राजेंद्र सिंह उर्फ पानी बाबा जल बिरादरी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम नहीं है बल्कि एक ऐसे आंदोलन का नाम है जिसने राजस्थान के गांवों में जल क्रांति को जन्म दिया। वे मैगसेसे पुरस्कार के विजेता भी है पर यह विजेता स्वामी सानंद जैसे गंगापुत्रों की खोज में है। स्वामी सानंद जैसे गंगा पुत्रों के द्वारा ही गंगा मैया का उपचार किया जा सकता है। लेकिन इस रोग का इलाज खोजने के लिए पानी बाबा संपूर्ण भारत में क्रांति की मशाल लेकर घूम रहे हैं और उस मशाल ने अविरल गंगा-निर्मल गंगा आंदोलन को संपूर्ण भारतीय जनमानस में फैलाने का प्रयास किया है। प्रस्तुत है डॉ. मनोज चतुर्वेदी और डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी द्वारा साक्षात्कार का संपादित अंशः-
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- सरकारी चैनल, जल आंदोलन और भारतीय दृष्टि पर कुछ कहें?
राजेंद्र सिंह- वर्तमान चैनलों को देखने पर ऐसा लगता है कि भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था ने इसे जकड़ लिया है। भारत सरकार के चैनलों पर भी आर्थिक प्रभाव को देखा जा सकता है। हमे गांव, जल, जंगल और जमीन को लेकर कार्य करना है। भारत की पहचान यहां की गांव, जल, जंगल और जमीन से है लेकिन मीडिया का अधिकांश हिस्सा लोकविहीन होता जा रहा हैं। भारतीय दृष्टि से दूरदर्शन को चलाने की जरूरत है। इसमें कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं को तभी सफलता मिलेगी जब वे तथा उनके परिवारों की चिंता समाज एवं सरकार करें। एक व्यक्ति काम करते-करते भी प्रोमोट नहीं होता। वही कुछ ही समय में एक दूसरा व्यक्ति आगे बढ़ जाता है। तब दूसरे व्यक्ति के अंदर कुंठा घर कर जाती है कि वह क्यों पीछे हो गया ? ये हमारे यहां के प्रजातंत्र की कमियां है। यहां जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा के आधार पर व्यक्ति को आगे तथा पीछे किया जाता है। पूरी दुनिया बदल रही है। हम भी बदलेंगे परंतु अपने जीवन-मूल्यों को छोड़कर नहीं। दूरदर्शन तथा इसके कर्मचारियों का दायित्व बनता है कि ये सृजनात्मकता के द्वारा समाज को बदले। श्रम करने से पीछे ना हटे। आदमी जब तक बेरोजगार रहता है वो नौकरी के लिए पागल रहता है परंतु ज्योंही नौकरी लग जाती हैं। वह श्रम से जी चुराने लगता है। सच्चे मन से किया गया श्रम व्यक्ति को सफलता के मार्ग पर ले जाता है। इसलिए अपने यहां श्रम को श्रेष्ठ तप कहा गया है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- अपसंस्कृति और भारतीय संस्कृति के संबंध में आपका क्या मत है?
राजेंद्र सिंह- दूरदर्शन की भूमिका जरा ज्यादा गहरी है। चुनौतियां भी है परंतु हमें इसी में से रास्ता निकालना है। दूसरी ओर बाजारवादी संस्कृति हावी होने के कारण हम गहरायी को भूलते जा रहें है। आखिर भारत विश्वगुरू कैसे था? हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति, हमारी अर्थनीति, हमारी राजनीति और हमारी विद्यानीति की तुलना नहीं। हमारे ऊपर क्यों वैश्विक संस्कृति (अपसंस्कृति) हावी हो रही है? हम क्यों पाशचात्य देशों की ओर देखते है? हमारे पास समस्त विश्व की समस्याओं का समाधान है। पिछले 30 वर्षों से मैं यह सब देखते आ रहा हूं। हमें जनसंचार माध्यमों के द्वारा भारतीय व्यवस्था को कैसे बदला जाए? इस पर विचार करने की जरुरत है। इन संचार माध्यमों ने कभी भी पानी, प्रकृति व पर्यावरण पर ध्यान केंद्रित नहीं किया। अब तो जल का भी निजीकरण किया जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां तो चारों ओर कब्जा कर ही चुकी हैं।
भगवान श्री कृष्ण के जमाने में भी बाढ़ आई थी। वे उसको लेकर पर्वत पर चले गए। आज का आपदा प्रबंधन बाढ़, अकाल, सुखा, अतिवृष्टि तथा आगजनी से कैसे निपटेगा? सुखाड़ होने पर हम किस प्रकार का प्रबंधन करेंगे। इस पर विचार हुआ क्या, क्यों बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश तथा असम में ऐसी स्थितियां हैं?
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- आज की चुनौती और नदियों की दशा पर आपका क्या विचार है?
राजेंद्र सिंह- 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती है भ्रष्टाचार। हमारी भोगवादी व्यवस्था ने नदियों को नाले में बदल दिया है। दिल्ली में यमुना, काशी, प्रयाग, पटना में माता गंगा को देखें। नदियों पर बड़े-बड़े बांधों ने हमें डुबो दिया है। कृष्ण की यमुना को जरा देखिए, वो कराह रही है।
बड़े-बडे़ शहरों में लोग पानी खरीद कर पी रहे हैं। बड़े-बडे़ माफिया पानी पर कब्जा कर रहे हैं। दूरदर्शन ये नहीं दिखाता कि जनता पानी खरीद कर पी रही है। हमें नदियों को बचाना होगा।
भारत की सेहत, भारत की पहचान नदियों से है। यहां कृष्ण और राम गंगा-यमुना और सरस्वती से जाने जाते है। सभ्यताओं का विकास नदियों के तट पर ही हुआ है। कहीं पर ज्यादे वर्षा हो रही है तो कहीं पर कम या नाममात्र । ऐसे समय में मीडिया ,सरकार एवं देशभक्त जनता का यह प्रयास होना चाहिए कि जल का उचित प्रबंधन हो तथा जल समस्या का समाधान निकले।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- आपको मैगसेसे पुरस्कार भी मिल चुका है। उस समय आपने कैसा अनुभव किया?
राजेंद्र सिंह- हां, मुझे मैगसेसे पुरस्कार मिला था। मैं खुश भी हुआ था लेकिन यह पुरस्कार जल प्रबंधन में लगे उन समस्त साथियों के लिए था न की राजेन्द्र सिंह को। यह सम्मान भारत तथा जल आंदोलन में लगे समस्त भारतियों के लिए था। गंगा को राष्ट्रीय सम्मान दिलाने के लिए तथा निर्मल व अविरल गंगा के लिए मैं प्रत्येक भारतीय की सहभागिता चाहता हूं।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी- चिपको आंदोलन की तरह जल आंदोलन तथा अविरल गंगा आंदोलन को किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है?
राजेंद्र सिंह- 1970 में चिपको आंदोलन ने देश की जनता को बहुत प्रभावित किया। वह आंदोलन पूर्णरूप से अहिंसात्मक आंदोलन था। महिलाओं ने बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा लिया। सरकार को विवश होकर वन संरक्षण कानून बनाना पड़ा।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- आपके जीवन-दर्शन पर किन-किन महापुरुषों का प्रभाव पड़ा है?
राजेंद्र सिंह- महात्मा गांधी, सिद्धराज दड्ढा तथा मांगू मीणा का। महाराजा प्रताप की विरता और पराक्रम ने भी मुझे जल आंदोलन से जोड़ा है। मैंने अब तक 8 लाख 612 वर्ग किलोमीटर तालाबों पर कार्य किया है। इसके अलावा 7 नदियां मरी थी इस पर भी।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- प्रारंभिक जीवन के संबंध में बताएं?
राजेंद्र सिंह- मैं आयुर्वेद का चिकित्सक था। भारत सरकार में चार वर्षों तक युवाओं के लिए कार्य किया। निगमपूर गांव में दवाई एवं पढ़ाई से सेवा का कार्य प्रारंभ किया। कुछ प्रबुद्ध जनों एवं जनता के सहयोग से अलवर में यह कार्य शुरु हुआ। 1985 में जल संग्रह हेतु तालाब का कार्य पूरा हुआ।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी- आपकी शिक्षा कहां तक हुई है?
राजेंद्र सिंह- मैं आयुर्वेद तथा हिन्दी में स्नातकोत्तर हूं।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- जल आंदोलन में आपके साथ कौन-कौन है?
राजेंद्र सिंह- कितने लोगों तथा स्वयंसेवी संस्थाओं का नाम गिनाऊं। देश भर के साधु-संत तथा स्वयंसेवी संगठन इस कार्य में लगे हुए हैं। जिसमें से -स्वामी सानंद, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, कृष्ण प्रिया नंद ब्रहमचारी तथा अन्य बहुत से गणमान्य व्यक्तियों का समर्थन मिल रहा है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- जल आंदोलन एवं मीडिया पर आपका क्या कहना है?
राजेंद्र सिंह- देखिए, मीडिया में जल, जंगल और जमीन पर उतना जोर नहीं दिया जाता। यहां तो शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय, प्रियंका चोपड़ा, मल्लिका शेरावत, बिपाशा वसु को ही स्थान दिया जाता है। जल, जंगल और जमीन पर तो इनकी दृष्टि ही नहीं जाती। वर्तमान समय में जल प्रबंधन के देशज ज्ञान को मीडिया द्वारा प्रमुखता से प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। क्योंकि जनसंचार माध्यमों द्वारा जल आंदोलन को प्रमुखता मिलने से जनता में क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकता है। वे नदियों में अपशिष्ट पदार्थों को नहीं फेकेंगे जिससे निर्मल गंगा जल प्राप्त होगा।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- आपकी भावी योजना?
राजेंद्र सिंह- इस समय मैं नदी पुनर्जीवन योजना के लिए प्रयासरत हूं। नदियों को सदानिरा बनाने का प्रयास हो। इसी प्रयास में लगा हुआ हूं। अभी हरिद्वार में उत्खनन, स्वामी निगमांनंद का बलिदान तथा स्वामी सानंद के अनशन ने भारत सरकार को सोचने पर विवश किया है। मुझे ऐसा लगता है कि अहिंसात्मक आंदोलन के द्वारा सकारात्मक परिवर्तन किया जा सकता है। काशी में संतों ने बृहद बैठक करके गंगा कार्य योजना का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- 1977 के जे.पी. आंदोलन को आप किस प्रकार से देखते हैं?
राजेंद्र सिंह- 1977 का जयप्रकाश आंदोलन दूसरी आजादी का आंदोलन था। पर यह आंदोलन भी भरभराकर ढंह गया क्योंकि सत्ता की चाह ने उसे संगठित स्वरुप नहीं दिया। यह आंदोलन एक अद्वितीय आंदोलन था। युवा पीढ़ी ने इसे आगे बढ़ाया था।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- क्या आपके संगठन ने मीडिया प्रकोष्ठ का गठन किया है?
राजेंद्र सिंह- ऐसा कोई प्रकोष्ठ नहीं है पर यदा-कदा मीडिया में जल से संबंधित समाचारों को प्रमुखता से छापा जाता है। यह एक राष्ट्रीय समस्या है तथा प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका बढ़ ही जाती है। अतः जल आंदोलन को गति देने के लिए मीडिया जनों को आगे आना चाहिए।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- नदियों को जोड़ने की योजना पर आपका क्या कहना है?
राजेंद्र सिंह- वो योजना ठीक नहीं है उससे धन की बर्बादी होगी। हमें समाज जोड़ो योजना बनाने की जरुरत है। अकाल, बाढ़, भूकंप से मुक्ति के लिए देशज ज्ञान-विज्ञान द्वारा समाधान ढूंढ़ना होगा।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- आप किस राजनीतिक दल से स्वयं को नजदीक पाते है?
राजेंद्र सिंह- जो दल भय, भूख और भ्रष्टाचार को दूर करें उसके नजदीक मैं स्वयं रहना चाहता हूं। कुछ वर्षों पूर्व हमने यह प्रयोग किया था। पर उसमें सफलता नहीं मिली। वर्तमान राजनीति से समस्याओं का समाधान न होकर व्यवधान ही पैदा होता है। अतः जनशक्ति को जागृत करके संपूर्ण समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा किए जाने वाले रचनात्मक कार्यों पर प्रकाश डालें।
राजेंद्र सिंह- लोकतंत्रिक देश में हरेक व्यक्ति एवं संगठन का यह अधिकार एवं कर्तव्य बनता है कि वो देशसेवा करें। हमारा किसी से मतभेद हो सकता है परंतु मनभेद नहीं।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी-जल की महत्ता और उपयोगिता पर प्रकाश डालें।
राजेंद्र सिंह-प्रकृति, सृष्टि और धरती सब जल से बनी हैं। जब जल में विकार होता है तो प्राणदायिनी नदियां, नाले बन जाते हैं। धरती को बुखार चढ़ जाता है। मौसम का मिजाज बिगड़ जाता है। ब्रह्मांड धधकने लगता है और जीवन का बचना मुश्किल हो जाता है। आज हम उस रास्ते पर है। आज हमारी सारी नदियां ,नाले बन गए है। यह हमारे समाज तथा भ्रष्ट सरकार का नतीजा है। हम ज्योंही ठीक करेंगे हमारी प्रकृति, सृष्टि और धरती में सुधार होगा। जल ही जीवन है और हम इसे लापरवाही के कारण बर्बाद करते है। अतः वर्षा जल को पकड़ कर अनुशासित होकर उपयोग करें। हमें स्वयं के लिए प्रकृति का उतना ही प्रयोग करना चाहिए, जितना हम उसे जीते जी वापस लौटा सकें। जब हमें यह आभास हो जाता है तो हम किसी की जीवन शक्ति का अतिक्रमण नहीं करते। तभी हमारा जीवन शोषण और प्रदूषण मुक्त बनता है। आज हम प्रकृति का शोषण और प्रदूषित करने में जुटे हैं। लिहाजा पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए हमारा खान-पान, आचार-विचार और जीवन का आधार स्वावलंबी होना चाहिए। हम पानी और पेट्रोल के रूप में धरती का शोषण कर रहे हैं। खनन द्वारा अपने चारों ओर नंगापन बढ़ा रहे हैं। इसको रोकना ही पर्यावरण सुधार का सूत्र है।
डॉ. प्ररेणा चतुर्वेदी- निर्मल गंगा तथा अविरल गंगा हेतु किस प्रकार के टीम की जरूरत है?
राजेंद्र सिंह- इसके लिए एक समर्पित टीम की आवश्यकता है। जो माता गंगा के सतत प्रवाह हेतु कटिबद्ध हो। गंगा को ज्ञान स्वरूप सानंद जैसे गंगा चिकित्सक बेटे चाहिए जो मां के इलाज हेतु पहले मां को तैयार करें। फिर दूसरे बेटों की तैयारी कराएं। इसी प्रक्रिया से मां गंगा निर्मल व अविरल बनेगी। इस हेतु हम सबकों गंगा सुपुत्र बनकर गंगा चिकित्सा करनी होगी। हमारी मां गंगा बिमार है। इसे सेवा सुचिकित्सा चाहिए। चिकित्सा तो चिकित्सक ही कर सकते है। हमें गंगा सुपुत्र तथा चिकित्सकों की समर्पित टीम बनानी होगी।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- इसमें कितने प्रकार के दल होंगे?
राजेंद्र सिंह- इसमें दो प्रकार के दल होंगे। एक दल मां का शरीर समझकर मां की शारीरिक चिकित्सा करेगा तो दूसरा दल, गंगा संस्कृति, अध्यात्म, आस्था, गंगा भक्तों को जानकर माता गंगा की मानसिक चिकित्सा करेगा। मानसिक चिकित्सा सबसे जरूरी है। मानसिक चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा है। यह इसलिए किसी इसी के कारण मां गंगा बिमार है। गंगा मैया सबकी मां है। अतः सामूहिक उतरदायित्व के द्वारा ही संभव है। मेरे जैसे चिकित्सक तो निमित्त मात्र है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- गंगा एक्शन प्लान के संबंध में कुछ बताएंगे।
राजेंद्र सिंह- गंगा एक्शन प्लान यदि ठीक प्रकार से काम करता तो गंगा मैया की यह दुर्दशा नहीं होती। भारत सरकार में गंगा के लिए एक फुल टाईमर गंगा मिशन निदेशक है। इसके अतिरिक्त संविदा सेवा पर संचार टीम में एक - दो निदेशक हैं। खर्च करने वालों का अधिकार भी कहीं दूसरी जगह सुरक्षित है। गंगा का काम करने वाले भ्रष्टाचार का डर दिखाकर काम नहीं करते। भ्रष्टाचारी गंगा में स्नान करके पाप मुक्त हो रहे हैं। गंगा हेतु आवंटित राशि को समय पर खर्च नहीं करेंगे।
मैं चाहता हूं कि गंगा भक्त और वैज्ञानिकों की एक ईमानदार टीम बनें जिसमें गंगा संवाद और जनसंचार की अच्छी टीम बनाकर गंगा नीति, गंगा कानून और गंगा प्राधिकरण के निर्णयों के कार्यान्वयन हेतु गंगा महापंचायत गठित करें। प्रत्येक शहर, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर गंगा वैज्ञानिक दल बनें। साथ ही साथ सामाजिक प्रशासनिक नेतृत्व वाला चौथा दल हो। जो लेखा-जोखा, काम की रपट, मूल्यांकन तथा प्रशासन संभालने वाला हो। प्राधिकरण सदस्यों को समय-समय पर प्रगति से अवगत कराके मार्गदर्शन प्राप्त करता रहे। गंगा विशेषज्ञ सदस्यों को जिम्मेदारी निभाने में सहायक बनें यह टीम गंगा मिशन नाम से जानी जा सकती है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- राष्ट्रीय गंगा नदी का खजाना कौन खाली कर रहा है?
राजेंद्र सिंह- इसमें सरकारी कर्मचारी तथा तथाकथित व्यक्ति शामिल हैं। आज तक इसके लिए कार्यकारी टीम का गठन न होना भी एक कारण है। आज तक इसके लिए नगर-महानगर, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर टीम का गठन ही नहीं हुआ।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी- क्या आपको लगता है कि निर्मल गंगा तथा अविरल गंगा का स्वप्न साकार होगा? गंगा एक्शन प्लान कोई आज का नहीं है। आज से 20 वर्षों पूर्व बी.बी.सी. ने एक धारावाहिक के माध्यम से प्रकाश डाला था और आज तो भ्रष्टाचार और काला धन मुद्दा बन चुका है?
राजेंद्र सिंह- मेरा मानना है क समर्पित टीम पुत्रों के द्वारा हम सफलता प्राप्त कर सकते है। हां, राह में कांटंb तो हैं ही।
‘‘ कदम -कदम बढ़ाए जा।
गंगा मैया के गीत गाए जा।। ’’
• लेखक, पत्रकार, फिल्म समीक्षक, कॅरियर लेखक, मीडिया लेखक, समाजसेवी, हिन्दुस्थान समाचार में कार्यकारी फीचर संपादक तथा ’स्वतंत्रता संग्राम और संघ ’ पर डी.लिट्. कर रहे हैं।
• लेखिका, कहानीकार, कवयित्री, मनोवैज्ञानिक लेखन, कॅरियर लेखन, महिला लेखन, संपादन तथा मनोवैज्ञानिक सलाहकार हैं।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- सरकारी चैनल, जल आंदोलन और भारतीय दृष्टि पर कुछ कहें?
राजेंद्र सिंह- वर्तमान चैनलों को देखने पर ऐसा लगता है कि भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था ने इसे जकड़ लिया है। भारत सरकार के चैनलों पर भी आर्थिक प्रभाव को देखा जा सकता है। हमे गांव, जल, जंगल और जमीन को लेकर कार्य करना है। भारत की पहचान यहां की गांव, जल, जंगल और जमीन से है लेकिन मीडिया का अधिकांश हिस्सा लोकविहीन होता जा रहा हैं। भारतीय दृष्टि से दूरदर्शन को चलाने की जरूरत है। इसमें कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं को तभी सफलता मिलेगी जब वे तथा उनके परिवारों की चिंता समाज एवं सरकार करें। एक व्यक्ति काम करते-करते भी प्रोमोट नहीं होता। वही कुछ ही समय में एक दूसरा व्यक्ति आगे बढ़ जाता है। तब दूसरे व्यक्ति के अंदर कुंठा घर कर जाती है कि वह क्यों पीछे हो गया ? ये हमारे यहां के प्रजातंत्र की कमियां है। यहां जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा के आधार पर व्यक्ति को आगे तथा पीछे किया जाता है। पूरी दुनिया बदल रही है। हम भी बदलेंगे परंतु अपने जीवन-मूल्यों को छोड़कर नहीं। दूरदर्शन तथा इसके कर्मचारियों का दायित्व बनता है कि ये सृजनात्मकता के द्वारा समाज को बदले। श्रम करने से पीछे ना हटे। आदमी जब तक बेरोजगार रहता है वो नौकरी के लिए पागल रहता है परंतु ज्योंही नौकरी लग जाती हैं। वह श्रम से जी चुराने लगता है। सच्चे मन से किया गया श्रम व्यक्ति को सफलता के मार्ग पर ले जाता है। इसलिए अपने यहां श्रम को श्रेष्ठ तप कहा गया है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- अपसंस्कृति और भारतीय संस्कृति के संबंध में आपका क्या मत है?
राजेंद्र सिंह- दूरदर्शन की भूमिका जरा ज्यादा गहरी है। चुनौतियां भी है परंतु हमें इसी में से रास्ता निकालना है। दूसरी ओर बाजारवादी संस्कृति हावी होने के कारण हम गहरायी को भूलते जा रहें है। आखिर भारत विश्वगुरू कैसे था? हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति, हमारी अर्थनीति, हमारी राजनीति और हमारी विद्यानीति की तुलना नहीं। हमारे ऊपर क्यों वैश्विक संस्कृति (अपसंस्कृति) हावी हो रही है? हम क्यों पाशचात्य देशों की ओर देखते है? हमारे पास समस्त विश्व की समस्याओं का समाधान है। पिछले 30 वर्षों से मैं यह सब देखते आ रहा हूं। हमें जनसंचार माध्यमों के द्वारा भारतीय व्यवस्था को कैसे बदला जाए? इस पर विचार करने की जरुरत है। इन संचार माध्यमों ने कभी भी पानी, प्रकृति व पर्यावरण पर ध्यान केंद्रित नहीं किया। अब तो जल का भी निजीकरण किया जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां तो चारों ओर कब्जा कर ही चुकी हैं।
भगवान श्री कृष्ण के जमाने में भी बाढ़ आई थी। वे उसको लेकर पर्वत पर चले गए। आज का आपदा प्रबंधन बाढ़, अकाल, सुखा, अतिवृष्टि तथा आगजनी से कैसे निपटेगा? सुखाड़ होने पर हम किस प्रकार का प्रबंधन करेंगे। इस पर विचार हुआ क्या, क्यों बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश तथा असम में ऐसी स्थितियां हैं?
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- आज की चुनौती और नदियों की दशा पर आपका क्या विचार है?
राजेंद्र सिंह- 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती है भ्रष्टाचार। हमारी भोगवादी व्यवस्था ने नदियों को नाले में बदल दिया है। दिल्ली में यमुना, काशी, प्रयाग, पटना में माता गंगा को देखें। नदियों पर बड़े-बड़े बांधों ने हमें डुबो दिया है। कृष्ण की यमुना को जरा देखिए, वो कराह रही है।
बड़े-बडे़ शहरों में लोग पानी खरीद कर पी रहे हैं। बड़े-बडे़ माफिया पानी पर कब्जा कर रहे हैं। दूरदर्शन ये नहीं दिखाता कि जनता पानी खरीद कर पी रही है। हमें नदियों को बचाना होगा।
भारत की सेहत, भारत की पहचान नदियों से है। यहां कृष्ण और राम गंगा-यमुना और सरस्वती से जाने जाते है। सभ्यताओं का विकास नदियों के तट पर ही हुआ है। कहीं पर ज्यादे वर्षा हो रही है तो कहीं पर कम या नाममात्र । ऐसे समय में मीडिया ,सरकार एवं देशभक्त जनता का यह प्रयास होना चाहिए कि जल का उचित प्रबंधन हो तथा जल समस्या का समाधान निकले।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- आपको मैगसेसे पुरस्कार भी मिल चुका है। उस समय आपने कैसा अनुभव किया?
राजेंद्र सिंह- हां, मुझे मैगसेसे पुरस्कार मिला था। मैं खुश भी हुआ था लेकिन यह पुरस्कार जल प्रबंधन में लगे उन समस्त साथियों के लिए था न की राजेन्द्र सिंह को। यह सम्मान भारत तथा जल आंदोलन में लगे समस्त भारतियों के लिए था। गंगा को राष्ट्रीय सम्मान दिलाने के लिए तथा निर्मल व अविरल गंगा के लिए मैं प्रत्येक भारतीय की सहभागिता चाहता हूं।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी- चिपको आंदोलन की तरह जल आंदोलन तथा अविरल गंगा आंदोलन को किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है?
राजेंद्र सिंह- 1970 में चिपको आंदोलन ने देश की जनता को बहुत प्रभावित किया। वह आंदोलन पूर्णरूप से अहिंसात्मक आंदोलन था। महिलाओं ने बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा लिया। सरकार को विवश होकर वन संरक्षण कानून बनाना पड़ा।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- आपके जीवन-दर्शन पर किन-किन महापुरुषों का प्रभाव पड़ा है?
राजेंद्र सिंह- महात्मा गांधी, सिद्धराज दड्ढा तथा मांगू मीणा का। महाराजा प्रताप की विरता और पराक्रम ने भी मुझे जल आंदोलन से जोड़ा है। मैंने अब तक 8 लाख 612 वर्ग किलोमीटर तालाबों पर कार्य किया है। इसके अलावा 7 नदियां मरी थी इस पर भी।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- प्रारंभिक जीवन के संबंध में बताएं?
राजेंद्र सिंह- मैं आयुर्वेद का चिकित्सक था। भारत सरकार में चार वर्षों तक युवाओं के लिए कार्य किया। निगमपूर गांव में दवाई एवं पढ़ाई से सेवा का कार्य प्रारंभ किया। कुछ प्रबुद्ध जनों एवं जनता के सहयोग से अलवर में यह कार्य शुरु हुआ। 1985 में जल संग्रह हेतु तालाब का कार्य पूरा हुआ।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी- आपकी शिक्षा कहां तक हुई है?
राजेंद्र सिंह- मैं आयुर्वेद तथा हिन्दी में स्नातकोत्तर हूं।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- जल आंदोलन में आपके साथ कौन-कौन है?
राजेंद्र सिंह- कितने लोगों तथा स्वयंसेवी संस्थाओं का नाम गिनाऊं। देश भर के साधु-संत तथा स्वयंसेवी संगठन इस कार्य में लगे हुए हैं। जिसमें से -स्वामी सानंद, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, कृष्ण प्रिया नंद ब्रहमचारी तथा अन्य बहुत से गणमान्य व्यक्तियों का समर्थन मिल रहा है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- जल आंदोलन एवं मीडिया पर आपका क्या कहना है?
राजेंद्र सिंह- देखिए, मीडिया में जल, जंगल और जमीन पर उतना जोर नहीं दिया जाता। यहां तो शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय, प्रियंका चोपड़ा, मल्लिका शेरावत, बिपाशा वसु को ही स्थान दिया जाता है। जल, जंगल और जमीन पर तो इनकी दृष्टि ही नहीं जाती। वर्तमान समय में जल प्रबंधन के देशज ज्ञान को मीडिया द्वारा प्रमुखता से प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। क्योंकि जनसंचार माध्यमों द्वारा जल आंदोलन को प्रमुखता मिलने से जनता में क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकता है। वे नदियों में अपशिष्ट पदार्थों को नहीं फेकेंगे जिससे निर्मल गंगा जल प्राप्त होगा।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- आपकी भावी योजना?
राजेंद्र सिंह- इस समय मैं नदी पुनर्जीवन योजना के लिए प्रयासरत हूं। नदियों को सदानिरा बनाने का प्रयास हो। इसी प्रयास में लगा हुआ हूं। अभी हरिद्वार में उत्खनन, स्वामी निगमांनंद का बलिदान तथा स्वामी सानंद के अनशन ने भारत सरकार को सोचने पर विवश किया है। मुझे ऐसा लगता है कि अहिंसात्मक आंदोलन के द्वारा सकारात्मक परिवर्तन किया जा सकता है। काशी में संतों ने बृहद बैठक करके गंगा कार्य योजना का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- 1977 के जे.पी. आंदोलन को आप किस प्रकार से देखते हैं?
राजेंद्र सिंह- 1977 का जयप्रकाश आंदोलन दूसरी आजादी का आंदोलन था। पर यह आंदोलन भी भरभराकर ढंह गया क्योंकि सत्ता की चाह ने उसे संगठित स्वरुप नहीं दिया। यह आंदोलन एक अद्वितीय आंदोलन था। युवा पीढ़ी ने इसे आगे बढ़ाया था।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- क्या आपके संगठन ने मीडिया प्रकोष्ठ का गठन किया है?
राजेंद्र सिंह- ऐसा कोई प्रकोष्ठ नहीं है पर यदा-कदा मीडिया में जल से संबंधित समाचारों को प्रमुखता से छापा जाता है। यह एक राष्ट्रीय समस्या है तथा प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका बढ़ ही जाती है। अतः जल आंदोलन को गति देने के लिए मीडिया जनों को आगे आना चाहिए।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- नदियों को जोड़ने की योजना पर आपका क्या कहना है?
राजेंद्र सिंह- वो योजना ठीक नहीं है उससे धन की बर्बादी होगी। हमें समाज जोड़ो योजना बनाने की जरुरत है। अकाल, बाढ़, भूकंप से मुक्ति के लिए देशज ज्ञान-विज्ञान द्वारा समाधान ढूंढ़ना होगा।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- आप किस राजनीतिक दल से स्वयं को नजदीक पाते है?
राजेंद्र सिंह- जो दल भय, भूख और भ्रष्टाचार को दूर करें उसके नजदीक मैं स्वयं रहना चाहता हूं। कुछ वर्षों पूर्व हमने यह प्रयोग किया था। पर उसमें सफलता नहीं मिली। वर्तमान राजनीति से समस्याओं का समाधान न होकर व्यवधान ही पैदा होता है। अतः जनशक्ति को जागृत करके संपूर्ण समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा किए जाने वाले रचनात्मक कार्यों पर प्रकाश डालें।
राजेंद्र सिंह- लोकतंत्रिक देश में हरेक व्यक्ति एवं संगठन का यह अधिकार एवं कर्तव्य बनता है कि वो देशसेवा करें। हमारा किसी से मतभेद हो सकता है परंतु मनभेद नहीं।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी-जल की महत्ता और उपयोगिता पर प्रकाश डालें।
राजेंद्र सिंह-प्रकृति, सृष्टि और धरती सब जल से बनी हैं। जब जल में विकार होता है तो प्राणदायिनी नदियां, नाले बन जाते हैं। धरती को बुखार चढ़ जाता है। मौसम का मिजाज बिगड़ जाता है। ब्रह्मांड धधकने लगता है और जीवन का बचना मुश्किल हो जाता है। आज हम उस रास्ते पर है। आज हमारी सारी नदियां ,नाले बन गए है। यह हमारे समाज तथा भ्रष्ट सरकार का नतीजा है। हम ज्योंही ठीक करेंगे हमारी प्रकृति, सृष्टि और धरती में सुधार होगा। जल ही जीवन है और हम इसे लापरवाही के कारण बर्बाद करते है। अतः वर्षा जल को पकड़ कर अनुशासित होकर उपयोग करें। हमें स्वयं के लिए प्रकृति का उतना ही प्रयोग करना चाहिए, जितना हम उसे जीते जी वापस लौटा सकें। जब हमें यह आभास हो जाता है तो हम किसी की जीवन शक्ति का अतिक्रमण नहीं करते। तभी हमारा जीवन शोषण और प्रदूषण मुक्त बनता है। आज हम प्रकृति का शोषण और प्रदूषित करने में जुटे हैं। लिहाजा पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए हमारा खान-पान, आचार-विचार और जीवन का आधार स्वावलंबी होना चाहिए। हम पानी और पेट्रोल के रूप में धरती का शोषण कर रहे हैं। खनन द्वारा अपने चारों ओर नंगापन बढ़ा रहे हैं। इसको रोकना ही पर्यावरण सुधार का सूत्र है।
डॉ. प्ररेणा चतुर्वेदी- निर्मल गंगा तथा अविरल गंगा हेतु किस प्रकार के टीम की जरूरत है?
राजेंद्र सिंह- इसके लिए एक समर्पित टीम की आवश्यकता है। जो माता गंगा के सतत प्रवाह हेतु कटिबद्ध हो। गंगा को ज्ञान स्वरूप सानंद जैसे गंगा चिकित्सक बेटे चाहिए जो मां के इलाज हेतु पहले मां को तैयार करें। फिर दूसरे बेटों की तैयारी कराएं। इसी प्रक्रिया से मां गंगा निर्मल व अविरल बनेगी। इस हेतु हम सबकों गंगा सुपुत्र बनकर गंगा चिकित्सा करनी होगी। हमारी मां गंगा बिमार है। इसे सेवा सुचिकित्सा चाहिए। चिकित्सा तो चिकित्सक ही कर सकते है। हमें गंगा सुपुत्र तथा चिकित्सकों की समर्पित टीम बनानी होगी।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- इसमें कितने प्रकार के दल होंगे?
राजेंद्र सिंह- इसमें दो प्रकार के दल होंगे। एक दल मां का शरीर समझकर मां की शारीरिक चिकित्सा करेगा तो दूसरा दल, गंगा संस्कृति, अध्यात्म, आस्था, गंगा भक्तों को जानकर माता गंगा की मानसिक चिकित्सा करेगा। मानसिक चिकित्सा सबसे जरूरी है। मानसिक चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा है। यह इसलिए किसी इसी के कारण मां गंगा बिमार है। गंगा मैया सबकी मां है। अतः सामूहिक उतरदायित्व के द्वारा ही संभव है। मेरे जैसे चिकित्सक तो निमित्त मात्र है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- गंगा एक्शन प्लान के संबंध में कुछ बताएंगे।
राजेंद्र सिंह- गंगा एक्शन प्लान यदि ठीक प्रकार से काम करता तो गंगा मैया की यह दुर्दशा नहीं होती। भारत सरकार में गंगा के लिए एक फुल टाईमर गंगा मिशन निदेशक है। इसके अतिरिक्त संविदा सेवा पर संचार टीम में एक - दो निदेशक हैं। खर्च करने वालों का अधिकार भी कहीं दूसरी जगह सुरक्षित है। गंगा का काम करने वाले भ्रष्टाचार का डर दिखाकर काम नहीं करते। भ्रष्टाचारी गंगा में स्नान करके पाप मुक्त हो रहे हैं। गंगा हेतु आवंटित राशि को समय पर खर्च नहीं करेंगे।
मैं चाहता हूं कि गंगा भक्त और वैज्ञानिकों की एक ईमानदार टीम बनें जिसमें गंगा संवाद और जनसंचार की अच्छी टीम बनाकर गंगा नीति, गंगा कानून और गंगा प्राधिकरण के निर्णयों के कार्यान्वयन हेतु गंगा महापंचायत गठित करें। प्रत्येक शहर, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर गंगा वैज्ञानिक दल बनें। साथ ही साथ सामाजिक प्रशासनिक नेतृत्व वाला चौथा दल हो। जो लेखा-जोखा, काम की रपट, मूल्यांकन तथा प्रशासन संभालने वाला हो। प्राधिकरण सदस्यों को समय-समय पर प्रगति से अवगत कराके मार्गदर्शन प्राप्त करता रहे। गंगा विशेषज्ञ सदस्यों को जिम्मेदारी निभाने में सहायक बनें यह टीम गंगा मिशन नाम से जानी जा सकती है।
डॉ. मनोज चतुर्वेदी- राष्ट्रीय गंगा नदी का खजाना कौन खाली कर रहा है?
राजेंद्र सिंह- इसमें सरकारी कर्मचारी तथा तथाकथित व्यक्ति शामिल हैं। आज तक इसके लिए कार्यकारी टीम का गठन न होना भी एक कारण है। आज तक इसके लिए नगर-महानगर, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर टीम का गठन ही नहीं हुआ।
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी- क्या आपको लगता है कि निर्मल गंगा तथा अविरल गंगा का स्वप्न साकार होगा? गंगा एक्शन प्लान कोई आज का नहीं है। आज से 20 वर्षों पूर्व बी.बी.सी. ने एक धारावाहिक के माध्यम से प्रकाश डाला था और आज तो भ्रष्टाचार और काला धन मुद्दा बन चुका है?
राजेंद्र सिंह- मेरा मानना है क समर्पित टीम पुत्रों के द्वारा हम सफलता प्राप्त कर सकते है। हां, राह में कांटंb तो हैं ही।
‘‘ कदम -कदम बढ़ाए जा।
गंगा मैया के गीत गाए जा।। ’’
• लेखक, पत्रकार, फिल्म समीक्षक, कॅरियर लेखक, मीडिया लेखक, समाजसेवी, हिन्दुस्थान समाचार में कार्यकारी फीचर संपादक तथा ’स्वतंत्रता संग्राम और संघ ’ पर डी.लिट्. कर रहे हैं।
• लेखिका, कहानीकार, कवयित्री, मनोवैज्ञानिक लेखन, कॅरियर लेखन, महिला लेखन, संपादन तथा मनोवैज्ञानिक सलाहकार हैं।
Path Alias
/articles/avairala-gangaa-aura-nairamala-gangaa-andaolana-raajaendara-sainha-urapha-paanai-baabaa
Post By: Hindi