अपशिष्ट पानी से सीसे का पता लगा सकते हैं सोने के नैनोकण (Gold nanoparticles can detect lead in wastewater)


दैनिक जागरण, आइएसडब्ल्यू, नई दिल्ली, 14 सितम्बर 2017

भारतीय महिलाओं की पसंदीदा धातु सोना वैज्ञानिकों में भी लोकप्रिय होती जा रही है, लेकिन किन्हीं और कारणों से। दरअसल, भारतीय शोधकर्ताओं के एक दल ने सोने के नैनोकण की मदद से अपशिष्ट पानी में सीसे का पता लगाने की आसान विधि तलाश ली है। इससे इस बहुमूल्य धातु की उपयोगिता वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बढ़ गई है।

यह नई तकनीक सोने के ऑप्टिकल गुण पर आधारित है, जिसके अनुसार उसके नैनोकण सीसे जैसी किसी धातु के संपर्क में आने पर अपना रंग बदल देते हैं।

कुछ मिनटों में बदल जाता है रंग


भुवनेश्वर के सीएसआईआर इंस्टीट्यूट ऑफ मिनरल्स एंड मैटीरियल्स टैक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा पानी में सोने के नैनोकणों का एक घोल तैयार किया गया। इस घोल में सीसा मिलाने पर कुछ मिनटों में रंग बैगनी से नीला हो गया। अध्ययन में यह भी सामने आया कि सोने के नैनोकणों के इस घोल को डायलूट करने पर सीसे की अल्प मात्रा की मौजूदगी में भी रंग बदलने में सक्षम था। शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह एक महत्त्वपूर्ण खोज है क्योंकि अपशिष्ट पानी में तो सीसे की बहुत अधिक मात्रा होती है। ऐसे में उसका पता आसानी से लगाया जा सकता है।

तीव्र और एक चरण का है तरीका


अध्ययन की सह लेखक डॉ. निलोपला प्रधान के मुताबिक, विशेष रूप से उत्पन्न सोने के नैनोकणों की मदद से सीसे का पता लगाने वाला यह तरीका तीव्र और एक चरण का है। साथ ही सीसे का पता लगाने वाले परंपरागत तरीकों की तुलना में यह सस्ता भी है।

वह कहती हैं, अपशिष्ट पानी में अन्य जहरीले भारी धातुकणों की मौजूदगी में भी सीसे की कम मात्रा को इस आसान जाँच से पकड़ा जा सकता है।

भारी नुकसान करता है सीसा


साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया कि सीसा बहुत सी ऐसी बीमारियों का कारण बनता है, जिससे बच्चों का मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र व वयस्कों की किडनी हमेशा के लिये खराब हो सकती है। गर्भावस्था में भी यह परेशानी उत्पन्न करता है। औद्योगिक गतिविधियों के चलते पर्यावरण में सीसे की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। वहीं, पर्यावरण में मौजूद सीसे की सबसे अधिक मात्रा पानी में होती है, जो किसी भी तरह से मनुष्यों के लिये सही नहीं है।


Gold, the favourite metal of Indian women, is increasingly becoming popular among scientists as well, though for a different reason. A group of India researchers has used gold nanoparticles to develop a simple method to detect lead in wastewater.

The new technique makes of specially-produced miniscule particles of the yellow metal, and the property of gold nanoparticles to change colour when they ‘bunch-up’ in the presence of metal particles such as lead because of their optical properties.

In the study done by scientists at the CSIR-Institute of Minerals and Materials Technology, Bhubaneswar, a solution of gold nanoparticles was prepared in water. When this solution was exposed to lead, a colour change from violet to blue occurred within a few minutes due to collecting together of nanoparticles. It was also found that diluting the gold-nanoparticle solution resulted in a colour change even when small amount of lead was present. This is important as the quantity of wastewater is usually much more than the amount of lead dissolved in it.

“This method of detecting lead particles using specially-produced gold nanoparticles is a rapid, one-step method. It is a cost-effective method vis-à-vis the more traditional methods of lead detection,”explained Dr Nilotpala Pradhan, co-author of the study. “Lead in small amounts in wastewater even in the presence of other major toxic heavy metal particles is easily picked up by this simple test”, she added. However, she said, more studies are required before the method could be used commercially.

Exposure to lead is known to cause severe and irreversible damage to the brain and nervous system in children, and to the kidneys in adults. It can also result in complications during pregnancy and lead to birth defects. Industrial activities such as smelting, use of pesticides, battery production, landfill leaching are major sources of lead contamination in the environment.

Though there is a maximum acceptable limit of lead in wastewater there is no known ‘safe’ level for humans. According to the World Health Organisation, lead poisoning is completely preventable. Therefore, there is a need of a simple and rapid method for detecting lead that is cost-effective and easily administered in lieu of the existing expensive and time-consuming methods.

The research team included Dr Nilotpala Pradhan and Dr Eepsita Priyadarshini. The results of the study have been published in journal Scientific Reports.

By Monika Kundu Srivastava

Twitter Handle: @monikaksrivast1


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