अस्तित्व के लिये संघर्षरत जनता होगी लाभान्वित उच्च न्यायालय के फैसले से

<strong>सुशीला भंडारी</strong>
<strong>सुशीला भंडारी</strong>

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने टिहरी जिले की घनशाली तहसील में भिलंगना नदी पर ‘स्वाति पावर इंजीनियरिंग लि.’ द्वारा बनाई जा रही जल विद्युत परियोजना की केन्द्र सरकार से पुर्नसमीक्षा कर तीन माह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। मार्च 2004 में जब स्वाति पावर इंजीनियरिंग अपनी फौजफर्रा व बुल्डोजर लेकर फलिण्डा पहुँची तो तब ग्रामीणों को इस परियोजना की जानकारी मिली। इस परियोजना से फलिण्डा, सरूणा, थेलि, रौंसाल, जनेत, बहेड़ा व डाबसौड़ा गाँवों के 500 परिवारों के ऊपर खतरा उत्पन्न हो गया। भिलंगना नदी के दोनों ओर ग्रामीणों द्वारा बनाई गई 6 सिंचाई गूलें, 6 श्मशान घाट व दो घराट (पनचक्की) के अलावा आसपास का हरा-भरा जंगल व गौचर, पनघट भी परियोजना की जद में आ गये। ग्रामीणों ने परियोजना का विरोध किया। लेकिन कम्पनी के दबाव में तत्कालीन परगनाधिकारी, घनशाली द्वारा कई बार भारी पुलिस बल का प्रयोग कर ग्रामीणों को अवैध हिरासत में लेकर उन पर झूठे मुकदमे दर्ज कर दिये। जेल में बंद ग्रामीणों में गोद में एक साल के बच्चे को लिये माँ थी तो 75 साल की वृद्धा व बूढ़े भी थे।

तब शासन-प्रशासन के उपेक्षापूर्ण व्यवहार एवं परियोजना के विरुद्ध उत्तराखंड महिला मंच व पीयूसीएल की ओर से पक्षकार डॉ. उमा भट्ट व राजीव लोचन साह ने उच्च न्यायालय, नैनीताल में एक याचिका दायर की जो लम्बित थी। याचिकाकर्ताओं द्वारा ग्रामीणों को विश्वास में लिए बगैर स्वीकृत 11 मेगावाट जलविद्युत परियोजना की क्षमता को न बढ़ाये जाने, पुलिस दमन एवं जिला प्रशासन द्वारा ग्रामीणों का उत्पीड़न कर अवैध हिरासत में रखे जाने के विषय में माननीय उच्च न्यायालय को अवगत कराते हुए प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया। सम्पूर्ण मामले की न्यायिक जाँच करने, परगनाधिकारी को अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने से रोकने, गैरकानूनी तरीके से ग्रामीणों को जेलों में रोकने के विरुद्ध उनको मुआवजा दिलाये जाने, उन पर लगे झूठे मुकदमे वापस लेने तथा उनके हक-हकूक बहाल किये जाने का अनुरोध किया गया। याचिकाकर्ताओं की ओर से उच्च न्यायालय के युवा अधिवक्ता सिद्धार्थ साह द्वारा मामले पर जिरह की गई। 8 फरवरी 2006 को सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय की खण्डपीठ के मुख्य न्यायाधीश माननीय राजीव गुप्ता एवं माननीय पी.सी. वर्मा ने राज्य सरकार से दो सप्ताह के भीतर अपना पक्ष रखने को कहा और अगली सुनवाई की तिथि 27 फरवरी तय की गई।

लेकिन तब से कई सालों तक यह मामला लम्बित ही रहा और उधर परियोजना के विरुद्ध ग्रामीणों का आंदोलन निरन्तर जारी रहा। 26 फरवरी 2011 को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बारिन घोष तथा न्यायमूर्ति बी.के. बिष्ट की खण्डपीठ द्वारा मामले की सुनवाई की गई, जिसमें पक्षकार के अधिवक्ता सिद्धार्थ साह एवं केन्द्र सरकार की स्थाई अधिवक्ता श्रीमती अंजली भार्गव द्वारा मामले में बहस की गई। याचीगण की तरफ से यह बहस की गई कि जब स्वास्तिक पावर इंजीनियरिंग कम्पनी को वर्ष 2001 में 11 मेगावाट क्षमता की पन बिजली परियोजना स्वीकृत की गई थी तो उस समय स्वीकृति की शर्त 6 में यह स्पष्ट उल्लेख था कि परियोजना की क्षमता में बदलाव की स्थिति में पुनः समीक्षा करनी होगी। परन्तु वर्ष 2004 में केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा परियोजना की क्षमता को 11 मेगावाट से बढ़ाकर 22.5 मेगावाट करने की मंजूरी दे दी गई, जबकि परियोजना की कोई समीक्षा नहीं की गई। मामले को गम्भीरता से लेते हुए माननीय उच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को यह निर्देशित किया कि वह परियोजना की समीक्षा कर उच्च न्यायालय में तीन माह में रिपोर्ट प्रस्तुत करे।

उच्च न्यायालय के इस फैसले से परियोजना से प्रभावित गाँवों के लोग खासे उत्साहित हैं। ‘भिलंगना घाटी बाँध निजीकरण विरोधी संघर्ष संगठन फलिण्डा’ के संयोजक व ‘चेतना आन्दोलन’ के कार्यकर्ता त्रेपन सिंह चौहान गम्भीर बीमारी से जूझते हुए इस समय देहरादून में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं, का कहना है कि न्यायालय द्वारा परियोजना की पुनर्समीक्षा के निर्देश दिये जाने से भविष्य में प्रभावित ग्रामीणों के सभी लम्बित मामलों पर उनके पक्ष में फैसला होने की उम्मीद बन गई है। इससे न्यायालयों पर लोगों का विश्वास जगेगा और अन्य क्षेत्रों में चल रहे आंदोलनों को भी लाभ होगा। फलिण्डा जलविद्युत परियोजना से प्रभावित ग्रामीणों ने लम्बी लड़ाई लड़ी है। कई बार पुलिस प्रशासन के डंडे खाने के अलावा जेलों में बंद रह प्रताड़ित हुए हैं। 26 मार्च से 3 अप्रैल 2006 तक विभिन्न संगठनों के सहयोग से फलिण्डा के ग्रामीणों ने देहरादून से फलिण्डा तक पदयात्रा की जिसमें नवोदित राज्य के परिप्रेक्ष में विकास की विनाशकारी अवधारणा को लेकर जनजागरण किया गया। 4 मई 2006 को उत्तराखण्ड महिला मंच व लोक वाहिनी की अगुवाई में आंदोलनकारियों की आयुक्त गढ़वाल मंडल के साथ एक 9 बिन्दुओं का ऐतिहासिक समझौता हुआ (नैनीताल समाचार, 15 मई 2006)। इस बैठक में आयुक्त व जिला प्रशासन टिहरी ने माना कि भिलंगना नदी के पानी पर पहला हक वहाँ के ग्रामीणों का है। उनकी सिंचाई आदि की आवश्यकताएं पूर्ण करने के बाद ही बचा हुआ पानी आंध्र प्रदेश की स्वाति पावर इंजीनियरिंग कं. को दिया जायेगा।

इस समझौते का असर अन्य क्षेत्रों में चले आन्दालनों पर भी पड़ा। विशेषकर बागेश्वर जिले के कपकोट तहसील के सौंग में जल विद्युत परियोजना के विरुद्ध चले आंदोलन में इसका प्रभाव देखने को मिला। पर्वतीय पावर प्रोडक्ट कं. ने सरयू नदी के उद्गम के निकट मुनार से कपकोट तक कई जगह सुरंग आधारित जलविद्युत परियोजना बनाने का ठेका ले लिया। मुनार में परियोजना बनने के बाद हुई बरसात से इलाके में जो तबाही हुई उससे लोग सकते में आ गये। लोगों ने विरोध करना शुरू किया तो कम्पनी ‘उत्तर भारत पावर कॉर्पोरेशन’ के नाम से वहाँ के प्रशासन व जन प्रतिनिधियों की सह पर संगठित हो रहे ग्रामीणों को तोड़ने में जुट गई। तीन चरणों में बन रही विद्युत परियोजनाओं में से प्रथम चरण सौंग में बन रही परियोजना को तत्कालीन ग्राम प्रधान मोहन सिंह टाकुली की अगुवाई में ग्रामीणों ने साल भर आंदोलन कर इसका निर्माण कार्य रुकवा दिया। लेकिन अन्य दो चरणों में प्रलोभन में आकर आंदोलन बिखरने के बाद परियोजना का कार्य बदस्तूर जारी है।

सुशीला भंडारीसुशीला भंडारीसुरंग आधारित इन परियोजनाओं से ग्रामीणों के खेत-खलिहान, घराट, श्मशान घाट आदि प्रभावित होने के साथ ही कई घरों में भी दरारें आने लगी हैं। इस तरह की योजनाओं में प्रभावित गाँवों के विस्थापन अथवा क्षति के बदले मुआवजा देने का कोई प्रावधान नहीं है। इलाके के लोग अब परियोजनाओं की हकीकत समझ गये हैं लेकिन उनका पक्ष न जन प्रतिनिधि उठा रहे हैं और न वहाँ का प्रशासन। मीडिया का एक पक्ष तो कम्पनी की चाटुकारिता कर आर्थिक लाभ उठाने में रहता है। यही हाल उत्तराखण्ड की अन्य नदियों में जनता को विश्वास में लिए बगैर बन रही जल विद्युत परियोजनाओं का है। जगह-जगह इन परियोजनाओं के विरोध में वहाँ की जनता आन्दोलित है। शासन-प्रशासन निर्माता कम्पनियों के पक्ष में खड़ा आन्दोलनकारियों का दमन कर रहा है। एक महिने पूर्व 30 जनवरी को शान्ति के पुजारी व ग्राम गणराज्य के पक्षधर महात्मा गाँधी की पुन्यतिथि को मन्दाकिनी नदी पर ‘लार्सन एंड टूब्रो’ कम्पनी द्वारा बनाई जा रही ‘सिंगोली-भटवाड़ी जल विद्युत परियोजना’ का विरोध कर रहे आंदोलनकारियों- सुशीला भंडारी एवं जगमोहन झिंक्वाण को पुलिस-प्रशासन ने जेलों में बंद कर दिया। उनकी बिना शर्त रिहाई को लेकर जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। 23 फरवरी को उत्तरकाशी में प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री को सम्बोधित एक ज्ञापन वहाँ के जिलाधिकारी को सौंपा। 27 फरवरी को रुद्रप्रयाग में उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे आन्दोलनकारियों ने ‘केदार घाटी बचाओ संघर्ष समिति’ के बैनर तले एक बैठक कर परियोजना का विरोध करते हुए जेल में बंद आंदोलनकारी सुशीला भंडारी व जगमोहन झिंक्वाण की बिना शर्त रिहा करने की मांग की। बैठक की अध्यक्षता ‘नदी बचाओ आंदोलन’ की बसन्ती बहिन व पीयूसीएल के प्रदेश उपाध्यक्ष नन्दा वल्लभ भट्ट ने व संचालन संघर्ष समिति के अध्यक्ष गंगाधर नौटियाल ने किया। तय किया कि 1 मार्च को सभी जिला मुख्यालयों में ज्ञापन व 9 मार्च को धरना तथा 23 मार्च को देहरादून में प्रदर्शन किया जायेगा। बैठक के बाद नगर में जनगीतों के साथ जलूस भी निकाला।
 

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