पर्यावरण उन सभी भौतिक तथा जैविक परिस्थितियों का समूह है, जो जीवों की अनुक्रियाओं को निरन्तर प्रभावित करते है। सविन्द्र सिंह के अनुसार “पर्यावरण एक अविभाज्य समष्टि है तथा भौतिक, जैविक एवं सांस्कृतिक तत्वों वाले पारस्परिक क्रियाशील तन्त्रों से इसकी रचना होती है। ये तन्त्र, अलग-अलग तथा सामूहिक रूप से विभिन्न रूपों में परस्पर सम्बद्ध होते हैं।” (सिंह सविन्द्र, 2000, 20-21) यह अनादि काल से पृथ्वी पर मानव एवं सम्पूर्ण जीव जगत को न केवल प्रश्रय देता रहा है, अपितु उसे विकास के प्रारम्भिक काल से वर्तमान तक अस्तित्व में बनाए रखने का आधार रहा है तथा भविष्य का जीवन भी इसी पर निर्भर करता है। (सक्सेना, 1994, 1)
पर्यावरण प्रदूषण :-
वर्तमान समय में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या अन्तरराष्ट्रीय समस्या है। प्रदूषण एक ऐसी अवांछनीय एवं असामान्य स्थिति है, जिसमें भौतिक, रासायनिक तथा जैविक परिवर्तनों के फलस्वरूप वायु, जल तथा मृदा अपनी गुणवत्ता खो देते हैं तथा वे जीव जगत के लिये हानिकारक सिद्ध होने लगते हैं।
Environmental pollution is the result of urban-industrial technological revolution and speedy exploitation of every bit of natural resources (Sharma and Kaur, 1996-97, 26)
छत्तीसगढ़ प्रदेश में औद्योगीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव
औद्योगिक विकास ने मानव को उच्च जीवन स्तर प्रदान करने के साथ ही सामाजिक-आर्थिक संरचना को नया आयाम प्रदान किया है। इसके साथ ही उत्पन्न पर्यावरणीय समस्या भी औद्योगीकरण की ही देन है। औद्योगिक विकास हेतु प्राकृतिक संसाधनों का तीव्रगति से विदोहन तथा औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि से पर्यावरण प्रदूषण अपरिहार्य है। विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप पर्यावरण में सर्वथा नवीन तत्व समावेशित हो जाते हैं जो पर्यावरण के भौतिक एवं रासायनिक संघटकों को भी परिवर्तित कर देते हैं। कारखानों द्वारा उत्पन्न अवांछित उत्पाद यथा ठोस अपशिष्ट, प्रदूषित जल, विषैली गैसें, धूल, राख, धुआँ इत्यादि जल, थल तथा वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं। औद्योगिक इकाइयों से उत्पन्न दूषित जल, विषैली गैस तथा ठोस अपशिष्टों से प्राकृतिक संसाधनों का अवनयन हो रहा है।
छत्तीसगढ़ प्रदेश में औद्योगिक विकास की प्रक्रिया का पर्यावरण पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा है। प्रदेश में स्थापित ताप विद्युत संयंत्र, कोयला उत्खनन, सीमेंट एवं लौह-इस्पात व स्पंज आयरन संयंत्रों द्वारा मुख्यतः वायु, जल एवं मृदा प्रदूषण अथवा भू अवनयन की समस्या उत्पन्न हो गई है। अतः प्रदेश में प्रदूषण विश्लेषण के दृष्टिकोण से निम्नांकित क्षेत्रों का अध्ययन किया गया है :-
1. कोरबा स्थित खनन क्षेत्र, एल्युमिनियम संयंत्र एवं ताप विद्युत संयंत्रों द्वारा उत्पन्न पर्यावरणीय समस्या के रूप में जल, वायु एवं भू-अवनयन की समस्या के सन्दर्भ में अध्ययन,
2. रायपुर जिले में स्थित ग्रासिम सीमेंट तथा अकलतरा स्थित सीमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया का वायु प्रदूषण के सन्दर्भ में अध्ययन,
3. रायपुर जिले के मन्दिर हसौद में स्थापित स्पंज आयरन संयंत्र मोनेट इस्पात लिमिटेड का वायु एवं जल प्रदूषण के सन्दर्भ में अध्ययन,
4. रायपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्र भनपुरी में जल प्रदूषण के सन्दर्भ में अध्ययन तथा,
5. भिलाई दुर्ग में वायु प्रदूषण भिलाई इस्पात संयंत्र के सन्दर्भ में।
उपर्युक्त क्षेत्रों का विवरण इस प्रकार है :-
कोरबा क्षेत्र में पर्यावरणीय समस्या
सन 1941 में 2240 आबादी वाला कोरबा ग्राम पिछले दशकों में एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केन्द्र के रूप में उभरा है। कोरबा नगर के आस-पास के क्षेत्रों में उपलब्ध खनिज संसाधन, प्रमुख रूप से कोयला तथा उद्योगों हेतु अन्य सुविधाएँ उपलब्ध होने के फलस्वरूप यहाँ एल्युमिनियम संयंत्र, ताप विद्युत संयंत्र इत्यादि बड़े कारखाने स्थापित हुए। वर्तमान में कोरबा एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र है।
स्थिति
यह नगर हसदेव तथा अहिरन नदियों के संगम पर 22020’ उत्तरी अक्षांश एवं 82042’ पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। समुद्र सतह से इस क्षेत्र की ऊँचाई 304.8 मीटर है। यह नगर हावड़ा-नागपुर मुम्बई दक्षिण-पूर्व प्रमुख रेलमार्ग पर स्थित चांपा जंक्शन से रेल एवं सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।
इस क्षेत्र में निवासरत ‘कोरवा’ जाति के लोगों से इस नगर का नामकरण कोरबा हुआ, जो एक ग्रामीण आबादी वाला क्षेत्र था। सन 1957 में इस क्षेत्र में 100 मेगा वाट का ताप विद्युत संयंत्र प्रारम्भ किया गया। इसके साथ-साथ नेशनल कोल डेवलपमेंट कारपोरेशन द्वारा नगर के उत्तर-पूर्व में आवासीय कॉलोनियाँ स्थापित की गईं। कोरबा क्षेत्र का सम्पूर्ण विकास 5 स्वतन्त्र इकाइयों में हुआ है। ये इकाइयाँ निम्नांकित हैं :-
1. नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन लिमिटेड,
2. भारत एल्युमिनियम कम्पनी लिमिटेड एवं इसकी आवासीय कालोनी द्वारा घिरा हुआ संयंत्र क्षेत्र,
3. म.प्र.वि.मं. तथा उसकी आवासीय कालोनियाँ तथा साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड द्वारा व्याप्त पूर्व का क्षेत्र,
4. कोरबा नगर की पुरानी बस्ती,
5. साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड द्वारा अपने कर्मचारियों के आवास हेतु विकसित आदर्श नगर कुसमुण्डा तथा अन्य कॉलोनियाँ
कोरबा नगर में उद्योगों की स्थापना विशेष रूप से ताप विद्युत संयंत्रों की स्थापना के कारण पर्यावरण की समस्या, मुख्य रूप से वायु-प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई है। कोयले की वृहद खुली एवं भूमिगत खदानों में खनन कार्यों से भी वायु प्रदूषित होती है। खदान क्षेत्रों से कारखानों तक सड़कों, रेलों द्वारा कोयले के परिवहन से उचित रख-रखाव के अभाव में वायु प्रदूषण होता है। इसके अतिरिक्त ताप विद्युत संयंत्र से निकलने वाली उड़न राख के द्वारा भी बहुत सा स्थान घेरा जाता है, अतः इसके लिये उचित उपाय करना आवश्यक है। इस प्रकार कोरबा में वायु प्रदूषण के मुख्य कारण निम्नांकित हैं :-
1. विभिन्न संयंत्रों से धुएँ का उत्सर्जन,
2. खदानों में होने वाला खनन कार्य,
3. कोयले का परिवहन।
01. धुएँ का उत्सर्जन :-
हसदेव नदी के पूर्व में स्थित ताप विद्युत संयंत्रों से अधिकतम मात्रा में धुएँ का उत्सर्जन होता है। धुएँ के उत्सर्जन से कोयले के कण कारखानों के आस-पास चार-पाँच किमी क्षेत्र में स्थित आबादी के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। प्रमुख रूप से म.प्र.वि.मं., भारत एल्युमिनियम कम्पनी लिमिटेड, सुपर थर्मल पावर स्टेशन आदि में प्रदूषण की रोकथाम हेतु प्रदूषण नियंत्रक उपकरण लगाए गए हैं, इसके बाद भी वायु कुछ प्रदूषित बनी रहती है।
02. खनन गतिविधि :-
मानिकपुर ग्राम तथा हसदेव नदी के पश्चिम में स्थित कुसमुण्डा एवं गेवरा ग्राम मुख्यतः खनन क्षेत्र है तथा यहाँ वृहद पैमाने पर खनन गतिविधियाँ सम्पन्न होती हैं। इन खनन कार्य वाले क्षेत्रों में कोयले के बड़े-बड़े ढेर निर्मित किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त खुली खदानों के आस-पास बड़े अतिभारित निक्षेप (overburden) स्थित होते हैं। इन निक्षेपों से कोयले के कण हवा में उड़ते हैं तथा उसे प्रदूषित करते हैं।
विद्युत संयंत्रों के संचालन हेतु अधिकांश मात्रा में खदान क्षेत्रों से संयंत्रों तक कोयले का परिवहन खुली ट्रकों में किया जाता है। इसी प्रकार बाक्साइट परिवहन भी खुली ट्रकों में किया जाता है। इस प्रकार इन खनिज पदार्थों के परिवहन से प्रदूषण के दो कारण हैं प्रथम, बाक्साइट एवं कोयले के बारीक कण वायु में उत्सर्जित होने से, द्वितीय यहाँ निर्मित सड़कों का समुचित रख-रखाव ना होने से इन सड़कों पर जब ट्रकों का आवागमन होता है, तो पर्याप्त धूल उड़ती है, जो वायु को प्रदूषित करती है।
कोरबा खनन क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण तथा भू-अवनयन :-
छत्तीसगढ़ प्रदेश में कोयला क्षेत्र सोन महानदी घाटी के अन्तर्गत सरगुजा, रायगढ़ तथा कोरबा में है। कोरबा कोयला क्षेत्र में 101292.9 लाख टन कोयले का संचित भण्डार है। यह काफी विकसित कोयला क्षेत्र है जिसमें 28 कोयला पट्टियाँ हैं। जिनमें से 7 पट्टियों में उच्च कोटि का कोयला प्राप्त होता है। प्रदेश में कोयले का उत्खनन साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड द्वारा किया जाता है। प्रमुख खदानें मानिकपुर, गेवरा, दीपका, लक्ष्णन, बांकी कुसमुण्डा, सुराकछार, रजगामार तथा बल्गी है। प्रस्तुत अध्याय में गेवरा परियोजना का अध्ययन खनन क्षेत्रों में होने वाले पर्यावरण प्रदूषण के दृष्टिकोण से किया गया है। गेवरा परियोजना कोरबा कोयला क्षेत्र के पश्चिमी भाग में गेवरा नामक स्थान पर स्थित है जिसकी उत्पादन क्षमता 18 मिलियन टन प्रतिवर्ष कोयला उत्पादन की है। यह एशिया की सबसे बड़ी खुली खदान है, जिसका कुल क्षेत्रफल 2023 हेक्टेयर है।
पर्यावरणीय प्रभाव :-
खुली खदानों के द्वारा भूपटल पर महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतिक परिवर्तन होते हैं। खुली खदानों में खनन कार्यों के पश्चात छोड़ी गई निचली भूमि कालान्तर में जल से भरे गड्ढों में परिवर्तित हो जाती है जिसे सम्प (sump) कहा जाता है। खुली खदानों में उत्खनन के परिणामस्वरूप खदानों के ऊपरी भार अथवा अतिभार (overburden) को समीप के खाली स्थानों पर एकत्र कर दिया जाता है, जिससे चारों ओर के प्राकृतिक वन क्षेत्र रेत व शैल के साथ विद्रुप पहाड़ों तथा विनाशपूर्ण स्थलाकृतियों में बदल जाते हैं। भू-अवनयन तथा भूमि उपयोग की एक बड़ी समस्या इन क्षेत्रों में विद्यमान रहती है। इन क्षेत्रों में पड़े ढेर के रूप में ऊपरी भार का क्षरण होता रहता है, जिससे उस क्षेत्र की भूमि तथा वन का स्तर घटने लगता है। खदानों में ऊपरी मिट्टी को सुरक्षित नहीं किया जाता है। ऊपरी मिट्टी एकत्र किये गए बड़े ढेर के शेष भागों में साथ मिल जाती है। गेवरा खदान में ऊपरी भार के अन्तर्गत कुल 300 हेक्टेयर भूमि है इन निक्षेपों की ऊँचाई 9 से 10 मीटर तक है। ऐसी बहुत कम आशा है कि यह भूमि भविष्य में उपयुक्त रूप से सुरक्षित हो पाएगी।
कोयले की खदानों में तथा आस-पास जहाँ कोयला एकत्र कर एक बड़े ढेर के रूप में होता है, वहाँ आस-पास के व्यक्तियों की श्वास के साथ कोयले की धूल भी जाती है, पर्यावरण की यह एक बड़ी समस्या इस क्षेत्र में रहती है। भूमिगत तथा खुली खदानों में खनन प्रक्रिया से अन्य प्रकार की पर्यावरण समस्या सामने आती है, जैसे-वनों की कटाई, ऊपरी मिट्टी की हानि, जमीन धसान, कोयले में आग लगना, जल एवं वायु प्रदूषण, जोत योग्य भूमि तथा वनस्पति की हानि, जल संस्तर पर प्रभाव, शोर तथा कम्पन इत्यादि समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। साथ ही खनन कार्य वाले क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक संरचना भी परिवर्तित होती है तथा उनको कोई विशेष लाभ नहीं मिलता है। (तृतीय पर्यावरणीय वस्तु स्थिति प्रतिवेदन, 1996, 85-87) गेवरा परियोजना द्वारा कुल 12 गाँव एवं 968 परिवार प्रभावित हुए हैं जिनका विवरण निम्नांकित है :-
तालिका : 7.1 गेवरा परियोजना द्वारा प्रभावित गाँव एवं परिवारों की संख्या |
||
क्रमांक |
गाँव |
प्रभावित परिवारों की संख्या |
01 |
बरेली |
137 |
02 |
बिंजहरा |
150 |
03 |
कुसमुण्डा |
232 |
04 |
घाटमुड़ा |
75 |
05 |
जूनाडीह |
149 |
06 |
भानगांव |
191 |
07 |
धुरेना |
40 |
08 |
पोन्डी |
- |
09 |
बेन्टीकारी |
- |
10 |
दीपका |
- |
11 |
गेवरा |
- |
12 |
झिंगतपुर |
- |
कुल प्रभावित परिवार |
968 |
|
स्रोत : कार्यालय गेवरा परियोजना, गेवरा |
परियोजना द्वारा प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को प्रबन्धन द्वारा उचित मुआवजा दिया गया है। गेवरा परियोजना क्षेत्र में वायु प्रदूषण के कारण कार्यरत श्रमिकों में आँखों में जलन, खुजली तथा ‘न्यूमनोकायसिस’ अर्थात श्वास की बीमारी पाई गई।
वायु प्रदूषण :-
खदानों में वायु प्रदूषण का एक मुख्य कारण विस्फोट है। विस्फोट होने पर अधिक मात्रा में धुआँ उठता है जिससे आस-पास की वायु प्रदूषित होती है। दूसरा मुख्य कारण कोल कटिंग व खुदाई है, जिससे धूल उत्पन्न होती है, फलतः वायु प्रदूषित हो जाती है, जो खदानों में कार्यरत श्रमिकों के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है। प्रदूषण का अन्य स्रोत कोयले का परिवहन है। कोयले के एक स्थान से दूसरे स्थान पर परिवहन द्वारा कोयले की धूल वायु को प्रदूषित करती है। उपलब्ध जल छिड़काव करने वाले उपकरण धूल को दबाने में पूर्णतः पर्याप्त नहीं होते विशेषकर ग्रीष्म ऋतु में। फलतः वायु प्रदूषण की समस्या बनी रहती है। (तृतीय पर्यावरणीय वस्तु स्थिति प्रतिवेदन, 1996, 87)
तालिका : 7.2 गेवरा परियोजना वायु गुणवत्ता |
||||
गैसीय प्रदूषक तत्व |
||||
क्रमांक |
क्षेत्र |
SPM |
SOX |
NOX |
A |
औद्योगिक क्षेत्र |
|||
1. |
खुसराडीह सब स्टेशन |
335.5 |
20.67 |
31.84 |
2. |
गेवरा सी.जी.एम. कार्यालय |
283.83 |
23.84 |
25.34 |
B |
आवासीय क्षेत्र |
|||
1. |
गेवरा ऊर्जा नगर |
156.17 |
20.5 |
24.84 |
2. |
पोन्डी ग्राम |
147.5 |
21.17 |
22.5 |
स्रोत : पर्यावरण प्रबन्धन विभाग, गेवरा परियोजना, गेवरा |
तालिका 7.2 में औद्योगिक तथा आवासीय क्षेत्र की वायु गुणवत्ता से सम्बन्धित आँकड़े दर्शाए गए हैं। आँकड़ों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि औद्योगिक क्षेत्र खुसराडीह सब स्टेशन जो कि खनन क्षेत्र से 5 किमी की दूरी पर स्थित है, में निलम्बित ठोस कणों (SPM) की मात्रा 335.5 माइक्रोग्राम/घनमीटर पायी गई, जबकि सी.जी.एम. कार्यालय में ठोस कणों की मात्रा 283.83 माइक्रोग्राम/घनमीटर पाई गई। स्पष्ट है, सी.जी.एम. कार्यालय की अपेक्षा खुसराडीह में वायु में ठोस कणों की उपस्थिति अधिक रही। आवासीय क्षेत्र के अन्तर्गत ऊर्जा नगर में ठोस कणों की मात्रा 156.17 माइक्रोग्राम/घनमीटर पायी गई। इस प्रकार पोन्डीग्राम की तुलना में ऊर्जा नगर में वायु में ठोस कणों की उपस्थिति अधिक रही। तुलनात्मक रूप से स्पष्ट है, कि खुसराडीह सब स्टेशन तथा ऊर्जा नगर में वायु प्रदूषण की मात्रा अधिक रही।
जल प्रदूषण :-
खदानों में जल प्रदूषण का प्रमुख स्रोत खदानों से निस्सारित जल तथा मशीनों की धुलाई है, जिससे निकलने वाले जल में तेल तथा ग्रीस की प्रधानता होती है। साथ ही बारिश में ऊपरी भार (Overburden) भी जल प्रदूषण के स्रोत होते हैं। गेवरा खनन क्षेत्र में निस्सारित जल लक्ष्मण नाला में छोड़ा जाता है।
तालिका (7.3) में प्रदर्शित जल गुणवत्ता के आँकड़ों के विश्लेषण द्वारा स्पष्ट है कि जल का pH मान सेटलिंग पॉण्ड नं. 3 तथा लक्ष्मण नाला में क्रमशः 5.9 तथा 6.3 रहा, जो निर्धारित मानक (7.0-8.6) के अनुरूप नहीं है। अन्य स्थानों पर यह मान निर्धारित सीमा में रहा। जल में कुल निलम्बित ठोस कणों की उपस्थिति 258 मिग्रा./लीटर सैटलिंग पॉण्ड नं. 3 में रही, जबकि निलम्बित ठोस कणों की निर्धारिक सीमा 100 मिग्रा./लीटर है। फ्लोराइड की मात्रा सभी क्षेत्रों में निर्धारित मानक सीमा में रही। जल में प्रकाश अवरुद्धता (Turbidity) का मान निर्धारित सीमा 1NTU से अधिक फिल्ट्रेशन प्लांट से निस्तारित जल में 2NTU, आवासीय क्षेत्र में स्थित नल के जल में 4 NTU तथा कुएँ के जल में 8 NTU रहा। इस प्रकार इन स्थानों का जल प्रकाश अवरुद्धता की दृष्टि से प्रदूषित रहा। इसी प्रकार इन क्षेत्रों में जल का रंग 4 से 6 हेजेन यूनिट पाया गया जबकि रंग की निर्धारित सीमा 5 हेजेन यूनिट है। मशीनों की धुलाई से निस्तारित जल में तेल तथा ग्रीस की उपस्थिति 10.4 मिग्रा./लीटर पाई गई। इसके अतिरिक्त आवासीय क्षेत्र में स्थित कुएँ के जल में कोलीफॉर्म की उपस्थिति 12 MPN (Most Probable Number) रही, जबकि जल में इसकी मात्रा नगण्य होनी चाहिए।
तालिका : 7.3 गेवरा परियोजना : जल गुणवत्ता |
||||||||||
क्रमांक |
सर्वेक्षित क्षेत्र |
Colour |
pH |
T.S.S. |
D.S. |
Fluoride |
Turbidity |
Oil & grease |
Residual Free Chlorine |
Coliforms |
01. |
Input of oil & Grease Trape |
Acceptable |
7.72 |
124 |
- |
0.31 |
- |
10.4 |
- |
- |
02. |
Output of oil & Grease Trape |
” |
7.28 |
48 |
- |
0.26 |
- |
3.4 |
- |
- |
03. |
Mine water at Discharge Point |
” |
8.04 |
26 |
- |
0.38 |
- |
BOL |
- |
- |
04. |
Input of Settling Pond No. 3 |
” |
6.14 |
258 |
- |
0.42 |
- |
BDL |
- |
- |
05. |
Output of Settling Pond No. 3 |
” |
5.9 |
94 |
- |
0.38 |
- |
BDL |
- |
- |
06. |
U/S of Laxman Nala W.R.T. Mine Discharge |
” |
7.8 |
38 |
- |
0.32 |
- |
BDL |
- |
- |
07. |
D/S of Laxman Nala W.R.T. Mine Discharge |
” |
6.3 |
46 |
- |
0.56 |
- |
BDL |
- |
- |
08. |
Out put of Filtration Plant |
4 |
7.52 |
- |
118 |
0.54 |
2 |
- |
- |
Nil |
09. |
Colony Tap Water |
4 |
7.54 |
- |
92 |
0.56 |
4 |
- |
0.1 |
Nil |
10. |
Well water of workers colony |
6 |
8.5 |
- |
146 |
0.28 |
8 |
- |
BDL |
12 |
स्रोत : पर्यावरण प्रबन्धन, विभाग, गेवरा परियोजना, गेवरा। |
खनन क्षेत्रों में भू-अवनयन :-
गेवरा, जो कि खुली खदान है का कुल क्षेत्रफल 2023 हेक्टेयर है तथा खनन कार्य के अन्तर्गत कुल 780 हेक्टेयर भू्मि है। खुली खदानों के माध्यम से एसईसीएल का उत्पादन बढ़ाने की योजना है। अत्यधिक खनन होने से और भूमि प्रदूषित होगी। भूमि की बिगड़ती स्थिति के, खनन के पश्चात गहरे गड्ढे ऊपरी भार के बिखरे हुए ढेर, भू-क्षरण, जमीन की भौगोलिक संरचना में बदलाव, वृहद पैमाने पर वनस्पति विनाश ज्वलन्त उदाहरण है। निश्चित ही, इन सब परिवर्तनों का विपरीत असर यहाँ के जल, वायु तथा जैविक तंत्र पर होगा। इस क्षेत्र की अधिकांश वनस्पति नष्ट हो गई है। पठार के समीप सिर्फ मौसमी वृक्ष दिखाई देते हैं। ऐसी भूमि जो फिलहाल उपयोग में नहीं आ रही है वहाँ पर कुछ वनस्पति उग आई है। (तृतीय पर्यावरणीय वस्तु स्थिति प्रतिवेदन, 1996, 555)
कोरबा स्थित एल्युमिनियम संयंत्र एवं पर्यावरण प्रदूषण :-
प्राकृतिक पर्यावरण के असन्तुलन में औद्योगिक विकास महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। कोरबा शहर के पूर्व में स्थित बाल्को संयंत्र की कार्य प्रणाली तथा सम्बन्धित पर्यावरणीय समस्या एवं संयंत्र से उत्पन्न गैसीय, तरल तथा ठोस अपशिष्टों का विवरण निम्नांकित है:-
संयंत्र की कार्य प्रणाली एवं सम्बन्धित पर्यावरणीय समस्या :-
1. एल्युमिना संयंत्र :- एल्युमिना चूर्ण के उत्पादन हेतु विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत कास्टिक सोडा का प्रयोग किया जाता है, जिसके रिसाव से जल प्रदूषण की समस्या प्रमुख है।
बाक्साइट से कास्टिक सोडा की रासायनिक प्रक्रिया में आयरन ऑक्साइड अथवा रेडमड के रूप में खतरनाक ठोस अपशिष्ट प्राप्त होता है जिसके भण्डारण से भूमिगत जल स्रोतों के प्रदूषित होने की सम्भावना बनी रहती है साथ ही जमीन का विस्तृत भू-भाग क्षारीय होने के कारण वनस्पति रहित दिखाई देता है।
एल्युमिना संयंत्र की कार्यप्रणाली में एल्युमिना हाइड्रेट की कैल्सीनेशन इकाई द्वारा एल्युमिना सूखे चूर्ण के रूप में परिवर्तित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप एल्युमिना चूर्ण के कण तथा गैस उत्सर्जन से वायु प्रदूषण की सम्भावना बनी रहती है।
2. प्रद्रावक संयंत्र :- प्रद्रावक संयंत्र के अन्तर्गत एल्युमिनियम उत्पादन की प्रक्रिया में पिघले हुए क्रायोलाइट तथा गर्म एल्युमिनियम धातु के विद्युत विश्लेषण की प्रक्रिया में अनेक प्रकार की हानिकारक प्रदूषित गैसें, फ्लोरीन, कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन फ्लोराइड, सल्फर डाई ऑक्साइड उत्पन्न होती है। विश्लेषक सेलों की कैथोड लाइनिंग एक खतरनाक ठोस अपशिष्ट की श्रेणी में आती है जिसके पानी में घुलकर प्राकृतिक तथा भूमिगत जल स्रोतों को प्रदूषित करने की सम्भावना बनी रहती है।
3. संरचना संयंत्र :- संरचना संयंत्र में उत्पादित धातु को विभिन्न परिष्कृत रूपों में रूपान्तरित किया जाता है। इस प्रक्रिया में तेल तथा इमल्सन का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार इस संयंत्र से निस्सारित जल में तेल तथा ग्रीस की उपस्थिति बनी रहती है।
पर्यावरण प्रदूषण :-
वर्तमान में कारखाने मानव के लिये आजीविका के स्रोत ही नहीं अपितु उनकी उन्नति के मापदण्ड भी हैं। ऐसे ही कारखानों की शृंखला में कोरबा क्षेत्र का स्थान सर्व प्रमुख है, जहाँ एक ओर औद्योगीकरण इस क्षेत्र की आवश्यकता है, वहीं दूसरी ओर इन कारखानों से उत्पन्न प्रदूषण ने प्राकृतिक असन्तुलन पैदा कर दिया है। कोरबा क्षेत्र में जल तथा वायु प्रदूषण औद्योगीकरण का पर्याय बन चुके हैं।
1. वायु प्रदूषण :- संयंत्र में वायु प्रदूषण का प्रधान स्रोत चिमनियों द्वारा गैसीय उत्सर्जन (Stack Emission) है, जिससे निकलने वाले प्रमुख वायु प्रदूषक तत्व निलम्बित ठोस कण (SPM - Suspended Particulate Matter), सल्फर डाइऑक्साइड (So2) तथा फ्लोराइड (F) है।
एप्को (EPCO) द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार संयंत्र के आस-पास की वायु में निलम्बित ठोस कणों की सान्द्रता 72 से 660 माइक्रोग्राम/घनमीटर के बीच पाई गई। वर्षा ऋतु के पश्चात वायु में निलम्बित धूलकण की मात्रा निर्धारित मानकों की अपेक्षा अधिक थी। इसी प्रकार वायु में फ्लोराइड का स्तर 17.5 माइक्रोग्राम/घनमीटर पाया गया जो कि फ्लोराइड की विचारणीय स्थिति की ओर संकेत करता है। शीत तथा वर्षा ऋतु के पश्चात सल्फर डाइऑक्साइड की सान्द्रता 131 माइक्रोग्राम/घनमीटर पाई गई, जो कि निर्धारित स्तर से अधिक है। (तृतीय पर्यावरणीय वस्तु स्थिति प्रतिवेदन, 1996, 492)
तालिका : 7.4 भारत एल्युमिनियम कम्पनी लिमिटेड : व्यापक वायु गुणवत्ता वर्ष 1999-2000 प्रदूषक तत्वों की सान्द्रता (माइक्रोग्राम/घनमीटर में) |
||||
क्षेत्र/स्थान |
SPM |
F |
SO2 |
NOX |
एक्सपर्ट हॉस्टल |
61.8 |
76.6 |
10.4 |
13.1 |
बाल्को हॉस्पिटल |
110 |
35 |
12 |
11 |
एपीपी ऑफिस |
- |
142.6 |
34.7 |
37.6 |
इंजीनियरिंग बिल्डिंग |
202 |
69 |
35 |
44 |
आर एण्ड सी. बिल्डिंग |
144.9 |
103 |
79 |
20 |
जी. एम. ऑफिस |
206 |
151 |
35 |
32 |
गैसीय उत्सर्जन |
SPM |
F |
SO2 |
|
गैसीय क्लीनिंग प्लांट |
85.65 |
10.17 |
- |
|
एनोड क्लीनिंग प्लांट |
98.5 |
- |
160.78 |
|
एल. पी. बॉयलर |
113.5 |
- |
201.9 |
|
एच.पी. बॉयलर |
891.74 |
923.12 |
- |
|
Fugitive emission Pot No. 13 & 19 |
891.74 |
923.12 |
- |
|
स्रोत : पर्यावरण विभाग, बाल्को, कोरबा |
उपर्युक्त आँकड़ों द्वारा स्पष्ट है कि निलम्बित धूल कणों (SPM) की मात्रा जी. एम. ऑफिस के समीप 206 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही, जबकि एक्सपर्ट हॉस्टल के समीप यह मात्रा 61.8 माइक्रोग्राम/घनमीटर पायी गयी। इसी तरह फ्लोराइड की मात्रा 151 माइक्रोग्राम/घनमीटर जी. एम. ऑफिस क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक रही। फ्लोराइड की यह मात्रा बाल्को हॉस्पिटल क्षेत्र में 35 माइक्रोग्राम/घनमीटर तथा इंजीनियरिंग बिल्डिंग के समीप 69 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही। सल्फर डाइऑक्साइड (So2) की मात्रा आर. एण्ड सी. बिल्डिंग के समीप अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक रही (79 माइक्रोग्राम/घनमीटर)। एक्सपर्ट हॉस्टल के समीप यह मात्रा 10.4 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही। नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा 37.6 माइक्रोग्राम/घनमीटर ए.पी.पी. ऑफिस के समीप तथा बाल्को हॉस्पिटल क्षेत्र में 11 माइक्रोग्राम/घनमीटर पायी गयी। गैसीय उत्सर्जन के अन्तर्गत एच.पी. बॉयलर (High Pressure Boiler) में धूल कणों की सान्द्रता 153.74 माइक्रोग्राम/घनमीटर तथा गैस क्लीनिंग प्लांट में 85.65 माइक्रोग्राम/घनमीटर तथा एनोड पेस्ट प्लांट में 16 0.78 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही।
वर्ष 1994 में तैयार रिपोर्ट Comprehensive Environmental Impact Assessment (EIA) of Aluminium Complex Korba के अनुसार विभिन्न ऋतुओं में वायु में प्रदूषक तत्त्वों की उपस्थिति तालिका 7.5 में प्रदर्शित की गई है :-
तालिका (7.5) द्वारा स्पष्ट है कि शीतऋतु में वायु में निलम्बित ठोस कणों की सर्वाधिक मात्रा 1884 माइक्रोग्राम/घनमीटर, ग्रीष्म ऋतु में 1009 माइक्रोग्राम/घनमीटर तथा मानसून पश्चात 1546 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही।
सर्वेक्षित क्षेत्र के अन्तर्गत शीत ऋतु में कोहरिया, जो संयंत्र से 1.8 किमी की दूरी पर पश्चिम में स्थित है, में वायु में निलम्बित ठोस कणों की मात्रा सर्वाधिक 1884 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही। जबकि इस क्षेत्र में ग्रीष्म तथा मानसून पश्चात यह मात्रा क्रमशः 567 तथा 578 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही। शीतऋतु में सबसे कम निलम्बित ठोस कणों की मात्रा (591 माइक्रोग्राम/घनमीटर) सोनपुरी में रही, जो संयंत्र से 5 किमी की दूरी पर उत्तर-उत्तर पश्चिम में स्थित है। भद्रापारा (2 किमी पूर्व) में यह मात्रा 1774 माइक्रोग्राम/घनमीटर आँकी गई।
ग्रीष्म ऋतु में वायु में निलम्बित ठोस कणों की मात्रा सर्वाधिक 1009 माइक्रोग्राम/घनमीटर दोन्द्रो में रही जो संयंत्र से 5 किमी उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है। मानिकपुर में ग्रीष्म ऋतु में यह मात्रा 454 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही, जबकि इस क्षेत्र में शीतऋतु में ठोसकणों की मात्रा 1778 माइक्रोग्राम/घनमीटर आँकी गई।
मानसून पश्चात गेरवा घाट में, जो संयंत्र से 5.1 किमी दक्षिण पश्चिम दिशा में स्थित है, में वायु में ठोस कणों की उपस्थिति सर्वाधिक 1546 माइक्रोग्राम/घनमीटर तथा सबसे कम जमनीपाली (8.8 किमी. पश्चिम) में 302 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही। जबकि इस क्षेत्र में शीतऋतु में यह मात्रा 1164 माइक्रोग्राम/घनमीटर थी।
स्पष्ट है कि शीत ऋतु में अन्य ऋतुओं की तुलना में वायु में निलम्बित ठोस कणों की मात्रा अधिक रही। शीत ऋतु में पूर्व तथा पश्चिम, दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित क्षेत्रों में यह मात्रा अधिक पाई गई, जबकि ग्रीष्म ऋतु में मुख्यतः उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित क्षेत्रों में तथा मानसून पश्चात दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित क्षेत्रों में यह मात्रा अधिक पाई गई।
सल्फर डाइ ऑक्साइड की अधिकतम मात्रा शीत ऋतु में भद्रापारा में 71 माइक्रोग्राम/घनमीटर तथा दोन्द्रो में 67 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही। उपरोक्त दोनों क्षेत्र संयंत्र के पूर्व तथा उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित हैं। नाइट्रोजन ऑक्साइड की सान्द्रता भी इन्हीं क्षेत्रों में अधिक रही। भद्रापारा में यह सान्द्रता 61 तथा दोन्द्रो में 62 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही। ग्रीष्म ऋतु में भी नाइट्रोजन ऑक्साइड की सान्द्रता 50 माइक्रोग्राम/घनमीटर दोन्द्रो में तथा 61 माइक्रोग्राम/घनमीटर जमनीपाली में रही जो कि संयंत्र से 8.8 किमी पश्चिम दिशा में है। फ्लोराइड की अधिकतम सान्द्रता (197 माइक्रोग्राम/घनमीटर) जामबहरा (3 किमी उत्तर) में पायी गयी।
जल प्रदूषण :-
इस क्षेत्र में दो प्राकृतिक नाले संयंत्र से 500 मीटर की दूरी पर प्रवाहित होते हैं, जिनमें बेलगिरी नाला संयंत्र के उत्तर में तथा डेंगुर नाला संयंत्र के दक्षिण में प्रवाहित होता है। संयंत्र से निकलने वाला दूषित जल इन्हीं नालों में छोड़ा जाता है जो 5 किमी तक बहने के पश्चात हसदो नदी में मिल जाते हैं। हसदो नदी संयंत्र हेतु जलापूर्ति का प्रमुख स्रोत है। इन जलीय संसाधनों का विवरण निम्नांकित है -
01. हसदो नदी :- हसदो नदी की प्रवाह दिशा उत्तर दक्षिण है। इस नदी के दोनों तटों पर बाल्को, एम.पी.ई.बी. एवं एसईसीएल की कोयला खदानें स्थित हैं। साथ ही इसके पश्चिमी तट पर एन.टी.पी.सी., एम.पी.ई.बी. तथा बाल्को केप्टिव पावर प्लांट पश्चिम दिशा में स्थापित है। उपर्युक्त सभी संयंत्रों हेतु हसदो नदी जलापूर्ति का प्रमुख स्रोत है। इन संयंत्रों से निकलने वाला दूषित जल डेंगुर, बेलगिरि तथा अहिरन नदियों द्वारा होता हुआ हसदो नदी में मिलता है।
02. बेलगिरी नाला :- बाल्को संयंत्र के उत्तर में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बेलगिरी नाला प्रवाहित होता है तथा खोरियार ग्राम के समीप हसदो नदी में समाहित हो जाता है। संयंत्र से निकलने वाले ठोस अपशिष्ट रेडमड तथा ब्लैकमड के भण्डारण हेतु रेडमड एवं ब्लैकमड पॉण्ड बेलगिरी नाले के उत्तरी तट में स्थित है। परसाभाठा ग्राम के समीप बाल्को टाउनशिप, संरचना संयंत्र तथा ऑक्सीडेशन पॉण्ड से निकलने वाला जल इस नाले में छोड़ा जाता है।
तालिका : 7.5 भारत एल्युमिनियम कम्पनी लिमिटेड : व्यापक वायु गुणवत्ता |
|||||||||||||
क्रमांक |
सर्वेक्षित क्षेत्र |
संयंत्र के सन्दर्भ में क्षेत्र की दिशा |
दूरी (किमी) |
शीत ऋतु |
ग्रीष्म ऋतु |
मानसून पश्चात |
|||||||
SPM |
So2 |
Nox |
Fluoride |
SPM |
So2 |
Nox |
SPM |
So2 |
Nox |
||||
01 |
जामबहार |
उत्तर |
3.0 |
591 |
22 |
22 |
197 |
839 |
- |
17 |
944 |
35 |
39 |
02 |
दोन्द्रो |
उत्तर पूर्व |
5.0 |
702 |
67 |
62 |
- |
1009 |
- |
50 |
432 |
21 |
10 |
03 |
भद्रापारा |
पूर्व |
2.0 |
1774 |
71 |
61 |
- |
653 |
- |
- |
334 |
34 |
13 |
04 |
आई. टी. आई कॉम्प्लेक्स |
दक्षिण |
3.0 |
1378 |
49 |
24 |
- |
880 |
- |
18 |
549 |
59 |
20 |
05 |
मानिकपुर (एस.ई.सी.एल.) |
दक्षिण |
7.0 |
1778 |
33 |
20 |
69 |
454 |
- |
18 |
350 |
20 |
13 |
06 |
गेरवा घाट |
दक्षिण पश्चिम |
5.1 |
1627 |
44 |
49 |
- |
- |
- |
- |
1546 |
35 |
35 |
07 |
कोहरिया |
पश्चिम |
1.8 |
1884 |
46 |
12 |
- |
567 |
- |
15 |
578 |
6 |
6 |
08 |
सोनपुरी |
उत्तर-उत्तर पश्चिम |
5.0 |
559 |
6 |
6 |
- |
559 |
- |
44 |
- |
- |
- |
सभी मात्रा अधिकतम सीमा में स्रोत : Comprehensive Environmental Impact Assessment of Aluminium Complex, Korba Sponser : Bharat Aluminium Company, New Delhi. National Environmental Engineering Research Institute Nagpur, July 1994. |
03. डेंगुर नाला :- संयंत्र के दक्षिण में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर डेंगुर नाला प्रवाहित होता है एवं डेंगुर ग्राम के समीप हसदो नदी में मिल जाता है। एम.पी.ई.बी. ताप विद्युत संयंत्र से निकलने वाली उड़न राख का भण्डारण नाले के दोनों तटों पर किया जाता है। एल्युमिना तथा प्रद्रावक संयंत्र से निकलने वाला जल इस नाले में छोड़ा जाता है।
04. अहिरन नदी :- हसदो नदी के के पश्चिम में अहिरन नदी पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर प्रवाहित होती है। इस क्षेत्र में स्थित कोयला खानों से निकलने वाला दूषित जल अहिरन नदी में मिलता है।
संयंत्र हेतु जल की आवश्यकता 20,000 घनमीटर प्रतिदिन है जिनमें से 11,000 घनमीटर प्रतिदिन जल की आवश्यकता प्रद्रावक तथा संरचना संयंत्र हेतु तथा एल्युमिना संयंत्र हेतु 9000 घनमीटर प्रतिदिन जल की आवश्यकता होती है। पेयजल की आवश्यकता प्रतिदिन 12,000 घनमीटर की है। संयंत्र से निकलने वाले दूषित जल की मात्रा 13,000 घनमीटर/दिन की है जिनमें से 7500 घनमीटर/दिन जल एल्युमिना संयंत्र से, 4900 घनमीटर/दिन प्रद्रावक तथा संरचना संयंत्र की है।
तालिका (7.6) में सतही जल की गुणवत्ता के आँकड़ों को प्रदर्शित किया गया है ये आँकड़े Comprehensive Environmental Impact Assessment of Aluminium Complex Korba नामक रिपोर्ट से प्राप्त किये गए हैं।
जिस जल का pH मान 7.0-8.6 के मध्य होता है तथा जिसमें अपद्रव्य निर्धारित सीमा से अधिक ना हो वही पेयजल शुद्ध माना जाता है। pH मान 6.5 से कम या 9.2 से अधिक हो तो जल अत्यन्त हानिकारक माना जाता है। इस दृष्टि से डेंगुर नाला (फुटामुरा ग्राम के समीप) तथा बेलगिरि नाले का जल प्रदूषित पाया गया, जहाँ शीत ऋतु में जल का pH मान क्रमशः 6.9, 9.4 तथा 9.6 रहा (तालिका 7.6)। इसी प्रकार ग्रीष्म ऋतु में डेंगुर नाले के जल का pH मान 6 आँका गया जो निर्धारित मानक की सीमा से कम है तथा पेयजल की दृष्टि से अनुपयुक्त है। ग्रीष्म ऋतु में ही बेलगिरि नाले के जल का pH मान 9.5 रहा। मानसून के पश्चात हसदो नदी के जल का pH मान 6.9 (निर्धारित मानक से कम) रहा। इस प्रकार जल के pH मान की दृष्टि से हसदो नदी, डेंगुर नाला तथा बेलगिरि नाले का जल प्रदूषित पाया गया।
शीतऋतु में जल में प्रकाश अवरुद्धता का मान सर्वाधिक डेंगुर नाले (U/S of Smelter Unit Discharge Point) में 700 NTU (National Turbidity Unit) ग्रीष्म ऋतु में 70 NTU तथा मानसून के पश्चात 650 NTU आँका गया, जो निर्धारित 1NTU की सीमा से अधिक है। जल में प्रकाश के प्रवेश में रुकावट प्रकाश अवरुद्धता (Turbidity) कहलाती है। जल में पर्याप्त ऑक्सीजन की मात्रा तथा जल जीवन के विकास के लिये प्रकाश का पहुँचना आवश्यक होता है, परन्तु जल में निलम्बित पदार्थों की अधिकता से प्रकाश की भेद्यता कम हो जाती है तथा जल प्रदूषित हो जाता है। डेंगुर नाला तथा बेलगिरी नाले में अवरुद्धता का मान अधिक होने का एक अन्य प्रमुख कारण म.प्र. वि.म. के एश डम्प से एश स्लरी का बहाव भी है।
तालिका : 7.6 भारत एल्युमिनियम कम्पनी लिमिटेड : जल गुणवत्ता |
|||||||
क्रम |
सर्वेक्षित क्षेत्र |
शीत ऋतु |
|||||
PH |
Turbidity (NTU) |
T.S. |
COD |
BOD |
Fluoride |
||
Mg/L. |
|||||||
01 |
हसदो नदी (Right hand side of the road after crossing the bridge |
8.1 |
35 |
122 |
4.0 |
0.2 |
0.17 |
02 |
हसदो नदी (D/S of Belgiri Nallah) |
7.3 |
85 |
174 |
10 |
2.9 |
0.28 |
03 |
हसदो नदी (D/s of Dengur Nallah) |
7.5 |
172 |
338 |
4.0 |
ND |
0.4 |
04 |
डेंगुर नाला (Near Phutamura village) |
6.9 |
5 |
46 |
1.6 |
0.8 |
0.2 |
05 |
डेंगुर नाला (U/S of Smelter Unit discharge Point) |
7.6 |
700 |
1030 |
30.0 |
ND |
2.2 |
06 |
डेंगुर नाला (D/S of Smelter Unit discharge Point) |
7.4 |
480 |
802 |
50.0 |
ND |
1.5 |
07. |
डेंगुर नाला (D/S of Alumina plant waste discharge Point) |
7.0 |
420 |
674 |
23.0 |
0.5 |
1.8 |
08. |
डेंगुर नाला (Before meeting Hasdeo river) |
9.4 |
62 |
187 |
38.0 |
2.7 |
0.6 |
09. |
बेलगिरी नाला (In Parsabhata village, 50 m. away from red mud pond) |
9.5 |
45 |
450 |
6.4 |
0.2 |
0.8 |
10. |
बेलगिरी नाला (100m. U/s of oxidation pond effluent discharge point) |
9.5 |
14 |
162 |
14.0 |
1.5 |
0.6 |
11. |
बेलगिरी नाला (100m. D/s of oxidation pond effluent discharge point) |
9.6 |
26 |
157 |
16.0 |
1.4 |
0.6 |
12. |
बेलगिरी नाला (U/S of fabrication unit effluent discharge point) |
7.5 |
47 |
232 |
56.0 |
1.5 |
0.7 |
13. |
बेलगिरी नाला (D/S of fabrication unit effluent discharge point) |
7.8 |
37 |
204 |
26.0 |
2.7 |
0.8 |
14. |
बेलगिरी नाला (Before meeting Hasdeo river) |
7.7 |
52 |
200 |
60.0 |
0.4 |
0.6 |
तालिका : 7.6 भारत एल्युमिनियम कम्पनी लिमिटेड : जल गुणवत्ता |
|||||||
क्रम |
सर्वेक्षित क्षेत्र |
ग्रीष्म ऋतु |
|||||
PH |
Turbidity (NTU) |
T.S. |
COD |
BOD |
Fluoride |
||
Mg/L. |
|||||||
01 |
हसदो नदी (Right hand side of the road after crossing the bridge |
- |
- |
- |
- |
- |
- |
02 |
हसदो नदी (D/S of Belgiri Nallah) |
7.2 |
2 |
358 |
2.5 |
1.1 |
0.3 |
03 |
हसदो नदी (D/s of Dengur Nallah) |
7.6 |
30 |
102 |
22.32 |
1.1 |
0.3 |
04 |
डेंगुर नाला (Near Phutamura village) |
- |
- |
- |
- |
- |
- |
05 |
डेंगुर नाला (U/S of Smelter Unit discharge Point) |
6.0 |
8 |
76 |
ND |
ND |
0.5 |
06 |
डेंगुर नाला (D/S of Smelter Unit discharge Point) |
6.5 |
45 |
456 |
34.0 |
7.3 |
0.5 |
07. |
डेंगुर नाला (D/S of Alumina plant waste discharge Point) |
6.5 |
60 |
1010 |
11 |
11 |
2.0 |
08. |
डेंगुर नाला (Before meeting Hasdeo river) |
7.0 |
70 |
902 |
170 |
13.3 |
0.33 |
09. |
बेलगिरी नाला (In Parsabhata village, 50 m. away from red mud pond) |
7.2 |
18 |
80 |
4.9 |
ND |
0.3 |
10. |
बेलगिरी नाला (100m. U/s of oxidation pond effluent discharge point) |
7.6 |
18 |
196 |
12.4 |
9.7 |
0.6 |
11. |
बेलगिरी नाला (100m. D/s of oxidation pond effluent discharge point) |
9.0 |
6 |
518 |
32.24 |
5.3 |
1.3 |
12. |
बेलगिरी नाला (U/S of fabrication unit effluent discharge point) |
9.5 |
8 |
412 |
37.2 |
10.3 |
1.1 |
13. |
बेलगिरी नाला (D/S of fabrication unit effluent discharge point) |
7.9 |
16 |
260 |
24.8 |
3.6 |
1.2 |
14. |
बेलगिरी नाला (Before meeting Hasdeo river) |
7.5 |
17 |
220 |
32.24 |
6.5 |
1.0 |
तालिका : 7.6 भारत एल्युमिनियम कम्पनी लिमिटेड : जल गुणवत्ता |
|||||||
क्रम |
सर्वेक्षित क्षेत्र |
मानसून पश्चात |
|||||
PH |
Turbidity (NTU) |
T.S. |
COD |
BOD |
Fluoride |
||
Mg/L. |
|||||||
01 |
हसदो नदी (Right hand side of the road after crossing the bridge |
- |
- |
- |
- |
- |
- |
02 |
हसदो नदी (D/S of Belgiri Nallah) |
7.0 |
175 |
152 |
7 |
1.4 |
0.2 |
03 |
हसदो नदी (D/s of Dengur Nallah) |
6.9 |
300 |
116 |
11.2 |
4.4 |
0.3 |
04 |
डेंगुर नाला (Near Phutamura village) |
- |
- |
- |
- |
- |
- |
05 |
डेंगुर नाला (U/S of Smelter Unit discharge Point) |
7.3 |
400 |
1152 |
152 |
2.0 |
0.53 |
06 |
डेंगुर नाला (D/S of Smelter Unit discharge Point) |
7.4 |
650 |
584 |
34 |
2.0 |
0.86 |
07. |
डेंगुर नाला (D/S of Alumina plant waste discharge Point) |
7.4 |
500 |
686 |
85 |
2.0 |
0.74 |
08. |
डेंगुर नाला (Before meeting Hasdeo river) |
7.1 |
480 |
206 |
102 |
9.0 |
0.52 |
09. |
बेलगिरी नाला (In Parsabhata village, 50 m. away from red mud pond) |
7.2 |
14 |
56 |
15 |
0.2 |
0.2 |
10. |
बेलगिरी नाला (100m. U/s of oxidation pond effluent discharge point) |
6.8 |
300 |
368 |
15 |
2.0 |
0.1 |
11. |
बेलगिरी नाला (100m. D/s of oxidation pond effluent discharge point) |
7.3 |
250 |
502 |
18 |
3.9 |
0.3 |
12. |
बेलगिरी नाला (U/S of fabrication unit effluent discharge point) |
7.4 |
50 |
98 |
15 |
4.8 |
0.4 |
13. |
बेलगिरी नाला (D/S of fabrication unit effluent discharge point) |
7.4 |
16 |
104 |
14 |
4.4 |
0.3 |
14. |
बेलगिरी नाला (Before meeting Hasdeo river) |
7.8 |
54 |
192 |
14 |
5.6 |
0.1 |
स्रोत : Comprehensive Environmental Impact Assessment of Aluminium complex, Korba, sponser Bharat Aluminium Company, New Delhi. National Environmental Engineering Research Institute, Nagpur, 1994 |
जल में कुल ठोस पदार्थ (Total Solids T.S.) की उपस्थिति सर्वाधिक मानसून पश्चात 1152 मिग्रा/लीटर डेंगुर नाले (U/S of Smelter unit discharge point) में रही जबकि शीत ऋतु में यह मात्रा 1030 मिग्रा/लीटर रही। ग्रीष्म ऋतु में डेंगुर नाले (D/S of Alumina waste discharge unit) में यह मात्रा 1010 मिग्रा/लीटर रही।
जल की गुणवत्ता का मापन उसमें घुली ऑक्सीजन की मात्रा के आधार पर किया जाता है जिसे जैव रासायनिक ऑक्सीजन की माँग (Biological Oxygen Demand BOD) कहा जाता है। जल में BOD की मात्रा शीत ऋतु में सभी सर्वेक्षित क्षेत्रों में निर्धारित सीमा में रही। ग्रीष्म ऋतु में BOD की अधिकतम मात्रा 13.3 मिग्रा/लीटर डेंगुर नाले (Before meeting Hasdeo river), बेलगिरी नाले (U/S of fabrication unit effluent discharge) में 10.3 मिग्रा/लीटर रही। मानसून पश्चात डेंगुर नाले में (Before meeting Hasdeo river) BOD का मान 9.0 मिग्रा/लीटर रहा। इस प्रकार इन सभी क्षेत्रों में जल में BOD का मान निर्धारित मानक से अधिक रहा।
फ्लोराइड का मान शीत ऋतु में 2.9 मिग्रा/लीटर हसदो नदी (D/S of Belgiri Nallah) में तथा ग्रीष्म ऋतु में 2.0 मिग्रा/लीटर डेंगुर नाले (D/S of Alumina Plant waste discharge point) में आँका गया जो निर्धारित 2 मिग्रा/लीटर मानक सीमा से अधिक है। अन्य सभी स्थानों में यह मान निर्धारित सीमा में पाया गया।
भूमिगत जल की गुणवत्ता :
भूमिगत जल के अन्तर्गत बोरवेल के जल का pH मान शीत ऋतु में 5.2 से 8.9, ग्रीष्म ऋतु में 6.0 से 8.5 तथा मानसून पश्चात 5.4 से 7.9 पाया गया। बोरवेल के जल में pH का निम्न मान 6.5 सामान्य माना जाता है। pH का यह निम्न मान उच्च लौह सान्द्रण से सम्बन्धित है। जल में फ्लोराइड का सान्द्रण शीत ऋतु में 0.1 से 2.6 मिग्रा/लीटर पाया गया। आगरखार ग्राम के हैंडपम्प जल के नमूने में फ्लोराइड का सान्द्रण 2.6 मिग्रा/लीटर निर्धारित सीमा (2 मिग्रा/लीटर) से अधिक पाया गया। ग्रीष्म ऋतु में फ्लोराइड की सान्द्रण की मात्रा 0.1 से 1 मिग्रा/लीटर के बीच पाई गई।
EPCO द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार बाल्को एल्युमिनियम इकाई से निस्सारित उपचारित जल क्षारीय तथा रंगीन पाया गया। इसी तरह बी.ओ.डी. निलम्बित ठोस कण तथा सी.ओ.डी. की मात्रा भी निर्धारित सीमा से अधिक पायी गई। डेंगुर नाले के जल परीक्षण में अधिक पी.एच. मान, गहरा रंग तथा ठोस निलम्बित कणों की उपस्थिति अधिक रही। (तृतीय पर्यावरणीय वस्तुस्थिति प्रतिवेदन, 1994, 553)।
ठोस अपशिष्ट :-
बाल्को संयंत्र में 900-1000 टन ठोस अपशिष्ट की मात्रा प्रतिदिन उत्पन्न होती है, जिनमें प्रमुख ठोस अपशिष्ट रेडमड 800-850 टन प्रतिदिन, लाइम स्लम 18-20 टन प्रतिदिन, फ्लाई ऐश 50 से 60 टन प्रतिदिन, स्पेंट कैथोड 7-10 टन प्रतिदिन, वेनेडियम स्लज 6-10 टन प्रतिदिन तथा ब्लैक मड की मात्रा 2-5 टन प्रतिदिन की है।
बाक्साइट से कास्टिक की प्रक्रिया में आयरन ऑक्साइड अथवा रेडमड एक खतरनाक ठोस अपशिष्ट के रूप में प्राप्त होता है। इस ठोस अपशिष्ट की स्लरी (Slurry) बनाकर पाइपों द्वारा संयंत्र से लगभग 5-6 किमी दूर विशेष प्रकार के पॉलीथीन एवं कंक्रीट की परत से बने लीक प्रूफ विशाल पोखरों में एकत्र किया जाता है।
एल्युमिना संयंत्र से उत्पादित व्यर्थ पदार्थ रेडमड अथवा लालपंक में एल्युमिनियम, लोहा, टाइटेनियम डाइऑक्साइड, सिलिका, फेरिक एसिड, वेनेडियम तथा कैल्शियम ऑक्साइड आदि पदार्थ रहते हैं। इस रेडमड के भण्डारण से भूमिगत जल-स्रोतों के प्रदूषण की सम्भावना बनी रहती है। साथ ही साथ भूमि का बहुत बड़ा भाग क्षारीय होने के कारण वनस्पति विहीन दिखाई देता है। चूँकि इस लालपंक की मात्रा बहुत अधिक (800-850 टन प्रतिदिन) होती है अतः इसके भण्डारण के लिये भूमि की माँग बढ़ती जा रही है। भू-अवनयन एवं भूमि उपयोग की प्रमुख समस्या इन ठोस अपशिष्ट के भण्डारण के कारण उत्पन्न होती है।
प्रद्रावक संयंत्र से उत्पन्न ब्लैक मड तथा स्पेंट कैथोड लाइनिंग भी एक खतरनाक ठोस अपशिष्टों की श्रेणी में आती है। संयंत्र द्वारा ब्लैक मड का निष्कासन स्लरी बनाकर ब्लैकमड पॉन्ड में किया जाता है। स्पेंट कैथोड का भण्डारण संयंत्र परिसर में ही किया जाता है। वेनेडियम स्लज तथा उड़न राख का विक्रय अन्य संयंत्रों को किया जाता है। उपर्युक्त ठोस अपशिष्टों के अतिरिक्त फ्लोरीन अथवा फ्लोराइड के उत्सर्जन का एक प्रमुख प्राथमिक स्रोत एल्युमिनियम प्रगलन है। गैसीय अथवा पानी में घुली फ्लोरीन का सेवन मनुष्य में फ्लोरोसिस रोग का कारण बन सकता है। सेलों में कार्य करने वाले श्रमिकों में श्वसन नली का रोग सम्भवतः सर्वाधिक है। श्वसन नली में यह दशा फ्लोराइड उत्सर्जन की अम्लता के कारण निर्मित होती है। जबकि श्वसन तंत्र के अन्य भाग भी इसके प्रभाव से ग्रस्त हो सकते है।
कोरबा क्षेत्र में फ्लोराइड का प्रमुख स्रोत बाल्को संयंत्र ही है। संयंत्र से फ्लोराइड गैसीय तथा ठोस दोनों ही रूपों में उत्सर्जित होती है। सर्वेक्षण में अध्ययन के दौरान हाइड्रोजन फ्लोराइड का प्रभाव संयंत्र परिसर में स्थित वृक्षों पर देखा गया।
ताप विद्युत संयंत्र द्वारा पर्यावरण प्रदूषण :-
तीव्र गति से औद्योगिक विकास हेतु ऊर्जा की आवश्यकता सर्वोपरि है। प्रदेश में ऊर्जा उत्पादन हेतु कोयला प्रमुख स्रोत है। ताप विद्युत संयंत्रों से निकलने वाली उड़न राख (Fly Ash) एक प्रमुख अपशिष्ट है। कोरबा क्षेत्र में प्रतिदिन 12825 से 26000 टन राख उत्पन्न होती है, जो एक गम्भीर पर्यावरणीय समस्या है। हजारों टन राख को संयंत्र परिसर से कहीं और ले जाना एक प्रमुख समस्या है, जिसका यहाँ के भूमि उपयोग प्रबन्धन तथा बसाहट पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। (तृतीय पर्यावरणीय वस्तु स्थिति प्रतिवेदन, 1996, 556)।
उड़न राख के कणों का आकार 24.70 माइक्रोमीटर होता है। हल्की होने के कारण यह हवा के साथ आस-पास के क्षेत्रों में उड़कर वायु तथा जल को प्रदूषित कर सकती है। कोरबा क्षेत्र में उड़न राख द्वारा उत्पन्न पर्यावरणीय समस्या निम्नानुसार है -
01. वायु प्रदूषण :- ताप विद्युत केन्द्रों द्वारा उत्पन्न कार्बन, नाइट्रोजन व सल्फर के ऑक्साइड एवं धूलकण वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। अधिकांश ताप विद्युत केन्द्रों द्वारा उड़न राख का अवक्षेपन गाढ़े घोल (Slurry) के रूप में किया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में उड़न राख के निक्षेपणन क्षेत्र की सतह सूख जाने के कारण उड़न राख द्वारा उत्पन्न वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव कोरबा क्षेत्र में पाया गया है। हवा में उड़न राख की उपस्थिति से श्वास सम्बन्धी रोगों के बढ़ने की भी सम्भावना है। इसके अतिरिक्त उड़न राख के परिवहन की समुचित व्यवस्था जैसे सड़कों का उचित रख-रखाव ना होना तथा खुली ट्रकों में उड़न राख के परिवहन से उत्पन्न वायु प्रदूषण अध्ययन क्षेत्र में देखा गया तथा इस प्रदूषण से यहाँ के निवासियों में श्वसन सम्बन्धी बीमारियाँ तथा आँखों में जलन की शिकायत पायी गई।
02. जल प्रदूषण :- ताप विद्युत केन्द्रों द्वारा उड़न राख को स्लरी के रूप में एेश पॉन्ड या एेश डाइक में जमा किया जाता है। इस पॉन्ड के ऊपर से जल बहने के कारण जल प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है। वर्षा तथा पानी के छिड़काव से उड़न राख में उपस्थित भारी धातुओं की सान्द्रता सतही एवं भूमिगत जल में बढ़ सकती है। राख में कैल्शियम, सोडियम तथा कार्बोनेट की उपस्थिति जल में लवण की सान्द्रता बढ़ा सकती है।
कोरबा ताप विद्युत संयंत्र (म.प्र.वि.म.) पूर्व द्वारा उत्पन्न वायु प्रदूषण :- इस संयंत्र की प्रथम चार इकाइयों द्वारा निकलने वाले धूल कण का स्तर 10007 से 27500 मिग्रा/घनमीटर के बीच पाया गया जो कि अधिकतम मान्य सीमाओं से बहुत अधिक है। विद्युत गृह क्रमांक 2 से निकलने वाले धूल-कण का स्तर भी 815 से 60484 मिग्रा/घनमीटर के बीच पाया गया। ये सभी आँकड़े निर्धारित मानकों से अधिक पाए गए। इस विद्युत गृह के आस-पास की वायु में निलम्बित धूल-कण की मात्रा 82 से 870 माइक्रोग्राम/घनमीटर तक थी जो मानक मात्रा से एक महत्त्वपूर्ण समय तक अधिक रहने की ओर इंगित करती है।
हसदेव ताप विद्युत गृह के आस-पास की वायु में निलम्बित धूल-कण की मात्रा 75 से 396 माइक्रोग्राम/घनमीटर के बीच पाया गया। बाल्को के अधीन विद्युत केन्द्र की इकाइयों से ठोस कण का उत्सर्जन 290 से 409 माइक्रोग्राम/घनमीटर के बीच पाया गया। परिवेशीय वायु के परीक्षण से ज्ञात होता है कि निलम्बित धूल कणों की सान्द्रता 230 एवं 250 माइक्रोग्राम/घनमीटर के मध्य एवं सल्फर डाइऑक्साइड की सान्द्रता 55 और 98 माइक्रोग्राम/घनमीटर के मध्य रही। कोरबा सुपर थर्मल पावर स्टेशन की इकाइयों की तीन चिमनियों से धूल-कण का उत्सर्जन 108 से 741 माइक्रोग्राम/घनमीटर पाया गया। परिवेशीय वायु में निलम्बित धूल-कणों की सान्द्रता 172 और 384 माइक्रोग्राम/घनमीटर तथा सल्फर डाइऑक्साइड की सान्द्रता 18 और 70 माइक्रोग्राम/घनमीटर के बीच तथा पूर्वी दिशा में अधिकतम पायी गई। (तृतीय पर्यावरणीय वस्तुस्थिति प्रतिवेदन, 1991, 491-492)।कोरबा सुपर ताप विद्युत संयंत्र परिसर के 8 किमी के क्षेत्र में वायु गुणवत्ता निम्नानुसार है -
तालिका : 7.7 कोरबा सुपर थर्मल पावर स्टेशन : संयंत्र से 8 किमी के क्षेत्र में व्यापक वायु गुणवत्ता |
|||||
क्रम |
सर्वेक्षित क्षेत्र |
गैसीय प्रदूषक तत्त्व |
|||
SPM |
RPM |
SO2 |
NOX |
||
01. |
प्रगति नगर |
अधिकतम - 308.60 |
138.50 |
21.50 |
19.50 |
न्यूनतम - 184.20 |
105.20 |
12.10 |
10.70 |
||
औसत - 223.26 |
122.28 |
16.56 |
15.09 |
||
02. |
जमनीपाली |
अधिकतम - 277.90 |
127.80 |
18.40 |
18.40 |
न्यूनतम - 205.60 |
98.50 |
11.80 |
10.90 |
||
औसत - 212.47 |
113.49 |
14.82 |
14.16 |
||
03. |
एम.जी.आर. |
अधिकतम - 322.80 |
135.70 |
19.80 |
18.30 |
न्यूनतम - 142.30 |
113.10 |
11.90 |
11.70 |
||
औसत - 233.78 |
126.07 |
15.93 |
15.22 |
||
स्रोत : कार्यालय, पर्यावरण विभाग, एन.टी.पी.सी. |
तालिका द्वारा स्पष्ट है कि निलम्बित ठोस कणों की मात्रा एम.जी.आर. (Marry go Round) क्षेत्र जो कि संयंत्र से 2.5 किमी की दूरी पर है; में निलम्बित धूल कणों की सान्द्रता 322.80 से 142.30 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही। इसी प्रकार प्रगति नगर जो संयंत्र से 4 किमी की दूरी पर है, यहाँ निलम्बित धूल कणों की सान्द्रता अधिकतम 308.60 माइक्रोग्राम/घनमीटर पाई गई एवं 5 किमी की दूरी पर स्थित जमनीपाली में धूल-कणों की सान्द्रता की अधिकतम सीमा 277.90 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही।
आर.पी.एम. की अधिकतम सान्द्रता 138.50 माइक्रोग्राम/घनमीटर प्रगति नगर में तथा एम.जी.आर. क्षेत्र में 135.70 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही, जबकि जमनीपाली में यह सान्द्रता 127.80 से 113.49 माइक्रोग्राम/घनमीटर के बीच पायी गई।
सल्फर डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा प्रगति नगर में क्रमशः 21.50 तथा 19.50 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही।
कोरबा क्षेत्र में भूमि उपयोग की समस्या :-
कोरबा में स्थित एल्युमिनियम संयंत्र, ताप विद्युत संयंत्र तथा कोयला खदान क्षेत्रों में भूमि उपयोग एवं भू-अवनयन की समस्या एक प्रमुख समस्या है। एल्युमिनियम संयंत्र द्वारा उत्पादित ठोस अपशिष्ट रेडमड तथा ब्लैकमड एवं ताप विद्युत संयंत्र द्वारा उत्पादित उड़न राख का निपटान इन इकाइयों की एक प्रमुख समस्या है।
ताप विद्युत केन्द्रों से भारी मात्रा में प्राप्त उड़न राख के निपटान हेतु अधिक भूमि की आवश्यकता होती है, जिसमें कृषि योग्य भूमि भी उसमें सम्मिलित होती जा रही है। भूमि उपयोग से सम्बन्धित यह एक प्रमुख समस्या है। उड़न राख का उचित निपटान ना होने के कारण यह हवा के साथ उड़कर समीपस्थ क्षेत्रों में अनेक प्रकार की समस्या उत्पन्न कर सकती है। उपर्युक्त संयंत्रों द्वारा उत्पादित ठोस अपशिष्ट की मात्रा तथा उनके अपक्षेपित स्थान का विवरण निम्नानुसार है -
तालिका : 7.8 कोरबा स्थित ताप विद्युत एवं एल्युमिनियम संयंत्र द्वारा उत्पन्न ठोस अपशिष्ट |
||||
क्रम |
इकाइयाँ |
ठोस अपशिष्ट का प्रकार |
उत्सर्जित मात्रा टन/प्रतिदिन |
क्षेत्र (हेक्टेयर में) |
01. |
कोरबा सुपरथर्मल संयंत्र |
उड़न राख |
1127 |
390 |
02. |
बाल्को केप्टिव पावर प्लांट |
उड़न राख |
1917 |
446 |
03. |
एम.पी.ई.बी. (पूर्व) |
उड़न राख |
1424 |
63 |
04. |
एम.पी.ई.बी. (पश्चिम) |
उड़न राख |
4100 |
120 |
05. |
बाल्को संयंत्र |
उड़न राख |
60 |
- |
रेडमड ब्लैकमड |
1000 |
245 |
||
स्पेंट कैथोड |
||||
लाइम स्लज |
||||
वेनेडियमस्लज |
स्पष्ट है कि कोरबा क्षेत्र में प्रतिदिन 19776 टन औद्योगिक ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होते हैं, जिनमें उड़न राख की मात्रा 18776 टन प्रतिदिन है। इन ठोस अपशिष्टों के अवक्षेपन क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 1019 हेक्टेयर है, जिसके भविष्य में और अधिक बढ़ने की सम्भावना है। इस प्रकार भूमि उपयोग की समस्या इन इकाइयों के लिये एक प्रमुख समस्या है।
ताप विद्युत केन्द्रों की प्रबन्धन समितियाँ इस दिशा में प्रयासरत हैं कि इस उड़न राख का उपयोग एवं निपटान हो तथा यह पर्यावरण को कम-से-कम प्रदूषित करे। इस उड़न राख के ढेर पर घास, विविध पेड़-पौधे उगाए जा रहे हैं तथा विविध संस्थाओं द्वारा इस दिशा में शोध कार्य जारी है।
संयंत्र प्रबन्धकों द्वारा अतिरिक्त भूमि के लिये आस-पास के किसानों की भूमि अधिग्रहण की जाती है तथा इस भूमि की क्षतिपूर्ति किसानों को नकद भुगतान या उनके आश्रितों को नौकरी देकर की जाती है। इन गाँवों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार हेतु ताप विद्युत संयंत्रों द्वारा कल्याणकारी योजनाएँ चलाई जा रही हैं।
उड़न राख का उपयोग मुख्य रूप से सड़क निर्माण, ईंट बनाने, सीमेंट कारखाना हेतु, खाली स्थानों अथवा गड्ढों को भरने के लिये किया जा सकता है। साथ ही यह कृषि के क्षेत्र में अम्लीय तथा क्षारीय दोनों ही प्रकृति की होने के कारण अम्लीय तथा क्षारीय मृदा को उपजाऊ बनाने में सहायक हो सकती है। कृषि के क्षेत्र में उड़न राख का उपयोग राख एवं मिट्टी के भौतिक, रासायनिक एवं सूक्ष्म पौष्टिक तत्वों के गुणों पर निर्भर करता है। उपर्युक्त औद्योगिक इकाइयों द्वारा किये जाने वाले उड़न राख के उपयोग निम्नांकित हैं :-
तालिका : 7.9 ताप विद्युत एवं एल्युमिनियम संयंत्र द्वारा उड़न राख का उपयोग |
|||
क्रमांक |
इकाइयाँ |
उड़न राख का उपयोग |
टन/प्रतिदिन |
01. |
कोरबा सुपर थर्मल पावर संयंत्र |
ईंट |
16 |
सीमेंट संयंत्र |
117 |
||
एश डम्प के निर्माण में |
1213 |
||
कुल योग |
1346 |
||
02 |
बाल्को केप्टिव पावर प्लांट |
सीमेंट संयंत्र हेतु |
700 |
03 |
एम.पी.ई.बी.पूर्व |
सीमेंट संयंत्र हेतु |
300 |
04. |
एम.पी.ई.बी. (पश्चिम) |
- |
- |
05 |
बाल्को संयंत्र |
सीमेंट संयंत्र हेतु |
40 |
सीमेंट संयंत्र द्वारा पर्यावरण प्रदूषण :-
सीमेंट संयंत्र से निकलने वाले धूल-कण वायु-प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। सीमेंट इकाइयों से उत्सर्जित धूल-कण प्रमुख रूप से रॉ मिल, भट्टी तथा क्लिंकर कूलर इत्यादि से निष्कासित होते हैं। इस प्रकार सीमेंट संयंत्र से निकलने वाली धूल एक प्रकार का विषमांग मिश्रण है, जिसमें कच्चे माल एवं क्लिंकर प्रक्रियाओं से निकलने वाले प्रदूषकों की प्रधानता रहती है।
म.प्र.प्रनि.मं. तथा इनवायरोटेक द्वारा निरूपित अच्छे स्तर के नियंत्रण उपकरण के साथ परिचालित सीमेंट के समीप निलम्बित धूल कण की मात्रा निम्नानुसार है :-
01. |
इकाई के चारों ओर 1 किमी अर्द्धव्यास में |
500-1500 माइक्रोग्राम/घनमीटर |
02. |
इकाई के चारों ओर 3 किमी अर्द्धव्यास में |
300-500 माइक्रोग्राम/घनमीटर |
03. |
इकाई के चारों ओर 3 किमी अर्द्धव्यास में एवं वायु प्रवाह की दिशा में 10 किमी तक |
200-300 माइक्रोग्राम/घनमीटर |
तृतीय पर्यावरणीय वस्तुस्थिति प्रतिवेदन 1991 के अनुसार सीमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया अकलतरा में निलम्बित धूल कण का स्तर शीत ऋतु में 176-1311 माइक्रोग्राम/घनमीटर, ग्रीष्म ऋतु में 337-696 माइक्रोग्राम/घनमीटर पाया गया। उपर्युक्त अनुमापित निलम्बित धूल-कण का स्तर यह सिद्ध करता है कि इस इकाई से उत्सर्जित धूल-कण की मात्रा निर्धारित मानकों से कहीं अधिक है, जिससे सिद्ध होता है कि इकाई में स्थापित प्रदूषक नियंत्रक उपकरणों का संचालन सही नहीं है। (तृतीय पर्यावरणीय वस्तु स्थिति प्रतिवेदन, 1996, 488)।
ग्रासिम सीमेंट संयंत्र क्षेत्र में वायु गुणवत्ता :-
रायपुर जिले में स्थापित ग्रासिम सीमेंट संयंत्र की वायु गुणवत्ता आँकड़े निम्नांकित हैं :
तालिका : 7.10 ग्रासिम सीमेंट संयंत्र : व्यापक वायु गुणवत्ता |
||||||
क्रम |
क्षेत्र |
संयंत्र से क्षेत्र की दूरी एवं दिशा |
गैसीय प्रदूषकों की मात्रा |
|||
न्यूनतम |
अधिकतम |
औसत |
||||
01. |
ग्राम सुहेला |
6.0 किमी, उत्तर |
SPM |
105.6 |
228.7 |
168.7 |
Nox |
6.4 |
28.7 |
12.5 |
|||
So2 |
6.0 |
18.4 |
10.9 |
|||
02. |
ग्राम गुमा |
7.0 किमी, |
SPM |
98.7 |
280.3 |
181.5 |
पूर्व |
Nox |
3.8 |
25.9 |
11.7 |
||
उत्तर-पूर्व |
So2 |
6.0 |
9.7 |
8.3 |
||
03. |
ग्राम तुलसी |
8.0 किमी, |
SPM |
81.7 |
250.6 |
16.7 |
पश्चिम दक्षिण |
Nox |
3.0 |
23.2 |
15.6 |
||
पश्चिम |
So2 |
6.0 |
10.5 |
8.9 |
||
04. |
ग्राम फुंडराडीह |
5.0 किमी, |
SPM |
85.7 |
268.7 |
163.6 |
दक्षिण पूर्व |
Nox |
3.0 |
19.7 |
14.3 |
||
दक्षिण |
So2 |
6.0 |
11.5 |
9.2 |
||
स्रोत : Environmental Impact Assessment Report on Captive Limestone Mine of Grasim Cement, Village Rawan, District Raipur, 1995, कार्यालय, म.प्र.प्र.नि.मं., भोपाल |
तालिका द्वारा स्पष्ट है कि विभिन्न सर्वेक्षित क्षेत्र में धूल-कणों की सान्द्रता 81.7 से 280.3 माइक्रोग्राम/घनमीटर के बीच रही। तुलनात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट है कि ग्राम गुमा, जो कि संयंत्र से 7 किमी पूर्व उत्तर पूर्व में स्थित है में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा धूल-कणों की सान्द्रता अधिक (अधिकतम मात्रा 280.3 माइक्रोग्राम/घनमीटर) रही। इस अधिकतम मात्रा का एक प्रमुख कारण वायु के बहाव की दिशा भी है। वायु के बहाव की दिशा सामान्यतः दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर होती है। अतः ग्राम गुमा जो संयंत्र से पूर्व उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है, यहाँ धूल कणों की सान्द्रता अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक रही। ग्राम सुहेला जो संयंत्र से 6 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है, यहाँ धूल कणों की सान्द्रता 105.6 से 228.7 माइक्रोग्राम/घनमीटर के बीच रही। दक्षिण-दक्षिण पूर्व की दिशा में 5 किमी की दूरी पर स्थित ग्राम फुंडराडीह में धूल कणों की सान्द्रता 85.7 से 268.7 माइक्रोग्राम/घनमीटर के बीच रही। धूल कणों की सान्द्रता की औसत मात्रा के दृष्टिकोण से ग्राम गुमा में धूल-कण की औसत सान्द्रता अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक 181.5 माइक्रोग्राम/घनमीटर तथा ग्राम फुंडराडीह में 163.6 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही। सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा सभी सर्वेक्षित क्षेत्र में निर्धारित मानक सीमा में रही।
मन्दिर हसौद में स्थापित स्पंज आयरन संयंत्र मोनेट इस्पात लिमिटेड : व्यापक वायु गुणवत्ता
मोनेट इस्पात संयंत्र जो एक स्पंज आयरन संयंत्र है, रायपुर से 17 किमी की दूरी पर दक्षिण में ग्राम कुरुद मन्दिर हसौद में स्थित है। इस संयंत्र से उत्पन्न प्रमुख गैसीय प्रदूषक निलम्बित धूल-कण तथा सल्फर डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड है।
मन्दिर हसौद ग्राम, जो कि संयंत्र से 2 किमी की दूरी पर दक्षिण दिशा में स्थित है, में ग्रीष्म ऋतु में वायु में निलम्बित धूल-कण की मात्रा 398 माइक्रोग्राम/घनमीटर पाई गई। इस अधिकतम मात्रा का एक प्रमुख कारण वाहनों तथा घरेलू गतिविधियों द्वारा धूल-कण का उत्सर्जन भी है। संयंत्र से 2.25 किमी उत्तर-उत्तर पूर्व दिशा में स्थित ग्राम चंदखुरी में धूल-कणों की सान्द्रता 245 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही। नरधा ग्राम में धूल-कणों की सान्द्रता 199 माइक्रोग्राम/घनमीटर ग्रीष्म ऋतु में रही। यह ग्राम संयंत्र से 5 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। मुंगेसर ग्राम में ग्रीष्म ऋतु में धूल-कणों की सान्द्रता 135 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही जो कि निर्धारित मानक स्तर से काफी कम है। यह ग्राम संयंत्र से 6.75 किमी की दूरी पर उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है। ग्राम गोधी की संयंत्र से दूरी 7.25 किमी है तथा यह ग्राम संयंत्र से पूर्व उत्तर पूर्व दिशा में स्थित है। गोधी ग्राम में ग्रीष्म ऋतु में वायु में धूल-कणों की सान्द्रता 199 माइक्रोग्राम/घनमीटर पाई गई। कुरुद ग्राम जो पूर्व दक्षिण पूर्व दिशा में संयंत्र से 8.75 किमी की दूरी पर है, यहाँ ग्रीष्म ऋतु में वायु में धूल-कणों की सान्द्रता 198 माइक्रोग्राम/घनमीटर पाई गई। नवागाँव पर सती ग्राम दक्षिण दक्षिण पूर्व में संयंत्र से 10 किमी की दूरी पर स्थित है जहाँ ग्रीष्म ऋतु में वायु में धूल-कणों की सान्द्रता 123 माइक्रोग्राम/घनमीटर रही। मन्दिर हसौद चौक की दूरी संयंत्र से 1.6 किमी है तथा यह क्षेत्र संयंत्र से दक्षिण दिशा में है। इस क्षेत्र में वायु में धूल-कणों की सान्द्रता 1045 माइक्रोग्राम/घनमीटर ग्रीष्म ऋतु में तथा मानसून के महीने में 441 माइक्रोग्राम/घनमीटर पाई गई। यह मात्रा निर्धारित मानक सीमा से काफी अधिक है। इस क्षेत्र में धूल-कणों की उच्च सान्द्रता का एक प्रमुख कारण वाहनों द्वारा वायु प्रदूषण भी है।
सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा सभी क्षेत्रों में निर्धारित मानक सीमा में पाई गई। इस प्रकार स्पष्ट है कि उपर्युक्त सभी क्षेत्रों की अपेक्षा मन्दिर हसौद चौक जो कि राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 पर स्थित है, यहाँ वायु में धूल-कणों की सान्द्रता सबसे अधिक रही। इसके अतिरिक्त मन्दिर हसौद ग्राम में धूल-कणों की सान्द्रता की मात्रा अन्य ग्रामों की अपेक्षा अधिक पाई गई।
जल की गुणवत्ता :-
प्रस्तुत तालिका में मन्दिर हसौद क्षेत्र में स्थापित बोरवेल तथा तालाब के जल में विभिन्न ऋतुओं में प्रदूषक तत्वों की मात्रा को प्रदर्शित किया गया है जो निम्नांकित है :-
तालिका : 7.11 मोनेट इस्पात संयंत्र : मन्दिर हसौद ग्राम में स्थित बोरवेल की जल गुणवत्ता |
|||||
क्रम |
तत्व |
ग्रीष्म ऋतु |
मानसून |
मानसून पश्चात |
शीत ऋतु |
01. |
pH |
8.2 |
7.7 |
7.9 |
8.15 |
02. |
Calcium Hardness |
94 |
85 |
88 |
92 |
03. |
Total Alkalnity |
208 |
180 |
189 |
196 |
04. |
Sulphate |
45 |
25 |
29 |
32 |
05. |
Magnesium Hardness |
324 |
295 |
303 |
310 |
06. |
Chloride |
50 |
37 |
40 |
44 |
07. |
Iron |
1.90 |
1.50 |
1.57 |
1.62 |
तालिका : 7.12 मोनेट इस्पात संयंत्र : मन्दिर हसौद ग्राम में स्थित तालाब की जल गुणवत्ता |
|||||
क्रम |
तत्व |
ग्रीष्म ऋतु |
मानसून |
मानसून पश्चात |
शीत ऋतु |
01. |
pH |
7.95 |
7.5 |
7.6 |
7.8 |
02. |
Calcium Hardness |
191 |
127 |
140 |
159 |
03. |
Total Alkalnity |
282 |
260 |
280 |
293 |
04. |
Sulphate |
70 |
44 |
50 |
58 |
05. |
Magnesium Hardness |
266 |
172 |
193 |
216 |
06. |
Chloride |
70 |
55 |
60 |
66 |
07. |
Iron |
0.62 |
0.25 |
0.30 |
0.38 |
08. |
Turbidity |
30 |
60 |
51 |
39 |
स्रोत : Environmental Impact Assessment Report For Sponge Iron Plant at Kurud, Mandir Hasud, Raipur For Monet Ispat Unit., कार्यालय, म.प्र.प्र.नि.मं., भोपाल। |
तालिका द्वारा स्पष्ट है कि मन्दिर हसौद क्षेत्र में स्थापित बोरवेल के जल का pH मान 7.7 से 8.2 तक पाया गया। जिसमें ग्रीष्म ऋतु में pH का मान अन्य ऋतुओं की अपेक्षा अधिक (8.2) रहा। कैल्शियम की कठोरता जल में निर्धारित मानक सीमा (75 मिलीग्राम/लीटर) से अधिक पाई गई। ग्रीष्म ऋतु में यह मात्रा 94 मिलीग्राम/लीटर तथा शीत ऋतु में 92 मिलीग्राम/लीटर रही। जल में क्षारीयता का मान निर्धारित मानक सीमा (200 मिलीग्राम/लीटर) से अधिक ग्रीष्म ऋतु में 208 मिलीग्राम/लीटर रहा। अन्य ऋतुओं में यह मान निर्धारित सीमा में पाया गया। सल्फेट की मात्रा सभी ऋतुओं में निर्धारित सीमा में पाई गई। मैग्नीशियम कठोरता का मान जल में सभी ऋतुओं में निर्धारित मानक सीमा (30 मिलीग्राम/लीटर) से अधिक पाया गया। ग्रीष्म ऋतु में यह मान 324 तथा शीत ऋतु में 310 मिलीग्राम/लीटर पाया गया। क्लोराइड की मात्रा सभी ऋतुओं में निर्धारित मानक सीमा (250 मिलीग्राम/लीटर) में पाई गई। ग्रीष्म ऋतु में यह मान अधिक 50 तथा मानसून में 37 मिलीग्राम/लीटर रहा। लोहे की मात्रा जल में 1.90 मिलीग्राम/लीटर ग्रीष्म ऋतु में पाई गई जो निर्धारित मात्रा 0.3 मिलीग्राम/लीटर से अधिक है। मानसून में यह मात्रा 1.50 तथा शीत ऋतु में 1.62 मिलीग्राम/लीटर रही।
तालिका 7.13 में मन्दिर हसौद क्षेत्र में स्थित तालाब के जल की गुणवत्ता से सम्बन्धित विभिन्न तत्वों की मात्रा को प्रदर्शित किया गया है। स्पष्ट है कि तालाब के जल का pH मान ग्रीष्म ऋतु में 7.95 रहा, जो अन्य ऋतुओं की अपेक्षा अधिक है। जल में कैल्शियम की कठोरता सर्वाधिक 191 मिलीग्राम/लीटर ग्रीष्म में तथा मानसून में 127 मिलीग्राम/लीटर रही जो निर्धारित मानक सीमा से कहीं अधिक है। जल में क्षारीयता का मान सभी ऋतुओं में निर्धारित मानक सीमा से अधिक रहा। शीत ऋतु में यह मान 293 मिलीग्राम/लीटर तथा मानसून में 260 मिलीग्राम/लीटर पाया गया। मैग्नीशियम कठोरता का मान निर्धारित सीमा से काफी अधिक रहा। मानसून में यह मान 172 मिलीग्राम/लीटर तथा ग्रीष्म ऋतु में 266 मिलीग्राम/लीटर रहा। क्लोराइड की मात्रा सभी ऋतुओं में निर्धारित सीमा में रही। ग्रीष्म ऋतु में क्लोराइड की मात्रा 70 तथा मानसून में 55 मिलीग्राम/लीटर रही। लोहे की मात्रा तालाब के जल में निर्धारित मानक सीमा (0.1 मिलीग्राम/लीटर) से अधिक ग्रीष्म ऋतु में 0.62 तथा शीत ऋतु में 0.38 मिलीग्राम/लीटर रही। जल की अवरुद्धता (Turbidity) का मान मानसून में सबसे अधिक 60 तथा ग्रीष्म ऋतु में 30 NTU रहा। स्पष्ट है कि बोरवेल तथा तालाब के जल में रासायनिक तत्वों की अधिकता पाई गई।
रायपुर जिले के औद्योगिक क्षेत्र भनपुरी में जल प्रदूषण की स्थिति :-
रायपुर जिले का औद्योगिक क्षेत्र भनपुरी, जो धरसींवा विकासखण्ड के अन्तर्गत सम्मिलित है, की औद्योगिक इकाइयों द्वारा निस्सारित दूषित जल के परिणाम स्वरूप नलकूप का जल प्रदूषित हो गया है तथा इस जल में अत्यधिक मात्रा में रासायनिक तत्व पाये गए हैं। भनपुरी के जल प्रदूषण से ग्रस्त क्षेत्र मुख्यतः गीतानगर, कविलास नगर, सुभाष नगर एवं धनलक्ष्मी नगर है, जहाँ नलकूप का पानी पीने योग्य नहीं है। नलकूपों में यह प्रदूषण औद्योगिक इकाइयों द्वारा छोड़ा जा रहा अनुपचारित (Untreated waste water) जल के कारण सम्भव है।
तालिका : 7.13 भनपुरी क्षेत्र में स्थित नलकूप एवं तालाब की जल गुणवत्ता, वर्ष 2001 |
|||||
क्रम |
तत्व |
मानक सीमा |
नलकूप क्र. 1 |
नलकूप क्र. 2 |
छुटवातालाब |
01. |
pH |
7.0-8.6 |
7.2 |
7.2 |
7.6 |
02. |
Turbidity |
1 NTU |
3.0 |
2.5 |
3.0 |
03. |
Total Alkalinity |
200 mg/1 |
328 |
320 |
292 |
04. |
Total Solid |
500 mg/1 |
328 |
320 |
292 |
05. |
AsCaCo3 |
200 mg/1 |
700 |
2240 |
420 |
06. |
Calcium Hardness |
75 mg/1 |
708 |
868 |
260 |
07. |
Magnesium Hardness |
<30 mg/1 |
052 |
1372 |
160 |
08. |
Iron |
0.1 mg/1 |
NIL |
NIL |
NIL |
09. |
Manganese |
0.05 mg/1 |
NIL |
NIL |
NIL |
10. |
Chloride |
200 mg/1 |
780 |
2736 |
240 |
11. |
Sulphate |
200 mg/1 |
240 |
240 |
259 |
12. |
Nitrate |
45 mg/1 |
50 |
50 |
50 |
13. |
Coliform (MNP) |
0 excellent |
|||
0 to 3 Satisfactory |
|||||
0 to 10 suspicious |
|||||
10 Unsatisfactory |
2400 |
33 |
23 |
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स्रोत : कार्यालय, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, रायपुर (छत्तीसगढ़) |
तालिका द्वारा स्पष्ट है कि भनपुरी क्षेत्र में स्थित नलकूप एवं तालाब का जल प्रदूषित है। नलकूप के जल का pH मान 7.2 तथा तालाब के जल का pH मान 7.6 पाया गया है। जल की कठोरता 2.5 NTU से 3.0 NTU पायी गई जो निर्धारित सीमा से (1 NTU) अधिक है। जल में कुल ठोस पदार्थ निर्धारित सीमा में पाए गए।
आर्सेनिक कैल्शियम कार्बोनेट (AsCaCo3) की मात्रा सर्वाधिक 2240 मिलीग्राम/लीटर पाई गई, जो कि निर्धारित सीमा 200 मिलीग्राम/लीटर से बहुत अधिक है। कैल्शियम की कठोरता का मान नलकूप के जल में 708 तथा 868 मिलीग्राम/लीटर तथा तालाब के जल में 260 मिलीग्राम/लीटर पाया गया, जो कि निर्धारित सीमा से काफी अधिक है। इसी प्रकार मैग्नीशियम की कठोरता नलकूप के जल में 52 से 1372 मिलीग्राम/लीटर पाई गई जो निर्धारित सीमा से अधिक है। क्लोराइड की मात्रा नलकूप के जल में 780 से 2736 मिलीग्राम/लीटर तथा तालाब के जल में 240 मिलीग्राम/लीटर पाई गई जबकि क्लोराइड की निर्धारित सीमा 200 मिलीग्राम/लीटर है। इसी प्रकार सल्फेट की मात्रा तालाब के जल में 259 तथा नलकूप के जल में 240 मिलीग्राम/लीटर, निर्धारित सीमा (200 मिलीग्राम/लीटर) से अधिक रही। नाइट्रेट की मात्रा 50 मिलीग्राम/लीटर निर्धारित सीमा (40 मिलीग्राम/लीटर) से अधिक पाई गई। इसी प्रकार तालाब तथा नलकूप के जल में कॉलीफार्म की उपस्थिति 23 से 2400 MPN रही जो यह इंगित करती है कि जल पीने योग्य नहीं है।
भिलाई दुर्ग क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण :-
भिलाई इस्पात संयंत्र दुर्ग से 13 किमी पूर्व में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 पर स्थित है। यह एक एकीकृत इस्पात संयंत्र है, जिसमें खनिज उत्खनन, कच्चे माल तैयार करना, पिग आयरन से इस्पात बनाने की प्रक्रिया, उप उत्पादों से रसायनों की पुनर्प्राप्ति ऑक्सीजन एवं विद्युत उत्पादन की प्रक्रियाएँ की जाती हैं। इकाई में मुख्य रूप से कोयला, लौह खनिज, चूना पत्थर, डोलोमाइट तथा अन्य कच्चे मालों की आवश्यकता होती है। इन सभी प्रक्रियाओं के दौरान काफी बड़ी मात्रा में चिमनी एवं अन्य स्रोतों से वायु प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है, जिनमें मुख्य रूप से धूल एवं गैस जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड इत्यादि होते हैं।
संयंत्र की परिधि में सबसे अधिक धूल-कणों की सान्द्रता 6223 माइक्रोग्राम/घनमीटर रिफैक्टरी मैटीरियल संयंत्र के प्रवेश द्वार के पास एवं 5435 माइक्रोग्राम/घनमीटर सिंटर संयंत्र 1 के उत्तर में आँकी गई।
सल्फर डाइऑक्साइड की सर्वाधिक सान्द्रता 983 माइक्रोग्राम/घनमीटर सल्फ्यूरिक अम्ल संयंत्र में पाई गई। कोक ओवन क्षेत्र में हाइड्रोजन सल्फाइड की सान्द्रता का उत्सर्जन औसतन 83 माइक्रोग्राम/घनमीटर तथा सर्वाधिक मात्रा में (19.4 ग्राम/सेकण्ड) नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन मापा गया।
भिलाई में व्यापक वायु गुणवत्ता :-
इस्पात संयंत्र के अलावा, वाहन यातायात, घरेलू ईंधन के जलने और आस-पास स्थित दूसरे उद्योगों से उत्सर्जन संयंत्र के आस-पास वायु प्रदूषण को बढ़ाने में अपना योगदान देते हैं। संयंत्र से तीन किमी के क्षेत्र में निलम्बित धूल-कणों की सान्द्रता 490 से 530 माइक्रोग्राम/घनमीटर के बीच पाई गई। कुछ क्षेत्र में यह सान्द्रता 600 माइक्रोग्राम/घनमीटर से अधिक पाई गई। 5 किमी क्षेत्र में धूल-कणों की सान्द्रता 900 से 1200 माइक्रोग्राम/घनमीटर के बीच पाई गई।
सल्फर डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड की सान्द्रताएँ निर्धारित मानक सीमा में पाई गई। भिलाई की वायु में धुएँ, धूल एवं धातु कण की सान्द्रता की अधिकता के कारण सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइडों का सल्फेट और नाइट्रेट में परिवर्तन उपरोक्त प्रदूषकों के स्तर को कम करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारण हो सकता है।
वायु में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड का स्तर घनी आबादी वाले क्षेत्रों में विशेषकर संध्या काल 6 से 8 बजे तक अधिक पाया गया। इस आधिक्य का सम्बन्ध वाहनों एवं घरेलू ईंधन के जलने के कारण है। (तृतीय पर्यावरणीय वस्तुस्थिति प्रतिवेदन, 1996, 493-495)।
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव :-
पर्यावरण प्रदूषण के फलस्वरूप मानवीय स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है। श्वसन हेतु आवश्यक स्वच्छ वायु आदिकाल से अक्षय स्रोत मानी जाती है। वर्तमान में औद्योगिक इकाइयों, वाहनों द्वारा उत्सर्जित धुएँ तथा अन्य क्रिया-कलापों से वायु तथा जल दोनों ही प्रदूषित हो रहे हैं। हवा में तैरते धूल-कण, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड इत्यादि प्रमुख वायु प्रदूषक तत्व हैं।
सामान्य रूप से पाए जाने वाले प्रदूषक पदार्थों का श्वसन तंत्र एंव धमनी तंत्र पर सीधा असर होता है। कोरबा एवं गेवरा क्षेत्र में कोयले की धूल एवं धुएँ का प्रभाव सम्पूर्ण क्षेत्र में देखा गया तथा वहाँ के निवासियों में आँखों में जलन, दमा तथा अस्थमा की शिकायत पाई गई। इसी प्रकार मन्दिर हसौद स्थित संयंत्र से निकलने वाले धुएँ के परिणामस्वरूप ग्राम वासियों में श्वसन से सम्बन्धित शिकायतें पायी गईं। जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव के अन्तर्गत कोरबा में डेंगुर नाले के जल का उपयोग करने वाले मनुष्यों में बाल झड़ने की समस्या देखी गई। भनपुरी स्थित कबिलास नगर के निवासियों में नलकूप के प्रदूषित जल से त्वचा में जलन तथा त्वचा का लाल होना जैसी समस्याएँ पायी गईं।
वायु प्रदूषण के परोक्ष रूप से होने वाले स्वास्थ्य पर प्रभाव मनुष्यों के स्वास्थ्य स्तर तथा प्रदूषित वातावरण में रहने की अवधि पर निर्भर करते हैं। हवा में तैरते ठोस कणों, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड तथा कार्बन मोनो ऑक्साइड की सार्वत्रिक उपलब्धता तथा मानवीय स्वास्थ्य पर इनके विपरीत असर होने के कारण देश में 1970 के दशक में राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक निर्धारित किये गए, जो इस प्रकार हैं :-
तालिका 7.14 व्यापक वायु गुणवत्ता मानक |
|||||
क्षेत्र |
श्रेणी |
प्रदूषकों की मात्रा (माइक्रोग्राम/घनमीटर) |
|||
निलम्बित ठोस कण |
सल्फर डाइ ऑक्साइड |
नाइट्रोजन ऑक्साइड |
कार्बन मोनो ऑक्साइड |
||
अ. |
औद्योगिक व मिश्र उपयोग |
500 |
120 |
120 |
5000 |
ब. |
आवासीय व ग्रामीण |
200 |
80 |
80 |
2000 |
स. |
संवेदनशील |
100 |
30 |
30 |
1000 |
उपर्युक्त सीमा 95% से अधिक नहीं होनी चाहिए। |
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