कुछ बेहतर करने की चाहत में कड़ी मेहनत से अपनी दशा ही नहीं बदली, बल्कि आसपास के लोगों की भी जिन्दगी बदलने में बिहार के मधुबनी जिले के दिहया खैरवार के युवा अशोक कुमार सिंह ने सफलता की ऐसी कहानी लिखी है, जिससे अन्य लोग भी प्रेरित हो रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि अशोक के कारण बिहार के कई जिलों के मछली पालकों को आसानी से मछली बीज मिल पाता है। पहले इन्हें बीज के लिये पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता था। भारत में अन्त: स्थलीय मत्स्य उत्पादन में बिहार तीसरे से चौथे स्थान पर आ गया है। लेकिन कुल अन्तः स्थलीय मत्स्य का 7.44 प्रतिशत उत्पादन बिहार में ही होता है। बिहार में प्रति हेक्टेयर मत्स्य उत्पादन 900 किलोग्राम है जबकि नदियों से प्रति किलोमीटर मछली उत्पादन 10-15 किलोग्राम ही है। परन्तु बिहार में विकसित तालाबों से 2000-2500 किलोग्राम मछली का उत्पादन भी हो रहा है।
जबकि बिहार में मछली की वार्षिक माँग करीब 4.5 लाख टन है जिसमें मात्र दो तिहाई आन्तरिक उत्पादन से पूरा किया जाता है एवं एक-तिहाई अन्य प्रदेशों से पूरा होता है। बावजूद इसके यहाँ कभी मजदूरी करने के बाद भी दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल था और आज मछली पालन से लाखों रुपए कमा करे हैं।
कुछ बेहतर करने की चाहत में कड़ी मेहनत से अपनी दशा ही नहीं बदली, बल्कि आसपास के लोगों की भी जिन्दगी बदलने में बिहार के मधुबनी जिले के दिहया खैरवार के युवा अशोक कुमार सिंह ने सफलता की ऐसी कहानी लिखी है, जिससे अन्य लोग भी प्रेरित हो रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि अशोक के कारण बिहार के कई जिलों के मछली पालकों को आसानी से मछली बीज मिल पाता है। पहले इन्हें बीज के लिये पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता था।
बिहार में नीली क्रान्ति (मछली पालन) की दिशा में अशोक ने अच्छी पहल शुरू की है। उनसे प्रेरणा लेकर मधुबनी जिले के सैकड़ों नवयुवक मत्स्य पालन कार्य से जुड़ गए हैं। उनकी सफलता से गाँव में 5 मत्स्य हैचरी की स्थापना हो गई है। वे दूसरे किसानों को मत्स्य पालन की बेहतर तकनीक भी बताते हैं। बचपन से ही उन्हें मछली पालन का शौक था। वर्ष 2001 मे मछली पालन शुरू किया फिर बाद में दूसरे हैचरी से स्पॉन लाकर नर्सरी का कार्य शुरू किया। बाद में वर्ष 2004 में उन्होंने मत्स्य हैचरी के स्थापना का कार्य अपने बिजनेस पार्टनर शंकर सिंह के साथ शुरू किया।
हैचरी स्थापना होने के बाद दो वर्ष तक उन्होंने अपने पार्टनर के साथ अच्छी व्यवसाय की, परन्तु सांडो का व्यवसाय अधिक दिनों तक नहीं चला। 2006 में उन्होंने 5 लाख रु पए कर्ज लेकर कोसी मत्स्य हैचरी की नींव रखा और 2007 से उत्पादन शुरू हुआ। पहले तो बैंक से लोन मिलने में भी परेशानी होती थी, लेकिन बाद में उन्हें 14.50 लाख रुपए बैंक से मिला, जिसमें उन्होंने फर्म का विस्तार किया। आज उनके फार्म का कुल क्षेत्रफल 55 एकड़ है, जिसमें 15 एकड़ अपना निजी तालाब है एवं 40 एकड़ निजी तालाब जमीन मालिकों से वार्षिक किस्त पर है।
निजी तालाबों के लिये उन्हें प्रति हेक्टेयर 30-40 हजार रुपए वार्षिक किस्त के रूप में देना पड़ता है, इस प्रकार उनकी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा तालाब की किस्त अदायगी में ही चला जाता है। उनके पास 22 तालाब है, जिसमें दो बड़े तालाब में प्रजनक मछली रखते हैं एवं बाकी में नर्सरी है। हैचरी में रेहू, कतला , मृगल, ग्रास कार्प सिल्वर कार्प एवं कॉमन कार्प का स्पॉन उत्पादन होता है।
मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, वैशाली आदि जिलों के मछली पालकों को सालों भर मछली बीज मिल पाता है। इस हैचरी के बदौलत आज वे पूर्ण रूप से आर्थिक सम्पन्न है। आज वे अपनी कमाई से घर, गाड़ी, 5 एकड़ जमीन खरीदर फार्म का विस्तार किया है। फिलहाल फार्म की सलाना आमदनी 25 से 30 लाख रुपए एवं शुद्ध आमदनी 15 से 20 लाख रुपए है।
इनके कार्यों से प्रसन्न होकर बिहार में मत्स्य बीज उत्पादन के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्यों की सरहना करते हुए केन्द्रीय अन्तस्थलीय मात्स्यिकी अनुसन्धान संस्थान, बैरकपुर, पश्चिम बंगाल ने 2010 में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
बिहार राज्य के साल भर के आँकड़े
वर्ष उत्पादन जरूरत (आँकड़ा लाख टन में) |
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2010-11 |
2.5 |
4.25 |
2011-12 |
2.75 |
4.50 |
2012-13 |
3.50 |
5.00 |
2013-14 |
4.32 |
5.81 |
2014-15 |
4.70 |
6.00 |
1.बिहार राज्य में तालाब : 93 हजार हेक्टेयर
2. नदियों का क्षेत्र : 3200 किमी
3. जलाशय का क्षेत्र : 25 हजार हेक्टेयर
4. मछली का आयात : 1.50 लाख टन
5. राज्य में हैचरी : 112
6. प्रति व्यक्ति मछली उपलब्धता का राष्ट्रीय औसत : 8.54 किलो
7. राज्य में मछली उपलब्धता प्रति व्यक्ति : 7.7 किलो
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Post By: RuralWater