वेतभूमौ तु सज्जातं साम्लपित्तानि कुर्वते।।रक्तभूमेस्तु संजातं श्लेष्मदोषप्रकोपनम्।भौमं तु सर्ववर्णाढ्यं सर्वदोषहरं विदुः।।
काली भूमि का पानी पीने से धातु बढ़ती है। सफेद भूमि का पानी खटास या तीखापन और पित्त करता है। लाल भूमि का पानी कफ बढ़ता है। समस्त रंगों की भूमि का पानी समस्त दोष दूर करता है।
पानी पीने में निषेध
नाम्बु पेयमशक्तौ वा स्वल्पग्निगुल्मिभिः।पाण्डुरोगातिसारर्शोग्रहणी दोष शोभिभिः।।
कमजोरी वाले, कम ताप या तिल्ली वाले, पाण्डु (पीलियादि) रोग वाले, दस्त रोग वाले, बवासीर वाले और पेचिश वाले पानी न पिएँ (या कम पियें)।
इति जलवर्गः समाप्तः।जलवर्ग समाप्त।(जलमंगल नामक पुस्तक में जलवर्ग सम्पूर्ण)
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