असुनी गल भरनी गली


असुनी गल भरनी गली, गलियो जेष्ठा मूर।
पुरबाषाढ़ा धूल कित, उपजै सातो तूर।।


शब्दार्थ – मूर – मूल । तूर – अन्न ।

भावार्थ – यदि वर्षा अश्विनी, भरणी एवं मूल नक्षत्र में हो गई और यदि पूर्वाषाढ़ में न भी हुई तो भी फसल अच्छी होगी और सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे, अर्थात् तीनों नक्षत्रों की वर्षा से इतनी आर्द्रता होगी कि पूर्वाषाढ़ में वर्षा न होने पर भी धूल नहीं दिखेगी।

Path Alias

/articles/asaunai-gala-bharanai-galai

Post By: tridmin
×