पिछले कुछ वर्षों में थार का रेगिस्तानी इलाका कभी सूखे तो कभी अत्यधिक बारिश और बाढ़ की वजह से भी सुर्खियों में रहा है। इस साल मानसून सीजन में देश के 36 भौगोलिक क्षेत्रों में से जिन 4 क्षेत्रों में सामान्य से अधिक बारिश हुई, उनमें पश्चिमी राजस्थान भी शामिल है। एक से 23 अक्टूबर के बीच बाड़मेर जिले में सामान्य से 488 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। जबकि पिछले साल इस जिले के 2206 गाँव सूखे की चपेट में थे। इस बार खरीफ की खड़ी फसलों पर तेज बारिश और आँधी-तूफान की मार पड़ी है। मौसम के इस बदलते मिजाज और इसके असर के बारे में अजीत सिंह ने बाड़मेर के स्थानीय प्रतिनिधियों से बात की
“एक ही साल में हमें सूखे और बारिश दोनों की मार झेलनी पड़ी है। पहले मानसून समय पर नहीं आया और फिर फसल कटाई के वक्त बेमौसम बारिश मुसीबत लेकर आई।” - मुकेश धतरवाल, सरपंच, चित्तर का पार (बाड़मेर)
मौसम के मिजाज को समझना हर साल मुश्किल होता जा रहा है। इस साल कहा जा रहा था कि मानसून सामान्य रहेगा, लेकिन खरीफ की बुआई का समय आया तो बारिश नहीं हुई। लेकिन जब खेत में फसल तैयार हो गई तब बारिश और आँधी ने कई इलाकों में काफी नुकसान किया है। मेरी मूंग की काफी फसल खराब हो गई। बारिश और हवा की मार से बाजरा, मूंग, तिल, मोठ की खड़ी फसलें गिर गई थीं। फलियाँ तो खराब हुई ही, फसल चारे लायक भी नहीं बची। देखा जाए तो यह मौसम की दोहरी मार है। जरूरत के समय बारिश नहीं हुई और कटाई के समय तेज बारिश आ गई। मूंग की जिस फसल से तकरीबन आठ कुंतल की पैदावार निकलनी थी, बेमौसम बारिश और आँधी-तूफान में फसल गिरने की वजह से मुश्किल से दो-तीन कुंतल उपज मिल पाई। जो थोड़ी-बहुत उपज मिली, उसकी भी क्वालिटी बहुत खराब है। दाने काले पड़ गए हैं। बाड़मेर के कई इलाकों में बारिश से बाजरे की फसल को काफी नुकसान पहुँचा है। हालाँकि, कुछ किसानों ने बारिश नहीं होने की वजह से देर से बुआई की थी, इसलिये उनकी फसलों को नुकसान के बजाय बारिश से थोड़ा फायदा ही पहुँचा। लेकिन पिछले कई साल से लगातार बेमौसम बारिश और सूखे के चलते खेती को काफी नुकसान पहुँचा है।
किसानों को मौसम की इस दोहरी मार से कौन बचाएगा? एक ही साल में पहले बारिश की कमी और सूखे से किसान परेशान रहा। फिर किसी तरह किसानों ने बुआई की तो खड़ी फसलों पर मौसम का कहर टूट गया। कई किसानों के लिये तो लागत निकालना भी मुश्किल हो गया। सरकार ने फसल बीमा योजना शुरू की है लेकिन अभी तक इसका कोई फायदा मिलता नहीं दिखा है। फसलों के नुकसान के बारे में अभी तक हमसे कोई पूछने भी नहीं आया।
“बाड़मेर में बारिश के पैटर्न को समझना वाकई मुश्किल होता जा रहा है। हालाँकि, अब यहाँ पहले जैसी भीषण आँधियाँ नहीं आती हैं, लेकिन मानसून का मिजाज काफी बदल सा गया है” - कर्नल सोनाराम चौधरी, सांसद, बाड़मेर
यह बात सही है कि मौसम के बदलते मिजाज को समझना मुश्किल हो रहा है। पश्चिमी राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों से मौसम सम्बन्धी उतार-चढ़ाव देखे जा रहे हैं। 2006 में यह बाढ़ की वजह से खबरों में था। इस साल मानसून की शुरुआत में बारिश कम हुई। लेकिन पिछले दिनों बारिश और आँधी-तूफान की वजह से कई क्षेत्रों में किसान की खड़ी फसल को नुकसान पहुँचा है। कुल मिलाकर बारिश का पैटर्न बदल-सा गया है। इसमें काफी अनिश्चितता देखी जा रही है।
इस साल कुल मिलाकर बहुत ज्यादा बारिश नहीं हुई। लेकिन कहीं-कहीं एक ही दिन में काफी ज्यादा बारिश हो गई। सितम्बर और अक्टूबर के दौरान बेमौसम बारिश और आँधी की वजह से कई क्षेत्रों में फसलों को नुकसान पहुँचा है। किसानों को मौसम सम्बन्धी जानकारियाँ मिलती हैं, लेकिन इसे ज्यादा सटीक बनाने की जरूरत है। केन्द्र सरकार ने किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान से बचाने के लिये इस साल प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की है। इसमें फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को भी कवर किया गया है। उम्मीद की जा रही है कि पुरानी योजनाओं के मुकाबले नई योजना किसानों के नुकसान की भरपाई करने में मददगार साबित होगी।
मुझे लगता है कि जलवायु में आ रहे बदलावों का हमें गहराई से अध्ययन करना चाहिए। मौसम के पैटर्न में आ रहे बदलावों को हमें राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर भी समझना होगा। कयोंकि हमारी पूरी अर्थव्यवस्था, खेती-बाड़ी और उद्योग-धंधों पर इसका असर पड़ता है। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिये राज्य और जिलास्तर पर व्यापक इन्तजाम होने चाहिए। खासतौर पर जिला प्रशासन को सूखे, बाढ़, ओलावृष्टि जैसी अक्सर आने वाली आपदाओं से निपटने के लिये सक्षम बनाने की जरूरत है।
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