बिरसु उरांव की जमीन एक साथ नहीं है। छोटी-छोटी क्यारी अलग-अलग जगहों पर है। इसलिए उन्होंने खेती की शुरुआत दूसरे की जमीन पर की। उस साल फसल इतनी अच्छी हुई की अन्य किसान भी उनकी तरक्की देख कृषि पर ध्यान देने लगे। उन्हें श्री विधि से खेती के लिए मुख्यमंत्री से पुरस्कार भी मिल चुका है। बिरसु टमाटर की खेती के लिए भी पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। वे खेत पर ही छोटी-सी कुटिया बनाकर पत्नी के साथ रहते हैं, ताकि खेती पर पूरा ध्यान दे सकें।
लोहरदगा से सात किमी की दूरी पर स्थित बाघा गांव के रहने वाले हैं बिरसु उरांव। गांव जाने के रास्ते में हरियाली और लहलहाते खेत इस गांव के बदलाव की दास्तान बताने के लिए काफी हैं। खासकर नदी के किनारे के खेत, जहां तरह-तरह की सब्जियां लगी हैं। गांव को विकास के मार्ग पर ले जाने वाले बिरसु उरांव बताते हैं कि गांव में खेती तो हमारे बाप-दादा के जमाने से चली आ रही है। पर पहले इसे व्यवसाय के रूप में किसी ने नहीं देखा। मैंने खेती को व्यवसाय का रूप देने के बारे में सोचा। मैं आठ साल से खेती कर रहा हूं। मैंने देखा कि जब हम खेती कर रहे हैं और ज्यादा पैदावार होने पर बाजार ले जा रहे हैं तो अच्छा लाभ मिल रहा है। मैंने सोचा क्यूं नहीं ज्यादा से ज्यादा खेती करें। पूंजी की कमी के कारण हमलोगों ने तीन लोगों ने साथ मिल कर टमाटर की खेती की और हमें लाभ हुआ। फिर हमने अपनी-अपनी पूंजी लगा कर खेती की। इस तरह से हम खेती को व्यवसायिक रूप दे पाए। आज गांव के कई किसान अपनी सारी जमीन का इस्तेमाल खेती के लिए करते हैं। नयी तकनीक से खेती करने में हम पीछे नहीं हटते। पहले कम जगहों पर नयी तकनीक का उपयोग करके देखते हैं। अगर प्रयोग सफल रहा तो हम इसे ज्यादा जगहों पर करते हैं। गांव के इस विकास के लिए वो सारे किसान जिम्मेवार हैं, जो खेती में अपना भविष्य देखते हैं।
बिरसु उरांव कहते हैं : जब मैंने खेती की शुरुआत की थी, तब मुझे इसे बेचने के लिए साइकिल में लादकर बाहर ले जाना पड़ता था। धीरे-धीरे इस गांव में इतने किसान हो गए कि व्यापारी गाड़ी लेकर इस गांव में आने लगे। हम यहीं से फोन पर बाजार का भाव पता कर लेते हैं और अच्छी कीमत पर खेत में ही फसल बिक जाती है। अब तो कई व्यापारी आते हैं, जिनसे हमें और अच्छी कीमत मिलने लगी है। बिरसु आठ साल से खेती कर रहे हैं और हर बार अच्छी कमाई की है। उनकी व्यापारियों से पहचान भी हो गयी है। वे कहते हैं कि खेत से फसल बिकने के कारण परेशानी बहुत कम हुई है। इसके अलावा कई संस्थाएं हमारी फसल खरीदने के लिए हमसे संपर्क भी कर रही हैं।
बिरसु उरांव पहले रांची में कुली का काम करते थे। उन्होंने कई सालों तक यह काम किया। बिरसू बताते हैं कि उनके लिए घर-परिवार से दूर रहना बहुत मुश्किल होता है। कई बार उन्हें मेरी जरूरत होती थी पर मैं घर आ नहीं पाता था। आज मेरे पिता नहीं हैं, मां अकेली है। घर के हालात देखते हुए मैंने खेती की शुरुआत की। फिर मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। गांव में ज्यादातर युवा देश के विभिन्न हिस्सों में काम करने जाते थे। धान की खेती के लिए वो घर आते फिर पलायन कर जाते। बाहर काम करना ज्यादा कष्टदायक होता है। उन्होंने देखा कि खेती से गांव के लोग विकास कर रहे हैं। उन्होंने गांव में रहकर खेती करना बेहतर समझा।
इसी गांव के रहने वाले दिलीप उरांव बताते हैं पहले वे जम्मू में काम करते थे। बाहर काम करने में कई परेशानियां हैं। यूपी, बिहार, झारखंड के रहने वालों को दूसरी नजर से देखा जाता है। वे भी इस तरह के भेदभाव के शिकार हो चुके हैं। छुट्टी मिली तो गांव आकर देखा बिरसू अच्छी खेती कर रहे हैं। उन्होंने भी खेती करना शुरू की। पहली बार में उन्हें अच्छा मुनाफा मिला। पहली बार उन्होंने 3500 का धान बेचा। फिर टमाटर, मिर्च, आलू की खेती शुरू की आज वो खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं और इस तरह गांव के कई युवक को उनसे प्ररेणा मिली है। आज इस गांव में पलायन नहीं के बराबर है।
यहां के किसानों ने मिलकर बिरसा कृषि बैंक (निजी बैंक) का संचालन शुरू किया है। इसमें वो अपनी आमदनी का 10 प्रतिशत हिस्सा जमा करेंगे। और इन पैसों से एक साथ खाद, किटनाशक और बीज की खरीदारी की जाएगी। इसके अलावा वैसे किसान जिनके पास पूंजी की कमी है, उन्हें भी यह बैंक सहयोग करेगा। इसके लिए अभी कई योजनाएं यहां के किसान मिल कर बना रहे हैं। जिसमें अन्न बैंक (फसल जमा) पर विचार किया जा रहा है, इसके अंतर्गत उन किसानों का भी सहयोग किया जाएगा, जिन्हें अनाज की कमी हो जाती है।
बराटपुर, बाघा, कड़ाक जैसे आठ गांव के कृषकों को एकजुट करने का काम किया नवल किशोर नाथ शाहदेव ने। इन सभी गांव में चाचा नवल के नाम से किसानों के बीच वे खासे लोकिप्रय हैं। किसान अपनी समस्याओं को इनसे साझा करते हैं और सभी मिलकर हल निकालते हैं। नवल किशोर पेशे से एक किसान हैं। उनके इस सहयोग की भावना को देखते हुए आत्मा ने उन्हें कृषि प्रतिनिधि का पद दिया है। बाघा में नवल किशोर लगभग पांच सालों से सक्रिय हैं। उन्होंने अपनी शुरुआत बराटपुर गांव से की थी। आसपास के गांव वालों ने जब इस गांव को विकास करते देखा तो उन्होंने नवल किशोर से मुलाकात की। इसके बाद बिजली और सिंचाई की बड़ी समस्या को इन्होंने किसानों के साथ मिलकर हल किया। पहले किसान सिंचाई के लिए डीजल का उपयोग करते थे, अब बिजली आ जाने से इनकी लागत बहुत कम हो गयी है। नवल किशोर बताते हैं कि उन्होंने जो काम किया है, वो सरकारी सहयोग के बगैर संभव नहीं था। लोहरदगा के डीसी ओमप्रकाश कुमार का काफी सहयोग रहा। वो किसानों से उनकी समस्या जानने के लिए खेत तक पहुंचे, जिससे हमारा काम आसान होता चला गया। किसानों के सहयोग और एकजुटता के बगैर यह संभव नहीं था। सरकारी संस्था आत्मा का भी काफी सहयोग रहा।
बदलता गांव
लोहरदगा से सात किमी की दूरी पर स्थित बाघा गांव के रहने वाले हैं बिरसु उरांव। गांव जाने के रास्ते में हरियाली और लहलहाते खेत इस गांव के बदलाव की दास्तान बताने के लिए काफी हैं। खासकर नदी के किनारे के खेत, जहां तरह-तरह की सब्जियां लगी हैं। गांव को विकास के मार्ग पर ले जाने वाले बिरसु उरांव बताते हैं कि गांव में खेती तो हमारे बाप-दादा के जमाने से चली आ रही है। पर पहले इसे व्यवसाय के रूप में किसी ने नहीं देखा। मैंने खेती को व्यवसाय का रूप देने के बारे में सोचा। मैं आठ साल से खेती कर रहा हूं। मैंने देखा कि जब हम खेती कर रहे हैं और ज्यादा पैदावार होने पर बाजार ले जा रहे हैं तो अच्छा लाभ मिल रहा है। मैंने सोचा क्यूं नहीं ज्यादा से ज्यादा खेती करें। पूंजी की कमी के कारण हमलोगों ने तीन लोगों ने साथ मिल कर टमाटर की खेती की और हमें लाभ हुआ। फिर हमने अपनी-अपनी पूंजी लगा कर खेती की। इस तरह से हम खेती को व्यवसायिक रूप दे पाए। आज गांव के कई किसान अपनी सारी जमीन का इस्तेमाल खेती के लिए करते हैं। नयी तकनीक से खेती करने में हम पीछे नहीं हटते। पहले कम जगहों पर नयी तकनीक का उपयोग करके देखते हैं। अगर प्रयोग सफल रहा तो हम इसे ज्यादा जगहों पर करते हैं। गांव के इस विकास के लिए वो सारे किसान जिम्मेवार हैं, जो खेती में अपना भविष्य देखते हैं।
खेत से ही व्यापारी खरीद लेते हैं फसल
बिरसु उरांव कहते हैं : जब मैंने खेती की शुरुआत की थी, तब मुझे इसे बेचने के लिए साइकिल में लादकर बाहर ले जाना पड़ता था। धीरे-धीरे इस गांव में इतने किसान हो गए कि व्यापारी गाड़ी लेकर इस गांव में आने लगे। हम यहीं से फोन पर बाजार का भाव पता कर लेते हैं और अच्छी कीमत पर खेत में ही फसल बिक जाती है। अब तो कई व्यापारी आते हैं, जिनसे हमें और अच्छी कीमत मिलने लगी है। बिरसु आठ साल से खेती कर रहे हैं और हर बार अच्छी कमाई की है। उनकी व्यापारियों से पहचान भी हो गयी है। वे कहते हैं कि खेत से फसल बिकने के कारण परेशानी बहुत कम हुई है। इसके अलावा कई संस्थाएं हमारी फसल खरीदने के लिए हमसे संपर्क भी कर रही हैं।
रुका है पलायन
बिरसु उरांव पहले रांची में कुली का काम करते थे। उन्होंने कई सालों तक यह काम किया। बिरसू बताते हैं कि उनके लिए घर-परिवार से दूर रहना बहुत मुश्किल होता है। कई बार उन्हें मेरी जरूरत होती थी पर मैं घर आ नहीं पाता था। आज मेरे पिता नहीं हैं, मां अकेली है। घर के हालात देखते हुए मैंने खेती की शुरुआत की। फिर मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। गांव में ज्यादातर युवा देश के विभिन्न हिस्सों में काम करने जाते थे। धान की खेती के लिए वो घर आते फिर पलायन कर जाते। बाहर काम करना ज्यादा कष्टदायक होता है। उन्होंने देखा कि खेती से गांव के लोग विकास कर रहे हैं। उन्होंने गांव में रहकर खेती करना बेहतर समझा।
इसी गांव के रहने वाले दिलीप उरांव बताते हैं पहले वे जम्मू में काम करते थे। बाहर काम करने में कई परेशानियां हैं। यूपी, बिहार, झारखंड के रहने वालों को दूसरी नजर से देखा जाता है। वे भी इस तरह के भेदभाव के शिकार हो चुके हैं। छुट्टी मिली तो गांव आकर देखा बिरसू अच्छी खेती कर रहे हैं। उन्होंने भी खेती करना शुरू की। पहली बार में उन्हें अच्छा मुनाफा मिला। पहली बार उन्होंने 3500 का धान बेचा। फिर टमाटर, मिर्च, आलू की खेती शुरू की आज वो खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं और इस तरह गांव के कई युवक को उनसे प्ररेणा मिली है। आज इस गांव में पलायन नहीं के बराबर है।
निजी बैंक का निर्माण
यहां के किसानों ने मिलकर बिरसा कृषि बैंक (निजी बैंक) का संचालन शुरू किया है। इसमें वो अपनी आमदनी का 10 प्रतिशत हिस्सा जमा करेंगे। और इन पैसों से एक साथ खाद, किटनाशक और बीज की खरीदारी की जाएगी। इसके अलावा वैसे किसान जिनके पास पूंजी की कमी है, उन्हें भी यह बैंक सहयोग करेगा। इसके लिए अभी कई योजनाएं यहां के किसान मिल कर बना रहे हैं। जिसमें अन्न बैंक (फसल जमा) पर विचार किया जा रहा है, इसके अंतर्गत उन किसानों का भी सहयोग किया जाएगा, जिन्हें अनाज की कमी हो जाती है।
नवल चाचा का सहयोग
बराटपुर, बाघा, कड़ाक जैसे आठ गांव के कृषकों को एकजुट करने का काम किया नवल किशोर नाथ शाहदेव ने। इन सभी गांव में चाचा नवल के नाम से किसानों के बीच वे खासे लोकिप्रय हैं। किसान अपनी समस्याओं को इनसे साझा करते हैं और सभी मिलकर हल निकालते हैं। नवल किशोर पेशे से एक किसान हैं। उनके इस सहयोग की भावना को देखते हुए आत्मा ने उन्हें कृषि प्रतिनिधि का पद दिया है। बाघा में नवल किशोर लगभग पांच सालों से सक्रिय हैं। उन्होंने अपनी शुरुआत बराटपुर गांव से की थी। आसपास के गांव वालों ने जब इस गांव को विकास करते देखा तो उन्होंने नवल किशोर से मुलाकात की। इसके बाद बिजली और सिंचाई की बड़ी समस्या को इन्होंने किसानों के साथ मिलकर हल किया। पहले किसान सिंचाई के लिए डीजल का उपयोग करते थे, अब बिजली आ जाने से इनकी लागत बहुत कम हो गयी है। नवल किशोर बताते हैं कि उन्होंने जो काम किया है, वो सरकारी सहयोग के बगैर संभव नहीं था। लोहरदगा के डीसी ओमप्रकाश कुमार का काफी सहयोग रहा। वो किसानों से उनकी समस्या जानने के लिए खेत तक पहुंचे, जिससे हमारा काम आसान होता चला गया। किसानों के सहयोग और एकजुटता के बगैर यह संभव नहीं था। सरकारी संस्था आत्मा का भी काफी सहयोग रहा।
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