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देश में अटल भूजल योजना को क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी जल संसाधन विभाग और जल शक्ति मंत्रालय की है। इस प्रस्तुति में आज हम आपको बताएंगे कि इस योजना में राष्ट्रीय, राज्य, जिला और ग्राम पंचायत स्तर पर शामिल सभी हितधारकों की क्या-क्या भूमिका और जिम्मेदारियां है।
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केंद्र में जल संसाधन विभाग के अंतर्गत एक राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रबंधन इकाई (एनपीएमयू) बनाइ जाएगी जिसका काम होगा चयनित राज्यों में इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिये समन्वय और सुविधाएं उपलब्ध कराना। इसके अलावा केंद्रीय स्तर पर एक थर्डपार्टी गवर्मेंट वेरिफिकेशन एजेंसी (टीपीजीवीए) भी नियुक्त की जाएगी जो कार्यक्रम को क्रियान्वित करने वाली सभी एजेंसियों के काम को पूर्व निर्धारित मानकों के आधार पर आंकेगी और उसके बाद ही उनको प्रोत्साहन राशि का वितरण किया जाएगा। राज्य स्तर पर राज्य सरकार एक नोडल एजेंसी का चयन करेंगी जिसे प्रोग्राम इंप्लिमेंटेशन एजेंसी (पीआईए) का नाम दिया जाएगा और इस पीआईए के तहत एक राज्य कार्यक्रम प्रबंधन इकाई (एसपीएमयू) होगी जो दिन-प्रतिदिन कार्यक्रम के क्रियान्वयन का प्रबंधन और निगरानी करेगी। कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिये चयनित जिले में जिला कार्यक्रम प्रबंधन इकाई (डीपीएमयू) होगी जो राज्य द्वारा बनाई जाएगी जिसका काम अटल भूजल योजना के तहत जमीनी कामों को अंजाम देने में राज्य और ग्राम पंचायतों की मदद करना होगा। डिस्ट्रिक्ट इंप्लीमेंटेशन पार्टनर्स (डीआईपी) जिनमें एसपीएमयू द्वारा चयनित एनजीओ/ सीबीओ शामिल होंगे और ग्राम पंचायतों को योजना के विभिन्न आयामों में मदद करेंगे जैसे समुदायों को समझाने और प्रशिक्षण आदि द्वारा जल बजट और जल सुरक्षा योजनाएं तैयार कराना।
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संस्थात्मक ढांचे की बात करें तो केंद्र में नेशनल इंटर- डिपार्टमेंटल स्टीयरिंग कमेटी ही मुख्य निकाय है जिसका काम एनपीएमयू के माध्यम से अटल भूजल योजना के क्रियान्वयन का प्रबंधन करना है। यह एसपीएमयू के साथ राज्यों को न केवल सहायता करेंगी बल्कि उन पर निगरानी भी रखेगी। एसपीएमयू भी जिला स्तर पर डीपीएमयू के माध्यम से कार्यान्वयन की प्रक्रिया की निगरानी करेगी। ग्राम पंचायत जो प्रशासन का अंतिम स्तर है और समुदायों और प्रशासन के बीच की एक अहम कड़ी हैं उन्हें भी डीपीएमयू का सहयोग मिलेगा। यहां यह बताना भी उचित होगा कि इस समय पर गैर सरकारी संगठनों द्वारा समुदायों, सीबीओज़ और ग्रामीणों को दिये जाने वाले सहयोग की भूमिका भी बहुत अहम है क्योंकि यह सहयोग ही कार्यक्रम को बहुत हद तक सफल बनाने में मददगार साबित होता है। काम के जो भी जमीनी परिणाम निकलते हैं उनको ग्राम पंचायतें राज्यों को और राज्य केंद्र को रिपोर्ट करते हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड भी राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर तकनीकी सहायता उपलब्ध कराएगा। विश्व बैंक द्वारा किया जाने वाला वित्तीय आबंटन राष्ट्रीय स्तर पर होगा जिसका वितरण केंद्र द्वारा राज्यों, जिला और ग्राम पंचायतों को यथानुसार किया जाएगा।
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राष्ट्रीय स्तर पर अगर सभी भागीदारों के कामों और जिम्मेदारियों को अगर गहराई में देखें तो पता चलता है कि जल संसाधन विभाग ही मोटे तौर पर इस योजना के क्रियान्वयन को पूरी तरह से देखेगा। उसके लिये अनेकों प्रकार के काम करने होंगे जैसे कि कार्यक्रम का प्रबंधन और संस्थागत प्रबंध, खरीदारी, स्वीकृतियां देना, वित्तीय प्रबंधन, निगरानी और मूल्यांकन. प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण संबंधी क्रियाकलाप, मंत्रालयों, राज्यों की नोडल एजेंसियों और वित्तीय/ फंडिंग एजेंसियों के साथ समन्वय आदि जैसे बहुत से क्रियाकलाप करने होंगे। स्टीयरिंग कमेटी यानी संचालन समिति में सभी विभागों का प्रतिनिधित्व होगा इसलिये उसकी जिम्मेदारी होगी कि विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित करके जरूरी स्वीकृति प्राप्त करे, कार्यक्रम के क्रियान्वयन के स्टेटस पर निर्देश दे या समीक्षा करे और साथ ही भूजल पर होने वाले परिणाम का भी आंकलन करे। इस समिति के तहत एनपीएमयू का गठन किया गया है जिसका काम विभिन्न गतिविधियों के लिये दिन-प्रतिदिन समन्वय बनाना, आबंटित फंड का वितरण करना और राज्यों को विशेषज्ञों के जरिये तकनीकी सहायता मुहैया कराना है। तकनीकी विशेषज्ञों और थर्ड पार्टी गवर्नमेंट वेरिफिकेशन एजेंसियों को भी आवश्यकतानुसार काम पर रखा जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि काम करने के लिये एमआईएस में पर्याप्त बेसलाइन डेटा या जमीनीं जानकारी उपलब्ध है या नहीं, सभी कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा तय डीएलआई मानकों के मुताबिक लक्ष्य को प्राप्त किया गया है या नहीं, उसके अनुसार ही फंड वितरण के लिये रिपोर्ट बनाने का काम भी तकनीकी विशेषज्ञों और थर्ड पार्टी गवर्नमेंट वेरिफिकेशन एजेंसियों द्वारा किया जाएगा।
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जल संसाधन विभाग के सेक्रेटरी ही राष्ट्रीय अन्तर्विभागीय संचालन समिति यानी National Inter-Departmental Steering Committee (NISC) के चेयरमैन होंगे। इस विभाग के एडिशनल सेक्रेटरी, ज्वॉइंट सेक्रेटरी और वित्तीय सलाहकार भी इस समिति के सदस्य होंगे इसके अलावा कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भूमि संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, पंचायती राज विभाग, पेयजल और स्वच्छता विभाग, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय और बिजली मंत्रालय के सेक्रेटरी या प्रतिनिधि भी इस समिति के सदस्य होंगे। अन्य सदस्यों में जल संसाधन विभाग और नीति आयोग के सलाहकार, सातों चयनित राज्यों के मुख्य सचिव और केंद्रीय जल आयोग और केंद्रीय भूजल आयोग के चेयरमैन होंगे।
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सभी प्रतिभागी राज्यों के लिये राज्य स्तर पर अन्तर्विभागीय संचालन समिति यानी Inter-Departmental Steering Committee (SISC) का गठन होगा जिसका मुख्य काम होगा; राज्यों के एक्शन प्लान, वार्षिक इंप्लीमेंटेशन प्लान की समीक्षा करना और उसको स्वीकृति प्रदान करना, विभिन्न प्रकार की क्लीयरिंग्स और अप्रूवल के लिये अन्तर्विभागीय समन्वय स्थापित करना, विभिन्न योजनाओं में कन्वर्जेंस से फंड सुनिश्चित कराना, वार्षिक बजट को स्वीकृति देना, रिपोर्टों की जांच करना, प्रोग्रेस रिपोर्ट की समीक्षा करना और फिर कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिये उचित मान संसाधनों की आवश्यकता को स्वीकृति देना आदि। यह समिति प्रोग्राम इंप्लीमेंटिंग एजेंसी Program Implementing Agency (PIA) पर भी नजर रखेगी, जिसके काम में SPMU और DPMU के गठन करने के साथ-साथ डीआईपीज़ को नियुक्त करना भी है। इन डीआईपीज़ को ग्राम पंचायतों को कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिये प्रशिक्षण और सहायता करनी होती है और साथ ही जिला स्तरीय जल सुरक्षा योजनाओं को इकट्ठा करके उसके अनुसार राज्य स्तर के एक्शन प्लान बनाने हैं।पीआईए के तहत गठित SPMU की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत स्तर पर मॉनिटरिंग के लिये टूल्स जैसे (Digital Water Level Recorder) खरीदना आदि, जिला स्तरीय योजनाओं को इकट्ठा करना और फिर उन्हें NPMU को सौंपना, नियमित इनपुटस् के साथ एमआईएस का संचालन और प्रबंधन, संचार और क्षमता निर्माण क्रियान्वयन योजनाओं को बनाना, SPMU/ DPMU के लिये विशेषज्ञों को काम पर रखना, बैंक एकाउंट्स खोलना और समय पर भुगतान जारी करना आदि शामिल है।
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PIA के अंदर बनी SPMU में कमिश्नर, चीफ इंजीनियर, तकनीकी अधिकारी, अकाउंटेंट, भूजल विशेषज्ञ, प्रोक्योरमेट एक्सपर्ट, आईटी विशेषज्ञ, शिक्षा और संचार विशेषज्ञ, पर्यावरण विशेषज्ञ, सामाजिक विकास विशेषज्ञ और अनुबंध के आधार पर या प्रतिनियुक्ति पर रखे गए डेटा एंट्री ऑपरेटर आदि होंगे।
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जिला स्तर पर DPMU से 4 पहलुओं पर काम करने की अपेक्षा की जाती है। कार्यक्रम प्रबंधन पहलू पर बात करें तो ग्राम पंचायतों द्वारा जमा की गई जल सुरक्षा योजनाओं और वार्षिक कार्य योजनाओं की समीक्षा करना और उनको कंसोलिडेट करना, ग्राम पंचायतों को कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिये सहायता करने के लिये विभिन्न लोगों या एजेंसियों को काम पर रखने लिये सुविधाएं मुहैया कराना और विभिन्न स्रोतों से फंड के कन्वर्जेंस को सुनिश्चित करना आदि काम शामिल हैं।प्रोक्योरमेंट पहलू में भी कईं तरह की गतिविधियां शामिल हैं जैसे वार्षिक कार्य योजनाओं में प्रोक्योरमेंट प्लान को शामिल करना. प्रोक्योरमेंट डाटा को एमआईएस में डालना, पर्याप्त मात्रा में स्टाफ और उनकी क्षमता निर्माण सुनिश्चित करना और प्रोक्योरमेट पहलू के सभी दिशानिर्देशों के पालन को सुनिश्चित करना।वित्तीय और रिपोर्टिंग के तहत, सभी ठेकेदारों और ग्राम पंचायतों के लेनदेन के लिये बैंक अकाउंट खोलना और उनका प्रबंधन करना, पीआई ए को हर महीने खर्चे के ब्योरा सौपना, क्रियान्वयन की प्रगति की रिपोर्ट बनाना और पीआईए को सोंपना आदि गतिविधियां शामिल हैं।और अब अंत में संस्थागत सशक्तिकरण के मद्देनजर, DPMU स्टाफ और डाटा कलेक्टर का प्रशिक्षण और ओरिएंटेशन, कार्यक्रम के सभी पहलुओं पर कर्मियों की कुशलता बढ़ाना, व्यवहार परिवर्तन के लिये समुदायों और वोलंटियर्स की क्षमता निर्माण करना और सीखने के उद्देश्य से अुनभव साझा करने के लिये विभिन्न कार्यशालाएं आयोजित कराना आदि जैसे काम शामिल हैं।
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जिला कार्यक्रम प्रबंधन इकाई यानी district program management unit जिला कलेक्टर या जिला परिषद सीईओ, तकनीकी अधिकारियों, पीआईए से नोडल अधिकारियों, संचार और प्रशिक्षण विशेषज्ञों और प्रतिनियुक्ति या अनुबंध के आधार पर रखे गए डाटा एंट्री ऑपरेटरों से बनेगी।
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अटल भूजल योजना के क्रियान्वयन के लिये ग्राम पंचायत सबसे अंतिम किंतु अहम स्तंभ है। ऐसी अपेक्षा की जाती है कि ग्राम पंचायतें पार्टनर गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से स्थानीय समुदायों को भूजल संबंधी समस्याओं पर जागरूक करेंगीं, सभी समितियों और गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करेंगी, ग्राम सभा आयोजित करेंगी, अटल जल योजना के लिये अलग कैशबुक और अकाउंट रखेंगी और साथ ही नागरिकों के फीडबैक और समस्याओं को दर्ज करेंगी। जल प्रबंधन समितियां या ग्रामीण जल और स्वच्छता समितियां ग्राम पंचायतों को जल सुरक्षा योजनाओं के बनाने और जल बजटिंग पर सहयोग करेंगी, पारंपरिक ज्ञान को योजनाओं में लाने का प्रयास करेंगी, ब्लाक और जिला स्तर पर नियमित सहायता के लिये समन्वय स्थापित करेंगी और कार्यक्रम में क्रियान्वित किये जाने वाले मांग और आपूर्त पक्ष को पहचानने में सहायता करेंगी। ग्राम पंचायतों के वोलंटियर्स भूजल जानकार और भूजल प्रचारकों को भूजल और वर्षा संबंधी बेस लाइन डाटा इकट्ठा करने के लिये कहा जाएगा जिसके लिये पहले से तैयार किया गया एक फॉर्मेट होगा। ये वोलंटियर डीआईपी और कम्युनिटी मोबिलाइजेशन में लगी दूसरी सहायक एजेंसियों को भी मदद करेंगे।
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केंद्रीय भूजल बोर्ड अटल भूजल योजना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये सभी हितधारकों को तकनीकी सहायता उपलब्ध कराएगा। राष्ट्रीय स्तर पर बोर्ड NPMU को योजना के तहत की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों के समन्वय के लिये तकनीकी सहायता उपलब्ध कराएगा। SPMU और DPMU को तकनीकी सहायता मुहैया कराने लिये योजना में शामिल राज्यों के स्थानीय कार्यालयों को सलाह देना और समन्वय स्थापित करेगा। और केंद्रीय भूजल बोर्ड के पास उपलब्ध सुविधाओं का इस्तेमाल करते हुए योजना के सभी हितधारकों को सपोर्ट ट्रेनिंग भी मुहैया करवाएगा। राज्य स्तर पर, बोर्ड के रीजनल डायरेक्टर्स State Inter-departmental Steering Committees के सदस्य होंगे। इस स्तर पर भी बोर्ड SPMU और DPMU को तकनीकी सहायता उपलब्ध कराएगा और National Program on Aquifer Mapping and Management से डाटा प्राप्त करके साझा कराएगा। बोर्ड को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा किये जाने वाले सभी मौजूदा जागरूकता और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों में अटल भूजल योजना के विभिन्न घटक शामिल हों।
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