पूरी दुनिया में बाढ़, भूकम्प, सूखा आदि के कारण हर वर्ष मरने वाले लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। महामारियों को उनके द्वारा ली गई तीन प्राकृतिक विपदाओं से जोड़कर देखें तो इसमें सभ्यता के विकास के साथ बढ़ोत्तरी ही हुई है। अभी हम केवल भारत की ही बात करें तो पता चलता है कि लगभग पूरा-का-पूरा उत्तर भारत भारी बारिश के कारण बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में है
विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थॉमस माल्थस ने जनसंख्या का सिद्धान्त देते हुए कहा था कि जनसंख्या के अनुसार संसाधनों में बढ़ोत्तरी नहीं हो सकती है। इस विकास के कारण संसाधनों पर दबाव बहुत ही ज्यादा बढ़ जाता है। उन्होंने आगे यह भी कहा कि इस दबाव के कारण प्राकृतिक विपदाओं में बढ़ोत्तरी होगी और इससे जनसंख्या दबाव को प्रकृति अपने तरीके से कम कर लेगी। इन प्राकृतिक आपदाओं के तौर पर बाढ़, भूकम्प, सूखा और महामारियों का उन्होंने नाम लिया था। यहाँ माल्थस के सिद्धान्तों पर बात करने का आशय सीधे तौर पर प्राकृतिक विपदाओं में दर्ज की जा रही बढ़ोत्तरी ही है। माल्थस का काल यूँ तो 18-19वीं शताब्दी का है। यह सही है कि उस जमाने में ग्लोबल वार्मिंग का सिद्धान्त सामने नहीं आया था, लेकिन संयोग से उद्योगीकरण का भी काल 18वीं सदी ही रहा है। यह सम्भव है कि माल्थस ने इसे देखते हुए ही अपने जनसंख्या के सिद्धान्त में प्राकृतिक विपदाओं को जगह देना मुनासिब समझा होगा।कारण जो भी रहा हो, उनके सिद्धान्त को आज के सन्दर्भ में देखा जाये तो उनकी बातें सही प्रतीत हो रही हैं।
पूरी दुनिया में बाढ़, भूकम्प, सूखा आदि के कारण हर वर्ष मरने वाले लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। महामारियों को उनके द्वारा ली गई तीन प्राकृतिक विपदाओं से जोड़कर देखें तो इसमें सभ्यता के विकास के साथ बढ़ोत्तरी ही हुई है। अभी हम केवल भारत की ही बात करें तो पता चलता है कि लगभग पूरा-का-पूरा उत्तर भारत भारी बारिश के कारण बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में है, जबकि पूर्वी भारत में असम, उड़ीसा और बिहार भी बाढ़ के कारण तबाह हो रहे हैं। कोसी की बाढ़ का खतरा कम होते ही वहाँ महामारी तेजी से सिर उठाने लगी है। वहाँ डायरिया के कारण हर रोज लोगों के मरने की खबरें आ रही हैं। मौत के मातम से उबरने के लिये प्रकृति से सामंजस्य बिठाया जाना जरूरी होगा।
जल, जंगल और जमीन - उलट-पुलट पर्यावरण (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
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पुस्तक परिचय - जल, जंगल और जमीन - उलट-पुलट पर्यावरण | |
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