समस्या यह नहीं है कि बाढ़ को कैसे समाप्त किया जाए, समस्या यह है कि बाढ़ के फाजिल पानी की निकासी किस तरह से की जाए और सिंचाई की व्यवस्था को कैसे सुनिश्चित किया जाए। इस कमेटी ने यह भी इशारा किया कि बाढ़ समस्या का स्थाई समाधान और बागमती नदी को नियंत्रित करने का एक मात्र उपाय उसकी धारा के सामने नेपाल में नुनथर के पास एक बहुद्देश्यीय बाँध का निर्माण करना है।
गलत नदी परियोजनाओं की शिकार बिहार में पहली बार सरकार ने बागमती परियोजना की समीक्षा के लिये एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। समिति बागमती नदी की बाढ़ और तटबंधों से उत्पन्न स्थिति की समीक्षा करेगी। यह ‘चास-बास-जीवन बचाओ, बागमती संघर्ष मोर्चा’ के अनवरत आंदोंलनों का नतीजा है। हालाँकि सरकारी अधिसूचना में ‘हिन्दी इंडिया वाटर पोर्टल में छपी रिपोर्ट’ ‘बागमती तटबंध गैरजरूरी और नुकसानदेह भी’ का उल्लेख भी किया गया है।जल संसाधन विभाग के सेवानिवृत्त मुख्य अभियन्ता ज्वाला प्रसाद की अध्यक्षता में गठित इस नौ सदस्यीय समिति में गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के पूर्व निदेशक सच्चिदानंद तिवारी, गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के वर्तमान निदेशक एलपी सिंह, आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर डॉ राजीव सिन्हा, आईआईटी पटना के प्रोफेसर ओमप्रकाश, एनआईटी पटना के प्रोफेसर रामाकर झा, गंगा मुक्ति आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक अनिल प्रकाश के साथ-साथ बिहार की नदियों पर वर्षों से शोध-अध्ययन करते रहे डॉ दिनेश कुमार मिश्र को भी रखा गया है। अभी समिति में चास बास बचाओं आंदोलन के किसी प्रतिनिधि को जगह नहीं दी गई है लेकिन दो विशेष आमन्त्रित सदस्य बनाने का प्रावधान करके यह मसला विशेषज्ञ समिति पर छोड़ दिया गया है।
समिति को मुख्यतः छह बिन्दुओं पर अध्ययन करके अपनी रिपोर्ट देनी है। बागमती नदी से उत्पन्न बाढ की विभीषिका से जनमत के प्रभावित होने की समस्या इसकी जड़ में है। बागमती की बाढ़ के प्रबंधन की योजना के तहत तटबंध निर्माण की आवश्यकता समीक्षा का दूसरा बिन्दु है। बागमती नदी पर तटबंध निर्माण के उपरांत क्षेत्र के जनजीवन पर प्रभाव का आकलन, बागमती तटबंध निर्माण योजना से विस्थापितों के आंदोलन के सम्बन्ध में सुझाव, बागमती तटबंध निर्माण योजना के पूर्ण होने के उपरान्त क्षेत्र की स्थिति में होने वाले परिवर्तन के सम्बन्ध में प्रतिवेदन, पूर्व में निर्मित बागमती तटबंध के कारण क्षेत्र में खेती की पद्धति, सामाजिक और आर्थिक स्थिति में परिवर्तन के सम्बन्ध में प्रतिवेदन समीक्षा के अन्य बिन्दु हैं। लेकिन उसका कार्य क्षेत्र इन्हीं में सीमित नहीं है। सरकारी आदेश में कार्यसूची के आखिर में अन्यान्य बिन्दु का उल्लेख करके समीक्षा समिति को कार्य की आजादी दी गई है।
बिहार की नदियों के मामले में सतत सक्रिय दिनेश कुमार मिश्र समिति के गठन की सूचना मिलते ही सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने सरकार के संयुक्त सचिव योगेश्वरधारी सिंह को पत्र लिखकर बागमती योजना के सम्बन्ध में कुछ जरूरी दस्तावेजों को उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है। उनमें तटबंध के निर्माण के समय तैयार विस्तृत परियोजना रिपोर्ट कार्यसूची के पहले से तीसरे बिन्दुओं के अध्ययन में आवश्यक होगी। इसी तरह कार्यसूची-5 एवं 6 के संदर्भ में डॉ मिश्र ने उल्लेख किया है कि 1950 के दशक में हायाघाट से बदलाघट तक और 1970 के दशक में ढेंग से रून्नी सैदपुर तक जो तटबंध बनाए गए, उसमें क्षेत्र के क्रॉपिंग पैटर्न, सामाजिक और आर्थिक स्थिति का अध्ययन जरूर किया गया होगा, उसकी रिपोर्ट ताजा समीक्षा में काफी उपयोगी होगी। हायाघाट से बदलाघाट तक और ढेंग से रून्नी सैदपुर तक तटबंध के निर्माण के समय विस्थापितों के पुनर्वास की नीति क्या थी? साथ ही वर्तमान में जो तटबंध बनने वाले हैं, उनकी वजह से कितने गाँव तटबंधों के भीतर नदी की तरफ पड़ने वाले हैं, उन गाँवों के पुनर्वास की नीति क्या है? समीक्षा के दौरान इन दस्तावेजों की जरूरत होगी, अगर यह पहले से उपलब्ध हो तो समीक्षा समिति तैयारी के साथ अपना काम कर सकेगी।
उल्लेखनीय है कि 27 अप्रैल को विशेषज्ञ समिति के गठन की अधिसूचना जारी हुई और डॉ. मिश्र ने 29 अप्रैल को जरूरी दस्तावेजों के बारे में अपनी राय भेज दी। समिति की बैठक आदि आयोजित करने की जिम्मेवारी इसके संयोजक मुख्य अभियन्ता बाढ़ नियंत्रण एवं जल निस्सरण, मुजफ्फरपुर को दी गई है और बैठक इत्यादि के बारे में अभी स्थिति साफ नहीं है। समिति का कार्यकाल महज एक महीने का रखा गया है जिसे इसके कार्यभार को देखते हुए बहुत ही कम कहा जा सकता है। पर बिहार की विभिन्न नदियों पर अन्धाधुन्ध बने तटबंधों के वास्तविक प्रभाव के इस विशेषज्ञ समिति के अध्ययन के माध्यम से सामने आने की उम्मीद जरूर बनी है।
बागमती की बाढ़ का काफी प्राचीन काल से रिकॉर्ड का उल्लेख डॉ. दिनेश कुमार मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘‘बागमती की सदगति’’ में किया है। उन्होंने 1785 की बाढ़ के समय से उपलब्ध आंकड़ों पर नजर डाली है लेकिन 1953 की बाढ़ पर अधिक ध्यान दिया है क्योंकि वह आजादी के बाद आई पहली बाढ़ थी। बिहार सरकार ने इस बाढ़ के बाद उससे निजात पाने के उपाय सुझाने के लिये एक कमेटी का गठन किया था। उस कमेटी का कहना था कि नदी के प्रवाह में अत्यधिक गाद आने के कारण इसका स्वभाव चंचल बना हुआ है। अपनी बदलती धारा के कारण जहाँ यह नदी भीषण तबाही का कारण बनती है वहीं घाटी में भूमि का लगातार निर्माण करते रहना इसकी बाढ़ का रचनात्मक पक्ष है।
समस्या यह नहीं है कि बाढ़ को कैसे समाप्त किया जाए, समस्या यह है कि बाढ़ के फाजिल पानी की निकासी किस तरह से की जाए और सिंचाई की व्यवस्था को कैसे सुनिश्चित किया जाए। इस कमेटी ने यह भी इशारा किया कि बाढ़ समस्या का स्थाई समाधान और बागमती नदी को नियंत्रित करने का एक मात्र उपाय उसकी धारा के सामने नेपाल में नुनथर के पास एक बहुद्देश्यीय बाँध का निर्माण करना है। तात्कालिक तौर पर कमेटी का सुझाव था कि 1. उन इलाकों में जहाँ बाढ़ की समस्या बहुत गम्भीर होती है वहाँ नदी के दोनों किनारों पर तटबंध बनाए जाएँ और उनमें स्लुइश गेट की समुचित व्यवस्था की जाए। 2. ढ़ेंग रेलपुल के ऊपर एक वीयर बनाकर बागमती की बहुत सी पुरानी छाड़न धाराओं के माध्यम से सिंचाई के लिये उसके पानी का इस्तेमाल किया जाए 3. समुचित जल निकासी की व्यवस्था करके बागमती की बाकी छाड़न धाराओं पर नियंत्रण किया जाए।
तत्कालीन केन्द्रीय सिंचाई मंत्री डॉ के एल राव का मानना था कि नुनथर बाँध के निर्माण के साथ-साथ बागमती नदी के पानी को विभिन्न धाराओं की मदद से एक विस्तृत इलाके पर फैलाने की जरूरत है। उनके बयान से ऐसा लगता है कि वे नदी पर तटबंधों के निर्माण के पक्ष में नहीं थे। बागमती नदी नेपाल के तराई वाले हिस्से से लेकर भारत के मैदानी भाग में काफी छिछली है और उसमें बरसात का पूरा प्रवाह समा नहीं पाता जिसकी वजह से नदी बुरी तरह किनारे तोड़कर बहती है। ढेंग रेल पुल के ऊपर भी नदी की यही हालत है और उसका उपटकर बहता हुआ बहुत सा पानी नरकटियागंज से दरभंगा जाने वाली रेल लाइन के कई पुलों से होकर बहा करता है। बागमती के दाहिनी ओर काला पानी विभिन्न चौर से होकर बूढ़ी गंडक में चला जाता है तो बाईं ओर निकला पानी लखनदेई और फिर अधवारा समूह की विभिन्न धारों से प्रवाहित होती है। जहाँ से पानी गुजरता हुआ आगे निकल जाता है वहाँ तो बहुत फायदा पहुँचता है, लेकिन जहाँ पानी जमा हो जाता है उस जगह को बर्बाद कर देता है। बागमती से समय-समय पर फूटकर निकलने वाली बहुत सी धाराएँ उसके पानी को विभिन्न क्षेत्रों में फैलाने में बड़ी मददगार होती हैं।
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