बाढ़ के बाद दूभर हुई जिंदगी

Badh
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जम्मू कश्मीर में आई भयंकर बाढ़ ने राज्य का नक्शा ही बदलकर रख दिया है। बाढ़ ने धरती के इस स्वर्ग को पूरी तरह नर्क में बदल दिया है। बाढ़ के बाद जो कुछ हुआ वह एक बुरे सपने की तरह था। बाढ़ की वजह से राज्य में अरबों की निजी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा। समूचे जम्मू एवं कश्मीर में सड़क संपर्क, बिजली, जल आपूर्ति और संचार सुविधाअों के साथ-साथ लोगों के घर बुरी तरह तहस नहस हो गए। लगभग दो दशकों की मिलिटेंसी अवधि के बाद राज्य की स्थिति में थोड़ा बहुत सुधार आया था। राज्य के विकास को गति मिलने लगी थी मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। हालिया आपदा ने राज्य को कई साल पीछे धकेल दिया है। अब फिर से दोबारा उजड़े शहरों, बस्तियों और गांवों को आबाद करने में कई साल लगेंगे।

बाढ़ में सबसे ज़्यादा नुकसान राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर को हुआ। बाढ़ की वजह से पूरा श्रीनगर जलमग्न हो गया। इतने बड़े पैमाने पर तबाही और बर्बादी का मंज़र श्रीनगर में पहली बार देखने को मिला। पहली सितंबर 2014 से राज्य में बारिश का सिलसिला शुरू हुआ जिसमें गुज़रते वक्त के साथ तेज़ी आती गई। वैसे तो बाढ़ ने पूरे राज्य में कहर मचाया लेकिन जम्मू संभाग में पुंछ ज़िला सबसे ज़्यादा प्रभावित रहा। तबाही और बर्बादी की शुरुआत़ जम्मू की पीर-पंजाल श्रृंख्ला के ज़िला पुंछ की तहसील सुरनकोट से हुआ। सुरन नदी में आए उफान ने फसलों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। इसके दायरे में आने वाले दर्जनों घर, घराट और न जाने कितनी सरकारी व गैर सरकारी इमारतें आईं। सुरनकोट के पोठा, बेला में दो दर्जन से ज़्यादा परिवार बीच में फंसकर रह गए और कई जानें गईं। दूसरे दिन सुरन नदी के आतंक की दास्तान समाचार पत्रों की सुर्खियां बनी।

उसी दिन राजौरी के नौशेरा के लाम गांव में बारातियों से खचा खच भरी हुई एक बस नदी में आई बाढ़ में अचानक बह गई। इस खबर ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया और खासतौर से पूरे पीर-पंजाल श्रृंख्ला में मातम सा छा गया। पुंछ के दराबा, छंबर, आज़ाद मोहल्ला, खालसा चैक, डिंगला बावला, बायला सुरनकोट, दिगवार माल्टी, बफलियाज़, मस्तानदरा, हिलकाका, थाना मंडी, नौशेरा, मंजाकोठ, सुदंरबनी, मेंढ़र आदि के अलावा सांबा, रियासी, कठुआ, जम्मू, रामबन, डोडा और किश्तवार में अलग-अलग स्थानों से मकानों के क्षतिग्रस्त होने, फसलों के तबाह होने, लैंड स्लाइड की वजह से सड़क संपर्क के बर्बाद होने और जान-माल को नुकसान पहुंचने की खबरें ही खबरें समाचार पत्रों में देखने को मिली।

रियासी ज़िले के सदल गांव में पहाड़ गिरने की वजह से 40 मकानों वाले गांव ने अपना अस्तित्व ही खो दिया है। पहाड़ ने इस पूरे गांव को ही कुचल दिया। राजौरी के थाना मंडी क्षेत्र में भारी बारिश से पहाड़ के उपर से हुए भूस्खलन से एक मकान ध्वस्त हो गया था जिसमें तकरीबन 10 लोगों की मौत हुई। बारिश के शुरूआती तीन दिन गुज़र जाने के बाद राज्य में तमाम सरगर्मियां ठप होकर रह गईं और बारिश, बाढ़, कहर, ट्रैफिक बंद की बातें घर-घर, गली-गली और मोहल्ले-मोहल्ले का किस्सा बन गईं।

पीर-पंजाल श्रृंखला में हुई भयानक बारिश और बाढ़ ने धरती के स्वर्ग कश्मीर के अंदर जाकर और ज़्यादा विकराल रूप ले लिया और पूरी घाटी को पानी में डूबो दिया। धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर महान हिमालय और पीर पंजाल पर्वत के बीचों बीच स्थित है। झेलम नदी की बाढ़ ने इस खूबसूरत इलाकें को तहस-नहस करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू एवं कश्मीर में आई बाढ़ से प्रभावित लोगों को राहत देने और उनके पुनर्वास के लिए राज्य सरकार को 1,100 करोड़ रूपये के अलावा 1 हज़ार करोड़ रूपये की और अतिरिक्त मदद देने का एलान किया है। स्थिति का जायज़ा लेने के बाद प्रधानमंत्री ने ज़रूरत पड़ने पर इस अतिरिक्त रकम को लोगों के पुर्नावास में लगाए जाने का आश्वासन भी दिया।

प्रधानमंत्री ने राहत कोश से मरने वालों के करीबी को 2 लाख और ज़ख्मी लोगों को 50 हज़ार रूपये देने का भी एलान किया है। बाढ़ के वक्त देखा गया कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर की प्रिंट और इलैक्ट्राॅनिक मीडिया की नज़रे बाढ़ की वजह से हुई तबाही और बर्बादी को कवर करने पर रही। लेकिन तबाही इतने बड़े पैमाने पर हुई है कि समाचार पत्र, टेलीविज़न, रेडियो और सरकारी तंत्र से प्राप्त होने वाले तबाही और बर्बादी के आंकड़े बहुत कम हैं। वास्तव में सच्चाई यह है कि मीडिया ज़्यादतर स्थानों पर पहुंच ही नहीं पाया। राज्य में तबाही और बर्बादी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जहां पर पानी अपनी सतह से कई फीट की उंचाई पर चल रहा हो तो वहां पर नुकसान कितना हुआ होगा, कितनी इंसानी जानें गई होगी और कितने माल मवेशी मरे होंगें।

.बिज़नैस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक अचानक आई बाढ़ से जम्मू में 365 करोड़ रूपये की फसल को नुकसान हुआ है और 13 हज़ार हेक्टेयर की उपजाऊ ज़मीन तबाह हो गई। 248 करोड़ रूपये लागत वाली मक्का की फसल नष्ट हुई। इसी तरह 48 करोड़ रूपये के धान और करीब 40 करोड़ की सब्ज़ी, दलहन एवं केसर की खेती प्रभावित हुई। पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य को बाढ़ से तकरबीन 50 हज़ार करोड़ का नुकसान हुआ है। ऐसे में सरकार के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता, सरकारी व गैर सरकारी संगठनों का कर्तव्य बनता है कि वह राहत कार्य और राज्य में बुनियादी ढांचे के निर्माण में अपना पूरा सहयोग दें।

पंचायत सदस्यों, पटवारी व तहसीलदार, ज़िला विकास आयुक्त के अलावा स्वास्थ विभाग, बाढ़ नियंत्रण विभाग, उपभोक्ता विभाग की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह अपने क्षेत्र में बाढ़ की वजह से होने वाली तबाही और बर्बादी की रिपोर्ट तैयार करें ताकि प्रभावित लोगों को मुआवज़ा मिल सके। बड़े ही अफसोस की बात की है कि बाढ़ से होेने वाले नुकसान की शुरूआती रिपोर्ट तैयार करने के दौरान ही पटवारियों ने प्रभावितों लोगों से मुआवज़े में अपना हिस्सा मांगना शुरू कर दिया है। पीर पंजाल श्रृखंला से इस संबंध में बहुत शिकायतें सुनने को मिल रही हैं।

राज्य में आई बाढ़ के बाद इससे प्रभावित लोगों के लिए स्टेट डिज़ास्टर रिस्पांस फंड यानी एसडीआरएफ के नियमों के तहत मुआवज़े की रकम तय की गई है। लेकिन वन इंडिया वेबपोर्टल की एक रिपोर्ट के मुताबिक पुंछ में बाढ़ पीड़ितों को मुआवज़े देने के बदले अधिकारी 50 फीसद या आधा हिस्सा मांग रहे हैं। पटवारियों को चाहिए कि आपदा के इस वक्त में वह अपने कर्तव्य को पूरी ज़िम्मेदारी और इमानदारी के साथ अंजाम दें ताकि आपदा से होने वाले नुकसान का मुआवज़ा और प्रभावितों तक रिलीफ पहुंचाने के मामले में जम्मू एवं कश्मीर का रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं है।

2005 का भूकंप हो या फिर चिनाब क्षेत्र (डोडा, किश्तवार और रामबन ) का भूकंप। भूकंप के बाद देखा गया था कि राहत सामग्री बांटने में सरपंच, पटवारी, तहसीलदार और राजनेताओं से जुड़े अनगिनत लोगों ने अपनी तिजोरियां भरने में कोई कसर नहीं छोड़़ी थी। हादसे का शिकार लोगों को किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली थी और इनके नाम पर किसी और ने पैसा निकालकर हड़प कर लिया था। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार ऐसा नहीं होगा और बाढ़ प्रभावित लोगों को उनका हक ज़रूर मिलेगा। हालांकि इस बार भी ऐसे भ्रष्टाचारी लोग बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए भेजी जा रही सहायता और सामान को हड़प करने के लिए योजना बना रहे हैं। ऐसे लोगों को रोकना होगा और इसमें राज्य का शिक्षित युवा वर्ग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। तब तक बाढ़ प्रभावित लोगों को उनका हक मिलेगा।
 

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