असाढ़ गरजा:
खेतिहर थपथपा रहा
बैलों की पीठ
साज रहा जुआँ-हल
हटा रहा खेतों से
कचरा-काँटा
असाढ़ गरजा:
महक उट्ठा माटी का मन
कुटकी, कोदो, अरहर
ज्वार, बाजरा, धान
बीज बन निकल रहे बाहर
ओसार के
खेतों में
गरज-तरज कर बादल
छींट रहे हैं बूँद-बीज
और खेतिहर बखर-बखर कर
अन्नबीज
असाढ़ गरजाः
खेतिहर झंख रहे मन माहीं।
खाद-बीज जिनके घर नाहीं।।
असाढ़ गरजाः
जहाँ जो है हरियाने को
फूट रहा है डाभा!
खेतिहर थपथपा रहा
बैलों की पीठ
साज रहा जुआँ-हल
हटा रहा खेतों से
कचरा-काँटा
असाढ़ गरजा:
महक उट्ठा माटी का मन
कुटकी, कोदो, अरहर
ज्वार, बाजरा, धान
बीज बन निकल रहे बाहर
ओसार के
खेतों में
गरज-तरज कर बादल
छींट रहे हैं बूँद-बीज
और खेतिहर बखर-बखर कर
अन्नबीज
असाढ़ गरजाः
खेतिहर झंख रहे मन माहीं।
खाद-बीज जिनके घर नाहीं।।
असाढ़ गरजाः
जहाँ जो है हरियाने को
फूट रहा है डाभा!
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