बिहार में हर साल कहर बरपाने वाली बाढ़ भले ही आमजन के लिए बुरा सपना हो लेकिन सरकारी महकमों के बाबुओं और ठेकेदारों को तो इस आपदा का बेसब्री से इंतजार रहता है। तबाही का जश्न मनाने वाले ये लोग बाढ़ से मालामाल होते हैं।
पटना -बरसात की वजह से उफनती नदियां बिहार के लाखों लोगों की धड़कनें बढ़ा देती हैं लेकिन अफसरों और ठेकेदारों की एक ऐसी जमात भी है जो बाढ़ से प्यार करती है। तबाही का जश्न मनाने वाले इस समूह के लिए हर आपदा आमदनी का साधन है। हर साल बाढ़ नियंत्रण पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं लेकिन समस्या यथावत रहती है। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट भी अनियमितताएं रेखांकित करती रही है लेकिन घोटालेबाजों को लालू राज और पहले से भी खाद-पानी मिलता रहा है। बिहार की बड़ी आबादी हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलने के लिए अभिशप्त है। इस साल भी पूर्वी कोसी तटबंध पर खतरा बना हुआ है। नेपाल से बार-बार अनुरोध के बावजूद तटबंध बचाने के लिए पायलट चैनल की खुदाई का काम आगे नहीं बढ़ पाया। तटबंधों पर दरारें गहरा गई हैं। बाढ़ की प्रलयकारी लीला में हर साल एक लाख लोग के घर बह जाते हैं। बाढ़ की चपेट में आने वाले घर जर्जर हो जाते हैं, फिर भी इन घरों में रहना लोगों की नियति है। बाढ़ ने बिहार में पिछले 31 सालों में 69 लाख घरों को क्षति पहुँचाई। इनमें 35 लाख मकान पानी में बह गए और 34 लाख घर क्षतिग्रस्त हुए। पीड़ितों को बसाने के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए लेकिन लोगों का घर शायद ही बन पाए। बिहार का 76 प्रतिशत भूभाग बाढ़ के दृष्टिकोण से संवेदनशील है। कुल 94,160 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में से 68,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बाढ़ के लिहाज से संवेदनशील हैं। कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला बलान, महानंदा और अघवारा नदी समूह की अधिकांश नदियां नेपाल से निकलती हैं। इन नदियों का 65 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र नेपाल और तिब्बत में है। नतीजतन नेपाल से अधिक पानी छोड़े जाने पर बिहार के गांवों में तबाही मच जाती है। 2007 की बाढ़ में 22 जिले बाढ़ से प्रभावित हुए थे। 2008 में कोसी नदी पर कुसहा बांध टूटा तो जल प्रलय की स्थिति पैदा हुई। बिहार सरकार ने 2007 में केंद्र से बाढ़ राहत के लिए 2,156 करोड़ मांगे लेकिन मदद नहीं मिली फिर 2008 के राष्ट्रीय आपदा के वक्त भी बिहार 14,808 करोड़ की मांग के बदले बिहार को सिर्फ एक हजार करोड़ रुपए मिले थे। अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर विश्व बैंक की मदद से बाढ़ प्रबंधन का कार्य शुरू होने वाला है। कोसी के बाढ़ प्रबंधन के लिए विश्व बैंक ने 800 करोड़ रुपए की सहायता की पेशकश की है।
बाढ़ के इतिहास पर गौर करें तो सबसे ज्यादा 1987 में बाढ़ ने तबाही मचाई थी। तब साढ़े तीन लाख से ज्यादा मकान ध्वस्त हो गए थे। वहीं 10 लाख से ज्यादा मकान बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे। आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, बाढ़ में बहने वाले घरों की संख्या 1989 में सबसे कम 7,746 थी। वहीं 1984 में तीन लाख घर तो 2008 की कोसी त्रासदी में 2 लाख 97 हजार से ज्यादा मकान तबाह हो गए थे। हर साल बाढ़ आती है और घोटाले भी हर साल होते हैं। इस साल सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बाढ़ नियंत्रण प्रमंडल नवगछिया में तकनीकी सलाहकार समिति ने अपस्ट्रीम में चार स्पर और डाउन स्ट्रीम में रिवेटमेंट की अनुशंसा की थी। योजना समीक्षा समिति ने इसमें संशोधन करते हुए छह किलोमीटर तक बोल्डर पिचिंग क्रेटेड पैनेल के साथ रिवेटमेंट के निर्माण का निर्णय लिया। इस अनुशंसा पर 27 दिनों के विलंब से एक एजेंसी को 18 करोड़ 78 लाख रुपए का भुगतान कर दिया गया। एजेंसी के काम में काफी कमियां रहीं लेकिन उसका भुगतान होता रहा। आंशिक निर्मित ढांचा बाढ़ का पानी बर्दाश्त नहीं कर सका और बह गया। इस तरह 10 करोड़ 27 लाख रुपए का बेकार खर्च किया गया। फिर बाढ़ बचाव पर 11 करोड़ 19 लाख रुपए खर्च किए गए।
घोटाले लालू राज में भी हुए। बाढ़ राहत घोटाले में आरोपी पूर्व सांसद साधु यादव इन दिनों कांग्रेस में हैं। राहत सामग्री में घोटाला करने वाले संतोष झा ने उनके खाते में छह लाख रुपए ट्रांसफर किए थे। साधु यादव ने तब कहा था कि यह राशि कार की कीमत है जो संतोष झा के पिता को बेची गई। निगरानी विभाग ने बाद में जांच में पाया कि कार एक लाख रुपए में दिल्ली के संतोष जेना से खरीदी गई थी और एक साल बाद उसे छह लाख में बेचा दिखाया गया। इस मामले में तत्कालीन जिला परिवहन पदाधिकारी बृजराज राय पर भी फर्जी कागजात तैयार करने का मामला दर्ज हुआ और वह गिरफ्तार हुए। निगरानी विभाग ने साधु यादव पर भी मामला दर्ज किया। छह साल पहले हुए इस घोटाले में साधु यादव ने 5 दिसंबर, 2006 को कोर्ट में सरेंडर किया था और उन्हें 5 जनवरी, 2007 को जमानत मिली। भारतीय प्रशासनिक सेवा के जिस तेज तर्रार अधिकारी गौतम गोस्वामी को 'टाइम' मैगजीन ने यंग एशियन एचीवर अवॉर्ड से नवाजा, वह भी बाढ़ घोटाले के आरोपी बन गए। ठेकेदार संतोष झा भी जेल काट चुके हैं।
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष से घोषित एक लाख रुपए 526 बाढ़ से पीड़ित परिवारों को नहीं मिले। कोसी की बाढ़ के दौरान मधेपुरा जिले में 272 लोगों की मृत्यु हुई। मृतक परिजनों को प्रधानमंत्री सहायता कोष से एक लाख, आपदा राहत से एक लाख और मुख्यमंत्री राहत कोष से एक पचास हजार रुपए दिया जाना तय था। लेकिन अब तक किसी भी परिवार को प्रधानमंत्री सहायता कोष से कोई सहायता नहीं मिल सकी है। मधेपुरा में आपदा प्रबंधन विभाग से सिर्फ 181 लोगों को मदद मिली। पीड़ितों के 91 मामले विचाराधीन हैं। मुख्यमंत्री सहायता कोष की मदद से भी 232 परिवार अब तक वंचित हैं। सुपौल और सहरसा के सभी 526 मृतकों के परिजन अब तक प्रधानमंत्री सहायता भी नहीं मिल पाई है। आपदा प्रबंधन विभाग की राहत 291 परिवारों को नहीं मिल पाई है। इस बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बाढ़ से बचाव के लिए खुद आपदा प्रबंधन की लगातार समीक्षा कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने राज्य के सभी तटबंधों की सुरक्षा के लिए तुरंत कार्रवाई सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिए है। नीतीश ने कहा है कि गंडक नदी के तटबंध में जहां कहीं भी कटाव हो रहा है, बांध पर दबाव है, रिंग बांध का स्पर टूट रहा है। या कटाव हो रहा है, उसकी मरम्मती युद्धस्तर पर की जाएगी। बिहार में संभावित बाढ़ रोकने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे। सरकार ने सभी संवेदनशील जगहों पर फ्लड फाइटिंग समूह की तैनाती कर दी है। कटाव रोकने या स्पर की मरम्मत के लिए सरकार कटिबद्ध है।
Email:- raghvendra.mishra@naidunia.com
Path Alias
/articles/baadha-sae-barakata
Post By: Hindi