बाढ़ में दशाश्मेध घाट

दशाश्वमेध घाट पर गंगा की धारा है
तट पर जल के ऊपर ऊँचे भवन खड़े हैं
विपुल गुहा-कक्षी ज्यों क्षुद्र पहाड़ गड़े हैं।
बिजली जली ज्योति से भग्न तिमिर कारा है।
तोड़ मारते जल-प्रवाह का स्वर न्यारा है।
जल पर पीपल की शाखा के छत्र पड़े हैं
दल-दल के तम से बिजली के स्रोत लड़े हैं
तम्साच्छन्न क्षितिज-तरुश्रेणी, नभ सारा है।

दरें बैठे, काली सड़क दाहिने बाएँ,
जल को छूते तख्ते, तख्तों पर सैलानी
जमे हुए हैं, कहीं चल रही कथा-कहानी,
नौजवान आते हैं, आती हैं महिलाएँ,
विस्फारित लोचन विलोकने वे उपदाएँ
जो गंगा ने दी हैं, जो हैं आनी-जानी।

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