बाढ़ की त्रासदी का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रभावितों तक राहत पहुँचाने के लिए सेना के 20,000 जवानों को लगाया गया था। सेना ने पानी में डूबे राज्य के 390 गाँवों में ऑपरेशन मेघ चलाया। राज्य की पूर्ववर्ती सरकार ने बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास के लिए केन्द्र से 44,000 हजार करोड़ रुपए के पैकेज की माँग की जिसमें से केन्द्र की ओर से फौरी राहत के तौर पर 745 करोड़ रुपए के पैकेज का एलान भी किया गया है। इसमें 570 करोड़ रुपए बाढ़ से क्षतिग्रस्त हुए मकानों के पुनर्निर्माण के लिए दिया गया है जबकि 175 करोड़ रुपए राज्य के 6 प्रमुख अस्पतालों की मरम्मत और नए उपकरणों की खरीद के लिए उपलब्ध कराए गए हैं। जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे बहुत अधिक चौंकाने वाले नहीं कहे जा सकते हैं। सर्वेक्षण में इस बात का पूर्वाभास हो चुका था कि जब ईवीएम की मशीनें खुलेंगी तो राज्य में किसी भी दल को शायद ही बहुमत मिले।
अनुमान के अनुसार पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी जरूर लेकिन सत्ता के लिए उसे गठजोड़ पर ही निर्भर करना पड़ेगा। अलबत्ता यह चुनाव बीजेपी के लिए अवश्य चौंकाने वाले रहे जो राज्य में अपने दम पर सरकार बनाने की आशा कर रही थी और परिणाम उसकी उम्मीदों से कम रहे। इसके बावजूद वह किंगमेकर की भूमिका में नज़र आ रही है।
87 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 25, पीडीपी को 28, सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15, कांग्रेस को 12 और अन्य को 7 सीटें मिली हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में मतदान के प्रतिशत ने पिछले 25 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ा है। बड़ी संख्या में मतदाताओं का घरों से निकलकर मतदान केन्द्र पहुँचने के बाद यह तय हो गया था कि राज्य की जनता बदलाव चाहती है। लेकिन त्रिशंकु विधानसभा परिणाम ने मतदाताओं को ज़रूर मायूस किया है।
विशेषकर बाढ़ प्रभावितों के लिए यह परिणाम किसी झटके की तरह है। लोगों को उम्मीद थी कि राज्य में कोई एक राजनीतिक पार्टी सत्ता की कमान सम्भालेगी और स्थिर सरकार बाढ़ प्रभावितों के पुनर्वास के लिए ठोस क़दम उठाएगी। लेकिन कोई भी राजनीतिक दल बहुमत के आँकड़े के करीब भी नहीं पहुँच सकी। ऐसे में बाढ़ प्रभावितों को परिणाम से थोड़ा बहुत धक्का जरूर लगा है।
विधानसभा चुनाव परिणाम का राजनितिक विश्लेषक अपने अपने नज़रिए से समीक्षा कर रहे हैं। विश्लेषक इस बात पर सहमत हैं कि इस बार राज्य में जो भी दल सत्ता सम्भालेगी उसकी राहें बहुत मुश्किल भरी होंगी। एक तरह जहाँ उसे गठबन्धन को सम्भाले रखने की चुनौती होगी तो वहीं दूसरी ओर बाढ़ से तबाह हो चुके राज्य को फिर से पटरी पर लाने की चुनौती होगी। इस बाढ़से राज्य की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। न केवल व्यापार में करोड़ों का घाटा हुआ है बल्कि पर्यटन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
सीमावर्ती जि़ला पुंछ के सामाजिक कार्यकर्ता निजाम दीन मीर कहते हैं कि- ‘‘इस बार जम्मू एवं कश्मीर को एक स्पष्ट बहुमत वाली सरकार की जरूरत थी क्योंकि बाढ़ प्रभावितों के लिए बहुमत वाली सरकार जितने बेहतर ढंग से काम कर सकती है उतने बेहतर ढंग से एक गठबन्धन वाली सरकार नहीं कर सकती है। ऐसी सरकार केवल सत्ता बचाने में ही अपनी शक्ति लगा देती है। ज्ञात हो कि सितम्बर माह में आई प्रलयकारी बाढ़ ने धरती के इस स्वर्ग का नक्शा ही बदल कर रख दिया है।
बाढ़ की त्रासदी का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रभावितों तक राहत पहुँचाने के लिए सेना के 20,000 जवानों को लगाया गया था। सेना ने पानी में डूबे राज्य के 390 गाँवों में ऑपरेशन मेघ चलाया। राज्य की पूर्ववर्ती सरकार ने बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास के लिए केन्द्र से 44,000 हजार करोड़ रुपए के पैकेज की माँग की जिसमें से केन्द्र की ओर से फौरी राहत के तौर पर 745 करोड़ रुपए के पैकेज का एलान भी किया गया है।
इसमें 570 करोड़ रुपए बाढ़ से क्षतिग्रस्त हुए मकानों के पुनर्निर्माण के लिए दिया गया है जबकि 175 करोड़ रुपए राज्य के 6 प्रमुख अस्पतालों की मरम्मत और नए उपकरणों की खरीद के लिए उपलब्ध कराए गए हैं। केन्द्र सरकार से इतना सब कुछ मिलने के बावजूद भी अभी भी लोगों की जिन्दगी अभी भी पटरी पर नहीं आ सकी है। राज्य के अन्य हिस्सों के साथ बाढ़ ने सीमावर्ती जिला पुंछ में भी भारी तबाही मचाई थी।
इस त्रासदी में जिले के 27 लोगों की जानें गईं जबकि 65 लोग घायल हुए थे। लोक निर्माण विभाग के अन्तर्गत आने वाले तीन मुख्य पुल शेरे-कश्मीर, दुंदक और पमरोट बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए जबकि सुरनकोट और मण्डी के 18 पुल बाढ़ में बह गए। भूस्खलन से पुंछ डिवीजन में प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना के अन्तर्गत बनी 27 जबकि मेंढ़र में 29 सड़कों को नुकसान हुआ। बाढ़ की वजह से कुल 2,159 कच्चे मकान पूरी तरह से जबकि 6253 आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए।
वहीं 239 पक्के घर पूरी तरह से जबकि 579 आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए। बाढ़ की वजह से 92 दुकानें आंशिक या पूर्ण रूप से बर्बाद हो गईं जबकि 979 पशु मर गए या बाढ़ के पानी के साथ बह गए। बाढ़ की वजह से जिले में कुल 34,155 परिवार प्रभावित हुए। इस बारे में चरखा के प्रोजेक्ट मैनेजर अनीस-उर-रहमान खान का कहना है कि- ‘‘माल-मवेशियों के मरने और खेतीबाड़ी के बर्बाद होने की वजह से लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं बचा है। ऐसे में बर्फबारी के इस मौसम में लोगों को दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है।’’
किस गठबन्धन के पास सत्ता की चाबी होगी इसकी तस्वीर भी बहुत जल्द साफ हो जाएगी। लेकिन बाढ़ प्रभावितों की स्थिति को देखते हुए राज्य में स्थिर सरकार का गठन बेहद जरूरी है। यही वह वक्त है जब सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी विचारधारा से ऊपर उठकर राज्य में एक ऐसी सरकार के गठन की पहल करें जो बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास पर ध्यान केन्द्रित करे।
यदि राजनीतिक दल बाढ़ प्रभावितों की थोड़ी भी भलाई चाहते हैं तो उन्हें इस वक्त अपने राजनीतिक हित को त्यागते हुए राज्य में स्थिर सरकार के गठन की पहल करनी चाहिए। ताकि बाढ़ पीड़ितों की जिन्दगी दोबारा पटरी पर आ सके। अगर राज्य में स्थिर सरकार का गठन नहीं हो पाया तो यह राज्य की जनता के साथ छल होगा। जिसने इस विश्वास के साथ मतदान किया था कि शायद आने वाली सरकार राज्य में उनके पुनर्वास के लिए जरूरी कदम उठाएगी।
अनुमान के अनुसार पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी जरूर लेकिन सत्ता के लिए उसे गठजोड़ पर ही निर्भर करना पड़ेगा। अलबत्ता यह चुनाव बीजेपी के लिए अवश्य चौंकाने वाले रहे जो राज्य में अपने दम पर सरकार बनाने की आशा कर रही थी और परिणाम उसकी उम्मीदों से कम रहे। इसके बावजूद वह किंगमेकर की भूमिका में नज़र आ रही है।
87 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 25, पीडीपी को 28, सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15, कांग्रेस को 12 और अन्य को 7 सीटें मिली हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में मतदान के प्रतिशत ने पिछले 25 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ा है। बड़ी संख्या में मतदाताओं का घरों से निकलकर मतदान केन्द्र पहुँचने के बाद यह तय हो गया था कि राज्य की जनता बदलाव चाहती है। लेकिन त्रिशंकु विधानसभा परिणाम ने मतदाताओं को ज़रूर मायूस किया है।
विशेषकर बाढ़ प्रभावितों के लिए यह परिणाम किसी झटके की तरह है। लोगों को उम्मीद थी कि राज्य में कोई एक राजनीतिक पार्टी सत्ता की कमान सम्भालेगी और स्थिर सरकार बाढ़ प्रभावितों के पुनर्वास के लिए ठोस क़दम उठाएगी। लेकिन कोई भी राजनीतिक दल बहुमत के आँकड़े के करीब भी नहीं पहुँच सकी। ऐसे में बाढ़ प्रभावितों को परिणाम से थोड़ा बहुत धक्का जरूर लगा है।
विधानसभा चुनाव परिणाम का राजनितिक विश्लेषक अपने अपने नज़रिए से समीक्षा कर रहे हैं। विश्लेषक इस बात पर सहमत हैं कि इस बार राज्य में जो भी दल सत्ता सम्भालेगी उसकी राहें बहुत मुश्किल भरी होंगी। एक तरह जहाँ उसे गठबन्धन को सम्भाले रखने की चुनौती होगी तो वहीं दूसरी ओर बाढ़ से तबाह हो चुके राज्य को फिर से पटरी पर लाने की चुनौती होगी। इस बाढ़से राज्य की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। न केवल व्यापार में करोड़ों का घाटा हुआ है बल्कि पर्यटन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
सीमावर्ती जि़ला पुंछ के सामाजिक कार्यकर्ता निजाम दीन मीर कहते हैं कि- ‘‘इस बार जम्मू एवं कश्मीर को एक स्पष्ट बहुमत वाली सरकार की जरूरत थी क्योंकि बाढ़ प्रभावितों के लिए बहुमत वाली सरकार जितने बेहतर ढंग से काम कर सकती है उतने बेहतर ढंग से एक गठबन्धन वाली सरकार नहीं कर सकती है। ऐसी सरकार केवल सत्ता बचाने में ही अपनी शक्ति लगा देती है। ज्ञात हो कि सितम्बर माह में आई प्रलयकारी बाढ़ ने धरती के इस स्वर्ग का नक्शा ही बदल कर रख दिया है।
बाढ़ की त्रासदी का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रभावितों तक राहत पहुँचाने के लिए सेना के 20,000 जवानों को लगाया गया था। सेना ने पानी में डूबे राज्य के 390 गाँवों में ऑपरेशन मेघ चलाया। राज्य की पूर्ववर्ती सरकार ने बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास के लिए केन्द्र से 44,000 हजार करोड़ रुपए के पैकेज की माँग की जिसमें से केन्द्र की ओर से फौरी राहत के तौर पर 745 करोड़ रुपए के पैकेज का एलान भी किया गया है।
इसमें 570 करोड़ रुपए बाढ़ से क्षतिग्रस्त हुए मकानों के पुनर्निर्माण के लिए दिया गया है जबकि 175 करोड़ रुपए राज्य के 6 प्रमुख अस्पतालों की मरम्मत और नए उपकरणों की खरीद के लिए उपलब्ध कराए गए हैं। केन्द्र सरकार से इतना सब कुछ मिलने के बावजूद भी अभी भी लोगों की जिन्दगी अभी भी पटरी पर नहीं आ सकी है। राज्य के अन्य हिस्सों के साथ बाढ़ ने सीमावर्ती जिला पुंछ में भी भारी तबाही मचाई थी।
इस त्रासदी में जिले के 27 लोगों की जानें गईं जबकि 65 लोग घायल हुए थे। लोक निर्माण विभाग के अन्तर्गत आने वाले तीन मुख्य पुल शेरे-कश्मीर, दुंदक और पमरोट बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए जबकि सुरनकोट और मण्डी के 18 पुल बाढ़ में बह गए। भूस्खलन से पुंछ डिवीजन में प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना के अन्तर्गत बनी 27 जबकि मेंढ़र में 29 सड़कों को नुकसान हुआ। बाढ़ की वजह से कुल 2,159 कच्चे मकान पूरी तरह से जबकि 6253 आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए।
वहीं 239 पक्के घर पूरी तरह से जबकि 579 आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए। बाढ़ की वजह से 92 दुकानें आंशिक या पूर्ण रूप से बर्बाद हो गईं जबकि 979 पशु मर गए या बाढ़ के पानी के साथ बह गए। बाढ़ की वजह से जिले में कुल 34,155 परिवार प्रभावित हुए। इस बारे में चरखा के प्रोजेक्ट मैनेजर अनीस-उर-रहमान खान का कहना है कि- ‘‘माल-मवेशियों के मरने और खेतीबाड़ी के बर्बाद होने की वजह से लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं बचा है। ऐसे में बर्फबारी के इस मौसम में लोगों को दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है।’’
किस गठबन्धन के पास सत्ता की चाबी होगी इसकी तस्वीर भी बहुत जल्द साफ हो जाएगी। लेकिन बाढ़ प्रभावितों की स्थिति को देखते हुए राज्य में स्थिर सरकार का गठन बेहद जरूरी है। यही वह वक्त है जब सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी विचारधारा से ऊपर उठकर राज्य में एक ऐसी सरकार के गठन की पहल करें जो बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास पर ध्यान केन्द्रित करे।
यदि राजनीतिक दल बाढ़ प्रभावितों की थोड़ी भी भलाई चाहते हैं तो उन्हें इस वक्त अपने राजनीतिक हित को त्यागते हुए राज्य में स्थिर सरकार के गठन की पहल करनी चाहिए। ताकि बाढ़ पीड़ितों की जिन्दगी दोबारा पटरी पर आ सके। अगर राज्य में स्थिर सरकार का गठन नहीं हो पाया तो यह राज्य की जनता के साथ छल होगा। जिसने इस विश्वास के साथ मतदान किया था कि शायद आने वाली सरकार राज्य में उनके पुनर्वास के लिए जरूरी कदम उठाएगी।
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Post By: Shivendra