बाढ़ का बढ़ता प्रकोप

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार भारत में नियमित रूप से आने वाली आपदाओं में बाढ़ प्रमुख आपदा है, जिसका प्रभाव बड़े क्षेत्र पर पड़ता है। दुनिया के सबसे अधिक बाढ़ संभावित देशों में से भारत एक है। 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 23 राज्य बाढ़ की दृष्टि से अति संवेदनशील है। भौगोलिक क्षेत्र के दृष्टिकोण से देश का 1/8वां भाग या 40 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ के दृष्टिकोण से संवेदनशील है, जिसमें से 8 लाख हेक्टेयर भूमि प्रत्येक साल बाढ़ से प्रभावित होती है।ताजे पानी को लेकर आईपीसीसी की रिपोर्ट का मूल्यांकन मूलरूप से एक डरावने और नकारात्मक स्थिति की ओर इशारा करता है। कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से लाखों लोगों की जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के साथ ताजे पानी से संबंधित खतरों में इजाफा होने की आशंका बनी हुई है। दोबारा उत्पन्न करने योग्य सतही जल और भूजल संसाधनों के ज्यादातर सूखे उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में और उच्च अक्षांश वाले क्षेत्रों में नीचे जाने की आशंका बनी हुई है। साथ ही वैश्विक स्तर पर बाढ़ और सूखे के बढ़ने की आंशका है।

भारत एक ऐसा देश है, जिसका एक बड़ा हिस्सा पहले से ही भयंकर जल संकट से जूझ रहा है। स्थायी सूखे जैसी स्थिति और बाढ़ व बादल फटने जैसी घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही है। यह सब इसलिए भी डरावना है, क्योंकि यहां की तकरीबन 22 फीसदी जनता गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है और खेती-किसानी जीविका का मुख्य साधन है।

भारत वह देश है जहां हर पांच साल में बाढ़ 75 लाख हेक्टेयर जमीन और तकरीबन 1600 जानें लील जाती है, पिछले 270 वषों में भारतीय उपमहाद्वीप दुनिया में आए 23 सबसे बड़े समुद्री तूफानों में से 21 की मार झेल चुका है, जिसमें लगभग छह लाख जानें गई। पिछले 18 वर्षों में आए छह बड़े भूकंपों में 24 हजार से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं, फिर भी किसी को नहीं पता हमारे यहां आपदा प्रबंधन तंत्र का माई-बाप कौन है?

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार भारत में नियमित रूप से आने वाली आपदाओं में बाढ़ प्रमुख आपदा है, जिसका प्रभाव बड़े क्षेत्र पर पड़ता है। दुनिया के सबसे अधिक बाढ़ संभावित देशों में से भारत एक है। 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 23 राज्य बाढ़ की दृष्टि से अति संवेदनशील है। भौगोलिक क्षेत्र के दृष्टिकोण से देश का 1/8वां भाग या 40 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ के दृष्टिकोण से संवेदनशील है, जिसमें से 8 लाख हेक्टेयर भूमि प्रत्येक साल बाढ़ से प्रभावित होती है।

सभ्यता के प्रारंभ से ही बाढ़ आती रही है और स्थानीय कहानियों या पौराणिक कथाओं के रूप में यह दर्ज है। बाढ़ के चलते होनेवाले नुकसान एवं फायदों का ज्ञान प्राचीन काल से ही नदी घाटी प्रदेशों में रहने वाले लोगों को रहा है। चिंता का विषय यह है कि पहले की तुलना में, बाढ़ से होनेवाली क्षति और इसका प्रभाव क्षेत्र आज बढ़ा है। जलाधिक्य से उत्पन्न दुष्प्रभावों में जानमाल की होनेवाली अपूरणीय क्षति के अतिरिक्त व्यापक आर्थिक नुकसान अतिमहत्वपूर्ण है।

बाढ़ से जुड़ा अर्थशास्त्र भी चौंकाने वाला है। अकेले भारत में ही जानमाल की अपूरणीय क्षति के अतिरिक्त प्रतिवर्ष औसतन 1000 करोड़ रुपए की आर्थिक क्षति होती है। भारत की चार करोड़ हेक्टेयर भूमि यानी देश का आठवां हिस्सा बाढ़ के प्रभाव क्षेत्र में है। बाढ़ से होनेवाली आर्थिक क्षति का सर्वाधिक (60-80 फीसद) प्रभाव उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और उड़ीसा राज्य में होता है। भारत के 8041 किलोमीटर लंबे समुद्र तटीय क्षेत्र तथा बंग्लादेश में, उष्ण-कटिबंधीय चक्रवात तथा इसके परिणामस्वरुप आनेवाली बाढ़ की आशंका हमेशा बनी रहती है। दक्षिण एशिया के लगभग सभी देशों में ज्यादातर नुकसान अगस्त से सितंबर के महीनों में गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी हिमालयी नदियों के चलते होता है।

तमाम अवांछनीय प्रभावों के बीच सैलाब कुछ अच्छे प्रभाव भी लेकर आता है जिसे कम करके नहीं आंका जा सकता। नदी के किनारे बाढ़ के मैदानों में लाई गयी उपजाऊ मिट्टी की नई परत खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ा देती है। भारत में गंगा एवं ब्रह्मपुत्र डेल्टा तथा समूचे बंग्लादेश की उपजाऊ भूमि का राज यही है। लगभग 5000 वर्ष पूर्व नील नदी में आनेवाली बाढ़ का अवलोकन कर ही मिस्रवासियों ने पहले कैलेंडर का निर्माण किया था। बाढ़ अगर विनाश का पर्याय है तो सभ्यता का जनक भी।

भारत में बाढ़ की भविष्यवाणी का काम केंद्रीय जल आयोग करता है। आयोग ने देशभर में 141 बाढ़ भविष्यवाणी केंद्र बना रखे हैं, जो भारत मौसम विज्ञान विभाग के सहयोग से संचालित है। बाढ़ से उत्पन्न स्थिति की समीक्षा, बाढ़ नियंत्रण के तरीकों का मूल्यांकन तथा भविष्य में सुधार आदि विषयों पर 1976 में स्थापित राष्ट्रीय बाढ़ आयोग अपनी नजर रखता है।अति प्राचीन काल से ही बाढ़ के खतरों से बचाव हेतु मनुष्य संरक्षात्मक एवं सुरक्षात्मक तरीके अपनाता रहा है। दूसरी सदी के आसपास, चीन के ह्वांगदृहो नदी में आनेवाली बाढ़ से बचाव के लिए सैंकड़ों किलोमीटर लंबे तटबंधों का निर्माण किया गया, किंतु पिछले 2000 सालों में नदी का स्तर 21 मीटर तक ऊंचा उठा है। बाढ़ से बचाव के लिए किए गए तटबंधों के निर्माण के चलते कई बार बाढ़ की तीव्रता और बढ़ जाती है। आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी विधि अपनाई जाए जो स्थानीय पर्यावरण के अनुकूल हो। बाढ़ पर नियंत्रण तथा इससे बचाव के लिए संरचनात्मक तथा गैर-संरचनात्मक विधियां अपनायी जाती है।

विश्व के अधिकांश देशों की सरकारों ने बाढ़ की पूर्वसूचना या बाढ़ के खतरों से निबटने हेतु एक स्वतंत्र निकाय बना रखा है। भारत में बाढ़ की भविष्यवाणी का काम केंद्रीय जल आयोग करता है। आयोग ने देशभर में 141 बाढ़ भविष्यवाणी केंद्र बना रखे हैं, जो भारत मौसम विज्ञान विभाग के सहयोग से संचालित है। बाढ़ से उत्पन्न स्थिति की समीक्षा, बाढ़ नियंत्रण के तरीकों का मूल्यांकन तथा भविष्य में सुधार आदि विषयों पर 1976 में स्थापित राष्ट्रीय बाढ़ आयोग अपनी नजर रखता है।

बहुउद्देशीय परियोजनाओं को ध्यान में रखकर किए गए, बड़े बांधों के निर्माण से बाढ़ नियंत्रण में काफी मदद मिली है। नील नदी पर मिस्र में बनाए गए असवां बांध से बना जलाशय अपने अपवाह क्षेत्र में तीन वर्षों तक होनेवाली सामान्य वर्षा का पानी रोक सकता है। गैर संरचनात्मक तरीकों में बाढ़ की समय पूर्व भविष्यवाणी, वृक्षारोपण, मृदा संरक्षण के तरीकों का उपयोग या बाढ़ के मैदान को खंडों में बांटना तथा उसका प्रबंधन शामिल है। बाढ़ के समय बाढ़-मैदान में संस्थापित वस्तु को अत्यधिक संवेदनशील जोन से हटाकर तुलनात्मक सुरक्षित जोन में लाकर बचाया जा सकता है।

समय रहते बाढ़ की भविष्यवाणी, बाढ़ से होनेवाली तबाहियों के प्रति बचाव तथा नियंत्रण का सबसे सस्ता और कारगर तरीका है। उचित समय से दी गई चेतावनी बाढ़ से होनेवाले खतरों से लोगों को जहां बचाता है, वहीं गलत अनुमान होने से चेतावनी तंत्र के प्रति लोगों की विश्वसनीयता घटती है। इसलिए पर्याप्त समय रहते किया गया भरोसेमंद पूर्वानुमान बाढ़ नियंत्रण तंत्र की दोहरी आवश्यकता है।

(लेखक का ई-मेल : avjournalist@gmail.com)

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Post By: pankajbagwan
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