दिन के उजाले में तो बालू का खनन किया जा रहा है रात के अंधेरे में भी बड़े पैमाने पर बालू खनन किया जा रहा है। एक नहीं सैकड़ों ट्रैक्टरों के जरिए बालू खनन करके यमुना नदी के स्वरूप को बिगाड़ा जा रहा है। यमुना और चंबल नदी में अवैध खनन बेरोकटोक जारी हैं। सैकड़ों ट्रैक्टर-ट्राली चोरी का रेत विभिन्न इलाकों में ले जा रहे हैं। इस गोरखधंधे को विभागीय व पुलिसिया संरक्षण भी खुलेआम मिला हुआ है। तभी तो पुलिस और प्रशासनिक अफसर इस बालू खनन पर चुप्पी साधे हुए हैं और यमुना नदी का सीना चीरने में बालू माफिया युद्धस्तर पर लगे हैं। प्रशासनिक अफसरों की मिली भगत से इटावा के नदियों में बड़े स्तर पर हो रहे बालू खनन ने नदियों को उजाड़ कर दिया है। कभी नहीं सोचा गया था कि मुख्यमंत्री के जिला इटावा में तैनात अफ़सर उनके खुद के जिले में खनन माफियाओं से मिल कर बालू खनन कराने में नदियों का सीना चीर डालेंगे। बेहिसाब बालू खनन से इटावा में प्रवाहित चंबल, यमुना समेत छोटी-बड़ी सभी नदियों का स्वरूप बिगड़ रहा है। कहा यह जाता है कि बालू खनन के नाम पर प्रतिदिन कई लाख रुपए अफसरों की जेबों में डाला जाता है इसी कारण ना तो पुलिस अफसरों और ना ही प्रशासनिक अफसरों को बालू खनन नजर आता। पर्यावरण विज्ञानी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद भी इस सबसे अनजान बने हुए हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा होता है जब मुख्यमंत्री को अपने जिले में होने वाला खनन नहीं दिख रहा है तो उत्तर प्रदेश के दूसरे हिस्से का क्या खनन नजर आएगा?
सबसे हैरत की बात तो यह है कि बालू माफियाओं ने बड़ी तादाद में बालू को चंबल और यमुना नदी से निकालने के बाद वन विभाग की ज़मीन पर स्टोर करके रखा हुआ है जिनके खिलाफ कोई कार्यवाही करना तो दूर की बात उस बालू को सुरक्षित रखने का काम भी स्थानीय पुलिस करने में जुटी हुई है यहां तक कि नगरपालिका परिषद की ज़मीन का भी बालू स्टोर करने में इस्तेमाल किया जा रहा है फिर भी किसी खनन माफ़िया के खिलाफ कार्यवाही ना होना यह बताता है कि सब कुछ ठीक नहीं है। इटावा जिले के कई किलोमीटर इलाके में इन नदियों से बालू निकालकर सड़कों के किनारे डंप करके रखा गया है। लोकनिर्माण विभाग, वन विभाग और नगरपालिका की ज़मीन पर रखी गई बालू को लेकर भी इन विभागों की ओर से कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई जा रही है। जाहिर है कि इन विभागों की ओर से कार्यवाही ना करने के पीछे कोई ना कोई दबाव जरूर रहा होगा लेकिन इन विभागों के अफसरों की अनदेखी वाकई हैरत पैदा कर रहा है।
उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद ऐसी उम्मीद बनी थी कि मायाराज जैसा माहौल देखने को नहीं मिलेगा लेकिन लगता है मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मंशा को पलीता लगाने का काम कर रखा है। इटावा में तैनात इन सभी अफसरों को इस बात का भी कतई इल्म नहीं है कि इटावा राज्य के मुख्यमंत्री का जिला है जहां की हर छोटी-बड़ी गातिविधि की खबर सीधे मुख्यमंत्री को हो जाती है फिर भी हिम्मत तोइ देखिए न अफसरों की। सरकारी निर्माण में बहुतायत में काम आने वाली इस सफ़ेद बालू के अवैध खनन से पुलिस और खनन माफ़िया सरकार को ठेंगा दिखा रहे हैं। यमुना के बालू का प्रयोग सरकारी काम में होने के बाद भी जनपद के आला अधिकारी आंख मूंदे हुए हैं। उन्हें यह दिखाई नहीं दे रहा है कि यह बालू कहां से आ रहा है जबकि यमुना से बालू निकालने पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
खनन माफिया इतने दबंग हैं कि खुलेआम खनन करते हैं और ट्रैक्टरों के द्वारा खनन कर बालू बाजार ले जाते हैं और दो हज़ार से लेकर तीन हज़ार रुपए कीमत पर एक ट्रैक्टर बालू बेच कर लाखों रुपए का प्रतिमाह बंदरबांट करने में लगे हुए हैं। पुलिस व जिला प्रशासन खनन माफियाओं के हाथों की कठपुतली बना हुआ है। प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में ट्रैक्टरों से बालू का अवैध खनन कर बेचने को ले जाते हुए खुलेआम देखा जा सकता है, जबकि ट्रैक्टर भी अवैध हैं, क्योंकि ट्रैक्टर कृषि कार्य के लिए रजिस्टर्ड किए गए हैं न कि व्यवसाय करने के लिए। यमुना नदी के तट पर सब कुछ ऐसे होता हुआ नजर आता है जैसे इसको किसी ऐसे आदमी का संरक्षण हासिल हो जिसकी हैसियत अपने आप में खासी अहम समझी जा रही है। बालू खनन के नाम पर पूरी की पूरी यमुना नदी को बालू माफियाओं ने वारदात कर डाली है। पर्यावरण की दिशा में काम करने वाली संस्था सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव डॉ.राजीव चौहान का कहना है कि सत्तारूढ़ दल के समर्थक हथियारों की नोक पर बालू खनन करने में लगे हुए हैं लेकिन ना तो पुलिस और ना ही कोई और विभाग के अफसर बालू खनन करने वालों को पकड़ने के लिए तैयार है।
दिन के उजाले में तो बालू का खनन किया जा रहा है रात के अंधेरे में भी बड़े पैमाने पर बालू खनन किया जा रहा है। एक नहीं सैकड़ों ट्रैक्टरों के जरिए बालू खनन करके यमुना नदी के स्वरूप को बिगाड़ा जा रहा है। यमुना और चंबल नदी में अवैध खनन बेरोकटोक जारी हैं। सैकड़ों ट्रैक्टर-ट्राली चोरी का रेत विभिन्न इलाकों में ले जा रहे हैं। इस गोरखधंधे को विभागीय व पुलिसिया संरक्षण भी खुलेआम मिला हुआ है। तभी तो पुलिस और प्रशासनिक अफसर इस बालू खनन पर चुप्पी साधे हुए हैं और यमुना नदी का सीना चीरने में बालू माफिया युद्धस्तर पर लगे हैं। सबसे हैरत की बात तो यह है कि इलाकाई पुलिस केवल उन्हीं ट्रैक्टर चालकों के खिलाफ कार्रवाई करती है जो समय पर सुविधा शुल्क नहीं पहुँचाते। इसी कारण यमुना नदी के सीमावर्ती थानों को मलाईदार थाने में गिना जाता है।
इन क्षेत्रों में खनन सरेआम देखा जा सकता है। जेसीबी मशीनों द्वारा टैक्टर ट्रालियों में रेत भरी जा रही है। रात भर यहां पर अवैध खनन करने वालों का राज हो जाता है जो कि पूरी रात यमुना में से बालू निकालते हैं और रात को ही इसे दूर दराज के इलाकों में भेज देते हैं। खनन होने के बाद माल लेकर अंधेरे-अंधेरे ही हजारों की तादाद में गाड़ियाँ रवाना हो जाती हैं। प्रशासन के लाख दावों के बावजूद यमुना नदी पार अवैध खनन रुकने का नाम नहीं ले रहा है। इन बालू खनन माफियाओं की हिम्मत तो देखिए कि इनसे कोई भी कुछ नहीं कह सकता है क्योंकि पुलिस और प्रशासनिक अफसरों का संरक्षण मिला हुआ है। इसी वजह से इन बालू माफियाओं का कुछ नहीं बिगड़ रहा है। बालू खनन के मामले पर जिस तरह की नज़रअंदाज़ प्रशासनिक अमले की ओर से की जा रही है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि बालू खनन में कहीं ना कहीं प्रशासनिक मिली भगत की बू साफ नजर आ रही है।
चंबल सेंचुरी की बालू से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के जिले इटावा में न सिर्फ घर, मकान बनाए जा रहे हैं बल्कि सरकारी ठेकों पर इसका इस्तेमाल सड़क व स्कूल और अन्य विकास कार्यों में बनाने में भी बेधड़क किया जा रहा है। बिना किसी रॉयल्टी के पार की जा रही इस रेत के कारोबार को रोकने के लिए चंबल सेंचुरी का अमला गंभीर नहीं है। इसलिए न सिर्फ हर रोज सैकड़ों ट्रक रेत अवैध रूप से बाहर लाई जा रही है बल्कि इस वजह से चंबल के जलीय जीवों को भी नुकसान पहुंच रहा है। खास बात यह है कि इस रेत की हिफाज़त करने वाला चंबल सेंचुरी का अमला और इटावा पुलिस से रेत पार कर रहे लोगों के दोस्ताना संबंध भी आमजन में चर्चा का विषय हैं। ट्रैक्टर-ट्रॉली के मालिक रात में कच्चे रास्तों के जरिए वाहन को चंबल में पहुंचा देते हैं। अलसुबह इन वाहनों को रेत से भरकर गांव में ले जाया जाता है। तब तक विभाग को भनक नहीं लग पाती। महज डीजल एवं चार मज़दूरों के खर्च पर चंबल की रेत से भरी ट्राली कम से कम 5 हजार कीमत पर बेची जाती है। लोकल लोगों पर दबाव बनाने के लिए लाइसेंसी हथियारों से लैस लोग सुरक्षा में रहते हैं तैनात। सस्ता रेत होने की वजह से चंबल रेत का ही इस्तेमाल होता आया है। बार्डर पर होने के कारण रात में चंबल से ट्रॉली भरकर रेत यहां आसानी से पहुंच जाता है। इसके जरिए घर से लेकर प्रतिष्ठान तक बनाए जा रहे हैं।
जिलाधिकारी पी. गुरूप्रसाद ने बालू खनन के बाबत बताया है कि इटावा में इस समय खनन हेतु कोई पट्टा स्वीकृत नहीं है और न ही खनन सामग्री के भण्डारण के लाइसेंस की अनुमति है अतः यदि कही भी खनन हो रहा है तो अवैध श्रेणी में माना जाएगा और उसके विरूद्ध कार्यवाही की जाएगी। इसी तरह जहॉ भी खनन सामग्री का भण्डारण रखा है वह अवैध मानते हुए जब्त कर कार्यवाही होगी। इटावा जिले में मध्य प्रदेश के भिंड की ओर से मौरम आती है इसकी भी वैधता की जांच होगी। इटावा में तो खनन अखिलेश सरकार के अफसरों की मेहरबानी से ही हो रहा है और अफसर है कि हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं या फिर सरकार का उन पर इतना दबाव है कि उन्होंने चुप्पी साध ली है। खनन को लेकर कई तरह के सवाल इस कारण भी खड़े हो रहे हैं मुख्यमंत्री के जिला इटावा में बड़े स्तर पर सरकार की ओर से विकास कार्य कराए जा रहे हैं उसके लिए बड़ी तादाद में बालू की जरूरत पड़ती है अगर जिलाधिकारी की बात को सही मान लिया जाए कि खनन को कोई पट्टा नहीं है तो फिर यहां पर हो रहे विकास कार्य के लिए बालू की भरपाई कैसे हो रही है।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने रेत खनन के मामले में नियमावली तो जारी कर दी, लेकिन सवाल यह है कि इसे लागू कौन करेगा? इटावा में प्रवाहित नदियों में तो खनन आम बात है ही पड़ोसी जिले उरई में बेतवा नदी में दिनभर धड़ल्ले से खनन किया जा रहा है। खनन को रोकने के लिए मायावती सरकार के समय ही नदी खनन में पर्यावरण सुरक्षा के नियमों की अनदेखी की शिकायत की गई थी। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की टीम भी जांच को आई लेकिन इस मामले में कोई अंकुश नहीं लगाया जा सका। अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में हो रहे अवैध खनन के मुद्दे पर साफ कहते हैं कि अवैध खनन की जानकारी सामने आने पर सरकार सख्त कार्रवाई करेगी।
खनन के क्षेत्र में पारदर्शिता लाने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए अखिलेश कहते हैं कि , ‘खनन के लिए भूमि के पट्टे आवंटित करने में पारदर्शिता लाने के लिए ई-टेंडरिंग व्यवस्था शुरू की गई है ताकि सब कुछ नियमानुसार चले।’ खनन का काम पर्यावरण विभाग की अनुमति के बिना नहीं हो सकता।
सबसे हैरत की बात तो यह है कि बालू माफियाओं ने बड़ी तादाद में बालू को चंबल और यमुना नदी से निकालने के बाद वन विभाग की ज़मीन पर स्टोर करके रखा हुआ है जिनके खिलाफ कोई कार्यवाही करना तो दूर की बात उस बालू को सुरक्षित रखने का काम भी स्थानीय पुलिस करने में जुटी हुई है यहां तक कि नगरपालिका परिषद की ज़मीन का भी बालू स्टोर करने में इस्तेमाल किया जा रहा है फिर भी किसी खनन माफ़िया के खिलाफ कार्यवाही ना होना यह बताता है कि सब कुछ ठीक नहीं है। इटावा जिले के कई किलोमीटर इलाके में इन नदियों से बालू निकालकर सड़कों के किनारे डंप करके रखा गया है। लोकनिर्माण विभाग, वन विभाग और नगरपालिका की ज़मीन पर रखी गई बालू को लेकर भी इन विभागों की ओर से कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई जा रही है। जाहिर है कि इन विभागों की ओर से कार्यवाही ना करने के पीछे कोई ना कोई दबाव जरूर रहा होगा लेकिन इन विभागों के अफसरों की अनदेखी वाकई हैरत पैदा कर रहा है।
उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद ऐसी उम्मीद बनी थी कि मायाराज जैसा माहौल देखने को नहीं मिलेगा लेकिन लगता है मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मंशा को पलीता लगाने का काम कर रखा है। इटावा में तैनात इन सभी अफसरों को इस बात का भी कतई इल्म नहीं है कि इटावा राज्य के मुख्यमंत्री का जिला है जहां की हर छोटी-बड़ी गातिविधि की खबर सीधे मुख्यमंत्री को हो जाती है फिर भी हिम्मत तोइ देखिए न अफसरों की। सरकारी निर्माण में बहुतायत में काम आने वाली इस सफ़ेद बालू के अवैध खनन से पुलिस और खनन माफ़िया सरकार को ठेंगा दिखा रहे हैं। यमुना के बालू का प्रयोग सरकारी काम में होने के बाद भी जनपद के आला अधिकारी आंख मूंदे हुए हैं। उन्हें यह दिखाई नहीं दे रहा है कि यह बालू कहां से आ रहा है जबकि यमुना से बालू निकालने पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
खनन माफिया इतने दबंग हैं कि खुलेआम खनन करते हैं और ट्रैक्टरों के द्वारा खनन कर बालू बाजार ले जाते हैं और दो हज़ार से लेकर तीन हज़ार रुपए कीमत पर एक ट्रैक्टर बालू बेच कर लाखों रुपए का प्रतिमाह बंदरबांट करने में लगे हुए हैं। पुलिस व जिला प्रशासन खनन माफियाओं के हाथों की कठपुतली बना हुआ है। प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में ट्रैक्टरों से बालू का अवैध खनन कर बेचने को ले जाते हुए खुलेआम देखा जा सकता है, जबकि ट्रैक्टर भी अवैध हैं, क्योंकि ट्रैक्टर कृषि कार्य के लिए रजिस्टर्ड किए गए हैं न कि व्यवसाय करने के लिए। यमुना नदी के तट पर सब कुछ ऐसे होता हुआ नजर आता है जैसे इसको किसी ऐसे आदमी का संरक्षण हासिल हो जिसकी हैसियत अपने आप में खासी अहम समझी जा रही है। बालू खनन के नाम पर पूरी की पूरी यमुना नदी को बालू माफियाओं ने वारदात कर डाली है। पर्यावरण की दिशा में काम करने वाली संस्था सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव डॉ.राजीव चौहान का कहना है कि सत्तारूढ़ दल के समर्थक हथियारों की नोक पर बालू खनन करने में लगे हुए हैं लेकिन ना तो पुलिस और ना ही कोई और विभाग के अफसर बालू खनन करने वालों को पकड़ने के लिए तैयार है।
दिन के उजाले में तो बालू का खनन किया जा रहा है रात के अंधेरे में भी बड़े पैमाने पर बालू खनन किया जा रहा है। एक नहीं सैकड़ों ट्रैक्टरों के जरिए बालू खनन करके यमुना नदी के स्वरूप को बिगाड़ा जा रहा है। यमुना और चंबल नदी में अवैध खनन बेरोकटोक जारी हैं। सैकड़ों ट्रैक्टर-ट्राली चोरी का रेत विभिन्न इलाकों में ले जा रहे हैं। इस गोरखधंधे को विभागीय व पुलिसिया संरक्षण भी खुलेआम मिला हुआ है। तभी तो पुलिस और प्रशासनिक अफसर इस बालू खनन पर चुप्पी साधे हुए हैं और यमुना नदी का सीना चीरने में बालू माफिया युद्धस्तर पर लगे हैं। सबसे हैरत की बात तो यह है कि इलाकाई पुलिस केवल उन्हीं ट्रैक्टर चालकों के खिलाफ कार्रवाई करती है जो समय पर सुविधा शुल्क नहीं पहुँचाते। इसी कारण यमुना नदी के सीमावर्ती थानों को मलाईदार थाने में गिना जाता है।
इन क्षेत्रों में खनन सरेआम देखा जा सकता है। जेसीबी मशीनों द्वारा टैक्टर ट्रालियों में रेत भरी जा रही है। रात भर यहां पर अवैध खनन करने वालों का राज हो जाता है जो कि पूरी रात यमुना में से बालू निकालते हैं और रात को ही इसे दूर दराज के इलाकों में भेज देते हैं। खनन होने के बाद माल लेकर अंधेरे-अंधेरे ही हजारों की तादाद में गाड़ियाँ रवाना हो जाती हैं। प्रशासन के लाख दावों के बावजूद यमुना नदी पार अवैध खनन रुकने का नाम नहीं ले रहा है। इन बालू खनन माफियाओं की हिम्मत तो देखिए कि इनसे कोई भी कुछ नहीं कह सकता है क्योंकि पुलिस और प्रशासनिक अफसरों का संरक्षण मिला हुआ है। इसी वजह से इन बालू माफियाओं का कुछ नहीं बिगड़ रहा है। बालू खनन के मामले पर जिस तरह की नज़रअंदाज़ प्रशासनिक अमले की ओर से की जा रही है उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि बालू खनन में कहीं ना कहीं प्रशासनिक मिली भगत की बू साफ नजर आ रही है।
चंबल सेंचुरी की बालू से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के जिले इटावा में न सिर्फ घर, मकान बनाए जा रहे हैं बल्कि सरकारी ठेकों पर इसका इस्तेमाल सड़क व स्कूल और अन्य विकास कार्यों में बनाने में भी बेधड़क किया जा रहा है। बिना किसी रॉयल्टी के पार की जा रही इस रेत के कारोबार को रोकने के लिए चंबल सेंचुरी का अमला गंभीर नहीं है। इसलिए न सिर्फ हर रोज सैकड़ों ट्रक रेत अवैध रूप से बाहर लाई जा रही है बल्कि इस वजह से चंबल के जलीय जीवों को भी नुकसान पहुंच रहा है। खास बात यह है कि इस रेत की हिफाज़त करने वाला चंबल सेंचुरी का अमला और इटावा पुलिस से रेत पार कर रहे लोगों के दोस्ताना संबंध भी आमजन में चर्चा का विषय हैं। ट्रैक्टर-ट्रॉली के मालिक रात में कच्चे रास्तों के जरिए वाहन को चंबल में पहुंचा देते हैं। अलसुबह इन वाहनों को रेत से भरकर गांव में ले जाया जाता है। तब तक विभाग को भनक नहीं लग पाती। महज डीजल एवं चार मज़दूरों के खर्च पर चंबल की रेत से भरी ट्राली कम से कम 5 हजार कीमत पर बेची जाती है। लोकल लोगों पर दबाव बनाने के लिए लाइसेंसी हथियारों से लैस लोग सुरक्षा में रहते हैं तैनात। सस्ता रेत होने की वजह से चंबल रेत का ही इस्तेमाल होता आया है। बार्डर पर होने के कारण रात में चंबल से ट्रॉली भरकर रेत यहां आसानी से पहुंच जाता है। इसके जरिए घर से लेकर प्रतिष्ठान तक बनाए जा रहे हैं।
जिलाधिकारी पी. गुरूप्रसाद ने बालू खनन के बाबत बताया है कि इटावा में इस समय खनन हेतु कोई पट्टा स्वीकृत नहीं है और न ही खनन सामग्री के भण्डारण के लाइसेंस की अनुमति है अतः यदि कही भी खनन हो रहा है तो अवैध श्रेणी में माना जाएगा और उसके विरूद्ध कार्यवाही की जाएगी। इसी तरह जहॉ भी खनन सामग्री का भण्डारण रखा है वह अवैध मानते हुए जब्त कर कार्यवाही होगी। इटावा जिले में मध्य प्रदेश के भिंड की ओर से मौरम आती है इसकी भी वैधता की जांच होगी। इटावा में तो खनन अखिलेश सरकार के अफसरों की मेहरबानी से ही हो रहा है और अफसर है कि हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं या फिर सरकार का उन पर इतना दबाव है कि उन्होंने चुप्पी साध ली है। खनन को लेकर कई तरह के सवाल इस कारण भी खड़े हो रहे हैं मुख्यमंत्री के जिला इटावा में बड़े स्तर पर सरकार की ओर से विकास कार्य कराए जा रहे हैं उसके लिए बड़ी तादाद में बालू की जरूरत पड़ती है अगर जिलाधिकारी की बात को सही मान लिया जाए कि खनन को कोई पट्टा नहीं है तो फिर यहां पर हो रहे विकास कार्य के लिए बालू की भरपाई कैसे हो रही है।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने रेत खनन के मामले में नियमावली तो जारी कर दी, लेकिन सवाल यह है कि इसे लागू कौन करेगा? इटावा में प्रवाहित नदियों में तो खनन आम बात है ही पड़ोसी जिले उरई में बेतवा नदी में दिनभर धड़ल्ले से खनन किया जा रहा है। खनन को रोकने के लिए मायावती सरकार के समय ही नदी खनन में पर्यावरण सुरक्षा के नियमों की अनदेखी की शिकायत की गई थी। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की टीम भी जांच को आई लेकिन इस मामले में कोई अंकुश नहीं लगाया जा सका। अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में हो रहे अवैध खनन के मुद्दे पर साफ कहते हैं कि अवैध खनन की जानकारी सामने आने पर सरकार सख्त कार्रवाई करेगी।
खनन के क्षेत्र में पारदर्शिता लाने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए अखिलेश कहते हैं कि , ‘खनन के लिए भूमि के पट्टे आवंटित करने में पारदर्शिता लाने के लिए ई-टेंडरिंग व्यवस्था शुरू की गई है ताकि सब कुछ नियमानुसार चले।’ खनन का काम पर्यावरण विभाग की अनुमति के बिना नहीं हो सकता।
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