असम के तिनसुकिया जिले के बाघजन में स्थित ऑयल इंडिया लिमिटेड के बाघजन ऑयलफील्ड के एक ऑयल वेल से गैस और केमिकल के रिसाव व बाद में वेल में विस्फोट से जिले के जलाशयों व भूगर्भ जल में प्रदूषण का खतरा मंडराने लगा है। रिसाव जहां हो रहा है, उसके करीब ही मगुरी मोटापुंग जलाशय और डिब्रु सैखोवा नेशनल पार्क है। मगुरी मोटापुंग जलाशय में हजारों की संख्या में मछलियां मृत पाई गई हैं और बताया जा रहा है कि पानी के प्रदूषित हो जाने के कारण ही मछलियों की मौत हुई है।
बताया जा रहा है कि केमिकल का रिसाव हुआ था, जो बाढ़ के पानी के साथ मिलकर मगरी मोटापुंग जलाशय में चला गया और जलाशय का पानी जहरीला हो गया, जिस कारण हजारों की तादाद में मछलियां मरने लगीं। स्थानीय लोगों का ये भी कहना है कि रिसाव के चलते न केवल जलाशय की मछलियों बल्कि जंगल, खेतों में लगी धान की फसल और चाय बागानों को भी नुकसान हो रहा है।
वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, उन्होंने जलाशय के पानी को टेस्ट किया जिसमें पीएच का स्तर ज्यादा मिला है, जिससे पानी में एसिड की मात्रा ज्यादा हो गई है और संभवतः यही वजह है कि बहुत सारी मछलियां मर रही हैं। वन विभाग के अधिकारियों का ये भी कहना है कि जलाशय में कुछ दूसरे जीव और सांप तक मरे हुए मिले हैं।
गौरतलब हो कि उक्त जलाशय की मछलियों से सैकड़ों मछुआरा परिवारों की रोजीरोटी जुड़ी हुई है, ऐसे में बड़ी तादाद में मछलियों के मरने से इन परिवारों के सामने खाने-पीने का संकट खड़ा हो गया है।
जिस आयल वेल से रिसाव हुआ है, उसके आसपास कम से कम दो महत्वपूर्ण बायोडायवर्सिटी एरिया हैं जिन पर खतरा मंडराने लगा है। अभी असम में भारी बारिश और नदियों में ऊफान के चलते इसके कई जिलों में बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। तिनसुकिया में भी बाढ़ के हालात हैं, इसलिए आशंका है कि बाढ़ के पानी से होकर रसायन का फैलाव दूसरे क्षेत्रों में भी हो सकता है, जिससे जैवविविधता और वन्यजीवों को बहुत नुकसान हो सकता है।
उल्लेखनीय हो कि 27 मई से उक्त वेल में रिसाव शुरू हुआ था और इसके दो हफ्ते बाद वेल में भयावह विस्फोट हो गया था। इस आग में झुलस कर कंपनी के ही दो दमकल कर्मचारियों की मौत हो गई थी। वेल में लगी आग ने आसपास के कुछ मकानों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया था। इस अग्निकांड को देखते हुए सुरक्षा के दृष्टिकोण से सैकड़ों लोगों को आसपास के इलाके से हटाकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया था। रिसाव के कारणों का खुलासा अभी नहीं हो सका है, लेकिन कहा जा रहा है कि क्लीयरिंग ऑपरेशन के दौरान रिसाव शुरू हुआ था। आग पर अब तक पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका है और रिसाव भी जारी है।
गैस व रसायन के रिसाव से जैवविविधता को हुए नुकसान के मद्देनजर पर्यावरणविद बोनानी कक्कर और असम के एक एनजीओ लाइफ एंड एनवायरमेंट कंजर्वेशन ऑर्गनाइजेशन की तरफ से नेशनल ग्रीन ट्राइबुनल एक आवेदन किया था। 25 जून को इस आवेदन पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने कंपनी पर 25 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। ये रुपए तिनसुकिया जिले के डीएम के पास जमा करने होंगे। एनजीटी के पूर्वी बेंच के जस्टिस एसपी वांगड़ी और ज्यूडिशियल मेंबर सिद्धांत दास ने कहा, “प्राथमिक तौर पर पर्यावरण, जैवविविधता, लोगों और वन्यजीवों को जो नुकसान हुआ है, उसके हिसाब से 25 करोड़ रुपए भुगतान करने का आदेश दिया जाता है। ये रुपए डीएम के पास जमा करने होंगे।”
नेशनल ग्रीन ट्रायबुनल ने मामले की तहकीकात के लिए 8 सदस्यीय कमेटी का भी गठन किया है, जो 30 दिनों में रिपोर्ट सौंपेगी। ये कमेटी मूल रूप से गैस व रसायन के रिसाव के कारण, इससे वन्यजीव, पर्यावरण और मानवीय क्षति का आकलन, स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव, इससे हवा, पानी और मिट्टी प्रदूषण का फैलाव, खेती, मत्स्य पालन और घरेलु जीवों को नुकसान आदि की पड़ताल करेगी। एनजीटी इस मामले की अगली सुनवाई 29 जुलाई को करेगा। इस बीच, एनवायरमेंट रिसोर्स मैनेजमेंट ने भी ऑयल वेल से रिसाव व विस्फोट से पर्यावरण को हुए नुकसान का आकलन शुरू कर दिया है।
जानकारों का कहना है कि लगातार हो रहे रिसाव से अब पानी के प्रदूषित होने का खतरा है और अगर ऐसा होता है, तो एक बड़ी आबादी पर इसका प्रभाव पड़ेगा क्योंकि प्रदूषित जल का सेवन कर लोग बीमार पड़ सकते हैं। जानकारों के मुताबिक, रिसाव को अविलंब रोकने की जरूरत है और साथ ही साथ आसपास के इलाकों के भूगर्भ जल का सैंपल लेकर जांच कराने की भी आवश्यकता है, ताकि ये पता लगाया जा सके कि इससे भूगर्भ जल में प्रदूषण तो नहीं फैला है।
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